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periplaneta cockroach in hindi पेरिप्लेनेटा क्या है या कॉकरोच या तिलचट्टा किसे कहते हैं लक्षण वर्गीकरण

जीव विज्ञान के अन्दर periplaneta cockroach in hindi पेरिप्लेनेटा क्या है या कॉकरोच या तिलचट्टा किसे कहते हैं लक्षण वर्गीकरण ?

तिलचट्टा या पेरिप्लैनेटा या कॉकरोच (Periplanata Cockroach)

वर्गीकरण (Clssification)

संघ-आर्थोपोड़ा (Arthropoda): शरीर खण्डयुक्त होता है। शरीर पर कठोर काइटिनी क्यूटिकल का बाह्य कंकाल पाया जाता है। देह खण्डों में सन्धियुक्त उपांग पाये जाते हैं। परिसंचरण तन्त्र खुले प्रकार का होता है।

वर्ग-इन्सेक्टा (Insecta): शरीर सिर, वक्ष एवं उदर में बंटा होता है वक्ष में तीन तथा उदर में अधिकतम 11 खण्ड पाये जाते हैं।

एक जोड़ी शृंगिकाएँ दो जोड़ी जम्भिकाएँ तथा एक जोड़ी मैन्डिबल पाए जाते हैं। गमन के लिए वक्ष में तीन जोड़ी टांगें व प्रायः दो जोड़ी पंख पाए जाते हैं। श्वसन ट्रेकिया द्वारा होता है।

गण-ऑर्थोप्टेरा (Orthopltera) : प्रथम जोड़ी पंख संकरे व चिम्मड होते हैं तथा दूसरी जोड़ी पंख पतले व झिल्लीनुमा होते हैं।

मुखांग चबाने व पीसने के उपयुक्त होते हैं।

वंश-पेरीप्लैनेटा (Periplanata)

जाति-अमेरिकाना (Americana)

स्वभाव एवं आवास (Habits and Habitat)

कॉकरोच अंधेरे, गर्म एवं नम स्थानों पर पाए जाते हैं, जहाँ खाने की वस्तुएँ बहुतायत में पायी जाती हैं। कॉकरोच, घरों, रसोई घरों, भण्डारण गृहों, शौचालयों, बेकरी, रेल के डिब्बे, गोदामों, भोजनालयों, पंसारी व हलवाई की दुकानों, सीवर (sewer) आदि स्थानों पर पाये जाते हैं।

कॉकरोच रात्रिचर (nocturnal) तथा सर्वआहारी (omnivorous) प्राणी होता है। दिन के समय ये अंधेरे स्थानों में छिपे रहते हैं तथा रात्रि के समय भोजन की खोज में बाहर निकलते हैं। दिन में ये दरारों में छिपे रहते हैं तथा शृंगिकाएँ दरार से बाहर निकली रहती है। रात्रि के समय ये अधिक सक्रिय होकर ये इधर-उधर दौड़ते रहते हैं तथा भोजन की खोज करते हैं। कॉकरोच तेज दौड़ने वाला या कोरियल (cursorial) प्राणी होता है। यह सीमित उड़ान करता है। खतरे के समय यह उड़ कर छिपने के स्थान पर चला जाता है। उपयुक्त भोजन न मिलने पर यह पुस्तकों, कागजों, कपड़ों, जूतों आदि वस्तुओं को कुतर कर हानि पहुंचाता है। घरों में कॉकरोचों को भगाने के लिए डी.डी.टी. पाइरीथ्रिन, गैमैक्सीन आदि कीटनाशक दवाईयाँ छिड़कते हैं।

बाह्य लक्षण (External features):

कॉकरोच का शरीर संकरा, लम्बा व पृष्ठ से प्रतिपृष्ठ की तरफ चपटा होता है। वयस्क कॉकरोच गभग 3 से 4.5 से.मी. तथा 1.5 से 2 सेमी. चौड़ाई होती है। इसका शरीर खण्ड युक्त है। इसका रंग चमकीला भूरा होता है। नर व मादा कॉकरोच पृथक होते हैं। नर कॉकरोच कुछ छोटा और अधिक चपटा होता है।

कॉकरोच का शरीर स्पष्ट रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है-

(i) सिर (Head) (ii) वक्ष (Thorax) (iii) उदर (Abdomen)

  1. 1. सिर (Head): कॉकरोच का सिर छोटा, त्रिभुजाकार एवं नाशपाती के आकार का होता है। सिर एक संकरी ग्रीवा द्वारा वक्ष के समकोण पर जुड़ा रहता है। सिर पूर्णतया काइटिनी कंकाल से ढका रहता है अत: इसे शीर्ष सम्पुट (head capsule) कहते हैं। सिर छः भ्रूणीय खण्डों के समेकन से बना होता है। सिर के ऊपरी पृष्ठ भाग में दो संयुक्त नेत्र पाये जाते हैं जो गहरे काले रंग के वृक्काकार धब्बों के रूप में स्थित होते हैं। शीर्ष सम्पुट कई प्लेटों के समेकन से बना होता है जो निम्न प्रकार है

(i) एक जोड़ी अधिकपाल प्लेटें (epicranial plates), जो सामने की तरफ उल्टे “YR)” अक्षर के आकार की सीवन (suture) द्वारा परस्पर जुड़ी रहती है। इस सीवन की अधिकपालीय सीवन (epicranial suture) कहते हैं तथा दोनों प्लेटों को संयुक्त रूप से वर्टेक्स (vertex) कहते

(ii). फ्रॉन्स (Frons): अधिकपालीय प्लेटों के ठीक नीचे एक त्रिभुजाकार बड़ी प्लेट पायी जाती है जिसे फ्रॉन्स कहते हैं।

(iii). क्लाइपियस (Clypeus) : यह एक आयताकार प्लेट होती है जिसका निचला सिरा झिल्ल्नुमा होता है, जिसमें लेब्रम (labrum) जुड़ा रहता है।

(iv) जेनी (Genae): ये एक जोडी प्लेटें होती हैं तथा सिर के दोनों पार्श्व तलों पर पायी जाती है।

सिर पर ही प्रत्येक संयुक्त नेत्र के निकट पृष्ठ तल पर एक हल्के रंग का छोटा सा क्षेत्र पाया जाता है जिसे गवाक्ष या फेनेस्ट्रा या ऑसेलर चिन्ह (fenestra or ocellar spot) कहते हैं। इन्हें अविकसित सरल नेत्र (simple eye) माना जाता है। प्रत्येक संयुक्त नेत्र के सामने एक लम्बी, पतली खण्डयुक्त शृंगिका (antenna) पायी जाती है। प्रत्येक शृंगिका तीन भागों से मिलकर बनी होती है(1) स्केप (scape) या प्रवृन्त (2) पेडिसिल या वृन्त (pedicil), (3) फ्लेजेलम या कशाभ (flegellum)| कशाभ लम्बा खण्ड युक्त एवं संवेदी भाग होता है। इस पर अनेक संवेदी शूक (sensory setae) पायी जाती है। ये कॉकरोच को स्पर्श ज्ञान कराती है। सिर के निचले नुकीले छोर पर मुख पाया जाता है जो मुखांगों से घिरा रहता है। सिर की गुहा एक बड़े आक्सीपिटल रन्ध्र (occipital foramen) द्वारा ग्रीवा की गुहा से जुड़ी रहती है।

सिर के उपांग : सिर में छ: जोड़ी उपांग पाये जाते हैं। इनमें से एक जोड़ी शृंगिका के अलावा शेष पांच जोड़ी उपांग संयुक्त रूप से मुखांग (mouth parts) कहलाते हैं। जो निम्न प्रकार है-1. लेब्रम (labrum), 2. मेंडिबल, 3. प्रथम जोड़ी जम्भिका (first pair of maxillae), 4 द्वितीय जोड़ी जम्भिका या अधरोष्ठ (Second pair of maxillae or labium) 5. अधोग्रसनी (hypopharynx)|

  1. लेबम (Labrum) या ऊोष्ठ : यह. काइटिन की बनी चौड़ी आयताकार प्लेट होती है जो क्लाइपियस (clypeus) से जुड़ी रहती है। इसे ऊोष्ठ या ऊपरी ओष्ठ (upper lip) भी कहते है। इसका स्वतंत्र सिरा थोडा कटा हुआ होता है। इसकी अधर सतह पर रससंवेदी शूकों (gustatory setae) की दो पंक्तियाँ पायी जाती है जो स्वाद ज्ञान कराती हैं। यह लचीली पेशियों द्वारा क्लाइपियस से जुड़ी रहती है जिनके संकचन से यह ऊपर नीचे गति करती है। यह सिर के तीसरे खण्ड के उपांगों को निरूपित करती है।
  2. मेन्डिबल (Mandible) : ये एक जोडी काले रंग के कठोर उपांग होते हैं जो मुख द्वार के पार्श्व में लेब्रम के नीचे स्थित होते हैं। प्रत्येक मेन्डिबल त्रिभुजाकार, कठोर व काइटिन की बनी होती है। इसके अग्र किनारे पर तीन बड़े तथा कई छोटे-छोटे मजबूत दांत जैसे नुकीले उभार (denticles) पाये जाते हैं। इसमें एक छोटा चिकना चर्वणक क्षेत्र पाया जाता है जिसे चिबुक पालि या प्रोस्थीका (prostheca) कहते हैं। इस पर संवेदी रोम पाये जाते हैं। नुकीले उभार या दन्तिकाएँ अन्तर्गंथन (interlocking) संरचनाओं की तरह कार्य करती है व भोजन को कुतरने का कार्य करती है, जबकि चर्वणक क्षेत्र भोजन को पीसने वाली सतह होती है। मेन्डिबल कन्दुक-गर्तिका (ball and socket) सन्धि द्वारा शीर्ष के साथ जुडी पेशियाँ पायी जाती हैं जिन्हें अभिवर्तनी (adductor) तथा अपवर्तनी (abductor) पेशियाँ कहते हैं। इनके संकुचन व प्रसार से दोनों मेन्डिबल एक-दूसरे के समीप लाई जाती है व दूर ले जाई जाती है। मैन्डिबल सिर के चौथे खण्ड के उपांगों को निरूपित करते हैं।

