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जैव उत्प्रेरक क्या है उदाहरण , एंजाइम क्रियाविधि किसे कहते हैं , bio enzyme catalysis in hindi example

enzyme bio catalysis in hindi example mechanism reaction जैव उत्प्रेरक क्या है उदाहरण , क्रियाविधि किसे कहते हैं ?

 एन्जाइम उत्प्रेरणा (ENZYME CATALYSIS) : जीवों में सम्पन्न होने वाली विभिन्न जैविक क्रियाएं एन्जाइमों द्वारा ही उत्प्रेरित होती हैं। जीवों में पाए जाने वाले कुछ जटिल प्रोटीन अणु ही एन्जाइमों की भांति कार्य करते हैं। एन्जाइम उत्प्रेरण की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इन अभिक्रियाओं में बहुत अधिक विशिष्टता (specificity) तथा सलेक्टिवता (selectivity) होती है। एंजाइम उत्प्रेरण  में क्रियाकारक (substrate) तथा एन्जाइम (enzyme) के मध्य वही सम्बन्ध होता है जो ताले व चाबी के मध्य होता है (चित्र 8.2)। जिस प्रकार किसी विशिष्ट चाबी से वह विशिष्ट ताला ही खुल सकता है, उसी प्रकार एक विशिष्ट एन्जाइम किसी विशिष्ट क्रियाकारक से ही क्रिया करेगा और एक विशिष्ट ही उत्पाद बनेगा अर्थात् एन्जाइम की प्रकृति से क्रियाकारक की प्रकृति तथा अभिक्रिया की दिशा, दोनों का ही निर्धारण होता है। उदाहरणार्थ,

  • (C6H10O5) n → C12H22O11 → C6H12O6

माल्टोस         ग्लुकोस

जाइमेस | (zymase)

2C2H5OH +2CO2

ऐल्कोहॉलम

  • C12H22O11 → C6H12O6 + 2C2H5OH +2CO2

क्रियाकारक [S] एन्जाइम के सक्रिय क्षेत्र के साथ विशेष प्रकार से संयुक्त होकर संकुल बना लेता है, ऐसा होने पर क्रियाकारक सक्रिय होकर उत्पाद बना लेता है और फिर उत्प्रेरक से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार एन्जाइम का सक्रिय क्षेत्र फिर मुक्त हो जाता है जिस पर क्रियाकारक का कोई अन्य अणु संकुल बना लेता है, और इस प्रकार एन्जाइम उत्प्रेरक की थोड़ी-सी मात्रा से अभिक्रिया चलती रहती है। इस प्रक्रिया को चित्र 8.3 द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है।

एन्जाइम कई प्रकार के होते हैं और प्रत्येक एन्जाइम एक विशिष्ट अभिक्रिया को ही उत्प्रेरित कर सकता है। कुछ प्रमुख एन्जाइम तथा उनके द्वारा उत्प्रेरित अभिक्रिया का विवरण निम्न प्रकार है :

एन्जाइम उत्प्रेरित अभिक्रिया
1.   माल्टेज (Maltase)

2.   लैक्टेस (Lactase)

3.   ऐमाइलेस (Amylase)

4.   इन्वर्टस (Invertase)

5.   जाइमेस (Zymase)

6.   यूरिएस (Urease)

7.   कार्बोनिक ऐनहाइड्रेस (Carbonic anhydrase)

8.   पेप्सिन (Pepsin) व ट्रिप्सिन (Trypsin)

9.   न्यूक्लिएस (Nuclease)

10.                DNA पॉलिमरेस (DNA Polymerase)

11.                RNA पॉलिमरेस (RNA Polymerase)

 

माल्टोस → 2 x ग्लूकोस

लैक्टोस → ग्लूकोस + गैलेक्टोस

स्टार्च →nx ग्लूकोस

स्यूक्रोस → ग्लूकोस + फ्रक्टोस

ग्लूकोस→ 2 x एथेनॉल + 2CO2

यूरिया →co3 + NH3

H2CO3 → CO2 + H2O

 

प्रोटीन →ऐमीनो अम्ल

 

DNA, RNA → न्यूक्लिओटाइड

डीऑक्सी न्यूक्लिओटाइड ट्राइफॉस्फेट → DNA

 

 

राइबोन्यूक्लिओटाइड ट्राइफॉस्फेट → RNA

 

वैसे तो प्रत्येक एन्जाइम की क्रियाविधि भिन्न-भिन्न होती है, फिर भी गतिकीय अध्ययन के लि एन्जाइम उत्प्रेरण  की सामान्य एवं सरलतम अभिक्रिया की क्रियाविधि को निम्न प्रकार से प्रदर्शित कर म हैं जो माइकेलिस मेण्टेन (Michaelis Menten) द्वारा 1913 में दी गई थी। अतः इसे माइकेलिस मेण्टेन क्रियाविधि कहा जाता है।

E+S = ES     ………… …(1)

ES = P + E ………………(ii)

यह क्रियाविधि सामान्य उत्प्रेरकीय क्रियाविधि जैसी है जिसमें E एक एन्जाइम उठोरक है और ES सक्रिय माध्यमिक यौगिक है जिस पर स्थायी अवस्था नियम को लागू किया जा सकता है। इसमें भी उत्पाद (ii) पद में बन रहा है, अतः अभिक्रिया का वेग

Dx/dt  = d[p]/dt = k2[ES] ………………..(10)

स्थायी अवस्था में [ES] के बनने का वेग ।

d[ES]/dt = k1[E][S] – k-1 [ES] – k2[ES] = 0………………(11)

अथवा k-1[ES] + k2[ES] = k1[E][S]

समीकरणों में k1 का भाग देने पर,

K-1/k1 [ES] + k2/k1 [ES] = [E]IS]

[ES] (k-1 +k2/k1 ) = [EIS]

अथवा [ES] = E[S] ……………..(12)

जहां K… – समीकरण (12) से [ES] का मान समीकरण (10) में रखने पर,

Dx/dt =  k2[E][S] /KM

Dx/dt = [E][S]  ……………(13)

अतः सामान्य उत्प्रेरण की भांति एन्जाइम उत्प्रेरण में भी अभिक्रिया का वेग क्रियाकारक तथा एन्जाइम दोनों की सान्द्रता पर निर्भर करता है। यदि एन्जाइम की कुल प्रारम्भिक सान्द्रता [E0] हो तो

[E0]= [E] + [ES]

अथवा    [E] = [E0] – [ES]

[E] का यह मान समीकरण (11) में रखने पर,

d[ES] /dt = k1 {[E0] – [ES]][S] – k[ES] – k2[ES] =0

अथवा    k1[E0][S] – k1[ES][S]-k-1[ES] – k2[ES] = 0

अथवा   [ES] {k1 [S] +k-1+k2] =k[E][S]

अथवा  [ES] =k1[E0][S]/ k-1+k2 + k1 [S] ….(14)

[ES] का यह मान समीकरण (10) में रखने पर,

Dx/dt = k1 k2[E0][S] k_1 + k2 + k1 ……………….(15)

[S] समीकरण (15) के दाएं भाग के अंश व हर में k का भाग देने पर,

Dx/dt =  k2[E0][S] k-1 + k2/k1 + [S] ……… ….(15)

अथवा dx/dt = v = k2[E0][S]/KM + [S] …………….(16)

यहां KM = k-1 + k2 /K1 होता है होता है और इसे माइकेलिस स्थिरांक (Michaelis constant) कहा जाता है k और वेग समीकरण (16) को माइकेलिस मेण्टेन नियम (Michaelis Menten law) कहा जाता हा

इस समीकरण पर तीन प्रकार की परिस्थितियों को लागू किया जा सकता है :

  • यदि [S] >KM हो तो KM+ [S] = [S] हो जाएगा और उस स्थिति में समीकरण (17) का स्वरूप निम्न हो जाएगा : dx /dt = k2 [E0]………… …(17)

अर्थात् इस परिस्थिति में अभिक्रिया केवल एन्जाइम की सान्द्रता पर निर्भर करती है और उसके सापेक्ष प्रथम कोटि की है। चूंकि यहां [S] की सान्द्रता अधिकतम है, अतः इस वेग को अधिकतम वेग माना जा सकता है। अर्थात्

V = Vmax = k2[E0] ………….(18)

  • यदि [S] <<KM हो तो KM+[S] = KM हो जाएगा और उस स्थिति में समीकरण (16) का स्वरूप निम्न हो जाएगा:

Dx/dt k2[E0][S] /km ……………..(19)

समीकरण (18) से k2[E0] का मान रखने पर,

dx /dt Vmax[S]  /KM ………….(20)

  • यदि [S] = KM हो तो समीकरण (16) का स्वरूप निम्न हो जाएगा :

Dx/dt k2[E0][S] /2[S] = Vmax /2 …………..(21)

अतः माइकेलिस स्थिरांक (Km) को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है : “माइकेलिस स्थिरांक क्रियाकारक की उस सान्द्रता को कहते हैं जिस सान्द्रता पर अभिक्रिया का वेग उच्चतम वेग का आधा हो (चित्र 8.4)

माइकेलिस स्थिरांक की सार्थकता (Sionificance of Michaelis Constant)- माइकेलिस स्थिति के मान से किसी एन्जाइम उतोरण अभिक्रिया के लिए कोटि का निर्धारण किया जा सकता है। अतः यति Km का मान अत्यन्त उच्च हो तो समीकरण (20) से अभिक्रिया का वेग

V = (Vmax /KM ) [S] ……………(22)

अर्थात् अभिक्रिया का वेग प्रथम कोटि वेग नियम का पालन करता है और अभिक्रिया का वेग क्रियाकारक की सान्द्रता के प्रथम घातांक पर निर्भर करता है। इसके विपरीत, यदि Km का मान अत्यन्त कम हो तो समीकरण (17) से,

अभिक्रिया का वेग,v = vmax k2 [E0]

अर्थात् उत्प्रेरक की एक निश्चित सान्द्रता के लिए अभिक्रिया क्रियाकारक के प्रति शून्य कोटि की है। माइकेलिस स्थिरांक का निर्धारण (Determination of Michaelis Constant) अभिक्रिया की वेग समीकरण (15) को निम्न प्रकार भी लिखा जा सकता है :

Dx/dt  = v =  k1k2[E0][S] /k-1  + k2 + k1[S]

इस समीकरण का व्युत्क्रम करने पर,

1/V =  k-1 + K2/K1K2[E0] [S] + V K1[S]/ k1k2 [E0][S]

अथवा 1/V Km KM/K2[E0][S] + 1/K2[E0]

अथवा  1/V = KM/Vmax [S] + 1/Vmax………..(23)

अतः यदि 1/v का  1/[s] के विरुद्ध ग्राफ खींचा जाए तो एक सीधी रेखा प्राप्त होगी जिसका स्लोप KM/Vmax  के बराबर होगा तथा जिसका अन्तःखण्ड (intercept) – के बराबर होगा। अर्थात् स्लोप के बराबर होगा। इस प्रकार इस ग्राफ की सहायता से माइकेलिस स्थिरांक K का परिकलन अन्तःखण्ड किया जा सकता है। इस ग्राफ को लाइनवीवर-वर्क आलेख (Lineweaver-Burk plot) कहा जाता है (चित्र 8.5)। यदि इस वक्र को पीछे की ओर अक्ष पर बहिर्वेशित (extrapolate) किया जाए तो वह बिन्दु -1/km के बराबर होगा।

एंजाइम उत्प्रेरण पर ताप का प्रभाव (Effect of Temperature on Enzyme Catalysis) | ” मूल रूप में तो सामान्य उठोरक तथा एन्जाइम उठोरक का कार्य समान ही होता है। दोनों ही अभिक्रियाओं जा क मान को घटाकर अभिक्रिया के वेग को बढ़ाते हैं, लेकिन फिर भी दोनों में कुछ अन्तर

(1) एन्जाइम उप्रेरण की सक्रियता सामान्य उत्प्रेरण की तलना में बहुत अधिक होती है।

(2) सामान्यतया किसी अभिक्रिया का वेग ताप वृद्धि के साथ बढ़ता है, लाकन एन्जाइम उारण अभिक्रियाओं के साथ ऐसा नहीं होता। वस्तुतः एन्जाइम अभिक्रियाएं सदैव ही जैव कोशिकाओं में सम्पन्न होती हैं जहां का ताप सामान्यतया 35-40°C होता है। इसके एन्जाइम, प्रोटीन की प्रकृति के होते हैं। उच्च ताप पर प्रोटीनों का स्कन्दन द्वारा विकृतिकरण (denaturation) हो जाता है जिससे उसकी उत्प्रेरकीय सक्रियता समाप्त हो जाती है। किसी एन्जाइम उत्प्रेरण में 45°C तक ताप वृद्धि के साथ अभिक्रिया वेग में वृद्धि होती E जाती है। 45-55°C तक प्रोटीनों का विकृतिकरण होने  लगता है, अतः ताप वृद्धि के साथ अभिक्रिया वेग में कमी होती जाती है और 55°C से ऊपर एन्जाइम प्रोटीन बिल्कुल ही नष्ट हो जाता है और उसकी उत्प्रेरकीय शक्ति समाप्त हो जाती है। एन्जाइम उत्प्रेरकीय अभिक्रिया के वेग पर । ताप ताप के प्रभाव को चित्र 8.7 में दर्शाया गया है। एन्जाइम उत्प्रेरण पर pH का प्रभाव (Effect of pH on Enzyme Catalysis) |

एन्जाइम उत्प्रेरण  pH पर भी बहुत निर्भर करता उच्चतम वेग है। एक अनुकूलतम pH (optimum pH) पर एन्जाइम अभिक्रिया का वेग अधिकतम होता है जबकि उससे कम pH पर भी अभिक्रिया का वेग कम हो जाता है और उससे अधिक pH होने पर भी अभिक्रिया का वेग कम हो जाता है (चित्र 8.7)| मी उदाहरण 8.2. एक एन्जाइम-उत्प्रेरक (E/S) तन्त्र माइकेलिस मेण्टेन क्रियाविधि का अनुसरण करता है। क्रियाकारक की अत्यधिक मात्रा में उत्पाद बनने के वेग अनुकूलतम pH का सीमित मान 0.02 mol dm है। क्रियाकारक 250 mg dm- सान्द्रता पर अभिक्रिया वेग का मान आधा हो pH → जाता है। k2<<k1 को मानते हुए k1/k-1 का परिकलन चित्र 8.7. एन्जाइम उतोरण पर pH का प्रभाव कीजिए।

हल : माइकेलिस मेण्टेन वेग नियम के अनुसार अभिक्रिया का वेग।

r = dx /dt = k2[Eo][S] /Km + [S]

अभिक्रिया में क्रियाकारक की सान्द्रता [S] के अत्यधिक होने पर वेग 0.02 mol dm-3 है। अर्थात् [S] + Km = [S], इस स्थिति में वेग

r = Vmax

=k2 [E0] = 0.02 mol dm-3

जब क्रियाकारक की सान्द्रता [S] का मान 250 mg dm-3 होता है तो अभिक्रिया वेग का मान उपयुक्त अधिकतम वेग का आधा हो जाता है। हम जानते हैं कि जब अभिक्रिया वग उच्चतम वेग का आधा हो जाता है तो [S] = Km होता है, अर्थात्

[S] = (250 mg dm-3) = Km = (k-1 + k2)/k1

अथवा   k-1/k1 = 250 mg dm-3                                          k2<<k-1

k-1+k2 = k -1

अथवा k1/k-1 = 1/250 = 0.004 dm3 mg-1

 उत्प्रेरण के सिद्धान्त (THEORIES OF CATALYSIS)

एक उत्प्रेरण अभिक्रिया में उत्प्रेरक की उपस्थिति से अभिक्रिया को एक ऐसा नया पथ मिलता है जिसकी सक्रियण ऊजा का मान कम होता है (चित्र 8.8) और इसी कारण उत्प्रेरण अभिक्रिया का वेग अधिक होता हा कसा आभक्रिया के वेग स्थिरांक और सक्रियण कर्जा के मध्य का सम्बन्ध आहीनियस समीकरण द्वारा दिया जा सकता है जिसके अनुसार, k=A.e-EART log k = log A- Ea /2.303 RT ……………(24)

उठोरकीय अभिक्रिया के लिए सक्रियण ऊर्जा का मान कम होता है अर्थात् Ec<Ea.स्वाभाविक है अनिक्रिया की प्रगति कि उस स्थिति में k की तुलना में k का मान उच्च हो जाएगा अर्थात् >k. यही कारण है कि उत्प्रेरकीय अभिक्रिया का वेग उच्च हो जाता है। उत्प्रेरक की उपस्थिति से किसी अभिक्रिया की सक्रियण ऊर्जा का मान कम क्यों हो जाता है, इसकी व्याख्या करने के लिए प्रमुख सिद्धान्त निम्न हैं :

  • मध्यवर्ती यौगिक सिद्धान्त (Theory of Intermediate Compounds) : एक सरल या सामान्य उप्रेरण की क्रियाविधि में क्रियाकारक (S) व उत्प्रेरक (C) परस्पर क्रिया करके एक माध्यमिक यौगिक (SC) बनाते हैं जो विघटित होकर उत्पाद (P) बनाता है और उत्प्रेरक C को मुक्त करता है। s + c → sc → P+C

सामान्यतया किसी अभिक्रिया में एक क्रियाकारक सक्रियण ऊर्जा के बराबर ऊर्जा प्राप्त करके सक्रियित संकुल बनाता है जो ऊर्जा की कुछ मात्रा को मुक्त करके उत्पाद में परिवर्तित हो जाता है। यदि किसी क्रियाकारक के साथ उत्प्रेरक मिला दिया जाए तो एक अन्य पथ के द्वारा वह उत्पाद में परिवर्तित हो जाएगा जिसकी सक्रियण ऊर्जा का मान कम होगा। चूंकि इनमें माध्यमिक यौगिक का बनना अभिक्रिया का एक आवश्यक अंग है, अतः इसे माध्यमिक या मध्यवती योगिक सिद्धान्त (Theory of Intermediate Compound) भी कहा जाता है। उत्प्रेरण  अभिक्रियाओं का वेग उत्प्रेरक की सान्द्रता पर निर्भर करता है, क्योंकि इन अभिक्रियाओं में उमेरक स्वयं रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेता है। उत्प्रेरक कम-से-कम एक क्रियाकारक के साथ संयोग करता है और अभिक्रिया के अन्त में उत्पाद के साथ उत्रेरक भी मुक्त हो जाता है। इस प्रकार एक सरलतम उठोरकीय अभिक्रिया को निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है: । S+C = SC …(i)

SC – P+C ….(ii)

चूंकि उत्पाद अभिक्रिया के पद (ii) में बनता है, अतः अभिक्रिया का कुल वेग

Dx/dt  = k2[SC] …..(25)

माध्यमिक उत्पाद के लिए स्थायी अवस्था परिस्थिति (Steady state condition) लागू करन पर, d[SC] /dt = 0 = k1 [S][C]-k-1 [SC]-k2 [sc] …(26)

समीकरण में k का भाग देने पर, [S][C) =k-1/k1 (SC) +k2/k1 (SC)

[SC] k-1 +k2/k1 = [S][C]

अथवा [SC] = [S][C]/km …………. ….(27)

जहां Km=k-1 + k2/k1

समीकरण (27) से [SC] का मान समीकरण (109) में रखने पर,

dx/dt = k2[S]C]/km ………………(28)

उपर्युक्त समीकरण (28) से स्पष्ट है कि अभिक्रिया का वेग क्रियाकारक के साथ-साथ उठोरक की सान्द्रता के भी समानुपाती है। समीकरण (28) में K. का मान रखने पर,

Dx/dt = k1k2 /k-1 + k2 [S][C]  …………….(29)

यहां किसी अभिक्रिया के लिए दो प्रकार की सम्भावनाएं हो सकती हैं :

  • यदि k1>>k2 तव (k-1+k2) = k-1

अतः  dx /dt = k1k2/k-1 [S][C]

अथवा dx/dt =  kc k2[S][C] ………………(30)

जहां Kc = साम्य स्थिरांक = k1/k-1

  • यदि k-1<<k2 तब (k-1+k) =k2

उस स्थिति में, dx/dt = k1[S][C] …………….(31)

सामान्यतया एक उत्प्रेरकीय अभिक्रिया उपर्युक्त क्रियाविधि द्वारा ही सम्पन्न होती है जिसमें प्रथम पट। एक उत्क्रमणीय अभिक्रिया के रूप में है। लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि दोनों रूपों में से कोई पद उत्क्रमणीय न हो। ऐसी स्थिति में दोनों में से कोई एक पद मन्द गति से सम्पन्न होगा और वह वेग निर्धारक पद होगा। अतः इस स्थिति में निम्न दो प्रकार की क्रियाविधियां सम्भव होती हैं :

