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शिकारियों की परिभाषा लिखिए , हिंसक शिकारी किस प्रकार के जीव होते हैं , definition of predator in hindi

हिंसक शिकारी किस प्रकार के जीव होते हैं , definition of predator in hindi शिकारियों की परिभाषा लिखिए ?

शिकारभक्षी प्राणियों की श्रेणी
शिकारभक्षी (हिंसक) स्तनधारी मुख्यतया प्राणि-भोजन पर निर्वाह करते हैं और अधिकतर जिंदा शिकार मारकर खाते हैं। मांसभक्षी प्राणियों में बिल्ली , भेड़िया, कुत्ता , लोमड़ी, भाल इत्यादि शामिल हैं।
पालतू बिल्ली पालतू बिल्ली जंगली अफ्रीकी बिल्ली के वंश में पैदा हुई है। मनुष्य ने चूहों और घूसों का नाश करने के लिए इस प्राणी को साध लिया। स्वाभाविक ही पालतू बिल्ली में जिंदा शिकार मारनेवाले शिकारभक्षी प्राणियों की सभी आदतें बनी रही हैं।
चूहे पकड़ते समय पालतू बिल्ली अपने जंगली पुरखों की तरह ही घात लगाये रहती है , दबे पांव अपन शिकार के पास पहुंचती है और फिर उसे पकड़ने के लिए प्रागे झपट पड़ती है। बिल्ली को अपना शिकार पकड़ने में सुविकसित ज्ञानेंद्रियों से बड़ी सहायता मिलती है। बिल्ली की चल कर्ण-पालियां चूहे की हल्की-सी आहट भी सुन लेती हैं। आंखों की पुतलियां दिन के समय खड़ी सिकुड़ी हुई रहती हैं पर रात को फैलकर बड़ी हो जाती हैं। इससे बिल्ली न केवल दिन में बल्कि झुटपुटे में और रात में भी अच्छी तरह देख सकती है। शिकार में स्पर्शेद्रियां भी अच्छी खासी मदद देती हैं य ये हैं मुंह और आंखों के इर्द-गिर्दवाले सख्त बाल – ‘गलमुच्छे‘ और ‘भौंहें‘।
बिल्ली के पंजों पर मुलायम चमड़ीनुमा गद्दियां होती हैं जिससे वह जरा-सी भी आहट न देते हुए अपने शिकार के पास पहुंच सकती है। बिल्ली अपने तेज नखरों से शिकार को पकड़ रखती है। ये नखर पीछे की ओर झुके हुए और सभी अंगुलियों से जुड़े हुए होते हैं। चलते और आराम से खड़े रहते समय ये नखर गद्दियों के ऊपरवाले संपुटों में दबे रहते हैं। ऐसी हालत में वे जमीन का स्पर्श नहीं करते और खोंटे नहीं होते।
बिल्ली अपने शिकार को अपनें तेज और बड़े सुबा-दांतों से मार डालती है।
ये शंकु के आकार के होते हैं। बिल्ली अपने चर्वण-दंतों से शिकार के टुकड़े टुकड़े कर देती है (आकृति १४७) । चर्वण-दंतों की सतह कुतरनेवाले प्राणियों की तरह चैड़ी नहीं होती बल्कि उनमें तेज उठाव या छोटे छोटे दांते होते हैं। हर तरफ के दो चर्वण-दंत विशेष बड़े होते हैं। ये श्व-दंत कहलाते हैं। उपरले श्व-दंत का तेज किनारा कैंची के फल की तरह निचले. श्व-दंत की बाहरी सतह से सटा रहता है। इन दांतों से बिल्ली शिकार की पेशियां और कंडराएं (ज्मदकवद) आसानी से काट सकती है। बिल्ली के सम्मुख दंत छोटे होते हैं। अन्य सभी शिकारभक्षी प्राणियों में भी दांतों की संरचना ऐसी ही होती है।
अन्य सभी शिकार-भक्षी प्राणियों की तरह बिल्ली की प्रांत भी कुतरनेवाले प्राणियों की प्रांत की तुलना में छोटी होती है। प्राणि-भोजन अधिक पोषक होता है और आसानी से पचाया जा सकता है। बिल्ली में सीकम अल्पविकसित रहता है।
