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सकल घरेलू उत्पाद की अवधारणा क्या है | शुद्ध अवधारणा उत्पादन किसे कहते हैं Gross domestic product in hindi

Gross domestic product in hindi सकल घरेलू उत्पाद की अवधारणा क्या है | शुद्ध अवधारणा उत्पादन किसे कहते हैं ?

अवमूल्यन की अवधारणा
अर्थव्यवस्था के उत्पाद में मशीन एवं उपकरण भी, जो कि हर साल इस्तेमाल कर लिये जाते हैं. मिल हैं। इसे मशीनों का अवमूल्यन कहते हैं। इस प्रकार की मशीनों का उत्पादन प्रायः पुरानी मशीनों को बदलने के लिए किया जाता है और इन मशीनों के उत्पाद पर या अर्थव्यवस्था के पूँजी-स्टाक पर ज्यादा असर नहीं पड़ता।
मान लेते हैं कि एक अर्थव्यवस्था में मोटर-कारों का उत्पादन हो रहा है तो वही कारों का अवमल्यन भी होगा क्योंकि गाड़ियों के इस्तेमाल के निश्चित समय के बाद उनकी ‘‘उपयोग-अवधि‘‘ (Shift Life) समाप्त हो जाती है। उदाहरणस्वरूप एक तीन लाख की कार की उपयोग-अवधि 10 वर्ष है। अवस्था में प्रतिवर्ष कार की अवमूल्यन राशि तीस हजार होगी। इस प्रकार यदि एक अर्थव्यवस्था अपने मशीनों के अवमूल्यन की परवाह नहीं करती है तो उसे ‘‘सकल‘‘ (Gross) अवधारणा कहते हैं। यदि इस अवमूल्यन को अपने खाते में गणना की जाती है तो उसे ‘‘शुद्ध‘‘ अवधारणा कहते हैं।
तदनुसार, ‘सकल राष्ट्रीय उत्पाद‘ (GNP) एवं ‘सकल घरेलू उत्पाद‘ (GDP) की अवधारणा बनती है। इस प्रकार –
सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) – अवमूल्यन = शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP)
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) – अवमूल्यन = शुद्ध घरेलू उत्पाद
इस प्रकार अर्थव्यवस्था के उत्पाद में चार अवधारणायें बनती हैं। सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP), सकल घरेलू उत्पाद (GDP), शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) एवं शुद्ध घरेलू उत्पाद। समझने की कोशिश करते हैं कि तकनीकी रूप से कौन-सी प्रणाली वृद्धि को मापने में सर्वाेत्तम है। स्पष्टतः यह ‘‘शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद‘‘ (NNP) प्रणाली होगी क्योंकि इसमें सर्वप्रथम राष्ट्र के सभी नागरिकों को शामिल किया जाता है और अवमूल्यन के पश्चात् शुद्ध बढ़ोतरी को मापा जाता है। इसे अर्थव्यवस्था के ‘‘राष्ट्रीय आय‘‘ के नाम से भी जाना जाता है।
परंतु, शनैःशनैः शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) एवं सकल राष्ट्रीय उत्पाद अपना महत्त्व खोते जा रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि बहुधा देखा गया है कि राष्ट्रों के ऊपर भारी विदेशी ऋण लदा हुआ है जिनकी भरपाई आतरिक संसाधनों से करनी पड़ती है और इस प्रकार संसाधनों का बहिर्गमन बढ़ जाता है। इस बढ़े बहिर्गमन से राष्ट्र का ‘‘सकल राष्ट्रीय उत्पाद‘‘ (GNP) कम हो जाता है, साथ ही सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अप्रभावी रहता है। इसी प्रकार अपने परिसंपत्ति की बिक्री विदेशी संस्थानों को करने की स्थिति का प्रभाव पूर्व-कथन जैसा ही रहेगा। वर्तमान में भारत जैसे देश में विदेशों से भेजी हुई रकम महत्त्वपूर्ण है और इससे ‘सकल राष्ट्रीय उत्पाद‘ प्रभावित होने लगा है जोकि अर्थव्यवस्था के उत्पाद को मापने का सही तरीका नहीं है।

अर्थव्यवस्था के उत्पाद

परिचय
यदि आपसे कहा जाए कि विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका की है तो इससे आप क्या समझेंगे? निश्चय ही. हमें विस्मय होगा कि किन मानदंडों के आधार पर ऐसा कहा जा रहा है – भू-क्षेत्रफल, जनसंख्या अथवा अमेरिकी उत्पाद के आधार पर?
हर अर्थव्यवस्था में उत्पादन के अंतर्गत इन सभी वस्तुओं को सम्मिलित किया जाता है। जैसे की कृषि की फसल, वनज, पशुधन, इस्पात, सीमेंट, मोटर गाड़ियाँ, साइकिलें. पावरोटी इत्यादि इसी प्रकार ‘सेवाएँ‘ भी बैंकिंग, बीमा, जहाजरानी आदि के माध्यम से प्रदान की जाती हैं। इन सभी उत्पाद और सेवाओं का स्थानीय मुद्रा यानी अमेरिकी डॉलर, भारतीय रुपया आदि के रूप में कुछ वित्तीय मूल्य होता है।
इस प्रकार उत्पाद का आशय वास्तव में सभी प्रकार की उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का किसी भी अर्थव्यवस्था में एक निश्चित अवधि के अंदर (तिमाही, छमाही या सालान्त) सकल वित्तीय मूल्य से है।
अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि ‘उत्पाद‘ का मतलब उन सभी उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं से है जिनका मुद्रा के द्वारा विनिमय किया जा सकता है। उदाहरणस्वरूप एक मछुआरे द्वारा पकड़ी गई सारी मछलियों में से कुछ वह अपने खाने के लिए रख सकता है और बाकी बची मछलियों का वित्तीय मूल्य उत्पाद की विचारधारा के अंतर्गत समझना चाहिए।
अभी तक उत्पाद की विचारधारा सहज लग रही है, परंतु कुछ और गहराई से विचार करने पर कहा जा सकता है कि उत्पाद के अंतर्गत दर्मियानी वस्तुएँः जैसे इस्पात, सीमेंट आदि भी शामिल की जा सकती हैं जो कि अन्य ‘‘अंतिम रूप से तैयार माल या उत्पाद‘‘ आगे के किसी और उत्पाद के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, सिवाय मोटरकार और भवनों के. जोकि एक अपवाद हैं।
यदि हम ‘दर्मियानी‘ और अंतिम रूप से तैयार माल, दोनों को उत्पाद की परिभाषा के अंतर्गत लाते है तो इसका मतलब एक ही माल को दो बार गणना में लेना और इससे अर्थव्यवस्था के उत्पाद को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करना होगा। उदाहरणस्वरूप गेंहू का उत्पादन और मिल में पिसाई से पावरोटी का उत्पादन होता है। अतः उत्पाद निर्धारण की दृष्टि से सिर्फ पावरोटी का मौद्रिक मूल्य विचार में लिया जाएगा न कि गेहूं या आटे का। इस प्रकार यह निर्णायक निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अर्थव्यवस्था । उत्पाद के अंतर्गत सिर्फ ‘अंतिम रूप से तैयार माल‘ और सेवाओं के, एक निश्चित अवधि के अंदर मौद्रिक-मूल्य को शामिल किया जाना चाहिए।
वस्तुओं का उत्पादन और सेवा प्रदान करने को आर्थिक गतिविधियों की संज्ञा दी जाती है, परंतु प्रश्न ह कि एक अर्थव्यवस्था में इनके उत्पादक कौन हैं? अकेला व्यक्ति, छोटे व्यवसायी, टाटा, बिरला, रिलायंस उद्योग जैसी निजी कंपनियां…. या और भी कोई? सरकारी उपक्रम जैसे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी तेल और प्राकृतिक गैस (ONGC), स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) या विदेशी कंपनिया जैसे कि नोकिया. सोनी, सैम्संग आदि…….।
यदि हम किसी देश की भौगोलिक सीमाओं के अंदर कुल अंतिम रूप से तैयार माल और प्रदान सेवाओं का, कौन उत्पादन कर रहा है. इसकी चिता किये बिना, मौद्रिक मूल्य का निर्धारण करें तब इसे अर्थव्यवस्था के ‘‘घरेलू उत्पाद‘‘ की संज्ञा दी जा सकती है।
इस प्रकार भारतीय संदर्भ में घरेलू उत्पाद के अंतर्गत समस्त ‘अंतिम रूप से तैयार माल‘ एवं प्रदत्त सेवाएँ, जिन्हें व्यक्तिगत तौर पर निजी कंपनियों द्वारा, सार्वजनिक क्षेत्र और विदेशी कंपनियों द्वारा प्रदान किया जा रहा है, उनके कुल मौद्रिक मूल्य को शामिल किया जाता है।
एक अर्थव्यवस्था के अंदर यह देखने के बाद कि वस्तुओं का उत्पादक कौन है, हमें अब यह देखना है कि वस्तुओं का उत्पादन होता केसे है। किसी भी प्रकार का उत्पादन करने के लिए हमें सर्वप्रथम एक स्थान और बुनियादी ढांचे की जरूरत होती है। अतः हमें चाहिए थोड़ी जमीन या बिल्डिंग, धन पूंजी ताकि मशीनों और कच्चा माल खरीदा जा सके, बाज़ार में बना माल बेचने के लिए विज्ञापन आदि की प्रक्रिया, माल ढुलाई आदि की व्यवस्था। साथ ही चाहिए उत्पादन करने के लिए श्रमिक और एक व्यक्ति जिसे हम उद्यमी के नाम से जानते हैं। इन सभी को एक अर्थव्यवस्था में ‘‘उत्पादन के कारक (factors)‘‘ कहा जाता है।
इस प्रकार ‘‘उत्पादन के जीवन-चक्र (Life Cycle) में उत्पादन के प्रत्येक ‘कारक‘ से एक जुडी कीमत‘‘ (Associated Costs) होती है, जैसे कि निवेश के लिए प्रारंभिक पूँजी, भूमि या बुनियादी ढांचे का किराया, श्रमिकों की मजदूरी या कर्मचारियों की तनख्वाह आदि। इन सब खर्च के बाद उद्यमी जो लाभ कमाता है, वह वस्तुतः उत्पादन के लिये उठाए गये जोखिम का परिणाम है।
यहां यह ध्यान देना चाहिए कि अर्जित लाभ किसी आवर्यिक गतिविधि की कीमत है, परंतु यह कीमत, उत्पादन के किसी कारक की आय भी है। उदाहरणस्वरूप भूमि से प्राप्त किराया, उसकी आय है। पूंजी से प्राप्त आय उसकी आय है, मजदूरी एवं तनख्वाह श्रमिक तथा सुपरवाइज़र की आय है और उद्यमी द्वारा अर्जित लाभ उसके द्वारा लिए गये जोखिम की आय है। इसी उदाहरण को अंकों के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं –
भूमि (किराया) ः ₹ 10,000/-
श्रमिक (मज़दूरी, तनख्वाह) ः ₹ 1,000/-
पूंजी (ब्याज) ः ₹750/-
उद्यमी (लाभ) ः ₹500/-
कुल योग ः ₹12,250/-
उपर्युक्त उदाहरण में उद्यमी द्वारा किया गया कुल आय ₹ 12.250/- है (सभी कीमतें शामिल)। तब कुल उत्पाद कितना हुआ? वह भी ₹ 12,250/- ही होगा। और, उत्पादन के सभी कारकों की आय क्या है? पहले उत्तर जैसा ₹ 12,250/-1 मूलतः इसका आशय यह है कि उत्पादन/कीमत ही उत्पादन के कारकों की आय है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि उत्पाद और उससे अर्जित आय एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस प्रकार हमारे द्वारा उत्पाद या आय कहने का आशय एक ही है।
कभी-कभी उत्पाद को एक अर्थव्यवस्था की उपज या उत्पादन के नाम से भी संबोधित किया जाता है (मात्रा × उत्पादन के कारक की कीमत)। अतः एक अर्थव्यवस्था में घरेलू उत्पाद एवं घरेलू आय का मतलब एक ही है।
अब तक हमने घरेलू उत्पाद/आय की चर्चा की है, पंरतु जो भारतीय विदेशोें में आय अर्जन कर रहे हैं, उन्हें किस श्रेणी में डाला जाय? उत्पाद के समग्र विश्लेषण के लिए राष्ट्र भौगोलिक सीमाओं के बाहर किसी भी देश में रह रहे भारतीयों की आय को भी शामिल करना पड़ेगा।
परंतु, यदि हम अप्रवासी भारतीयों कि आय को ‘उत्पाद’ में शामिल करते है तो यह तर्कसंगत होगा कि भारत के अंदर रह रहे विदेशियों की आय हमें अपने ‘उत्पाद‘ श्रेणी से निकाल देना चाहिए। इसे ‘‘विदेश से शुद्ध कारक आय‘‘ (Net factor Income from Abroad) भी कहा जाता है। अतः
घरेलू उत्पाद $ विदेश से शुद्ध कारक आय – भारतवासी विदेशियों की आय = राष्ट्रीय उत्पाद
अथवा
घरेल उत्पाद($/-)विदेशों से शुद्ध कारक आय = राष्ट्रीय उत्पाद
(Domestic Product ($/-) NFIAD = National Product)
‘‘विदेश से शुद्ध कारक आय‘‘ (NFIAD) धनात्मक या ऋणात्मक हो सकती है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि अप्रवासी भारतीयों की आय, भारत में अर्जन कर रहे विदेशियों से ज्यादा या कम है। अर्थात् राष्ट्रीय उत्पाद, घरेलू उत्पाद से कम होगी, यदि अप्रवासी भारतीयों की आय भारत में अर्जन कडे विदेशियों से कम है या इसके प्रतिकूल है।
किसी देश की बढी हई विदेशी मुद्रा, प्रभावित ऋण अथवा घरेलू परिसंपत्ति की विदेशों को बिकवाली. जट में कमी करेगा जबकि घरेलू उत्पाद अप्रभावित रहेगा।