अवमंदित सरल आवर्ती दोलक क्या है , ऊर्जा, शक्ति क्षय एवं विशेषता गुणांक Damped Simple Harmonic Motion in hindi
Damped Simple Harmonic Motion in hindi अवमंदित सरल आवर्ती दोलक क्या है , ऊर्जा, शक्ति क्षय एवं विशेषता गुणांक ?
अवमान्दत सरल आवत्ती दोलक (Damped Simple Harmonic Motion)
घर्षण या श्यान बल की अनुपस्थिति में जब कोई कण या दोलक गति करता है तो दोलक के आयाम तथा ऊजो दाना समय के सापेक्ष नियत रहते हैं। परन्तु व्यवहार में किसी भी वायु या द्रव माध्यम में दोलन गति करने वाले कण पर प्रत्यानयन बल के साथ-साथ घर्षण या श्यान बल भी कार्य करते है। इनके फलस्वरूप दोलक के आयाम तथा ऊर्जा में लगातार कमी होती है। ऐसे दोलक को अवमन्दित सरल आवर्ती दोलक कहते हैं।
स्पष्टतः वायु या द्रव माध्यम में दोलन गति करने वाले कण तंत्र पर दो प्रकार के बल लगते है।
(1) प्रत्यानयन बल (Restoring Force)
FR = – kx, यह बल दोलक पर सदैव सन्तुलन बिन्दु की ओर लगता है और दोलक के विस्थापन x के अनुक्रमानुपाती होता है। यहाँ k दोलक का बल नियतांक है।
(2) घर्षण या श्यान बल (Frictional or Viscous Force)
Fd = – λv ये बल दोलन में सदैव रूकावट डालते है और वेग के अनुक्रमानुपाती होते हैं। यहाँ v दोलक का वेग तथा λ अवमन्दन गुणांक है।
दोलक पर कार्यरत परिणामी बल F = FR + Fd
F =- kx – λ dx/dt
अवमन्दित दोलक के गति का समीकरण होगा
M d2x/dt2 = – kx – λ dx/dt
यहाँ m दोलक का द्रव्यमान है तथा समय t पर दोलक का त्वरण d2x/dt2
D2x/dt2 + λ/m dx/dt + k/m x = 0 ………………………..(1)
समीकरण (1) में λ/m -2r तथा k/m = ω02 रखने पर
D2x/dt2 + 2r dx/dt + ω02x = 0 …………………..(2)
यह समीकरण अवमन्दित सरल आवर्ती दोलक का अवकल समीकरण है। वायु मे सरल का दोलन, स्प्रिंग से लटके भार का दोलन, प्रेक्षप (Ballistic) धारामापी में कुण्डली का दोलन तथा LCR परिपथ में आवेश का दोलन इत्यादि के अवकल समीकरण उपरोक्त समीकरण कर सकते हैं।
समीकरण (2) को हल करने के लिए मान लीजिये इसका हल है
X = eat
Dx/dt = a eat d2x/dt2 = a2 eat
उपरोक्त मान समीकरण (2) में रखने पर
(a2 +2ra + ω02 )eat = 0
उपरोक्त समीकरण t के सब मानों के लिए यथार्थ है। अतः eat # 0
जिससे (a2 + 2ra + ω02) = 0
A =-r/ √r2 – ω02 …………………………(3)
A के दो मान होने के कारण समीकरण (2) का व्यापक हल निम्न रूप में लिखा जा सकता है।
x = Ae(r + √r2 – ω02 ( t+ Be (- r – √r2 – ω02 …………………………….(4)
यहाँ A तथा B दो नियतांक हैं जिनके मान दोलक की प्रारम्भिक अवस्था से प्राप्त कर सकते हैं ।
R तथा ω0 के विभिन्न आपेक्षिक मानों के लिए तीन महत्वपूर्ण सम्भावनाएं हो सकती है : । (i) r< ω0
(ii) r = ω0
(iii) r> ω0
(i) न्यून-अवमन्दन स्थिति (Under damped case)-जब r< ω0हो-यदि दोलक पर अवमन्दन बल का मान इतना कम है कि r< ω0 हो तो
√R2 – ω02 = √-1 √ω02 – r2 = iω
जहाँ ω = √ω02 – r2 = वास्तविक घनात्मक राशि
समीकरण (4) से
X = e-rt [Aeiωt + beiωt ]
– e-rt [A (cos ωt+ i sin ωt)+ B (cos ωt- i sin ωt]
= e-rt[(A + B) cos ωt+i (A-B) sin ωt] …………………………(5)
विस्थापन x वास्तविक राशि है इसलिए (A+B) तथा i (A-B)भी वास्तविक राशि होगी |
इसलिए
माना
A + B = xosin
i(A-B) = xo cos ψ)
ये मान समीकरण (5) में रखने पर
x = x0 ert sin (ωt + ψ)……………………..(6)
समीकरण (6) से यह प्रकट होता है कि न्यून अवमन्दन की स्थिति में दोलक सरल आवर्त गति करता है। इसलिए दोलक का आवर्त्त काल,
T = 2π/ω = 2π √ω02 – r2
अतः अवमन्दित दोलक का आवर्त काल, मुक्त दोलक के आवर्त्तकाल (2π /ω0) तुलना में अधिक होता है अर्थात् अवमन्दन के कारण आवृत्ति घटती है, परन्तु अत्यल्प अवमन्दन की स्थिति में ω = ω0 होता है।
आयाम (Amplitude)-समीकरण (6) द्वारा अवमंदित सरल आवर्ती दोलक का विस्थापन-समय आरेख खींचे तो यह ज्ञात होता है कि दोलक का आयाम a = x0 -rt है। यह आयाम समय के सापेक्ष नियत नहीं होता है बल्कि चरघातांकी रूप से कम होता है। जैसा कि चित्र (11) में दर्शाया गया है।
यदि t = 1/r = τ हो तो आयाम
a = x0 /e = 0.368 X0 जितने समय में अवमन्दित दोलक का आयाम अपने प्रारम्भिक मान का 36.8 % रह जाता है, इस आयाम का विश्रान्तिकाल (amplitude relaxation time) कहते हैं।
.: अवमन्दित दोलक के आयाम का विश्रान्तिकाल
Τa = 1/r ……………… …..(8)
(ii) क्रान्तिक अवमन्दन स्थिति (Critically damped case)- जब r = ω0, हो
जब अवमन्दन नियतांक r सन्निकटतः ω0 के बराबर होता है तो√ r2 – ω02 = h = 0 हैं। इस स्थिति में समीकरण (4) से
x = e-rt [Aeht + Be-ht]
x = e-rt [A (1 + ht + ……) + B (1-ht + …..)]
h के उपेक्षणीय होने के कारण व उससे अधिक उच्च घात के पदों को छोड़ सकते हैं
x = e-rt [P + Qt) ……………………………..(9)
यहाँ P= (A+ B) तथा Q= (A-B)h
दोलनों के प्रारम्भ में समय t के लघु मानों के लिए विस्थापन का मान समीकरण (9) के द्वितीय पद के कारण बढ़ता है और फिर t के उच्च मानों के लिए विस्थापन तेजी से कम होता हुआ शून्य हो जाता है। इस स्थिति में दोलक की गति अदोलनी (aperiodic) होती है जैसा कि चित्र (12) में प्रदर्शित किया गया है।
इस स्थिति में प्रथम विस्थापन के पश्चात् दोलक न्यूनतम समय में प्रारम्भिक संतुलन अवस्था प्राप्त कर लेता है।
(iii) अति अवमन्दन स्थिति (Over damped case) जब r> ω0 हो- दोलक पर कार्यशील अवमन्दन बल का मान प्रत्यानयन बल की अपेक्षा अधिक हो, तो r> ω0 होता है। इस स्थिति में (r2 – ω02)1/2 का मान धनात्मक होता है। माना √r2– ω0 = y ..
समीकरण (5) से
x = e-rt [Aeyt + Be-Yt
x = e-rt [(A + B) (yet + e-yt/2) +(A – B) (yet –e-yt/2)
x = e-rt [A + B) cosh yt + (A + B) sinh yt]
यदि A + B = X0 sinh φ
तथा A – B = x0 cosh
x = Xoe-rt sinh (yt + φ) ……….(10)
समीकरण (10) से यह प्रकट होता है कि अतिअवमन्दन की स्थिति में विस्थापन चरघातांकी रूप से कम होता है, अर्थात् दोलक की दोलनी गति नहीं होती है। इस प्रकार की गति को रूद्धदोल (dead beat) या अदोलनी (aperiodic) कहते हैं, चित्र (12)
अवमन्दित सरल आवर्ती दोलकी की ऊर्जा, शक्ति क्षय एवं विशेषता गुणांक (Energy, Power Dissipation and Quality Factor of a Damped Harmonic Oscillator)
हम जानते हैं कि न्यून अवमन्दन (under-damped) की स्थिति में दोलक के विस्थापन का समीकरण होता है :
x = xoe-rt sin (ωt + ψ)
जहाँ ω = √ω02 – r2 है।
(i) गतिज ऊर्जा (Kinetic enrgy)
समीकरण (1) का t के सापेक्ष अवकलन करके दोलक का वेग प्राप्त किया जा सकता है।
Dx/dt = x0e-rt [ω cos (ωt + ψ) – r sin (ωt + ψ)]
अतः अवमन्दित सरल आवर्ती दोलक की गतिज ऊर्जा
K = ½ m (dx/dt)2
= ½ mx02 e-2rt [w2cos2 (wt + ψ) + r2 sin2(wt + ψ) – wr sin (2wt + 2 ψ) ……………..(2)
यदि अवमन्दन बल का मान कम हो तो एक दोलन काल में आयाम x0e-rt के मान में कमी उपेक्षणीय मानी जा सकती है, अर्थात् एक दोलन काल में आयाम का मान लगभग स्थिर रहता है। अतः एक आवर्तकाल समय के लिए माध्य गतिज ऊर्जा
<K> = ½ mx02 e-2rt [w2 < cos2(wt + ψ) > + r2 < sin2 (wt + ψ) > – wr < sin(2wt + 2 ψ) >]…………..(3)
हम जानते हैं कि एक आवर्त काल के लिए
< cos2 θ > = < sin2θ >= ½
और
<sin 2θ > =0
चूँकि माध्य गतिज ऊर्जा
<K> = ¼ mx02 e-2rt (w2 + r2)
w = √w02 – r2
<K> = ¼ m ω02 x02 e-2rt ……………….समीकरण-4
अत: दोलक की माध्य गतिज ऊर्जा समय के सापेक्ष चरघातांकी रूप से कम होती जाती है |
(ii) स्थितिज ऊर्जा (potential energy)
अवमंदित सरल आवर्ती दोलक की स्थितिज ऊर्जा
U = ½ m ω02 x2
x का मान समीकरण 1 से रखने पर
U = ½ m ω02 x02 e-2rt sin2 (ωt + ψ) …………..समीकरण-5
न्यून अवमन्दन की स्थिति में एक दोलन काल के लिए आयाम के मान को लगभग नियत मान सकते है इसलिए एक दोलन काल के लिए माध्य स्थितिज ऊर्जा
<U> = ½ m ω02 x02 e-2rt < sin2 (ωt + ψ) >
अत: एक आवर्तकाल के लिए
<sin2 θ> = ½
अत: <U> = ¼ m ω02 x02 e-2rt …………..समीकरण-6
समीकरण 4 और समीकरण 6 से यह प्रदर्शित होता है कि न्यून अवमंदन की स्थिति में अवमंदित दोलक की माध्य गतिज और स्थितिज उर्जाएं बराबर होती हैं |
(iii) कुल ऊर्जा (total energy)
एक दोलक काल में दोलक की कुल ऊर्जा
<E> = <K> + <U>
= ¼ m ω02 x02 e-2rt + ¼ m ω02 x02 e-2rt
<E> = ½ m ω02 x02 e-2rt …………..समीकरण-7
यदि t = 1/2r = τ हो तो
<E> = <E> max/e = 0.368 Emax