सभी शिकारभक्षी प्राणियों की तरह बिल्ली का भी मस्तिष्क कुतरनेवाले प्राणियों की अपेक्षा सुविकसित होता है। इसका संबंध दौड़ते शिकार को पकड़ने से है। अग्रमस्तिष्क के गोलार्डों की सतह सिलवटों से ढंकी होती है जिससे कोरटेक्स की सतह बढ़ती है। बिल्ली में नियमित प्रतिवर्ती क्रियाएं आसानी से विकसित हो सकती हैं। उदाहरणार्थ , यदि हम अपने भोजन के समय बिल्ली को खिलाते जायें तो वह थालियों की पहली झनक सुनते ही खाने की मेज की ओर दौड़ पड़ती है, यहां तक कि यदि वह उस समय सोयी हुई हो तो फौरन जाग पड़ती है। बिल्ली को उसके नाम से पुकारने पर वह झट दौड़ आती है। बिल्ली के बच्चों को अच्छे कौर खिलाकर तुम उसे तरह तरह के करतब सिखा सकते हो।
बिल्ली को अक्सर दुलपित्ती की बीमारी होती है और आदमी उसकी त्वचा का स्पर्श करे तो उसे भी आसानी से इसकी छूत लग सकती है। अतः ऐसी बिल्लियों को हाथों में नहीं लेना चाहिए और उनसे नहीं खेलना चाहिए।
भेड़िया : भेड़िया जंगली बिल्ली से अलग तरीके से शिकार करता है (प्राकृति १४८)। वह अपने शिकार का पीछा करता है और फिर उसे दबोच लेता है। शिकार की खोज में भेड़िया हर रोज दर्जनों किलोमीटर दौड़ सकता है। उसकी टांगें बिल्ली की टांगों से लंबी होती हैं और लंबी दौड़ के अनुकूल। भेड़िये के पंजों के नखर खोटे और पीछे न दबनेवाले होते हैं। उसकी सुविकसित घ्राणेंद्रियां शिकार की खोज में उसकी सहायता करती हैं।
भेड़िये के दांत आम शिकारभक्षी प्राणियों जैसे यानी बिल्ली के जैसे ही होते हैं। लेकिन जबड़े उसके बिल्ली की अपेक्षा लंबे होते हैं और उनमें ज्यादा चर्वण-दंत होते हैं।
भेड़िये की मादा हर वसंत में चार से नौ तक बच्चे देती है। शरद में ये बच्चे वयस्क भेड़ियों के साथ स्वयं शिकार करने लगते हैं।
भूरा भालू दांतों की संरचना के कारण भूरा भालू शिकारभक्षी प्राणियों की श्रेणी में आता है। फिर भी है वह सर्वभक्षी प्राणी। वह प्राणि-भोजन खाता है और वनस्पति-भोजन भी (रंगीन चित्र २)।
भालू घने जंगलों का निवासी है। यह आकार में बड़ा और दीखने में बेढंगा होता है। फिर भी वह काफी तेज दौड़ता है और पेड़ों पर चढ़ सकता है। यह जानवर अपने पैरों और हाथों के सहारे चलता है। इन अंगों पर बाल नहीं होते। यह जानवर पैर के पूरे तलवे के सहारे चलता है और इस माने में वह दूसरे शिकारभक्षी प्राणियों से भिन्न है क्योंकि वे अपनी अंगुलियों पर खड़े रहते हैं। भालू केवल पिछले पंजों के बल भी चल सकता है। पंजों का उपयोग वह बचाव और हमले के लिए करता है।
भालू की सर्वभक्षी आदतें उसके दांतों की संरचना में प्रतिबिंबित हैं। उसके सुबा-दांत अन्य शिकारभक्षियों के जैसे ही बड़े और तेज होते हैं पर चर्वण-दंतों में बिल्ली की अपेक्षा अधिक खोटे उठाव होते हैं। चर्वण-दंतों का उपयोग वनस्पति’ भोजन चबाने में होता है।
जाड़ों में जब भोजन की कमी होती है तो भालू कहीं पेड़ों की जड़ों के बीच बनायी गयी मांद में छिप जाता है। उस समय वह शरद में अपने शरीर में इकट्ठी की गयी चरबी के सहारे निर्वाह करता है। भालू वस्तुतः सुषुप्तावस्था में नहीं रहता। उसे यदि परेशान किया जाये तो वह जाड़ों में भी अपनी मांद से बाहर चला आता है। मादा भालू जाड़ों के मध्य में अपनी मांद में तीन या चार बच्चे देती है। वे वसंत तंक बहुत ही धीरे धीरे बड़े होते हैं।
