कर्तोतक क्या होता है | explant in hindi meaning definition work कर्तोतक किसे कहते है कार्य भाग
explant in hindi meaning definition work कर्तोतक किसे कहते है कार्य भाग कर्तोतक क्या होता है |
निजर्मित संवर्धन तकनीक (Aseptic Culture Technique)
पादप ऊतक का पात्रे संवर्धन करने हेतु उसके छोटे खण्डों का उपयोग किया जाता है। जमीन में पादप के उगने पर विभिन्न कारक उसकी वृद्धि को किस प्रकार प्रभावित कर रहे हैं ज्ञात करना संभव नहीं होता है किन्तु पादप अंगों का पात्रे संवर्धन करने पर नियंत्रित निजर्मित अवस्थाओं में विभिन्न कारकों का पादप कर्तोतकों की वृद्धि तथा इसके विभेदन पर अध्ययन किया जा सकता है।
1. कर्तोतकों के प्रकार
पादप खण्ड जिसका उपयोग संवर्धन हेतु किया जाता है वह कर्तोतक (explant) कहलाता है। निम्न पादप खण्ड कर्तोतक के रूप में कार्य करते हैं।
1. स्तंभ पर्व 2. स्तंभ पर्व संधि
3. स्तंभ शीर्ष 4. कक्षस्थ कलिका
5. पर्ण 6. पर्ण का कोई भाग
7. पर्ण वृन्त 8. कन्द
9. परागकोष 10. परागकण
11. अण्डाशय 12. बीजाण्ड
13. त्वचारोम 14. पुष्पकली
15. बीज 16. मूल
(ं) कर्तोतक बनाना
ऊतक संवर्धन हेतु पादप भागों को शुष्क बर्फ अथवा बर्फ में रखकर प्रयोगशाला में लाया यहाँ उसे नल के पानी से व साबुन से धोकर निर्जमित किया जाता है। जो भी पादप भाग का जाता है उसे निर्जमीकरण, संरोपण तथा संवर्धन के लिए उपयुक्त रहे इस आधार पर एक आकार में काट लिया जाता है। प्ररोह में एक या दो पर्वयुक्त भाग कर्तोतक के रूप में उपयुक्त रहती है।
;a) कठोर बीजों का संवर्धन करना हो तो उन्हें 50% सल्फ्यूरिक एसिड से उपचारित कर प्रसुप्तावस्था भंग की जाती है।
इसके बाद इन्हें लगभग दो घंटे तक पानी से धोने के संवर्धन के लिए उपयोग में लिया जाता है।
(इ) कक्षस्थ कलिका का उपयोग करने पर उसके पास से अनावश्यक पर्ण हटा दिये जाते है कलिका को 70% इथेनॉल
अथवा तरल डिटर्जेन्ट से धोया जाता है।
(ब) परागकण तथा सूक्ष्म बीजों को फिल्टर पेपर के छोटे बैग या अवशोषी रूई की पतली गर्न बन्द करके निर्जमित किया
जाता है।
(क) पर्ण, गाजर, चकुन्दर कन्द के कर्तोतक तैयार करने हेतु इन्हें लैमीनर वायु प्रवाह बैंच पर निर्जमित करके इनके छोटे
डिस्क समान भाग कार्क बेधक की सहायता से कर लिये जाता हैं ताकि जितने भी कर्तोतक हों उनका आकार समान
रहे।
(म) प्ररोह कर्तोतक का उपयोग करने पर इसके कटे हुए दोनों शीर्ष भागों को पिघले हुए मोन से बंद कर देते हैं उसके
पश्चात् इसे रोगाणुनाशी से निर्जमित किया जाता है। उसके बाद आतुत जल से अच्छी तरह धोकर इन्हें पेट्रीप्लेट या
फिल्टर पेपर पर रख दिया जाता है। सूखने पर इसके दोनों सिरों पर लगे मोम वाले हिस्सों को चाकू से काट कर
अलग कर देते हैं तथा आवश्यकता अनुरूप समान आकार के कर्तोतक कर लेते हैं।
कर्तोतक निर्जमीकरण की प्रक्रिया पादप
पादप भाग से आवश्यकता अनुरूप कर्तोतक (explant) प्राप्त करने के पश्चात् उसका निजेमीकर परम आवश्यक होता है1.
