WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

प्रॉन बाह्य कंकाल (Exoskeleton) स्कलैराइट्स (sclerites in hindi) पेलिमॉन उपाँग (Appendages)

यहां हम जानेंगे कि प्रॉन बाह्य कंकाल (Exoskeleton) स्कलैराइट्स (sclerites in hindi) पेलिमॉन उपाँग (Appendages)  ?

बाह्य कंकाल (Exoskeleton)

प्रॉन के सम्पूर्ण शरीर एवं उपांगों पर कठोर काइटिन का बना बाह्य कंकाल पाया जाता है। इसमें चूने के लवण तथा स्कलैरोटिन (sclerotin) भी पाया जाता है। बाह्य कंकाल कई प्लेटों से मिलकर बनता है जिन्हें स्कलैराइट्स (sclerites) कहते हैं।

सिरोवक्ष वाले भाग के सभी पृष्ठीय 13 स्क्लैराइट्स आपस में जुड़कर शील्ड समान संरचना केरापेस (carapace) का निर्माण करते हैं। आगे की तरफ केरापेस एक आरी समान दांतेदार संरचना में विकसित होता है इसे तुण्ड या रॉस्ट्रम (rostrum) कहते हैं। रॉस्ट्रम दोनों पार्श्व की तरफ से सम्पीडित (compressed) होती है। रॉस्ट्रम के आधार पर, प्रत्येक पार्श्व में एक अक्षि खांच (orbital notch) पाई जाती है, जिसमें संयुक्त नेत्र का वृन्त समाया रहता है। केरापेस के अग्रभाग में अक्षि खांच के पार्श्व में दो छोटे-छोटे कंटकीय प्रवर्ध निकले रहते हैं जिनमें से एक को श्रृंगीय कंटक (antennal spine) तथा दूसरे को यकृत कंटक (hepatic spine) कहते हैं। केरापेस वक्ष के पार्श्व में स्वतंत्रता पूर्वक लटका रहता है इसे गिलावरक या क्लोमावरक (branchio stegite) कहते हैं। इसके तथा वक्ष के बीच में गिल कक्ष (gill chamber) पाया जाता है जिसमें गिल या क्लोम पाये जाते हैं। सिरोवक्ष की पृष्ठ व पार्श्व सतह को तो केरोपेस ढ़के रखता है परन्तु अधर सतह पर प्रत्येक खण्ड का स्टनम पाया जाता है। सबसे प्रथम खण्ड की स्टर्नम को नेत्री स्टर्नम (opthalmic sternum) कहते हैं। इसके पीछे शृंगीकीय स्टर्नम (antennular sternum) एवं इससे पीछे शृंगीय स्टनम (antennal sternum) पाया जाता है। तीसरे व चौथे खण्ड में स्टर्नम का अभाव होता है क्योंकि तीसरे व चौथे खण्ड के बीच अधरीय मुख पाया जाता है। मुख आगे के तरफ लेब्रम (labrum) तथा पीछे की तरफ लेबियम (labium) द्वारा सीमित होता है। 5 से 13 खण्डों तक के स्टर्नम समेकित होकर वक्ष का फर्श बनाते हैं। इसी तरह 5 से 13 खण्डों के पार्श्व में 9 जोड़ी काइटिनी स्कलेराइट्स पाये जाते हैं जिन्हें एपिमेरॉन (epimeron) कहते हैं।