शिकारभक्षी प्राणियों का वर्गीकरण शिकारभक्षी श्रेणी के प्राणी उनके दांतों से आसानी से पहचाने जा सकते हैं। उनके सुआ-दांत बड़े सुविकसित होते हैं जबकि चर्वण-दंत आम तौर पर दांतेदार। यह श्रेणी निम्नलिखित कुलों में विभाजित है- (१) बिडाल-दंत (बिल्लियां , बाघ , सिंह , चीते , शिकारी चीते)य (२) श्व-दंत (कुत्ते , भेड़िये , लोमड़ियां, सियार) य (३) भल्लुक-दंत (भूरा भालू , मंदगामी भालू , सफेद भालू)य (४) मारटेन ( एरमाइन , मारटेन और सैबल जैसे कीमती फरदार जानवर)य (५) नेवले।
प्रश्न – १. कौनसे संरचनात्मक लक्षणों के कारण बिल्ली को शिकारभक्षी प्राणी माना जाता है ? २. भेड़िये और बिल्ली के शिकार करने के तरीके में क्या फर्क है ? ३. भालू की सर्वभक्षी आदतें उसके दांतों की संरचना में किस प्रकार प्रतिबिंबित हैं ? ४. शिकारभक्षी श्रेणी किन कुलों में विभाजित है?
व्यावहारिक अभ्यास – १. पाठ्य पुस्तक में दिये गये वर्णन की सहायता से बिल्ली के बाह्य स्वरूप का निरीक्षण करो। २. देखो, क्या सचमुच बिल्ली की घ्राणेंद्रियां और श्रवणेंद्रियां सुविकसित होती हैं ? (खोज के अपने तरीके का उपयोग करो)। ३. बिल्ली के बरताव पर नजर रखो और निश्चित करो कि उसकी कौनसी प्रतिवर्ती क्रियाएं आनुवंशिक हैं और कौनसी अर्जित।।

 भारत के शिकारभक्षी प्राणी
भारत में विविध प्रकार के शिकारभक्षी प्राणी बहुत बड़ी संख्या में रहते हैं। पहले बड़े बड़े शिकारभक्षी प्राणी अतिविशाल मात्रा में विद्यमान थे और उनसे लोगों को बड़ी हानि पहुंचती थी। आज वे बहुत कुछ नष्ट हो चुके हैं।
बिल्ली कुल में सर्वप्रसिद्ध और सबसे बड़े पैमाने पर फैले हुए प्राणी बाघ और चीता हैं।
बाघ  : बाघ शिकारभक्षी प्राणियों में सबसे बड़ा जानवर है। उसका वजन १५०-२०० किलोग्राम तक हो सकता है। यह उत्तर और मध्य भारत के धने घास मैदानों और जंगलों में रहता है (आकृति १५०) ।
बाघ की फर पीला लिये कत्थई होती है और उसके सारे शरीर पर आड़ी काली धारियां होती हैं। इस रंग-रचना के कारण उसे पेड़-पौधों के बीच पहचानना मुश्किल होता है क्योंकि ये धारियां पौधों की डंडियों की परछाइयां-सी लगती हैं।
यह बड़ा जानवर बारहसिंगों, हरिणों, जंगली सूअरों जैसे बड़े बड़े शिकार मारता है और गायों, घोड़ों जैसे पालतू प्राणियों पर भी मुंह मारता है। कुछ खुर्राट बाघ तो आदमी तक को चट कर जाते हैं।
बाघ रात में शिकार के लिए निकलते हैं और उसकी खोज में काफी लंबा फासला तय करते हैं। शिकार के नजर आते ही बाघ दबे पांव उसकी ओर बढ़ता है और फिर उसपर झपटकर उसका काम तमाम कर देता है। बाघ में शिकारभक्षी जीवन की अच्छी अनुकूलताएं होती हैं। उसके होते हैं सशक्त और चपल शरीर, अंदर दबनेवाले तेज नखरों सहित मजबूत टांगें और बड़े बड़े सुप्रा-दांत सहित तेज दांत। उसका रंग ऐसा होता है कि जंगलों में वह मुश्किल से पहचाना जा सकता है। बाघ का बरताव भी शिकार पकड़ने के अनुकूल होता है।
नुकसानदेह और खतरनाक जानवर होने के कारण बाघों का शिकार किया जाता है और हर मारे गये बाघ पर इनाम दिया जाता है।