जितने समय में दोलक की कुल ऊर्जा प्रारंभिक कुल ऊर्जा मान की e-1 अथवा 36.8% गुना रह जाती है | इस समय को ऊर्जा विश्रान्तिकाल कहते हैं |
चूँकि ऊर्जा विश्रान्तिकाल τ = 1/2r …………..समीकरण-8
(iv) शक्ति हास (power dissipation)
चूँकि दोलक की माध्य शक्ति हास = माध्य कुल ऊर्जा के कमी की दर
<P> = -d/dt <E>
समीकरण 7 से <E> का मान रखने पर
<P> = -d/dt [½ m ω02 x02 e-2rt]
= 2r ([½ m ω02 x02 e-2rt)
= 2r <E> …………..समीकरण-9
लेकिन विश्रान्तिकाल τ = 1/2r
<P> = <E>/τ …………..समीकरण-10
समीकरण 10 से स्पष्ट है कि एक दोलन काल में औसत शक्ति हास माध्य कुल ऊर्जा के 1/ τ गुना के बराबर होता है | अत: दोलक का शक्ति हास अवमंदन नियतांक r के अनुक्रमानुपाती और विश्रान्तिकाल से व्युत्क्रमानुपाती होता है | दोलन तन्त्र में अवमंदन बल के कारण होने वाली ऊर्जा की हानि सामान्यतया ऊष्मा के रूप में प्रकट होती है |
(v) विशेषता गुणांक (Quality factor)
किसी दोलक की ऊर्जा हास की दर के सापेक्ष ऊर्जा संग्रहण की क्षमता को विशेषता गुणांक Q से व्यक्त करते हैं |
किसी दोलक तन्त्र का विशेषता गुणांक Q दोलक द्वारा एक आवर्त्तकाल में संग्रहित माध्य ऊर्जा और माध्य ऊर्जा हानि के अनुपात के 2π गुने के बराबर होता है अर्थात
Q = 2π/T संग्रहित माध्य ऊर्जा / एक चक्र में शक्ति व्यय
Q = 2π <E>/T<P>
लेकिन समीकरण 10 से
<P> = <E>/ τ
Q = 2π τ/T = ω τ
उपरोक्त विवेचना न्यून अवमंदित (under damped) गति के लिए यथार्थ है | इस स्थिति में ω ≈ ω0 τ …………..समीकरण-11
यह व्यंजक अवमंदित सरल आवर्ती दोलक की विशेषता गुणांक को व्यक्त करता है अर्थात किसी अवमंदित दोलक में अवमंदन बल के मान में कमी होने से τ और Q दोनों में मान में वृद्धि होती है |
नगण्य अवमंदन बल r ≈ 0 के लिए दोलक का विश्रान्ति काल और विशेषता गुणांक दोनों दोनों ही अनंत के बराबर हो जाते हैं | इस प्रकार के दोलक को मुक्त दोलक (free oscillator) कहते हैं | इनके आयाम और ऊर्जा दोनों समय के सापेक्ष नियत होते हैं लेकिन जैसे जैसे दोलक पर अवमंदन बल का मान बढ़ता जाता है , दोलक विश्रान्तिकाल τ और विशेषता गुणांक Q के मान कम होते जाते है और दोलक के आयाम अथवा ऊर्जा में कमी उतनी ही तेज़ी से होती है | इस प्रकार किसी दोलक का Q मान उसके दोलनों के अवमंदन से मुक्त होने की सीमा का परिचायक होता है |
न्यून अवमंदित दोलक की आवृत्ति
न्यून अवमंदन की स्थिति में दोलक की स्थिति में दोलक की आवृत्ति
ω = √ ω02 –r2
लेकिन r = 1/2 τ [τ = विश्रान्ति काल ]
चूँकि ω = ω0 √1-r2/ ω02
= ω0 √1-1/4ω02 τ2
विशेषता गुणांक Q = ω0 τ
अत: ω = ω0 √1-1/4Q2
Q का मान अनंत होने पर दोलक की स्वभाविक आवृत्ति से दोलन करता है लेकिन जैसे जैसे Q का मान घटता जाता है तो दोलक की आवृत्ति भी घटती जाती है | Q का मान 0.5 होने पर दोलक की आवृत्ति शून्य हो जाती है |
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