 

  1. प्रथम जोड़ी जम्भिकाएँ (First pair of maxillae): ये मुखद्वार के पाश्वों में स्थित होते है तथा खण्डयुक्त उपांग होते हैं। प्रत्येक जम्भिका कई खण्डों से मिलकर बनी होती है। इसका आधारी खण्ड कार्डो (Cardo) कहलाता है, जो पेशियों द्वारा सिर कोष से जुड़ा रहता है। स्टाइपेज (stipes) लम्बा बेलनाकार खण्ड होता है तथा कार्डों से 90° के कोण पर जुड़ा रहता है। काड़ों तथा स्टाइपेज मिलकर पूर्वपादांश (protopodite) का निर्माण करते हैं। स्टाइपेज के बाहरी किनारे पर एक पतला पांच खण्डों का बना बाह्यपादांश (expodite) जुड़ा रहता है जिसे जम्भिका स्पर्शक (maxillary palp) कहते हैं। स्पर्शक का आधारी भाग पैल्पीफर (palpifer) कहलाता है। जम्भिका स्पर्शक पर अनेक कठोर संवेदी रोम पाये जाते हैं। स्टीपेज के भीतरी छोर पर अन्तःपादांश (endopodite) जुड़ा रहता है जो दो भागों का बना होता है-बाहरी भाग गेलिया (galea) तथा भीतरी भाग लेसीनिया (lacinia) कहलाता है। गैलिया आगे से चौडा छत्ररूपी (hood like) होता है तथा केमल होता है। लेसीनिया कोर तथा पंजेनुमा होता है। इसमें आगे की तरफ एक जोड़ी तीक्ष्ण दन्तिकाएँ या लेसीन्युला (lacinula) पाये जाते हैं। लेसीनिया की सहायता से जम्भिकाएँ भोजन को उस समय पकड़े रहती हैं जब मैन्डिबल्स द्वारा भोजन चबाया जाता है। ये सिर के पांचवे खण्ड के उपांगों को निरूपित करते हैं।
  2. द्वितीय जोड़ी जम्भिकाएँ या लेबियम (Second pair of maxillae or labium): द्वितीय जोड़ी जम्भिकाएँ परस्पर समेकित होकर एक सह-रचना का निर्माण करती है जिसे लेबियम या अधरोष्ठ कहते हैं। यह मुख गुहा के अधर तल पर प्रथम जोड़ी जम्भिकाओं के पीछे स्थित होता है। लेबियम का आधारी भाग बड़ा चपटा, प्लेट नुमा होता है जिसे सबमेन्टम (submentum) कहते हैं। इसके आगे की तरफ एक छोटी प्लेट, मेन्टम (mentum) पायी जाती है। मेन्टम के ऊपर प्रीमेन्टम (pre-mentum) पायी जाती है। सब मेन्टम, मेन्टम तथा प्रीमेन्टम मिलकर द्वितीय जोड़ी जम्भिकाओं के पूर्व पादांश (protopodite) को निरूपित करते हैं। लेबियम के पाश्व तलों से एक-एक त्रिखण्डीय संरचना निकलती है जिसे लेबियल स्पर्शक (labial palp) कहते हैं यह बहिदांश को निरूपित करता है। लेबियल स्पर्शक का आधारी खण्ड पेल्पीजर (palpiger) कहलाता है। इसकी सम्पूर्ण सतह पर संवेदी शूक पाये जाते हैं। प्रीमेन्टम के स्वतन्त्र छोर पर मध्य में दो छोटी-छोटी संरचनाएँ पायी जाती है जिन्हें ग्लोसी (glossae) कहते हैं तथा भीतर की तरफ पैराग्लोसी (Paraglossae) पाये जाते हैं, ये दोनों संरचनाएँ अन्तः पादांश को निरूपित करती हैं। ग्लोसी व पेराग्लोसी को संयुक्त रूप से लिगुला (Ligula) भी कहते हैं। ये सिर के छठे खण्ड के उपांग होते हैं।
  3. हाइपोफेरिंक्स या अधोग्रसनी (Hypopharynx) : लेबियम के पृष्ठतल पर, लेब्रम से ढकी, प्रथम जोड़ी जम्भिकाओं के मध्य एक नलिकाकार संरचना लगी होती है जिसे हाइपोफेरिक्स या अधोग्रसनी कहते हैं। यह मुख गुहा में पाई जाती है तथा जिव्हा की तरह कार्य करती है। इसकी अधर सतह पर सह लार वाहिका खुलती है।
  4. वक्ष (Thorax): वक्ष तीन खण्ड़ों का बना होता है। जिन्हें क्रमशः अग्रवक्ष (prothorax), मध्य वक्ष (mesothorax) तथा पश्च वक्ष (metathorax) कहते हैं। वक्ष के प्रत्येक खण्ड में एक ‘ जोड़ी चलन टांगे पाई जाती हैं। वक्ष के ही मध्य वक्ष तथा पश्च वक्ष में एक-एक जोड़ी पंख भी पाये जाते हैं। टाँगों तथा पंखों को वक्षीय उपांग कहते हैं।
  • चलन टांग (Walking leg) : प्रत्येक चलन टांग मुख्य रूप से पांच पदखण्डों (podomeres) की बनी होती है। ये पादखण्ड एक क्रम में जमे होते हैं जो निम्न प्रकार है

1.कक्षांग (Coxa) : यह एक चौड़ा व छोटा खण्ड होता है जो सबसे आधारी खण्ड होता है। यह चल सन्धि द्वारा अपने खण्ड के प्लूरोन से जुड़ा रहता है।

(ii) शिखरक (Trochanter) : यह एक छोटा तथा कक्षांग पर अचल रूप से जुड़ा त्रिभुजाकार पदखण्ड होता है।

(iii) फीमर (Femur) : यह पदखण्ड एक लम्बी दृढ़ बेलनाकार व कांटेदार संरचना होती है।

(iv) टिबिया (Tibia): यह भी एक लम्बा, कांटेदार पद खण्ड होता है। यह पदखण्ड सबसे लम्बा होता है।

(v) टारसस (Tarsos) : यह एक लम्बा पतला पदखण्ड होता है जो स्वयं पांच खण्डों का बना होता है जिन्हें टारसोमियर्स (tarsomeres) कहते हैं। प्रथम चार टारसोमियर्स में से प्रत्येक टारसोमियर्स पर एक कोमल गद्दी या पादवर्ध (plantula) पाया जाता है। अन्तिम टारसोमियर जिसे पीटारसस (pretarsus) कहते हैं, के अन्तिम सिरे पर दो हुक दार नखर पाये जाते हैं। इन नखरों के ‘बीच एक कोमल सछिद्र गद्दी पायी जाती है जिसे पदपल्प (pulvilus) पदवर्ध तथा पदपल्प चिपचिपी गद्दियाँ होती है जो कॉकरोच को चिकनी सतह पर चलने में सहायता करती हैं।

(b) पंख (Wings) : कॉकरोच में दो जोड़ी पंख पाये जाते हैं। इनमें से एक जोड़ी मध्यवक्ष तथा एक जोड़ी पश्चवक्ष पर पाये जाते हैं। मध्य वक्षीय पंख गहरे रंग के चिम्मड़ (leathery) तथा परांध होते हैं, इन्हें इलिट्रा (elytra) या टेग्मिना (tegmina) कहते हैं। विश्राम के समय ये पश्च वक्षीय पंखों को ढके रखते हैं। ये पंख उडने के काम नहीं आते हैं। पश्च वक्षीय पंख पारदर्शी, झिल्लीनुमा (membranous) होते हैं तथा उड़ने के काम आते हैं।

III. उदर (Abdomen) : कॉकरोच का उदर 10 खण्डों का बना होता है। उदर के पिछले खण्ड अन्तर्विद्ध (telescoped) होते हैं। उदर के अन्तिम खण्ड में एक जोड़ी सन्धि युक्त तन्तुमय गुदीय सिरस (anal cirri) पायी जाती है। नर कॉकरोच में इनके नीचे नवें खण्ड से एक जोड़ी छोटी धागे समान शूक निकलते हैं। जिन्हें गुदाशूक (anal styles) कहते हैं।