क्राइप्टोजोइक महाकल्प , Cryptozoic Aeon in hindi , क्राइटोस , आद्यमहाकल्प , पुराजीवी , पेनेरोजोरक
क्राइटोस , आद्यमहाकल्प , पुराजीवी , पेनेरोजोरक क्राइप्टोजोइक महाकल्प , Cryptozoic Aeon in hindi ?
अध्ययन की सवि के लिए इसे कई खण्डों में बाँटा जाता हैः-
पृथ्वी का इतिहास – महाकल्प (Acon) → कल्प (Era)→युग (Period) → युग संख्या
(1) क्राइप्टोजोइक (Cryptozoic) (1) आद्यमहाकल्प (Archacozoic) 3
(2) क्राइटोस (Crytos) (2) पुराजीवी महाकल्प (Paleozoic) 4
(3) पेनेरोजोरक (Phaneo=oic) (3) मध्यजीवी महाकल्प (Maseozoic) 3
(4) नवजीवी महाकल्प (Cenozoic) 6
(i) क्राइप्टोजोइक महाकल्प (Cryptozoic Aeon)
इस काल के बारे में सबसे कम ज्ञान प्राप्त है, परन्तु यह सबसे लम्बा समय है। यह ऊष्ण एवं आद्य महाकल्प कहलाता है। इस समय मुख्य रूप से पृथ्वी का आधार मूल चट्टानी आवरण का बना होगा इसे निम्न भागों में विभक्त किया जाता है –
(1) ऑरकियन युग (Archaean Period) – इस युग में जल व थल क्षेत्रों का निर्माण हुआ। 60 करोड़ वर्ष पूर्व का काल है। तीस व अन्य आग्नेय चट्टानों का निर्माण हुआ।
(2) केम्ब्रियन युग (Cambrian Period) – लगभग 50 करोड़ वर्ष पूर्व का काल है। जब पृथ्वी के ऊपर जल-थल के वितरण का प्रारंभिक विभाजन व विस्थापन हुआ। स्पंज समुद्री वनस्पति का विकास हुआ। इस काल में बलुआ पत्थर, शैल, चूने का पत्थर का निर्माण हुआ।
(3) ओरडोवीसियन युग (Ordeovician Period) – इस युग का समय 40 करोड़ वर्ष पूर्व का है जब सागरों का प्रसार व संकुचन हुआ। ट्रिबलीट्स तथा ग्रेप्टेलाइट्स मुख्य जीवों का विकास हुआ। इस काल के अन्त में पर्वत निर्माणकारी हलचलें प्रारंभ होने लगी थीं। अप्लेशियन पर्वत इसी समय बना। अवसादी
शैलों का निर्माण प्रारंभ हुआ। पृथ्वी पर रीढ़ वाले जन्तुओं का विकास शुरू हुआ।
(ii) क्राइटोस महाकल्प (Crytos Aeon)
यह काल 40 करोड़ वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ। इसे पैलियोलोइक कल्प भी कहते हैं तथा आरकियन युग का उत्तरार्द्ध भी कहा जाता है। इसे निम्न युगों में बाँटा जाता है-
(1) सिलूरियन युग (Silurian Period) – सिलूरियन युग में स्थल पर वनस्पति तथा समुद्री म मछलियाँ पाई जाने लगीं। उच्च श्रेणी वाले, रीढ़ की हड्डी वाले जन्तुओं का निर्माण हुआ। वनस्पति पणे राहत थी। भूगर्भीय हलचलों के फलस्वरूप केलिडोनियन भूवलन पड़े जिससे स्केण्डिनेविया, इंग्लैण्ड, स्पिटवर्जन की पुरानी कठोर पर्वत श्रेणियाँ बनना प्रारंभ हुईं।
(2) डिवोनियन युग (Devonian Period) – कैलोडोनियन हलचलों के फलस्वरूप पर्वत का निर्माण हुआ। इस समय मुख्यतरू समुद्री जीव ही थे। इस समय की प्रमुख शैल उ.प. यूरोप का लाल बलुआ पत्थर है। इसी समय चूने का पत्थर का भी निर्माण हुआ। वनस्पति की ऊँचाई अभि
(3) कार्बोनिफरस युग (Carboniferous Period) – इस काल में पृथ्वी पर कोयले की बनीं। पृथ्वी की जलवायु उष्ण आर्द्र थी अतः दलदल बने सघन वन उगे। धरातलीय उथलपुथल में व दलदल व पानी में डूब गयी तथा बाद में कोयले में रूपान्तरित हुई। इस युग में पृथ्वी पर रेंगने वाले का विकास हुआ। इसी समय अमेरिकन भू परिवर्तन हुए। इसे कार्बनी युग भी कहा जाता है।।
(4) परमियन युग (Permion Period) -इस काल में हार्सीनियन भू परिवर्तन हए जिसके पास यूरोप व उत्तरी अमेरिका में दिखाई पड़ते हैं। जलवायु शुष्क होने लगी। इसी समय रेंगने वाले जन्तओं का विकास हुआ। कई जलमग्न स्थल बाहर आ गये।
(iii) मेसोजोइक कल्प (Mesozoic Era.)
8 करोड़ वर्ष पूर्व मध्य जीवी कल्प का प्रारंभ माना जाता है। इस समय शुष्क जलवायु थी। अंगात व गोंडवाना लैंड पृथक हो चुके थे व टेथिस सागर बन चुका था। फलदार वृक्ष, चिड़ियों का निर्माण हो चुका था। इसी समय सबसे विशाल भयानक जीव डिप्लोडोकस (Diplodocus) का जन्म हुआ। इसे हम तीन भागों में बाँटते हैं
(1) ट्राइऐसिक युग (Triassic Period) – इस युग में उष्णता बढ़ने के कारण जीवन समाप्त होने लगा। निम्न कोटी के स्तनपोशी जीवों का जन्म हुआ। उत्तरी गोलार्द्ध शुष्क व गर्म था तथा द.गोलार्द्ध हिमाच्छादित था। इस काल में टीथिस सागर गोंडवाना व अंगारालैंड के मध्य फैला हुआ था। पृथ्वी की आन्तरिक हलचलें जारी थीं। वेगनर के अनुसार इसी समय गोंडवानालैंड का विभाजन शुरू हुआ। धीरे-धीरे जलवायु आर्द्रतर होती गयी।
(2) जुरैसिक युग (Jurassic Period) – इस युग में बड़े आकार के जीवों की संख्या पृथ्वी तल पर तेजी से बढ़ी जो जल व थल दोनों जगह रह सकते थे। थल पर डाइनासौर व जल में प्लाओसारस प्रमुख जीव थे। जीवाश्मों के आधार पर इस समय के पक्षी भी विशालकाय थे। भारत में राजमहल सिलचर की पहाड़ियाँ इसी काल में निर्मित हुईं। आर्द्रता के कारण पर्वतों पर अत्यधिक अपरदन होने से पर्वतों की ऊँचाइयाँ कम होने लगी तथा धरातल दलदली होने लगी।
(3) क्रिटेशस युग (Cretaceous Period) – इस युग में समुद्र तल में उत्थान हआ व धरातल पर समुद्र का जल चढ़ने लगा। इसी काल में नेवेडियन नामक पर्वत निर्माणकारी हलचलें हुईं। अमेरिका का सियरा नेवदा पर्वत का निर्माण इसी काल में हुआ। कल्प के अन्त में लैरेमाइड हलचल हुई जिससे कार्डिलियरा श्रेणी का विस्तार हुआ। भारतीय तटों पर भी समुद्री जल आगे बढ़ आया जिसके प्रमाण कोरामण्डल, तिरुचिरापल्ली एवं गुजरात के वाघवान क्षेत्र में देखने को मिलते हैं। ऐसा माना जाता है कि दक्षिणी प्रायद्वीप में लावा उद्भेदन हुआ जो 6,00,000 वर्ग कि.मी. में फैल गया।
(IV) केनोजोइक युग (Cenozoic Era.)