1. लैमीनर फ्लो कैबीनेट जहाँ कर्तोतक का निर्जमीकरण करेंगे सर्वप्रथम उसे 70% इथनाल से निर्जमित करते हैं तथा जो भी
उपकरण उपयोग में लाये जायेंगे यथा पेट्रीप्लेट, स्केलपल फिल्टर पेपर आदि को भी निर्जमित किया जाता है।
2. स्प्रिट लैंप या गैस बर्नर को लैमीनर फ्लो की बैंच पर उपरोक्त समान के साथ रखने के बाद. न्ण्टण् प्रकाश की
ट्यूबलाइट जला दी जाती है जिसे आधे घंटे बाद बन्द कर दिया।
3. हाथों को इथेनॉल (70%) से धोकर सुखा लें। मास्क व कैप लगा कर बर्नर जलाया।
4. तीन पेट्रीप्लेट लेकर एक में 70% इथेनॉल व दो में आसुत जल डालें।
5. पहली पेटीप्लेट में पादप भाग को 15-30 सैंकड तक 70% इथेनॉल में रखकर निर्जमित कर लें।
6. इथेनॉल से पादप भाग को चिमटी की सहायता से निकाल कर दूसरी पेट्री प्लेट में रख लेते हैं व आसुत जल में धो लेने
के पश्चात् तीसरी पेट्रीप्लेट में रखे आसुत जल से भी धो लेते है।
7. पादप भाग को जो निर्जमित हो चुका है या तो सूखी पेट्री प्लेट में या फिल्टर पेपर पर रखकर उसके उचित आकार के
भाग (कर्तोतक) कर लेते हैं व उन्हें पोष पदार्थ युक्त फ्लास्क में स्थानान्तरित कर देते हैं।
कैलस सवर्धन (Callus Culture)
पादप के लगभग सभी भागों को निर्जमित करके पोष पदार्थ पर संवर्धित किया जा सकता है। अगर पोष पदार्थ ठोस होता है तब कर्तोतक संवर्धन माध्यम की सतह पर वृद्धि करता है व अगर माध्यम तरल हो तो वह पोष पदार्थ के भीतर वृद्धि करता है।
कर्तोतक का संवर्धन अगार युक्त पोष पदार्थ पर करने से 2-4 सप्ताह (पादप जाति पर निर्भर) में ही असंगठित कोशिकाओं का समूह दिखाई देने लगता है। पादप वृद्धि नियामकों के प्रभाव से कोशिकायें निरंतर विभाजित होने की क्षमता रखती हैं तथा कोशिकाओं का यह समूह कैलस कहलाता है। यह विभेदित होकर मृदूतक, स्थूलकोण ऊतक व फ्लोएम आदि बना लेते हैं जो विभेदन कहलाता है।
इस कैलस को निर्जमित वातावरण में कर्तोतक से पृथक करके नये पोष पदार्थ पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है। यह उपकल्चर (ेनइ बनसजनतम) कहलाता है व इस प्रकार कैलस को असीमित काल तक संवर्धित किया जा सकता है। कैलस संवर्धन का 4 से 6 सप्ताह बाद उपकल्चर करते हैं जबकि निलम्बन संवर्धा को 3-7 दिन बाद उपकल्चर करते हैं। पादप भाग के किसी भी जीवित भाग का कर्तोतक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। कैलस निर्माण व इसके उपसंवर्धन से कोशिकाओं की पोषक आवश्यकताों के बारे में पता चलता है।.
कैलस की विशेषतायें
(प) सभी कैलस लगभग समान दिखाई देते हैं किन्तु उन्हें उसकी हार्मोन आवश्यकताओं, रंग तथा गठन (texture) के आधार
पर अलग किया जा सकता है।
(पप) कुछ कैलस कोमल, भुरभुरे तथा विषम कोशिकीय होते हैं जबकि अन्य को कोशिकाओं से निर्मित होते हैं।
(पपप) कैलस के ऊतक का रंग एन्थोसाइनिन की उपस्थिति में रंजकी (pigmented) होता है फिनॉलिक पदार्थों का स्त्रवण
हो तो वह भूरे रंग के हो जाते हैं। सामान्यतः कैलस ऊतक हल्का पीला या सफेद रंग का होता है। कभी-कभी हरे रंग
का होता है अगर उसमें क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है।
(पअ) कैलस के वातन का ध्यान उसकी समुचित वृद्धि के लिए आवश्यक होता है अतः कैलस को स्वचालित रोलर से हिलाना
जरूरी होता है।
कैलस कल्चर के उपयोग
कैलस कल्चर द्वारा निम्नलिखित का अध्ययन करने में सहायता मिलती है
(प) पादपों के पोषण का प्रकार
(पप) कोशिका, अंग विभेदन व इनका उपयोग
