तृतीय कोटि की अभिक्रिया का मात्रक क्या है , third order reaction in hindi unit in chemistry
third order reaction in hindi unit in chemistry तृतीय कोटि की अभिक्रिया का मात्रक क्या है ?
प्रथम कोटि की अभिक्रियाएं (FIRST ORDER REACTIONS)
- प्रथम कोटि अभिक्रियाओं की अबकलित वेग समीकरण (Differential Rate Equation of First Order Reactions) प्रथम कोटि की अभिक्रियाओं का वेग केवल एक क्रियाकारक की सान्द्रता के प्रथम घातांक के समानुपाती होता है। ऐसी अभिक्रियाओं में यदि कोई दूसरा क्रियाकारक हो तो उसकी सान्द्रता पर अभिक्रिया का वेग निर्भर नहीं करता है। इन अभिक्रियाओं को निम्न सामान्य समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है :
- Product
इस अभिक्रिया के लिए अभिक्रिया वेग को निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है:
D[A] /dt = k1[A] …(13)
माना क्रियाकारक (A) की प्रारम्भिक सान्द्रता a मोल है और समय 1 के बाद उसके x मोल उत्पाद में परिवर्तित हो जाते हैं। अतः उस स्थिति में समीकरण (13) का स्वरूप निम्न हो जाएगा :
-d(a – x)/dt = k1 (a-x)
-da/dt + dx /dt = k1 (a – x) ….(14)
चूंकि a एक स्थिरांक होता है और एक स्थिरांक का अवकलन शून्य होता है। अतः समीकरण (14) का स्वरूप निम्न हो जाएगा :
Dx/dt = k1 (a – x) ….(15)
उपर्यक्त समीकरण (15) प्रथम कोटि की अभिक्रिया की अवकलित वेग समीकरण (differential rate eauntion) है। इस समीकरण से स्पष्ट है कि प्रथम कोटि अभिक्रिया का वेग क्रियाकारक की सान्त्रता के समानुपाती होता है। – प्रथम कोटि अभिक्रियाओं की समाकलित बेग समीकरण (Integrated Rate Equation of First Order X Reactions) समीकरण (15) को पुनर्व्यवस्थित करने पर निम्न समीकरण प्राप्त होगी :
Dx/(a – x)k1dt ….(16)
इस समीकरण का समाकलन करने पर,
-In (a-X) =k1 t + C …(17)
[जहां C = समाकलन स्थिरांक] अभिक्रिया के बिल्कल प्रारम्भ में अर्थात् जब । = 0 हो तो x = 0 होगा, क्योंकि अभिक्रिया सम्पन्न हर्ड नहीं और उत्पाद अभी बना ही नहीं। उस स्थिति में समीकरण (17) का स्वरूप निम्न हो जाएगा।
-In a =C ……………(18)
C के इस मान को समीकरण (17) में रखने पर,
– In (a-X) = k1 t- in a
तृतीय कोटि की अभिक्रियाएं (THIRD ORDER REACTIONS)
यदि किसी अभिक्रिया में क्रियाकारी अणुओं की संख्या अधिक हो तो उनमें प्रभावी टक्करें नहीं हो पाती, अतः तृतीय एवं उच्च कोटि की अभिक्रियाएं अधिक सामान्य नहीं होती। तृतीय कोटि से अधिक कोटि की अभिक्रियाएं ज्ञात नहीं हैं। तृतीय कोटि की कुछ अभिक्रियाएं निम्न हैं :
2NO+02 – 2NO2 गैसीय
2NO+ H2 – N2O+ H2O अभिक्रियाएं ।
2NO + Cl2 (या Bra) →2NOCI (या NOBr)
2FeCl3 + SnCl2→2FeCl + SnCl4 | विलयन में
2HgCl2 + (COOK) 2 →Hg2Cl2+2KCI+2CO2 अभिक्रियाएं
शून्य कोटि की अभिक्रियाओं के वेग स्थिरांकों के मात्रक वही होते हैं जो अभिक्रियाओं की दर के मात्रक हैं अर्थात् mol L-1S-1
छद्म कोटि की अभिक्रियाएं (PSEUDO ORDER REACTIONS)
सामान्य कोटि की अभिक्रियाओं में उनकी अणुसंख्यता व कोटि का मान समान होता है। अर्थात् एक अणुसंख्यता वाली रासायनिक अभिक्रिया की कोटि का मान और द्विअणुसंख्यता वाली रासायनिक अभिक्रिया की कोटि का मान दो होता है। इनके विपरीत छद्म कोटि की अभिक्रियाओं की अणुसंख्यता और कोटि का मान भिन्न-भिन्न होता है। सामान्यतया इनमें एक क्रियाकारी अणु विलायक का होता है और विलायक चूंकि अत्यधिक सान्द्रता में विद्यमान रहते हैं, अतः अभिक्रिया के सम्पन्न होने से, उनमें हुआ सान्द्रता परिवर्तन महसूस नहीं होता है। उदाहरणार्थ, अम्ल उत्प्रेरित एस्टर जल-अपघटन की क्रिया को निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है : CH3COOC2H5+H2O- CH3COOH +C2H5OH
उपर्युक्त स्टॉइकियोमितीय समीकरण से प्रदर्शित होता है कि यह अभिक्रिया एक द्विअणुक (bimolecular) अभिक्रिया है और इसकी कोटि का मान दो होना चाहिए, लेकिन यह अभिक्रिया एक प्रथम कोटि के वेग नियम का पालन करती है। वस्तुतः इस अभिक्रिया में क्रियाकारक का एक अणु (H2O) जो कि अभिक्रिया में एक विलायक है जिसकी सान्द्रता में परिवर्तन नगण्य होता है और जिसे एक स्थिरांक माना जा सकता है। अतः इस अभिक्रिया की कोटि का मान एक ही रह जाता है। इस अभिक्रिया के लिए ।
वेग = K [CH3COOC2H5] [H2O]
अथवा वेग =dx/df =k [CH3COOC2H5] [H2O] = स्थिरांक)
अतः यह अभिक्रिया एक छदम प्रथम कोटि की अभिक्रिया (pseudo first order reaction है। छद्म प्रथम कोटि की अभिक्रियाओं के कुछ अन्य उदाहरण निम्न हैं:
- शर्करा का प्रतीपन (Inversion of sugar)
C12H22011+H2O – C16H12O6 + C6H1206
(+) सुक्रोस ग्लूकोस फ्रक्टोस ।
(-) प्रतीप शर्करा
इसमें भी एक क्रियाकारी अणु विलायक का अणु है। इस अभिक्रिया का अध्ययन ध्रुवण घूर्णन द्वारा किया जाता है। अभिक्रिया के प्रारम्भ में अर्थात् जब । = 0 होता है तब सुक्रोस का (+) ध्रुवण घूर्णन (ro) प्रदर्शित होता है। जैसे-जैसे जल-अपघटन होता जाता है और वामध्रुवणघूर्णक प्रतीप शर्करा बनता जाता है और ध्रुवण घूर्णन के कोण (r) का मान घटता जाता है और काफी अधिक या अनन्त समय के बाद अर्थात जब t = 00 हो तब अभिक्रिया पूर्ण हो जाती है और । प्रतीप शर्करा का (-) ध्रुवण घूर्णन (r.) प्रदर्शित होता है। अतः (r) को सुक्रोस की प्रारम्भिक सान्द्रता a तथा (r0-r) को समय । पर सुक्रोस की सान्द्रता (a-X) माना जा सकता है। अतः इसके लिए
K1 = 2.303 /t log (r0 – r∞)/(rt – r∞) …(36)
- ऐसीटिक ऐनहाइड्राइड व एथेनॉल की क्रिया (Reaction of acetic anhydride and ethanol)
(CH3CO)20 + 2C2H5OH → 2CH3COOC2H5 + H2O
ऐसीटिक ऐनहाइड्राइड एथेनॉल एथिल ऐसीटेट
इस अभिक्रिया की अणुसंख्यता का मान तीन है लेकिन यह भी प्रथम कोटि वेग नियम का ही पालन करती है, अतः यह एक छद्म प्रथम कोटि की अभिक्रिया है। इस अभिक्रिया में क्रियाकारक के दो अण एथेनॉल के हैं जो इसमें विलायक है, अतः इसका सान्द्रता परिवर्तन भी नगण्य होता है और अभिक्रिया की वेग समीकरण निम्न प्रकार की होती है :
वेग =dx/dt =K [(CH3CO)2O] [C2H5OH]2
अथवा dx/dt = (CH3CO)20] [ [C2H5OH] = स्थिरांक]
- मेथिल ऐसीटेट का जल-अपघटन (Hydrolysis of methyl acetate) मेथिल (या एथिल) एसीटेट का अम्ल उत्प्रेरित जल-अपघटन निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है: CH3COOCH3 + H2O= CH3COOH +CH3OH
अभिक्रिया का अध्ययन NaOH के साथ अनुमापन द्वारा किया जाता है। जब t = 0 हो तब NaOH का प्रयक्त आयतन V0 उत्प्रेरक HCl की सान्द्रता को प्रदर्शित करता है। धीरे-धीरे जब जल-अपघटन होता। जाता है तो प्रयुक्त आयतन (Vt) HCI व CH3COOH दोनों की सान्द्रता को प्रदर्शित करता है। अतः। (Vt – Vo) बने हए ऐसीटिक अम्ल की सान्द्रता x को प्रदर्शित करता है। अभिक्रिया के पूर्ण होने पर अनुमापन में प्रयुक्त NaOH का आयतन V∞ है, अतः (V∞ -Vo) बने हुए कुल ऐसीटिक अम्ल की उच्चतम सान्द्रता। को प्रदर्शित करता है। ऐसीटिक अम्ल की उच्चतम सान्द्रता उतनी ही हो सकती है जितना एस्टर लिया गया हो अर्थात् जो एस्टर की प्रारम्भिक सान्द्रता हो।
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