पृथ्वी के इतिहास का यह सबसे ज्ञात भाग है, जिससे सम्बन्धित प्रमाणों का विद्वानों ने विश्लेषण किया है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस युग का प्रारंभ 7 करोड़ वर्ष पूर्व हआ। इसे दो भागों में बाँटा जाता है। पुरातल केनोजोइक व टरशयरी युग। इस काल को छह युगों में बाँटा जाता है
(1) इओसीन युग (Eocene Period) – क्रिटेशस काल के बाद पृथ्वी तल की जलवायु पुनःबदलने लगी। जलवायु ठंडी होने लगी अतःविशालकाय जीव-जन्तु नष्ट होने लगे। पेंजिया का विभाजन शुरू हुआ तथा पर्वत निर्माणकारी हलचलें प्रारंभ हुईं। वृहद ज्वालामुखी क्रियायें हुईं।
(2) ऑलिगोसीन युग (Oligocene Period) – ऑलिगोसीन युग में अधिकांश मैदानों का निर्माण हुआ। मानव के पूर्व वंशज एनर्थोपाइड्स (।दजीतवचंपकव) का जन्म हुआ। समुद्री जीवन का तेजी से विकास हुआ तथा आन्तरिक हलचलों में तेजी आई।
(3) मियोसीन युग (Miocene Period) – मियोसीन युग में स्तनपोशी जीवों का विकास व वृद्धि हुई। नवीन मोड़दार (आल्पस हिमालय) का उत्थान प्रारम्भ हुआ। भूमध्य सागर बना व स्थल का पुनः विशाल हुआ।
(4) प्लिोसीन युग (Pliocene Period) – प्लिओसीन युग में सागरों, महासागरों, महाद्वीपों का वर्तमान स्वरूप् स्थापित हो गया। पर्वतों की ऊँचाई में वृद्धि हुई। हिमालय का अन्तिम उत्थान व शिवालिक का निमार्ण हुआ। जलवायु शुष्क व ठण्डी होने लगी। जलवाय में परिवर्तन होने शुरू हुए।
(5) प्लिस्टोसीन युग (Pleistocene Period) – प्लिस्टोसीन युग में तापक्रम बहुत अधिक गिर गये व हिम आवरण होने लगा। जीव-जन्तुओं का प्रदुर्भाव हुआ। मानव प्रजाति का विकास हुआ। उ. अमेरिका की महान झीले, फियोर्ड तट, साइबेरिया के दलदल, इसी काल में बने। चैपायों का विकास हुआ। हाथ्ल्फन का जन्म हुआ। अन्तिम काल में मानव का जन्म हुआ। आदिमानव पाषाण युग का विकास हुआ।
(6) होलोसीन युग (Pleistocene Period) – यह आधुनिक समय है जो 25 हजार वर्ष पूर्व से माना जाता है। पुनः जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी पर तापक्रम बढ़ा व हिम आवरण हटने लगे। कई क्षेत्रों में मरूस्थलों का जन्म हुआ। अनेक झीलें बनीं। मानव सभयता का विकास हुआ। दैत्याआकर जीव न्ष्ट हो गये। जलवायु परिवर्तन से अनेक झीलों का विकास हुआ। कई मैदानों का निर्माण हुआ। भूगार्भिक शक्तियों की हलचल में कमी आई। यह समय अभी चल रहा है।
उपरोक्त पृथ्वी के आयु के कैलेण्डर से स्पष्ट हो जाता है कि पृथ्वी पर पर्वत निर्माणकारी हलचल यद्यपि आदिकाल से होती रही हैं परन्तु उनके मध्य शांत समय होता है जिसकी अवधि समान नहीं रहती। इसी प्रकार पृथ्वी की जलवायु में कई परिवर्तन हुए हैं। कई बार तापक्रम बहुत बढ़ा व कई बार बहुत घटा है। अनेक परिवर्तनों के बाद पृथ्वी को अपना वर्तमान स्वरूप प्राप्त हुआ है।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics