प्राणी जगत किसे कहते हैं ? प्राणी जगत के सामान्य रूपरेखा , प्रकार वर्गीकरण की विशेषताएं लिखिए
प्राणी जगत के सामान्य रूपरेखा , प्रकार वर्गीकरण की विशेषताएं लिखिए प्राणी जगत किसे कहते हैं ?
उपसंहार
प्राणि-जगत् की सामान्य रूप-रेखा
प्राणि-जगत् का परिचय प्राप्त करने पर पता चलता है कि विविधता के साथ साथ प्राणियों में बहुत-सी समानता भी होती है। हर प्राणी के शरीर में उपापचय-क्रिया होती है य हर प्राणी अपनी जाति की संतान उत्पन्न करके पीछे छोड़ता है, बच्चे बड़े और परिवर्दि्धत होते हैं। प्राणियों की संरचना में भी समानता होती है – उनका शरीर कोशिकाओं से बना हुआ होता है (प्रोटोजोप्रा में एक कोशिका और दूसरे प्राणियों में अनेक )। दूसरी ओर संरचना की जटिलता के कारण प्राणी एक दूसरे से भिन्न पहचाने जा सकते हैं।
हमने जिन प्राणियों का अध्ययन किया वे उनकी भिन्नताओं के आधार पर निम्नलिखित समूहों में विभाजित हैं – १ ) प्रोटोजोआ, २) सीलेंट्रेटा, ३) कृमि (सपाट कृमि , गोल कृमि और छल्ला कृमि), ४) मोलस्क , ५) आरथ्योपोडा, ६) रज्जुधारी (रीढ़धारियों सहित )।
प्रोटोजोमा समूह में अतिप्राचीन एककोशिकीय प्राणी (अमीबा , पैरामीशियम , मलेरिया परजीवी ) शामिल हैं।
सीलेंट्रेटा समूह में ऐसे बहुकोशिकीय प्राणी ( हाइड्रा, आदि) आते हैं जिनके संगठन में काफी सरलता दिखाई देती है। इनके शरीरों में कोशिकाओं की केवल दो परतें होती हैं ।
कृमि समूह में सीलेंट्रेटा से अधिक जटिल संरचनावाले प्राणी ( केंचुआ, एस्कराइड , फीता-कृमि ) शामिल है। कृमि का शरीर पेशियों और त्वचा से बनी थैली का सा होता है जिसमें पचनेंद्रियां , उत्सर्जनेंद्रियां और जननेंद्रियां होती हैं और तंत्रिका तंत्र भी।
मोलस्क समूह के प्राणियों के मुलायम, वृत्तखंडरहित शरीर होते हैं और उनपर के आवरणों से सख्त चूने के कवच रसते हैं।
आरथ्योपोडा समूह में क्रस्टेशिया, अरैकनिडा और कीट शामिल हैं। इनकी अंदरूनी इंद्रियां कृमियों और मोलस्कों की तुलना में अधिक जटिल होती हैं। उनका शरीर एक काइटिनीय आवरण में बंद रहता है । यह आवरण इंद्रियों की रक्षा करता है और वहिःकंकाल का काम देता है। आरोपोडा के सुविकसित गतिदायी इंद्रियां – वृत्तखंडधारी अंग होते हैं य अधिकांश कीटों के पंख भी होते हैं।
वे अधिक गतिशील जीवन व्यतीत करते हैं जिससे उनके तंत्रिका तंत्र के विकास में और ज्ञानेंद्रियों की पूर्णता में अधिक उद्दीपन मिलता है। आरथ्योपोडा का बरताव अन्य समूहों के प्राणियों के बरताव से जटिलतर होता है। उनमें जटिल अनियमित प्रतिवर्ती क्रियाओं (सहज प्रवृत्तियों) का अस्तित्व होता है और अपने जीवन-काल में वे नियमित प्रतिवर्ती क्रियाएं अपना सकते हैं।
रज्जुधारी समूह में अत्यंत सुविकसित प्राणी शामिल हैं, जैसे रीढ़धारी और कुछ अन्य। अन्य में सबसे ज्यादा दिलचस्प प्राणी लैंसेट-मछली है। यह समुद्र में रेत में घुसकर रहती है। तल की सतह के ऊपर केवल उसके शरीर का अगला सिरा निकला हुआ रहता है। इसमें उक्त प्राणी का स्पर्शिकाओं से घिरा हुआ मुंह शामिल है। पानी के साथ मुंह और गले के जरिये नन्हे नन्हे समुद्री जीव इस प्राणी के पेट में चले जाते हैं। यही लैंसेट-मछली का भोजन है।