प्रॉन के उदर भाग में 6 खण्ड पाये जाते हैं। प्रत्येक खण्ड के स्क्लेराइट्स अलग-अलग होते हैं यानि ये सिरोवक्ष की तरह समेकित (fused) नहीं होते हैं। उदर के प्रत्येक खण्ड के पृष्ठ की तरफ टर्गम या टरगाइट (tergum or tergite) पाया जाता है जो चौड़ा तथा पृष्ठ की तरफ गोलाई लिए हुए होता है। प्रत्येक खण्ड की अधर में स्टर्नम या स्टर्नाइट (sternum or sternite) पाया जाता है एवं पार्श्व में प्लूरॉन (pleuron) पाये जाते हैं। प्रत्येक दो खण्डों के बीच की ये प्लेट्स आपस में संधिकला (arthrodial membrane) द्वारा आपस में जुड़ी रहती है। प्रत्येक दो खण्डों के टर्गम को आपस में जोड़ने वाली संधिकला को अन्तरा टर्गम संधिकला (inter tergal arthrodial membrane) तथा दो खण्डों के स्टर्नम को आपस में जोड़ने वाली संधि कला का अन्तरा स्टर्नल संधिकला (inter sternal membrane) कहते हैं। प्रत्येक खण्ड के उपांग अपनी-अपनी तरफ के प्लूरोन (pleuron) से एक छोटी प्लेट एपिमेरोन (epimeron) द्वारा जुड़े रहते हैं। ये एपिमेरोन प्लरोन के ही भाग होते हैं।

उदर में प्रत्येक खण्ड अपने से पिछले खण्ड के साथ-साथ पार्श्वत: एक जोड़ी कब्जा सन्धियों (hinge joint) द्वारा जुड़ा रहता है। यह कब्जा सन्धि (hinge joint) एक गुलिका तथा एक गर्तिका की बनी होती है। इनके द्वारा एक खण्ड दूसरे खण्ड पर उदग्र समतल में गति कर सकता है लेकिन अलग-अलग गति करना संभव नहीं होता है।

प्रॉन के प्रत्येक खण्ड में एक जोड़ी उपांग पाये जाते हैं। ये उपांग भी काइटिनी क्युटिकल के बाह्य कंकाल द्वारा ढके रहते हैं। अधिकांश उपांगों में यह कंकाल नलिकाकार खण्डों अथवा पाद खण्डों में विभाजित होता है। ये पाद खण्ड परस्पर एक लचीली संधिकला द्वारा आपस में जुड़े रहते हैं। इस तरह प्रत्येक जोड़ पर एक संधि पायी जाती है, जिसके कारण उपांगों के पादखण्डों में गति सम्भव होती है। प्रत्येक पाद खण्ड में क्यूटिकल की भीतरी सतह पर दो प्रकार की पेशियाँ जुडी रहती हैं (1) बहिकर्षी तथा (2) अन्त:कर्षी। ये पेशियाँ उपांगों के प्रसारण (extension) तथा आकोंचन (flexion) को नियंत्रित करती हैं। इसमें पेशियाँ व क्यूटिकल परस्पर मिलकर लीवर पद्धति की तरह  कार्य करते हैं। गमन में पेशियों व कंकाल का यह समन्वय वैसा ही होता है, जैसा कशेरुकियों में पाया जाता है। केवल इतना ही अन्तर होता है कि प्रॉन में पेशियाँ बाह्य कंकाल से जुड़ी रहती हैं जबकि कशेरुकियों में ये पशियाँ अन्तः कंकाल से जुड़ी रहती हैं।

प्रॉन का अन्तः कंकाल (Endoskeleton of Prawn):

क्यूटिकल की अन्त:वृद्धियों के कारण प्रॉन में एक अन्तः कंकाल निर्मित होता है। इन अन्तः वृद्धियों को एपोडीम्स (apodemes) कहते हैं। ये एपोडीम्स पेशियों के निवेशन (insertion) का कार्य करते हैं। प्रॉन में ये एपोडीम परस्पर जुड़कर एक अन्तः फ्रेग्मा कंकाल का निर्माण करते हैं। यह कंकाल सिरोवक्ष के एपिमेरोन व स्टर्नम के बीच पड़ी शलाकाओं के रूप में पाया जाता है। इसका सबसे अधिक विकास 3/4 खण्ड और 11/12 तथा 12/13 खण्ड के बीच-बीच में होता है। तीसरे व चौथे खण्ड के बीच में दो बड़े एपोडीम पाये जाते हैं, जो एक अनुप्रस्थ सूत्र द्वारा आपस में जुड़े रहते हैं। ये दोनों एपोडीम मिलकर सिफेलिक एपोडीम बनाते हैं, जिनसे मेन्डिबल की पेशियाँ जुड़ी रहती है। इसके बाद प्रत्येक खण्ड में पार्श्व की तरफ दो एपोडीम पाये जाते हैं। इनमें से एक जो एपिमेरोन से निकलता है, अन्त: प्लूराइट (endopleurite) व दूसरा जो स्टर्नम से निकलता है, अन्तः स्टरनाइट (endosternite) कहलाता है। खण्ड 11 व 12 तथा 12 व 13 के बीच पार्श्व पर अन्तः स्टरनाइट से एक “Y” के आकृति की शाखा निकलती है इसकी भीतरी शाखा को मध्य फ्रेग्मा (mesophragma) तथा बाहरी शाखा को परा फ्रेग्मा (para phragma) कहते हैं। ये दोनों शाखाएँ उदर की आकोंचनी उदर पेशियों (flexor abdominal muscles) को जुड़ने का स्थान प्रदान करती है।

उपाँग (Appendages)

प्रॉन के शरीर के प्रत्येक खण्ड में एक जोडी सन्धित उपाँग पाये जाते हैं। अन्य क्रस्टेशियन । प्राणियों की तरह इसके उपाँग भी द्विशाखित (biramous) प्रकार के होते हैं। प्रत्येक उपाँग में एक  अधि पादांश (protopodite) तथा दो शाखाएँ (rami) पायी जाती है। अधिपादाश (protopodite) दो खण्डों का बना होता है। इनमें से शरीर से जुड़ने वाला खण्ड कक्षांग (coxa) तथा दूरस्थ खण्ड आधार (basis) कहलाता है। आधार (basis) पर दोनों शाखाएँ (rami) जुड़ी रहती है। इन शाखाओं में से एक बाहर की तरफ तथा एक भीतर की जुड़ी रहती है। बाहर की तरफ जुड़ने वाली शाखा बहिर्पादांश (exopodite) तथा भीतर की तरफ जुड़ने वाली शाखा अन्तः पादांश (endopodite) कहलाती है।

प्रॉन में कुल 19 जोड़ी उपाँग पाये जाते हैं इन्हें निम्न समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है

  1. सिरोवक्षीय उपाँग-13 जोड़ी (Cephalo-thoracic appendages)
  2. शीर्षस्थ उपाँग-5 जोड़ी (Cephalic Appendages)
  3. वक्षीय उपाँग-8 जोड़ी (Thoracic Appendages)
  4. उदरीय उपाँग-6 जोड़ी (Abdominal Appendages)
  5. शीर्षस्थ उपाँग (Cephalic appendages) : प्रॉन का सिर पाँच खण्डों का बना होता है तथा उसमें पाँच जोड़ी उपांग पाये जाते हैं, जो निम्न प्रकार है
  6. प्रशृंगिकाएँ (Antennules) श्रृंगिकाएँ (Antennae) मेडिबल (Mandibles)
  7. लघु जम्भिकाएँ (Maxillulae)
  8. जाम्भिकाएँ (Maxillae)
  9. प्रशृंगिकाएँ (Antennules) ये एक शाखित (uniramous) तथा मुख पूर्वी उपाँग होते हैं। ये सिर के प्रथम खण्ड के उपाँग हैं जो नेत्र वृन्तों के आधारों के नीचे जुड़ी रहती है। प्रत्येक प्र श्रृंगिका का अधिपादांश (protopodite) तीन खण्डों का बना होता है जो निम्न प्रकार है- (i) अग्रकक्षांग (precoxa) (ii) कक्षांग (coxa) (iii) आधार (basis) । अग्रकक्षांग (precoxa) बड़ा व चपटा खण्ड होता है इसकी पृष्ठ सतह पर एक गर्त पाया जाता है जिसमें सन्तुलन पुटी (statocyst) का छिद्र खुलता है। यह त्वचा द्वारा ढका रहता है। अग्रकक्षांग के बाहरी किनारे पर एक कंटपालि (stylocerite) पायी जाती है। अग्र कक्षांग पर एक बेलनाकार कक्षांग (coxa) पाया जाता है तथा कक्षांग पर आधार (basis) स्थित होता है। आधार पर दो लम्बे और बहुत से खण्डों के बने चाबुक समान संस्पर्शक (feelers) पाये जाते हैं, जो सम्भवतः बहिर्पादांश (exopodite) तथा अन्तः पादांश (endopodite) के समांग नहीं होते हैं। इनमें से बाहरी संस्पर्शक फिर से दो शाखाओं में विभक्त होता है। प्रभृतिकाओं पर संवेदी शूक पाये जाते हैं तथा ये स्पर्शग्राही (tactile) संवेदी अंग होते हैं।