  • s+c →Sc (वेग निर्धारक पद) ……………….(i)

sc → P+c ………………………….(ii)

जहां वेग निर्धारक पद (i) है, अतः इस अभिक्रिया का वेग

dx/dt = k[S][C]   ….(32)

  • S+ C = SC

SC =  P+C(वेग निर्धारक पद)

यहां वेग निर्धारक पद (ii) है, अतः इस अभिक्रिया का वेग

Dx/dt = k [SC] ………………(33)

माध्यमिक उत्पाद SC एक उत्क्रमणीय तीव्र पद द्वारा बन रहा है जिसका साम्य स्थिरांक माना K है। अतः

K = [SC] /[S][C]

अथवा [SC] = K[S][C]

[SC] का यह मान समीकरण (33) में रखने पर,

Dx/dt = K K[S][C]

अथवा dx/dt = K[S][C]  …………….(34)

जहा K का उठारक का उत्प्रेरक गुणांक (Catalytic coefficient) कहते है और यह K  K के गुणनफल के बराबर होता है।

K’ =KK

उपर्युक्त समीकरणों (28), (30), (31), (32) व (34) का देखने से स्पष्ट है कि कोई उठोरकीय अभिक्रिया चाहे किसी भी क्रियाविधि से सम्पन्न हो, उसकी वेग समीकरण निम्न प्रकार की ही आती है : ।

वेग = स्थिरांक [S][C]

अथवा वेग « [S][C]………….. …(35)

उपर्युक्त विवेचन से निष्कर्ष निकलता है कि किसी भी समांगी उतोरकीय अभिक्रिया का वेग उसके क्रियाकारक एवं उत्प्रेरक की सान्द्रता के समानुपाती होता है। भिन्न-भिन्न क्रियाविधियों में केवल उनके वेग स्थिरांकों के मान भिन्न-भिन्न होते हैं, उनके वेग नियम या वेग समीकरणों का स्वरूप समान ही होता है।

उदाहरण इस प्रकार की उठोरकीय अभिक्रियाओं के प्रमुख उदाहरण निम्न हैं जिनमें मध्यवर्ती उत्पाद । बनता है :

  • लेड कक्ष विधि द्वारा H2SO4 के निर्माण में NO उठोरक के रूप में कार्य करता है जो एक क्रियाकारक ऑक्सीजन के साथ क्रिया करके मध्यवर्ती उत्पाद NO2 बना लेता है। यह मध्यवर्ती NO2एक अन्य क्रियाकारक SO2 से क्रिया करके उत्पाद SO3 बनाता है तथा उत्प्रेरक को मुक्त करता है। अतः ।

NO + ½ 02 – NO2

उत्प्रेरक  क्रियाकारक  मध्यवर्ती

NO2 + SO2  N O + SO3

मध्यवर्ती  क्रियाकारक  उठोरक  उत्पाद

  • सान्द्र H2SO4 उत्प्रेरक की उपस्थिति में एथेनॉल के निर्जलीकरण से ईथर का बनना : H2SO4 + C2H5OH → C2H5HSO4 + H2O

उठोरक   क्रियाकारक       मध्यवर्ती

2C2H5HSO4 →C2H5OC2H5 + H2SO4

उत्पाद              उत्प्रेरक             उतोरण

 मध्यवर्ती मध्यवर्ती यौगिक सिद्धान्त की सीमाएं (Limitations of Intermediate Compound Theory)

(1) मध्यवर्ती यौगिक का सिद्धान्त समांगी उप्रेरण अभिक्रियाओं की व्याख्या तो बड़ी आसानी से कर । सकता है लेकिन यह विषमांगी उत्प्रेरण  अभिक्रियाओं की क्रियाविधि समझाने में असमर्थ है।

(2) सामान्यतया मध्यवर्ती उत्पाद इतना अधिक क्रियाशील व अस्थायी होता है कि उसे प्राप्त करके उसके बनने की पुष्टि करना सम्भव नहीं होता।

(3) यह उठोरकीय विष तथा वर्धकों, आदि की क्रियाविधि बताने में असमर्थ है।

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