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अल हिलाल का संपादन किसने किया ? अल हिलाल नामक एक उर्दू समाचार-पत्र प्रारम्भ संपादक कौन थे

जाने अल हिलाल का संपादन किसने किया ? अल हिलाल नामक एक उर्दू समाचार-पत्र प्रारम्भ संपादक कौन थे  ?

प्रश्न: स्वतंत्रता पूर्व व स्वतंत्रता उपरान्त भारत में मौलाना अबुल कलाम आजाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
उत्तर: मौलाना अबुल कलाम आजाद भारत के उन अग्रणी राष्ट्रवादी नेताओं में से एक हैं जिन्होंने न केवल राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया, बल्कि स्वतंत्रता उपरान्त भी देश की एकता, स्थिरता एवं विकास में भी योगदान दिया। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में मौलाना आजाद ने सर्वप्रथम वर्ष 1905 में भाग लिया। इस दौरान वे बंग-भंग के विरोध में क्रान्तिकारी गतिविधियों में शामिल हुए। अरविन्दो घोष तथा श्याम सुन्दर चक्रवर्ती इस दौर में उनके सहयोगी रहे।
राष्ट्रीय आंदोलन में मुसलमानों को जोड़ने तथा उनमें प्रगतिशील विचारधारा फैलाने के लिए भी मौलाना आजाद ने उल्लेखनीय कार्य किए। वर्ष 1912 में उन्होंने अल हिलाल नामक एक उर्दू समाचार-पत्र प्रारम्भ किया, जिसमें उन्होंने प्रगतिशील विचार, कुशल तर्क और इस्लामी जनश्रुतियों एवं इतिहास के प्रति अपने दृष्टिकोण का प्रचार किया तथा प्रगतिशील लेखों से उर्दू पढ़ने वालों में नई जागृति उत्पन्न कर दी। यह वह दौर था जब अंग्रेजों की विभाजनकारी नीतियों के परिणामस्वरूप मुस्लिम लीग भारतीय मुसलमानों को भड़का रही थी। मौलाना का समाचार-पत्र उस समय अत्यधिक लोकप्रिय हो रहा था। राष्ट्रवादी विचारों के प्रसार के कारण अंग्रेजी सरकार ने इसे बन्द करा दिया। इसके उपरान्त मौलाना आजाद ने ‘अल विलाग‘ पत्रिका प्रारम्भ कर अपने विचारों का प्रसार किया।
मौलाना आजाद वर्ष 1920 में गाँधीजी से प्रभावित होकर भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में शामिल हो गए तथा शीघ्र ही इसके सर्वाधिक लोकप्रिय युवा नेताओं में शामिल हो गए तथा वर्ष 1923 में 35 वर्ष की आयु में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष बने। कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में इन्होंने स्वतंत्रता से पूर्व सबसे अधिक समय तक कार्य किया। वर्ष 1940 से 1946 तक के संक्रमणकालीन तथा उथल-पुथल के दौर में भी इसके अध्यक्ष रहे। अपने राजनीतिक दायित्वों को उन्होंने पूरी कुशलता के साथ निभाया था।
स्वतंत्रता के राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान वे लगभग आठ वर्ष जेल में रहे। वर्ष 1945 की शिमला वार्ता के दौरान वे कांग्रेस के आधिकारिक वार्ताकार थे। उन्होंने मुस्लिम लीग के मुसलमानों की एकमात्र प्रतिनिधि संस्था होने तथा जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धान्त को, कांग्रेस में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्शाकर तथा अपने विचारों से गलत साबित कर दिया। स्वतंत्रता के समय जब देश में साम्प्रदायिक तनाव फैला था तथा लाखों की संख्या में मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे तब जामा मस्जिद से ऐतिहासिक भाषण देकर उन्होंने लाखों लोगों को विस्थापित होने से रोका।
स्वतंत्रता के उपरान्त वे देश के प्रथम शिक्षामंत्री बने तथा उन्होंने निःशुल्क शिक्षा, भारतीय शिक्षा पद्धति, उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना में योगदान दिया। उन्होंने, वर्ष 1953 में संगीत नाटक अकादमी, वर्ष 1954 में साहित्य अकादमी तथा वर्ष 1954 में ललित कला अकादमी की स्थापना कर भारतीय साहित्य, संस्कृति की समृद्धि तथा सुरक्षा के लिए मार्ग प्रशस्त किया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) की स्थापना भी मौलाना आजाद के कार्यकाल में की गई।
मौलाना आजाद ने अनेक पुस्तकों की रचना कर भारतीय साहित्य को भी समृद्ध किया। उन्होंने – इण्डिया विन्स फ्रीडम, गबार-ए-खातिर, हिज्र ओ वसल, खतवाल-ल-आजाद, हमारी आजादी और तजकरा आदि पुस्तकों की रचना की। धार्मिक ग्रन्थों में उन्होंने कुरान का उर्दू व अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। स्पष्टतः कह सकते हैं कि मौलाना आजाद ने न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक, साहित्यिक एवं शैक्षिक रूप से देश के विकास में अपना योगदान दिया था।