प्रॉन या पेलिमॉन

  1. शृंगिकाएँ (Antennae) : प्रशृंगिकाओं की तरह शूगिकाएँ भी मुख पूर्वी उपाँग होते हैं। ये प्रगिकाओं के ठीक नीचे स्थित होती है। ये भी एक जोड़ी होती है। प्रत्येक शृंगिका का अधिपादांश (Protopodite) दो खण्डों का बना होता है, कक्षांग (coxa) तथा आधार (basis) इनका अधिपादांश अत्यधिक फूला हुआ होता है क्योंकि इसमें उत्सर्जी अंग उपस्थित होते हैं। कक्षांग के भीतरी किनारे पर ये उत्सर्जी अंग एक उत्सर्जी छिद्र द्वारा बाहर खुलते हैं। शृंगिका में बहिर्पादांश तथा अन्त: पादांश पाये जाते हैं। बहिदांश एक पतली, चपटी पत्ती समान संरचना होती है जिसे स्केल या स्क्वेमा (scale or squama) कहते हैं। इसके बाहरी कनिारे पर शूक पाये जाते हैं। यह सम्भवत् तैरते समय सन्तुलन बनाये रखने का कार्य करता है। शृंगिका का अन्तः पादांश एक बहु सन्धित संस्पर्शक (feeler) के रूप में पाया जाता है। यह स्पर्शग्राही संवेदी अंग की तरह कार्य करता है। इस तरह शृंगिका उत्सर्जन, सन्तुलन तथा संवेदी अंग की तरह कार्य करती है।
  2. 3. मेन्डिबल (Mandibles) : ये एक जोड़ी छोटी किन्तु कठोर कैल्सियमी (calcified) उपाँग होते हैं जो मख के दोनों ओर स्थित होते हैं। प्रत्येक मेन्डिबल सम्पूर्ण रूप से कक्षांग (coxa) की ही बनी होती है। इसका समीपस्थ त्रिभुजाकार व लगभग खोखला भाग अधःस्फीतिका या एपोफाइसिस (apophysis) कहलाता है तथा दूरस्थ भाग सिर (head) कहलाता है। सिर में दो प्रकार के प्रवर्ध पाये जाते हैं जिनमें से एक कृतक प्रवर्ध (incisor process) तथा दूसरा चर्वणक प्रवर्ध (molar process) कहलाता है। कृतक प्रवर्ध (incisor process) बाहर की तरफ स्थित होता है तथा इसमें तीन दन्तिकाएँ पायी जाती हैं। चवर्णक प्रवर्ध (molar process) भीतर की तरफ स्थित ‘ होता है तथा इसमें पाँच या छः दन्तिकाएँ पायी जाती है। सिर के बाहरी किनारे पर तीन खण्डों का ‘बना मेन्डिबुलर पैल्प (mandibular palp) पाया जाता है। इसका प्रारम्भिक खण्ड आधार (basis) ‘ को तथा दो दूरस्थ खण्ड अन्तः पादांश (endopodite) को निरूपित करते हैं। इसमें बहिर्पादांश का अभाव होता है। दोनों मेन्डिबल भोजन को कुतरने व पीसने का कार्य करते हैं।
  3. लघु जम्भिकाएँ (Maxillulae): ये छोटे, पतले, कोमल चपटे पत्ती समान उपाँग होते हैं। प्रत्येक लघु जम्भिका कक्षांग (coxa), आधार (basis) तथा अन्त:पादाश (endopodite) की बनी होती है। बहिदांश (exopodite) अनपस्थित होता है। कक्षांग तथा आधार के स्वतन्त्र किनारों पर शक पाये जाते हैं जो अन्दर की तरफ हन आधारों (onathobases) की भाति उभर रहत है। ये मख में भोजन के परिचालन में सहायक होते हैं।
  4. जम्भिकाएँ (Maxillae) : ये भी पतली, कोमल, चपटी, पत्ती समान एक जोड़ी उपांग होते हैं जो मुख के पीछे की तरफ स्थित होती है। प्रत्येक जम्भिका कक्षांग (coxa), आधार (basis), अन्त:पादांश (endopodite) तथा बहिदांश (expodite) की बनी होती है। इनका कक्षांग छोटा किन्तु एक अनुप्रस्थ दरार द्वारा आशिक रूप से दो खण्डों में विभक्त होता है। आधार बड़ा होता है तथा भीतर की तरफ दो शाखाओं में विभक्त होकर एक द्विशाखित हनु आधार (gnathobases) का निर्माण करता है। इसका अन्त:पादांश बिल्कुल छोटा पालि (lobe) समान होता है तथा बहिर्पादांश एक बड़ा फैले हुए पंखे के समान होता है। इसे स्केफोग्नेथाइट (scaphognathite) कहते हैं। यह गिल प्रकोष्ठ में गुजरने वाली जलधारा को उत्पन्न करता है। स्केफोग्नेथाइट की सम्पूर्ण बाहरी सतह पर छोटे-छोटे शूक पाये जाते हैं। जम्भिकाएँ भोजन के परिचालन तथा श्वसन में सहायक होती है।
  5. वक्षीय उपाँग (Thoracic appendages)