(पपप) कायिक क्लोनों की विविधता व इनका उपयोग
(पअ) कोशिका निलम्बन संवर्धन हेतु
(अ) प्रोटोप्लास्ट संवर्धन हेतु
(अप) द्वितीय उपापचयों (secondary metabolities) का उत्पादन व उनका नियंत्रण
पात्रे तकनीक का वर्गीकरण
एफ. स्कूग ने 1941 में सर्वप्रथम रिपोर्ट किया कि कैलस में पात्रे अंगजनन कुछ रासायनिक पदार्थों की निरचित मात्रा के कारण होता है जैसे ऑक्सिन अधिक होने पर जड़े विकसित होगी व तने का विकास कम होगा।
(i) एकल कोशिका संवर्धन रू एकल कोशिका से पूर्ण पादपक तैयार होता है।
(ii) परागकोष संवर्धन रू परागकण या परागकोष का पात्रे संवर्धन द्वारा अगुणित पादपक उत्पन्न करना।
(iii) भ्रूण संवर्धन रू बीजों से भ्रूण निकाल कर उन्हें पात्रे संवर्धन द्वारा तैयार करना।
(iv) विभज्योतक संवर्धन रू प्ररोह शीर्ष कक्षस्थ कलिका का पात्रे संवर्धन द्वारा पूर्ण पादपक प्राप्त करना।
(v) कायिक भ्रूण संवर्धन रू पादप की किसी भी द्विगुणित कोशिका (मूल, बीजाण्डकाय, पर्ण) आदि से द्विगुणित भू्रण निर्माण।
(vi) अण्डाशयध्बीजाण्ड संवर्धन रू इसमें अण्डाशय या बीजाण्ड का पात्रे संवर्धन करके अगुणित पादप प्राप्त किये जाते हैं।
(vii) जीवद्रव्यक संवर्धन रू पादप कोशिका को सैल्यूलोज एन्जाइम की सहायता से उपचारित करके भित्ति रहित करके
जीवद्रव्यक प्राप्त करके इसका उपयुक्त माध्यम पर संवर्धन जीवद्रव्यक संवर्धन कहलाता है।
(viii) कोशिका निलम्बन संवर्धन रू कैलस को हलित्र द्वारा हिलाये जाने पर जब इसकी कोशिकायें टूट कर कोशिका समूह या एकल कोशिकायें बना लेती हैं व इनका तरल माध्यम पर संवर्धन कोशिका निलम्बन संवर्धन कहलाता है।
कोशिका निलम्बन संवर्धन (Cell Suspension culture)
कोशिका निलम्बन तैयार करने के लिए कैलस को तरल पोष पदार्थ पर स्थानान्तरित करके 80-150 चक्र प्रति मिनट हलित्र (stirrer) पर हिलाया जाता है। इस प्रकार कैलस की भुरभुरी कोशिकायें बिखरती हैं व कोशिका निलम्बन तैयार हो जाता है। माध्यम में पेक्टीनेज विकर डालने पर कोशिकाओं की मध्य पटलिका घुल जाती हैं व कोशिकायें शीघ्र ही अलग हो जाती हैं। कैलस अगर तरल पोष पदार्थ में डूबा रहता है तब उसके लिए अनॉक्सी अवस्था उत्पन्न हो जाती है किन्तु हलित्र पर कोशिकाओं का निलम्बन तैयार हो जाने से कोशिकाओं को समुचित हवा मिलती रहती है तथा इनकी वृद्धि दर बढ़ जाती है
कोशिका निलम्बन के बारे में 1953 में डब्ल्यू. एच. मूर द्वारा रिपोर्ट किया गया था। उन्होंने निकोटिआना टबेकम व टेजीटिस इरेक्टा के कैलस को छोटे भागों में खण्डित करके उनकी कोशिकाओं की निलम्बन संवर्धन पर वृद्धि देखी थी। उनके कार्य को आगे बढ़ाते हुए एफ. सी. स्टीवर्ड व ई. एम स्टेन्ज ने 1956 में डॉकस केरोटा की मूल से कर्तातक लेकर कोशिका निलम्बन संवर्धन द्वारा पादपक प्राप्त करने की महत्वपर्ण उपलब्धि हासिल की थी। एफ. किंग ने 1980 में कोशिका निलम्बन संवर्धन में कैलस के स्थान पर पादप ऊतक का उपयोग करके रिपोर्ट किया कि इस विधि द्वारा कोशिकाओं में काफी पहले ही उपापचयी (metabolic) व वृद्धि (growth) सम्बन्धी परिवर्तन आरम्भ हो जाते हैं जिससे विभिन्न वंशक्रम निर्मित हो जाते हैं।
कोशिका निलम्बन संवर्धन द्वारा रासायनिक रूप से ज्ञात तरल माध्यम पर कोशिकाओं की वृद्धि परिवर्धन की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले आकारिकी व जैव रासायनिक परिवर्तनों का अध्ययन का संभव होता है जबकि कैलस में यह पूर्ण रूप से संभव नहीं हो पाता है।
ठोस की अपेक्षा भुरभुरे (fragile) कैलस द्वारा उपयुक्त कोशिका निलम्बन प्राप्त किया जाता है। इसके लिए कैलस.को हलित्र पर रखने के बाद तरल पोष माध्यम में स्थानान्तरित कर देते हैं। बड़े कोशिका समूहों को हटा दिया जाता है तथा एकल या छोटे समूहों को नवीन पोष माध्यम पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है तथा इसके पश्चात् समय-समय पर इनका उपसंवर्धन किया जाता है। निलम्बन संर्वधन में उपस्थित समरूप एकल कोशिकाओं का जैव रासायनिक संगठन व कार्यिकी समान होती है।
निलम्बन संवर्धन के निम्न लाभ माने जाते है
ं(प) वायु विनिमय आसान होता है।
(पप) गुरुत्वाकर्षण के कारण कोशिकाओं में उत्पन्न धु्रवता को सफलता से हटाया जा सकता है।
(पपप) पोष माध्यम व कोशिका सतह पर विभव उपस्थित नहीं होता है।
कोशिका निलम्बन संवर्धन प्रक्रिया
यह निम्न प्रकार से सम्पन्न की जाती हैं।
1. पादप भाग अथवा कैलस से एकल कोशिका विलग करना।
2. संवर्धन माध्यम निर्जीकरण ।
3. भुरभुरे (fragile) कैलस से अथवा निर्जमीकृत कर्तोतक से प्राप्त एकल या कुछ कोशिकाओं का संरोपण (inoculation) व पोष पदार्थ पर इनका संवर्धन
4. निलम्बन संवर्धन के विभिन्न प्रकार।
(1) कैलस अथवा पादप भाग से एकल कोशिका विलग करना
निलम्बन संवर्धन हेतु एकल या कोशिका पुंज भुरभुरे कैलस अथवा पादप भाग से लिये जाते हैं। कैलस से निम्न चरणों में एकल या कोशिका पुंज प्राप्त किये जाते हैं।
(प) सर्वप्रथम जिस पादप का कोशिका निलम्बन प्राप्त करना हो उसके उपयुक्त कर्तोतक को पोष पदार्थ पर संवर्धित किया
जाता है।
(पप) कैलस को वाटमेन फिल्टर पेपर बिछी पेट्रीप्लेट पर स्थानान्तरित करने के पश्चात् निजामत स्केल्पल से इसके 500 से
700 उह के छोटे खण्ड कर लिये जाते हैं।
(पपप) छोटे कैलस खण्डों को द्रव पोष पदार्थ (डै माध्यम) में स्थानान्तरित करने के पश्चात् उस हलित्र (shaker) पर
पेक्टीनेज एन्जायम डालकर रख दिया जाता है। हिलने से कर कोशिका पुंजों व एकल कोशिका में टूट जाता है।
एन्जाइम के कारण कोशिकाओं का पटलिका (middle lamellae) घुल जाती है जिससे कोशिकाओं को पृथक्करण
में सहायता मिलती है।
(पअ) हलित्र द्वारा तैयार द्रव निलम्बन को पराचालनी द्वारा छान कर छोटे कोशिका पुंज तथा कोशिकाओं को अलग कर लिया
जाता है व इन्हें कोशिका निलम्बन संवर्धन के दौरान के रूप में प्रयोग करते हैं।
(इ) पादप भाग से एकल कोशिका पुंज प्राप्त करना
जिस पादप से एकल या कोश्किा पुंज प्राप्त करना हो उसके बीजों को निर्जमित कर लेने के बाद उनके बीजपत्र या बीजपत्राधार (hypocotyl) से एकल या कोशिका पुंज निम्न दो विधि द्वारा प्राप्त किये जाते है
ं(प) यांत्रिक विधि रू
(प) बीजपत्र या बीजपत्राधार के निर्जमित छोटे भागों को तरल पोष पदार्थ में डाल कर समागित (homogençer) में पीस
कर समांग बना लिया जाता है। दृ
(पप) समांग को पराचालनी से छानकर फिल्टरित (filtrate) का अपकेन्द्रीकरण (centrifugation) किया जाता है।
(पपप) अवसाद में एकल या कोशिका पुंज उपस्थित होते हैं जिन्हें संरोप के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
(पप) एन्जायमेटिक विधि रू
विकर (eæyme) का उपयोग शाकीय (herbaceous) द्विबीजपत्री पौधों के बीजपत्राधार की कोशिकाओं को अलग करने के लिए किया जाता है। यह निम्न चरणों में किया जाता है-
(प) बीजपत्राधार को पोष पदार्थ में विकर पेक्टीनेज से उपचारित करने पर कोशिकायें एक दूसरे से अलग हो जाती हैं।
(पप) उपचारित तरल का अपकेन्द्रण किया जाता है।
(पपप) अवसाद को पोष माध्यम से भली भांति धोकर उसे विकर रहित कर लेते हैं।
(पअ) प्राप्त एकल या कोशिका पुंजों को संरोप (inoculum) के रूप में इस्तेमाल करते हैं
यह विधि एकबीजपत्री पादपों के लिए प्रयुक्त नहीं की जाती है क्योंकि इनकी कोशिकायें अन्तर्ग्रथिल संकीर्ण (Interlocking constrictions) में आबद्ध रहती है अतः उन्हें सरलता से विलग करना संभव नहीं होता है।
कर्तोतक क्या होता है | explant in hindi meaning definition work कर्तोतक किसे कहते है कार्य भाग
explant in hindi meaning definition work कर्तोतक किसे कहते है कार्य भाग कर्तोतक क्या होता है |
निजर्मित संवर्धन तकनीक (Aseptic Culture Technique)
पादप ऊतक का पात्रे संवर्धन करने हेतु उसके छोटे खण्डों का उपयोग किया जाता है। जमीन में पादप के उगने पर विभिन्न कारक उसकी वृद्धि को किस प्रकार प्रभावित कर रहे हैं ज्ञात करना संभव नहीं होता है किन्तु पादप अंगों का पात्रे संवर्धन करने पर नियंत्रित निजर्मित अवस्थाओं में विभिन्न कारकों का पादप कर्तोतकों की वृद्धि तथा इसके विभेदन पर अध्ययन किया जा सकता है।
1. कर्तोतकों के प्रकार
पादप खण्ड जिसका उपयोग संवर्धन हेतु किया जाता है वह कर्तोतक (explant) कहलाता है। निम्न पादप खण्ड कर्तोतक के रूप में कार्य करते हैं।
1. स्तंभ पर्व 2. स्तंभ पर्व संधि
3. स्तंभ शीर्ष 4. कक्षस्थ कलिका
5. पर्ण 6. पर्ण का कोई भाग
7. पर्ण वृन्त 8. कन्द
9. परागकोष 10. परागकण
11. अण्डाशय 12. बीजाण्ड
13. त्वचारोम 14. पुष्पकली
15. बीज 16. मूल
(ं) कर्तोतक बनाना
ऊतक संवर्धन हेतु पादप भागों को शुष्क बर्फ अथवा बर्फ में रखकर प्रयोगशाला में लाया यहाँ उसे नल के पानी से व साबुन से धोकर निर्जमित किया जाता है। जो भी पादप भाग का जाता है उसे निर्जमीकरण, संरोपण तथा संवर्धन के लिए उपयुक्त रहे इस आधार पर एक आकार में काट लिया जाता है। प्ररोह में एक या दो पर्वयुक्त भाग कर्तोतक के रूप में उपयुक्त रहती है।
;a) कठोर बीजों का संवर्धन करना हो तो उन्हें 50% सल्फ्यूरिक एसिड से उपचारित कर प्रसुप्तावस्था भंग की जाती है।
इसके बाद इन्हें लगभग दो घंटे तक पानी से धोने के संवर्धन के लिए उपयोग में लिया जाता है।
(इ) कक्षस्थ कलिका का उपयोग करने पर उसके पास से अनावश्यक पर्ण हटा दिये जाते है कलिका को 70% इथेनॉल
अथवा तरल डिटर्जेन्ट से धोया जाता है।
(ब) परागकण तथा सूक्ष्म बीजों को फिल्टर पेपर के छोटे बैग या अवशोषी रूई की पतली गर्न बन्द करके निर्जमित किया
जाता है।
(क) पर्ण, गाजर, चकुन्दर कन्द के कर्तोतक तैयार करने हेतु इन्हें लैमीनर वायु प्रवाह बैंच पर निर्जमित करके इनके छोटे
डिस्क समान भाग कार्क बेधक की सहायता से कर लिये जाता हैं ताकि जितने भी कर्तोतक हों उनका आकार समान
रहे।
(म) प्ररोह कर्तोतक का उपयोग करने पर इसके कटे हुए दोनों शीर्ष भागों को पिघले हुए मोन से बंद कर देते हैं उसके
पश्चात् इसे रोगाणुनाशी से निर्जमित किया जाता है। उसके बाद आतुत जल से अच्छी तरह धोकर इन्हें पेट्रीप्लेट या
फिल्टर पेपर पर रख दिया जाता है। सूखने पर इसके दोनों सिरों पर लगे मोम वाले हिस्सों को चाकू से काट कर
अलग कर देते हैं तथा आवश्यकता अनुरूप समान आकार के कर्तोतक कर लेते हैं।
कर्तोतक निर्जमीकरण की प्रक्रिया पादप
पादप भाग से आवश्यकता अनुरूप कर्तोतक (explant) प्राप्त करने के पश्चात् उसका निजेमीकर परम आवश्यक होता है1.
1. लैमीनर फ्लो कैबीनेट जहाँ कर्तोतक का निर्जमीकरण करेंगे सर्वप्रथम उसे 70% इथनाल से निर्जमित करते हैं तथा जो भी
उपकरण उपयोग में लाये जायेंगे यथा पेट्रीप्लेट, स्केलपल फिल्टर पेपर आदि को भी निर्जमित किया जाता है।
2. स्प्रिट लैंप या गैस बर्नर को लैमीनर फ्लो की बैंच पर उपरोक्त समान के साथ रखने के बाद. न्ण्टण् प्रकाश की
ट्यूबलाइट जला दी जाती है जिसे आधे घंटे बाद बन्द कर दिया।
3. हाथों को इथेनॉल (70%) से धोकर सुखा लें। मास्क व कैप लगा कर बर्नर जलाया।
4. तीन पेट्रीप्लेट लेकर एक में 70% इथेनॉल व दो में आसुत जल डालें।
5. पहली पेटीप्लेट में पादप भाग को 15-30 सैंकड तक 70% इथेनॉल में रखकर निर्जमित कर लें।
6. इथेनॉल से पादप भाग को चिमटी की सहायता से निकाल कर दूसरी पेट्री प्लेट में रख लेते हैं व आसुत जल में धो लेने
के पश्चात् तीसरी पेट्रीप्लेट में रखे आसुत जल से भी धो लेते है।
7. पादप भाग को जो निर्जमित हो चुका है या तो सूखी पेट्री प्लेट में या फिल्टर पेपर पर रखकर उसके उचित आकार के
भाग (कर्तोतक) कर लेते हैं व उन्हें पोष पदार्थ युक्त फ्लास्क में स्थानान्तरित कर देते हैं।
कैलस सवर्धन (Callus Culture)
पादप के लगभग सभी भागों को निर्जमित करके पोष पदार्थ पर संवर्धित किया जा सकता है। अगर पोष पदार्थ ठोस होता है तब कर्तोतक संवर्धन माध्यम की सतह पर वृद्धि करता है व अगर माध्यम तरल हो तो वह पोष पदार्थ के भीतर वृद्धि करता है।
कर्तोतक का संवर्धन अगार युक्त पोष पदार्थ पर करने से 2-4 सप्ताह (पादप जाति पर निर्भर) में ही असंगठित कोशिकाओं का समूह दिखाई देने लगता है। पादप वृद्धि नियामकों के प्रभाव से कोशिकायें निरंतर विभाजित होने की क्षमता रखती हैं तथा कोशिकाओं का यह समूह कैलस कहलाता है। यह विभेदित होकर मृदूतक, स्थूलकोण ऊतक व फ्लोएम आदि बना लेते हैं जो विभेदन कहलाता है।
इस कैलस को निर्जमित वातावरण में कर्तोतक से पृथक करके नये पोष पदार्थ पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है। यह उपकल्चर (ेनइ बनसजनतम) कहलाता है व इस प्रकार कैलस को असीमित काल तक संवर्धित किया जा सकता है। कैलस संवर्धन का 4 से 6 सप्ताह बाद उपकल्चर करते हैं जबकि निलम्बन संवर्धा को 3-7 दिन बाद उपकल्चर करते हैं। पादप भाग के किसी भी जीवित भाग का कर्तोतक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। कैलस निर्माण व इसके उपसंवर्धन से कोशिकाओं की पोषक आवश्यकताों के बारे में पता चलता है।.
कैलस की विशेषतायें
(प) सभी कैलस लगभग समान दिखाई देते हैं किन्तु उन्हें उसकी हार्मोन आवश्यकताओं, रंग तथा गठन (texture) के आधार
पर अलग किया जा सकता है।
(पप) कुछ कैलस कोमल, भुरभुरे तथा विषम कोशिकीय होते हैं जबकि अन्य को कोशिकाओं से निर्मित होते हैं।
(पपप) कैलस के ऊतक का रंग एन्थोसाइनिन की उपस्थिति में रंजकी (pigmented) होता है फिनॉलिक पदार्थों का स्त्रवण
हो तो वह भूरे रंग के हो जाते हैं। सामान्यतः कैलस ऊतक हल्का पीला या सफेद रंग का होता है। कभी-कभी हरे रंग
का होता है अगर उसमें क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है।
(पअ) कैलस के वातन का ध्यान उसकी समुचित वृद्धि के लिए आवश्यक होता है अतः कैलस को स्वचालित रोलर से हिलाना
जरूरी होता है।
कैलस कल्चर के उपयोग
कैलस कल्चर द्वारा निम्नलिखित का अध्ययन करने में सहायता मिलती है
(प) पादपों के पोषण का प्रकार
(पप) कोशिका, अंग विभेदन व इनका उपयोग
(पपप) कायिक क्लोनों की विविधता व इनका उपयोग
(पअ) कोशिका निलम्बन संवर्धन हेतु
(अ) प्रोटोप्लास्ट संवर्धन हेतु
(अप) द्वितीय उपापचयों (secondary metabolities) का उत्पादन व उनका नियंत्रण
पात्रे तकनीक का वर्गीकरण
एफ. स्कूग ने 1941 में सर्वप्रथम रिपोर्ट किया कि कैलस में पात्रे अंगजनन कुछ रासायनिक पदार्थों की निरचित मात्रा के कारण होता है जैसे ऑक्सिन अधिक होने पर जड़े विकसित होगी व तने का विकास कम होगा।
(i) एकल कोशिका संवर्धन रू एकल कोशिका से पूर्ण पादपक तैयार होता है।
(ii) परागकोष संवर्धन रू परागकण या परागकोष का पात्रे संवर्धन द्वारा अगुणित पादपक उत्पन्न करना।
(iii) भ्रूण संवर्धन रू बीजों से भ्रूण निकाल कर उन्हें पात्रे संवर्धन द्वारा तैयार करना।
(iv) विभज्योतक संवर्धन रू प्ररोह शीर्ष कक्षस्थ कलिका का पात्रे संवर्धन द्वारा पूर्ण पादपक प्राप्त करना।
(v) कायिक भ्रूण संवर्धन रू पादप की किसी भी द्विगुणित कोशिका (मूल, बीजाण्डकाय, पर्ण) आदि से द्विगुणित भू्रण निर्माण।
(vi) अण्डाशयध्बीजाण्ड संवर्धन रू इसमें अण्डाशय या बीजाण्ड का पात्रे संवर्धन करके अगुणित पादप प्राप्त किये जाते हैं।
(vii) जीवद्रव्यक संवर्धन रू पादप कोशिका को सैल्यूलोज एन्जाइम की सहायता से उपचारित करके भित्ति रहित करके
जीवद्रव्यक प्राप्त करके इसका उपयुक्त माध्यम पर संवर्धन जीवद्रव्यक संवर्धन कहलाता है।
(viii) कोशिका निलम्बन संवर्धन रू कैलस को हलित्र द्वारा हिलाये जाने पर जब इसकी कोशिकायें टूट कर कोशिका समूह या एकल कोशिकायें बना लेती हैं व इनका तरल माध्यम पर संवर्धन कोशिका निलम्बन संवर्धन कहलाता है।
कोशिका निलम्बन संवर्धन (Cell Suspension culture)
कोशिका निलम्बन तैयार करने के लिए कैलस को तरल पोष पदार्थ पर स्थानान्तरित करके 80-150 चक्र प्रति मिनट हलित्र (stirrer) पर हिलाया जाता है। इस प्रकार कैलस की भुरभुरी कोशिकायें बिखरती हैं व कोशिका निलम्बन तैयार हो जाता है। माध्यम में पेक्टीनेज विकर डालने पर कोशिकाओं की मध्य पटलिका घुल जाती हैं व कोशिकायें शीघ्र ही अलग हो जाती हैं। कैलस अगर तरल पोष पदार्थ में डूबा रहता है तब उसके लिए अनॉक्सी अवस्था उत्पन्न हो जाती है किन्तु हलित्र पर कोशिकाओं का निलम्बन तैयार हो जाने से कोशिकाओं को समुचित हवा मिलती रहती है तथा इनकी वृद्धि दर बढ़ जाती है
कोशिका निलम्बन के बारे में 1953 में डब्ल्यू. एच. मूर द्वारा रिपोर्ट किया गया था। उन्होंने निकोटिआना टबेकम व टेजीटिस इरेक्टा के कैलस को छोटे भागों में खण्डित करके उनकी कोशिकाओं की निलम्बन संवर्धन पर वृद्धि देखी थी। उनके कार्य को आगे बढ़ाते हुए एफ. सी. स्टीवर्ड व ई. एम स्टेन्ज ने 1956 में डॉकस केरोटा की मूल से कर्तातक लेकर कोशिका निलम्बन संवर्धन द्वारा पादपक प्राप्त करने की महत्वपर्ण उपलब्धि हासिल की थी। एफ. किंग ने 1980 में कोशिका निलम्बन संवर्धन में कैलस के स्थान पर पादप ऊतक का उपयोग करके रिपोर्ट किया कि इस विधि द्वारा कोशिकाओं में काफी पहले ही उपापचयी (metabolic) व वृद्धि (growth) सम्बन्धी परिवर्तन आरम्भ हो जाते हैं जिससे विभिन्न वंशक्रम निर्मित हो जाते हैं।
कोशिका निलम्बन संवर्धन द्वारा रासायनिक रूप से ज्ञात तरल माध्यम पर कोशिकाओं की वृद्धि परिवर्धन की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले आकारिकी व जैव रासायनिक परिवर्तनों का अध्ययन का संभव होता है जबकि कैलस में यह पूर्ण रूप से संभव नहीं हो पाता है।
ठोस की अपेक्षा भुरभुरे (fragile) कैलस द्वारा उपयुक्त कोशिका निलम्बन प्राप्त किया जाता है। इसके लिए कैलस.को हलित्र पर रखने के बाद तरल पोष माध्यम में स्थानान्तरित कर देते हैं। बड़े कोशिका समूहों को हटा दिया जाता है तथा एकल या छोटे समूहों को नवीन पोष माध्यम पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है तथा इसके पश्चात् समय-समय पर इनका उपसंवर्धन किया जाता है। निलम्बन संर्वधन में उपस्थित समरूप एकल कोशिकाओं का जैव रासायनिक संगठन व कार्यिकी समान होती है।
निलम्बन संवर्धन के निम्न लाभ माने जाते है
ं(प) वायु विनिमय आसान होता है।
(पप) गुरुत्वाकर्षण के कारण कोशिकाओं में उत्पन्न धु्रवता को सफलता से हटाया जा सकता है।
(पपप) पोष माध्यम व कोशिका सतह पर विभव उपस्थित नहीं होता है।
कोशिका निलम्बन संवर्धन प्रक्रिया
यह निम्न प्रकार से सम्पन्न की जाती हैं।
1. पादप भाग अथवा कैलस से एकल कोशिका विलग करना।
2. संवर्धन माध्यम निर्जीकरण ।
3. भुरभुरे (fragile) कैलस से अथवा निर्जमीकृत कर्तोतक से प्राप्त एकल या कुछ कोशिकाओं का संरोपण (inoculation) व पोष पदार्थ पर इनका संवर्धन
4. निलम्बन संवर्धन के विभिन्न प्रकार।
(1) कैलस अथवा पादप भाग से एकल कोशिका विलग करना
निलम्बन संवर्धन हेतु एकल या कोशिका पुंज भुरभुरे कैलस अथवा पादप भाग से लिये जाते हैं। कैलस से निम्न चरणों में एकल या कोशिका पुंज प्राप्त किये जाते हैं।
(प) सर्वप्रथम जिस पादप का कोशिका निलम्बन प्राप्त करना हो उसके उपयुक्त कर्तोतक को पोष पदार्थ पर संवर्धित किया
जाता है।
(पप) कैलस को वाटमेन फिल्टर पेपर बिछी पेट्रीप्लेट पर स्थानान्तरित करने के पश्चात् निजामत स्केल्पल से इसके 500 से
700 उह के छोटे खण्ड कर लिये जाते हैं।
(पपप) छोटे कैलस खण्डों को द्रव पोष पदार्थ (डै माध्यम) में स्थानान्तरित करने के पश्चात् उस हलित्र (shaker) पर
पेक्टीनेज एन्जायम डालकर रख दिया जाता है। हिलने से कर कोशिका पुंजों व एकल कोशिका में टूट जाता है।
एन्जाइम के कारण कोशिकाओं का पटलिका (middle lamellae) घुल जाती है जिससे कोशिकाओं को पृथक्करण
में सहायता मिलती है।
(पअ) हलित्र द्वारा तैयार द्रव निलम्बन को पराचालनी द्वारा छान कर छोटे कोशिका पुंज तथा कोशिकाओं को अलग कर लिया
जाता है व इन्हें कोशिका निलम्बन संवर्धन के दौरान के रूप में प्रयोग करते हैं।
(इ) पादप भाग से एकल कोशिका पुंज प्राप्त करना
जिस पादप से एकल या कोश्किा पुंज प्राप्त करना हो उसके बीजों को निर्जमित कर लेने के बाद उनके बीजपत्र या बीजपत्राधार (hypocotyl) से एकल या कोशिका पुंज निम्न दो विधि द्वारा प्राप्त किये जाते है
ं(प) यांत्रिक विधि रू
(प) बीजपत्र या बीजपत्राधार के निर्जमित छोटे भागों को तरल पोष पदार्थ में डाल कर समागित (homogençer) में पीस
कर समांग बना लिया जाता है। दृ
(पप) समांग को पराचालनी से छानकर फिल्टरित (filtrate) का अपकेन्द्रीकरण (centrifugation) किया जाता है।
(पपप) अवसाद में एकल या कोशिका पुंज उपस्थित होते हैं जिन्हें संरोप के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
(पप) एन्जायमेटिक विधि रू
विकर (eæyme) का उपयोग शाकीय (herbaceous) द्विबीजपत्री पौधों के बीजपत्राधार की कोशिकाओं को अलग करने के लिए किया जाता है। यह निम्न चरणों में किया जाता है-
(प) बीजपत्राधार को पोष पदार्थ में विकर पेक्टीनेज से उपचारित करने पर कोशिकायें एक दूसरे से अलग हो जाती हैं।
(पप) उपचारित तरल का अपकेन्द्रण किया जाता है।
(पपप) अवसाद को पोष माध्यम से भली भांति धोकर उसे विकर रहित कर लेते हैं।
(पअ) प्राप्त एकल या कोशिका पुंजों को संरोप (inoculum) के रूप में इस्तेमाल करते हैं
यह विधि एकबीजपत्री पादपों के लिए प्रयुक्त नहीं की जाती है क्योंकि इनकी कोशिकायें अन्तर्ग्रथिल संकीर्ण (Interlocking constrictions) में आबद्ध रहती है अतः उन्हें सरलता से विलग करना संभव नहीं होता है।
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