बाहरी तौर पर लैंसेट-मछली एक छोटी-सी मछली (लंबाई ७-८ सेंटीमीटर) जैसी ही दीखती है पर उसकी संरचना सरलतर होती है (आकृति १८४ )। उसके सिर नहीं होता और शरीर का अगला हिस्सा केवल मुख-द्वार से ही पहचाना जा सकता है। उसके सयुग्म मीन-पक्ष भी नहीं होते । अयुग्म मीन-पक्ष पीठ से होकर पूंछ को घेरता हुआ औदरिक हिस्से पर जारी रहता है।
सारे शरीर में फैली हुई रज्जु से कंकाल बनता है। रज्जु के ऊपर तंत्रिकातंत्र होता है। यह एक सीधी तंत्रिका-नलिका के रूप में होता है, मस्तिष्क और रीढ़-रज्जु में बंटा हुआ नहीं। लैंसेट-मछली का रक्त-परिवहन तंत्र रीढ़धारियों की तरह बंद होता है पर उसके हृदय नहीं होता। रज्जु के नीचे पाचन-नलिका होती है। इसके अगले सिरे में बहुत-से जल-श्वसनिका-छिद्र होते हैं।
इस प्रकार, संरचना की सरलता के बावजूद लैंसेट-मछली बहुत कुछ रीढ़धारियों के समान है। फे ० एंगेल्स ने उसे ‘‘कशेरुक रहित कशेरुक दंडी‘‘ कहा था ।
लैंसेट-मछली को रज्जुधारी समूह में रीढ़धारियों के साथ रखा जाता है। वयस्कों या भ्रूणों में रज्जु का अस्तित्व इस समूह के प्राणियों का एक सर्वाधिक विशेष लक्षण है। रज्जु के ऊपर तंत्रिका-तंत्र होता है और नीचे-आहार-नली।
संरचनात्मक लक्षणों के कारण लैंसेट-मछली को एक विशेष ‘खोपड़ी रहित‘ उप-समूह में रखा जाता है। रीढ़धारियों या खोपड़ीधारियों से रज्जुधारियों का दूसरा उप-समूह बनता है। रीढ़धारियों के अंतःकंकाल होता है जिसका प्राधार रीढ़ या कशेरुक दंड होता है य उनके खोपड़ी होती है य उनके रक्त-परिवहन तंत्र में हृदय शामिल है। रीढ़धारियों के उप-समूह में मछलियां , जल-स्थलचर, उरग, पक्षी और स्तनधारी शामिल हैं।
प्रश्न – १. प्राणि-जगत् किन समूहों में विभाजित है ? २. प्रत्येक समूह की विशेषताएं क्या हैं ? ३. रज्जुधारी समूह कौनसे उप-समूहों में विभाजित है ? ४. लैंसेट-मछली को रज्जुधारी समूह में क्यों रखा जाता है ?
सोवियत संघ में पशु-पालन का विकास
बुनियादी खाद्य-पदार्थ और जूतों तथा कपड़ों के लिए कच्चा माल प्राप्त करने की दृष्टि से पालतू जानवरों का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है।
पशु-पालन के विकास में निर्णायक महत्त्व की बात है चारे की पूर्ति में सुधार ताकि ढोरों को सारे साल विविध और भरपूर भोजन मिलता रहे । इस उद्देश्य से अनाज की और विशेषकर मक्के की फसलों की बुआई में वृद्धि की गयी है। मक्के की डंडियों और पत्तियों से ढोरों के लिए बढ़िया चारा बनाया जाता है और उसके भुट्टों और दानों का उपयोग मुर्गी-बत्तखों और सूअरों की खिलाई में होता है। कंद-मूल , आलू और चारा-गोभी जैसी रसदार चारे की फसलें अधिक विस्तृत क्षेत्रों में उगायी जाते हैं। मोथों की निराई और उपयुक्त घास-चारे की बुनाई के रूप में चरागाहों को सुधारने के कदम उठाये जाते हैं। विशेष खेतों में मूंग-मोठ और जई की मिश्रित फसलें और तिनपतिया , टिमोथी घास , ल्यूसर्न घास आदि उगायी जाती हैं।
उन्नत कोलखोजों में तथाकथित हरे कन्वेयरों का संगठन किया जाता है। इनसे वसंत के पूर्वार्द्ध से लेकर शरद के उत्तरार्द्ध तक बराबर हरे चारे की पूर्ति होती है।