प्रॉन के वक्षीय भाग में आठ जोड़ी उपांग पाये जाते हैं जिन्हें दो समूहों में बांटा जा सकता है

(A) जम्भिका पाद (Maxillaepedes)

(B) चलन टांगें (Walking legs)

(A) जम्भिका पाद (Maxillaepedes) : ये तीन जोड़ी होते हैं तथा ये भोजन को पकड़ने व परिचालन में सहयोगी होते हैं।

(i) प्रथम जोड़ी जम्भिका पाद (First Pair of Maxillaepede) : ये पतले. कोमल चपटे, पत्तीनमा उपांग होते हैं। ये वक्ष के प्रथम खण्ड के उपांग होते हैं। कक्षांग तथा आधार हनु

आधार (gnathobases) का निर्माण करते हैं। कक्षांग के बाहरी किनारे पर एक द्विपालित अधिपादांश (epipodite) या आदि क्लोम (primitive gill) पाया जाता है। आधार पर एक अन्तःपादांश (epipodite) तथा बहिदांश (expodite) पाया जाता है। अन्तः पादांश छोटा तथा बहिदांश बड़ा होता है। बहिदांश के आधार से एक प्लेटनुमा प्रवर्ध निकला रहता है। बहिदांश तथा अन्तःपादाश के किनारों पर शूक पाये जाते हैं।

(ii) द्वितीय जोड़ी जम्भिका पाद (Second pair of Maxillaepede) : प्रथम जोड़ी जम्भिका पाद के समान ये भी पतले कोमल चपटे पत्तीनुमा उपांग होते हैं। इनका कक्षांग छोटा होता है तथा इसके बाहरी किनारे पर एक अधिपादांश (epipodite) तथा एक पाद क्लोम (podobranch) पाया जाता है। आधार भी छोटा ही होता है। इसके बाहरी किनारे पर एक लम्बा बेलनाकार अखण्डित बहिर्पादांश पाया जाता है जो शूकों द्वारा ढका रहता है। आधार पर ही पांच खण्डों से बना अन्त:पादांश पाया जाता है, अन्त:पादांश के पांचों खण्ड क्रमशः एक-दूसरे पर पाये जाते हैं जिनके नाम निम्न प्रकार है-श्रोणिखण्ड (ischium), ऊरु खण्ड (merus), मणिबन्ध (carpus), पूर्व खण्ड (propodus) तथा अंगुलि खण्ड (dactylus)। इनमें से अन्तिम दो खण्ड अर्थात् पूर्व खण्ड तथा अंगुलि खण्ड भीतर की तरफ झुके रहते हैं तथा इनके किनारे काटने वाले होते हैं।