चीता बिल्ली कुल का एक और शिकारभक्षी प्राणी है चीता। इसकी ताकत बाघ से कम होती है पर चपलता अधिक। बाघ के विपरीत चीता पेड़ों पर अच्छी तरह चढ़ सकता है। अपने शिकार (तरह तरह के जंगली और पालतू जानवर, जिनमें कुत्ता भी शामिल है) पर हमला करते समय चीता लंबी छलांगें लगाता है।
बाघ की अपेक्षा चीते का फैलाव अधिक है और वह ज्यादा अक्सर पाया जाता है। मध्य भारत के जंगली इलाकों में वह विशेष तौर पर पाया जाता है।
बाघ की तरह चीते की रंग-रचना भी उसके लिए बचाव का एक साधन है । उसकी चमड़ी ललाई लिये पीली होती है और उसपर होती हैं काली चित्तियां आसाम और त्रिवांकूर राज्यों में काले तेंदुए पाये जाते हैं।
सिंह भारत में सिंह भी पाये जाते हैं। पहले उनकी संख्या बड़ी थी पर अब वे केवल काठियावाड़ के प्रायद्वीप में पाये जाते हैं। अफ्रीकी सिंहों के विपरीत भारतीय सिंहों के अयाल नहीं होती।
शिकारी चीता बिल्ली कुल में शिकारी चीता भी शामिल है (प्राकृति १५१) । बाघ, चीते और सिंह से शिकारी चीता इस माने में भिन्न है कि ये जानवर दबे पांव अपने शिकार की ओर बढ़ते हैं , उसपर अचानक धावा बोल देते हैं जबकि चीता अपने शिकार का पीछा करके तब उसे दबोच लेता है। वह बहुत तेज दौड़नेवाले बारहसिंगे तक को मात दे सकता है। शिकारी चीते में शिकार का यह तरीका विकसित हुआ इसका कारण यह है कि वह खुले मैदानों में रहता है, जंगलों या घने झाड़ी-झुरमुटों में नहीं। शिकार का तरीका उसकी टांगों की संरचना में प्रतिबिंबित है। उसकी टांगें लंबी होती हैं और उनमें अंदर दबनेवाले नखर नहीं होते।
प्राचीन समय से शिकारी चीते को साधा गया है और बारहसिंगों के शिकार में इस्तेमाल किया जाता है। इसी कारण उसका नाम शिकारी चीता पड़ा। कुत्ता कुल में से हम भारतीय भेड़िये और सियार का परीक्षण करेंगे।
भारतीय भेड़िया
भारतीय भेड़िया भारत के सभी हिस्सों में पाया जाता है। यह साधारण भेड़िये से छोटा होता है पर किसी भी माने में . कम खतरनाक नहीं होता। वह भेड़-बकरियों और छोटे बच्चों तक पर हमला करता है।
अनपढ़ लोगों का ख्याल है कि भेड़ियों को नहीं मारना चाहिए क्योंकि जिस जमीन पर भेड़िये का खून गिरता है वहां कोई फसल नहीं उगती। यह साफ साफ गलत है। अन्य खतरनाक जानवरों की तरह भेड़ियों को भी निर्दयता के साथ मार डालना चाहिए।
सियार भारत में सियार भेड़ियों से ज्यादा पाये जाते हैं (प्राकृति १५२)। रात में अक्सर उनकी लंबी , अप्रिय चीखें सुनाई पड़ती हैं। बीच बीच में वे भूकते हैं। सियार भेड़िये से छोटा होता है। वह सिर्फ छोटे छोटे जानवरों और मुर्गी-बत्तखों को खाता है पर मृत मांस और मनुष्य की बस्ती के पास पड़ा हुआ सब तरह का कूड़ा-करकट भी उसके भोजन में शामिल है। वह फलों और गन्ने पर भी मुंह मारता है। सियार किसी भी माने में भेड़िये से कम खतरनाक नहीं होता।
धारीधार लकड़बग्घा लकड़बग्घे का अपना पृथक् कुल है (आकृति १५३) सच्चे शिकारभक्षी प्राणियों के विपरीत यह मुर्दा जानवर खाता है। हां, कभी कभी वह कुत्तों, बकरियों और दूसरे छोटे छोटे प्राणियों का भी शिकार करता है। उसका रंग मटियाला-भूरा होता है और उसके शरीर पर आड़ी काली धारियां होती हैं।
चूंकि लकड़बग्घे को आम तौर पर शिकार का पीछा नहीं करना पड़ता इसलिए उसकी टांगें भेड़िये जितनी मजबूत नहीं होती। अगली टांगें पिछली टांगों से लंबी होती हैं। लकड़बग्घे के जबड़े विशेष सुविकसित होते हैं। दांत उसके इतने मजबूत होते हैं कि वह हड्डियां तक चबा सकता है। मृत मांस हमेशा आसानी से नहीं मिल सकता , अतः लकड़बग्घे के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि जो भी मृत मांस मिले उसे हड्डियों सहित पूरा का पूरा खा जाये।
मंदगामी भालू हिमालय पर्वत के जंगलों में रहनेवाले काले भालुओं के अलावा – भारत मंदगामी भालू का घर है। इस भालू के लंबा थूथुन होता है और उभड़े हुए ओंठ। मटियाला-भूरा चेहरा उसका विशेष लक्षण है। शरीर के अधिकांश बाकी हिस्से काले रंग के होते हैं। सिर्फ सीने पर घोड़े के नाल जैसा एक चिह्न होता है और नखर सफेद होते हैं। लंबे अंकुड़ीदार नखर भी उसे अन्य भालुओं से अलग दिखाते हैं। मंदगामी भालू अपने नखरों से दीमकों की मजबूत बांबियां आसानी से उखाड़ देता है और दीमकों के डिंभों और प्यूपों पर मुंह मारता है। वह मधुमक्खियां, बीटल और उनके डिंभ और तरह तरह के फल भी खाता है।
उसके तेज नखर मुख्यतया भोजन पाने के साधन का काम देते हैं पर वे शत्रुओं से बचाव करने का साधन भी हैं। नखरों की सहायता से यह भालू पेड़ों पर चढ़ सकता है।
हिमालयी भाल की तरह मंदगामी भालू को भी साधा जाता है और मदारी उसे तरह तरह के करतब सिखाते हैं।
नेवला शिकारभक्षी श्रेणी में नेवला शामिल है (आकृति १५४)। उरगों से संबंधित अध्याय में इसका उल्लेख सर्प-संहारक के नाते किया गया है। नेवला एक छोटा प्राणी है। उसकी लंबाई (पूंछ को छोड़कर) ३६-३८ सेंटीमीटर होती है। शरीर लंबा-सा, मुंह गावदुम-सा, टांगें छोटी छोटी और पूंछ लंबी। उसकी झबरीली फर का रंग खाकी लिये भूरा होता है और उसपर छोटी छोटी चित्तियां होती हैं।
नेवला घने जंगलों को टालकर झाड़ी-झुरमुटों से सदा हरे भरे खुले मैदानों में रहता है। वह खेतों में और रिहायशी मकानों के पास भी पाया जाता है। इसके बच्चे माता-पिता द्वारा बनाये गये बिलों में पैदा होते हैं।
नेवला एक चलता-फिरता चपल प्राणी है और चूहों, घूसों, पक्षियों, पक्षियों के अंडों, छिपकलियों, सांपों तथा कीटों को खाता है। सांप पर हमला करते समय वह आसानी से उसके दंशों से बचता है। सांप से लड़ते समय उसके मोटे बाल खड़े होते हैं और ये भी उसे दंशों से बचाते हैं।
नेवले को आसानी से साधा जा सकता है और है वह बड़ा उपयोगी प्राणी। वह घूसों का सफाया कर डालता है और सांपों से घर की रक्षा करता है। घूसों और चूहों के एक उत्तम संहारक के नाते नेवले भारत से जमैका टापू में आयात भी किये जाते थे।
प्रश्न – १. भारत में कौन कौनसे शिकारभक्षी प्राणी मिलते हैं ? २. शिकारी – चीते के कौनसे संरचनात्मक लक्षण शिकार को पीछा करके पकड़ने के उसके तरीके से संबंध रखते हैं ? ३. लकड़बग्घे की संरचना में मृत मांस भोजन की प्रवृत्ति किस प्रकार प्रतिबिंबित है ? ४. भूरे भालू से मंदगामी भालू किस प्रकार भिन्न है ? ५. नेवला हानिकर है या उपयोगी?

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