पशु-पालन में बाड़ों का बड़ा महत्त्व है। कोलखोजों और राजकीय फार्मों ने अच्छे खासे बाड़े बनाये हैं। जाड़ों में इन जगहों में रखे गये जानवरों का बुरे मौसम और पाले से अच्छी तरह बचाव होता है।
पशु-पालन के विकास में भारी कामों के चहुंमुखी यंत्रीकरण का भी विशेष स्थान है। नियमतः डेयरी-घरों को नल के जरिये पानी पहुंचाया जाता है और वहां स्वचालित जल-पात्र लगाये जाते हैं। पहियेदार या केबिल के सहारे चलनेवाले ट्रकों द्वारा चारा-दाना अंदर लाया जाता है और गोबर हटाया जाता है।
खुराक तैयार करने में कंद-मूल-कटाई और खली-पिसाई के यंत्रों , चारे को गरम भाप देने के बरतनों इत्यादि का उपयोग किया जाता है। गायों का दूध दुहने और भेड़ों का ऊन उतारने जैसे कामों में बिजली भी इस्तेमाल की जाती है।
गल्ले बढ़ाने की दृष्टि से जरूरी कदम उठाये जाते हैं। इस सिलसिले में बछड़ों की रक्षा पर सर्वाधिक ध्यान दिया जाता है।
वर्तमान नस्लों के सुधार और नयी नस्लों के विकास की दृष्टि से बड़े पैमाने पर कार्रवाइयां की जाती हैं। कोलखोजों को सर्वोत्तम नस्लों के ढोर उपलब्ध कराने की दृष्टि से सरकारी पशु-संवर्द्धन-फार्मों का एक जाल-सा संगठित किया गया है।
पशु-चिकित्सा सेवा के विकास के फलस्वरूप देश-भर में पशुरोगों के विरुद्ध वस्तुतः बहुत जोरदार कार्रवाइयां की जा रही हैं।
ये सभी कार्य संपन्न कराने में कोलखोजों और राजकीय फार्मों के पशु-पालक , गायों को दुहनेवाली औरतें, पशु-पालिकाएं,
चरवाहे इत्यादि सक्रिय रूप से हाथ बंटाते हैं। इनमें से बहुत-से लोग असाधारण सफलताएं प्राप्त करते हैं। उदाहरणार्थ , कारावायेवो राजकीय फार्म की बछड़ा-पालिका समाजवादी श्रमवीर म0 त0 स्मिरनोवा को ही लो। उन्होंने २२ वर्ष की अवधि में २,००० से अधिक बछड़ों को बड़ा किया। इस अवधि में कोई महामारी नहीं पैदा हुई।
वोलोग्दा प्रदेश की कोलखोजी किसान स्त्री अ० ये.. ल्युस्कोवा ने बड़ा नाम कमाया है। उन्होंने एक साल और २० दिन में एक सूअर से ( बाद की पीढ़ियों को लेकर ) १७१ संतानें प्राप्त की। इन सब का कुल वजन ५,३३० किलोग्राम रहा।
पशु-पालन के विकास में वैज्ञानिक बड़ी सहायता देते हैं। वे उचित खिलाई और रोग नियंत्रण की समस्याओं पर अनुसंधान करते हैं। वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में कोलखोजों और राजकीय फार्मों में बहुत-सी उत्तम नयी नस्लें पैदा की गयी हैं। सारा अनुसंधान-कार्य कोलखोजों और राजकीय फार्मों के किसानों की व्यावहारिक सफलताओं के अध्ययन के आधार पर किया जाता है। अपनी ओर से पशु-पालक अपने व्यावहारिक कार्य में कृषि-विज्ञान की सफलताओं से सहायता पाते हैं। इस प्रकार हमारे देश में वैज्ञानिक सिद्धांत और व्यवहार हाथ में हाथ डाले विकास के पथ पर अग्रसर होते हैं ।
पशु-पालन के क्षेत्र में सफल काम करने पर पशु-पालकों को पदक और तमगे दिये जाते हैं। इनमें से सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों को समाजवादी श्रमवीर की .. उपाधि और लेनिन पदक से विभूषित किया जाता है।
प्रश्न – १. पशु-पालन के विकास के लिए कौनसी बातें सबसे महत्त्वपूर्ण हैं ? २. पशु-पालन में वैज्ञानिकों से किस प्रकार की सहायता मिलती है ?
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics