प्राणी जगत किसे कहते हैं ? | प्राणी शास्त्र का महत्व क्या है ? जीव जगत में विविधता क्या है विज्ञान
जीव जगत में विविधता क्या है विज्ञान प्राणी जगत किसे कहते हैं ? | प्राणी शास्त्र का महत्व क्या है ?
प्रस्तावना
१. प्राणि-जगत् में स्वरूपों की विविधता
जिस प्रकार वनस्पति-शास्त्र वनस्पतियों का अध्ययन करता है उसी प्रकार प्राणि-शास्त्र प्राणियों के जीवन तथा संरचना का अध्ययन करता है।
संसार में प्राणी शीतध्रूवीय प्रदेशों से लेकर उष्णकटिबन्धीय देशों तक और पहाड़ों की चोटियों से लेकर महासागरों की गहराइयों तक सब जगह पाये जाते हैं। प्राणियों के अनुकूल वातावरण या उनके वासस्थान की प्राकृतिक स्थितियां बहुत ही भिन्न होती हैं और उसी प्रकार उनका भोजन भी। परिणामतः प्राणियों की जीवन-प्रणाली और उनकी संरचना में भी बहुत बड़ी भिन्नता होती है।
उदाहरणार्थ, उत्तरी समुद्र-तटों पर और आर्कटिक महासागर के तैरते हुए हिमक्षेत्रों पर सफेद भालू मिलते हैं (रंगीन चित्र 1 )। यह एक बहुत बड़ा जानवर है। इसके शरीर पर मोटी सफेद फर होती है जो ठंड से उसकी अच्छी तरह रक्षा करती है। सफेद रंग के कारण इस जानवर को बर्फ पर अलग से पहचान लेना मुश्किल होता है। धुव-प्रदेशीय भालू का भोजन है सील। जब सील पानी से निकलकर बर्फ पर आते हैं, ये भालू वहीं उनका शिकार करते हैं। अलावा इसके वह बहुत अच्छी तरह तैर सकता है और गोते भी लगा सकता है। पानी में से वह चोरी चोरी सीलों के पास पहुंच जाता है।
भूरे भालू (रंगीन चित्र 2 ) का वासस्थान और भोजन भिन्न है। यह जानवर घने जंगलों में रहता है और उसका कोट काले-भूरे रंग का होता है। उसका भोजन विविध प्रकार होता है। वैसे तो यह बेरियां और घास तथा पक्षियों के अंडे खाता है, पर बारहसिंगों और जवान गोजनों जैसे बड़े शिकार पर और मवेगियों तथा भेड़ों जैसे पालतू जानवरों पर भी मुंह मार सकता है।
स्तेपियों में गोफर नामक छोटे छोटे प्राणी रहते हैं (रंगीन चित्र 3)। ये प्राणी जमीन में मांद बनाते हैं और आदमी की आहट पाते ही फौरन उनमें छिप जाने है। गोफर केवल शाकाहारी भोजन पर रहते हैं। वे गेहूं तथा दूसरे अनाज खाते हैं और इसी लिए, उनसे खेती को बड़ा नुकसान पहुंचता है।
नदियों और सागरों में भिन्न भिन्न प्रकारों की मछलियां रहती हैं। इनमें से एक पर्च-मछली (रंगीन चित्र 4) है जो रूस की नदियों में आम तौर पर पायी जाती है। पर्च-मछली का आहार मुख्यतया छोटी मछलियां और दूसरे जलचर प्राणी हैं।
प्राणी जमीन के अंदर भी रहते हैं जहां सूरज की किरण पहुंच नहीं पाती। इनमें से एक आम प्राणी है केंचुआ जो बरसात के बाद जमीन की सतह पर रेंगकर प्राता है। इनका भोजन वनस्पतियों के सड़े-गले अंश होता है और वे गिरी हुई पत्तियों को अपने विलों में खींच ले जाते हैं (आकृति 18)।
प्राणियों के वासस्थान , जीवन-प्रणाली और स्वरूप कितने भिन्न होते हैं यह दिखाने के लिए उक्त पांच प्राणियों के उदाहरण पर्याप्त हैं। पर ध्यान रहे कि ये केवल सीमित उदाहरण हैं। प्रकृति में प्राणियों की विविधता बहुत विशाल है।
कौए , गौरैयां , अबाबील , कठफोड़वे और अन्य कई पंछियों को कौन नहीं जानता? कीटों की विविधता तो और भी बड़ी है। इनमें तितलियां, गोबरैले , मच्छर, मक्खियां , चींटियां, मधुमक्खियां, बरे और बहुत-से अन्य कीट शामिल हैं। ये भी प्राणी ही हैं।
प्राणियों के आकार भी भिन्न भिन्न होते हैं। उनमें से कुछ हाथी जैसे बहुत बड़े होते हैं। उनकी ऊंचाई ३ मीटर तक और वजन चार टन से अधिक होता है। सागरों और महासागरों में रहनेवाले ह्वेल तो इनसे भी बड़े होते हैं। नीले ह्वेल की लम्बाई ३० मीटर तक और वजन १५० टन तक होता है। पर ऐसे भी अनगिनत प्राणी हैं जिनको केवल माइक्रोस्कोप द्वारा ही देखा जा सकता है।
पृथ्वी की परत की सतहों में हमें कुछ प्राणियों के अवशेप ( हड्डियां , सीपकौड़ी इत्यादिः) मिलते हैं जो कुछ अंशों में आधुनिक प्राणियों के जैसे होते हुए भी उनसे काफी भिन्न होते हैं। उदाहरणार्थ, हमें हाथी से मिलते-जुलते मैमथ ( वृहत् गज) नामक एक विशालकाय जानवर की हड्डियां मिलती हैं (आकृति १६१ )। सोवियत संघ के उत्तर में जमीन की सदैव जमी परत में एक पूरा का पूरा मैमथ मिला जो दसियों हजार वर्षों से वहां जमा हुआ पड़ा था। मैमथ ठंडे जलवायु में रहते थे और हाथी से इस माने में भिन्न थे कि उनके शरीर पर मोटा बालदार कोट-सा हुआ करता था।
मैमथ और कई अन्य फौसिल प्राणी बहुत प्राचीन समय में रहते थे लेकिन आगे चलकर लोप हो गये – बिल्कुल फर्न जैसी वनस्पतियों की तरह जिनके फौसिलीय अवशेष कोयलों में पाये जाते हैं । गरज यह कि प्राणि-जगत् संदा से वैसा ही नहीं रहा है जैसा वह आज है। जो लोग कहते हैं कि प्राणी अपरिवर्तनीय है, वे गलत हैं । विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि धरती पर का प्राणि-जगत् परिवर्तित और परिवर्दि्धत होता आया है।
‘प्रस्तावना‘ के बाद हम विभिन्न प्राणियों का अध्ययन करेंगे। केवल माइक्रोस्कोप द्वारा देखे जा सकनेवाले विल्कुल सरल प्राणियों से प्रारम्भ करते हुए हम बंदरों जसे सबसे सुसंगठित प्राणियों तक पहुंचेंगे। अध्ययन के इस क्रम से हमें प्राणि-जगत् का परिवर्द्धन-क्रम समझ लेने में सहायता मिलेगी।
प्रश्न – १. सफेद भालू , भूरे भाल , गोफर, पर्च-मछली और केंचुए कौनसे वासस्थान में रहते हैं ? २. इन प्राणियों का भोजन क्या है ? ३. तुम्हारे सजीव प्रकृति-संग्रह में कौनसे प्राणी हैं और वे क्या खाते हैं ? ४. पाठ्यक्रम में वर्णित प्राणियों के अलावा और कौनसे वन्य प्राणियों को तुम जानते हो? वे कहां रहते हैं और क्या ‘खाते हैं ?
२. प्राणि-शास्त्र का महत्त्व
बहुत-से प्राणी और विशेषकर घरेलू प्राणी (गायें, भेड़ें, सूअर, मुर्गियां , इत्यादि ) उपयोगी होते हैं। ये प्राणी हमें खाद्य-पदार्थ (मांस, दूध, अंडे ) और कपड़ों तथा जूतों के लिए कच्चा माल (ऊन , प्राकृतिक रेशम , फर, चमड़ा ) देते हैैं। घोड़ों, गदहीं, बैलों और भैंसों का उपयोग यातायात और खेती के काम में किया जाता है।
बहुत-से वन्य प्राणी भी उपयोगी होते हैं।
मछली और कुछ वन्य पक्षियों ( बत्तखों , हंसों) का मांस खाने में प्रयोग किया जाता है। फरदार प्राणियों (गिलहरियों, लोमड़ियों, सैबलों) से हमें
गरम, खूबसूरत फर मिलती है। बहुत-से पक्षी (सारिका, अबाबील , टामटिट)। हानिकर कीटों का नाश कर देते हैं।
प्राणियों का सफल उपयोग करने के लिए उनकी आवश्यकताएं जानना जरूरी है। उदाहरणार्थ, वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि मुर्गी के अंडों का कवच तभी सख्त हो सकता है जब मुर्गी की खुराक में चूने का अंश हो। यह सिद्ध किया गया है कि केवल अनाज मुर्गियों के लिए काफी खुराक नहीं है य उन्हें प्राणिज खुराक ( केंचुआ, सूखा मांस ) भी मिलनी चाहिए। तभी मुर्गियां काफी अंडे दे सकती हैं।
सोवियत संघ ही वह पहला देश रहा जिसने सैबल (आकृति १६५ ) क कृत्रिम संवर्द्धन आरंभ किया। यह प्राणी अपनी अत्यंत मूल्यवान् फर के लिए प्रसिद्ध है। वैज्ञानिकों ने सैबल के जीवन का अध्ययन किया और उनकी खुराक का ठीक ठीक पता लगाया। तभी जाकर यह संवर्द्धन संभव हुआ।
उपयोगी प्राणियों के साथ साथ बहुत-से हानिकर प्राणी भी हैं। उदाहरणार्थ, भेड़िये भेड़ों और बछड़ों का शिकार करते हैं य गोफर अनाज और उपयुक्त घासों का सफाया करते हैं। खेतों में उगाये गये पौधों पर अपनी जीविका चलानेवाले विभिन्न कीटों के कारण खेती को बड़ा भारी नुकसान पहुंचता है। हम जानते ही हैं कि गोभी-तितली की इल्लियां गोभी के पत्तों को खा जाती हैं। दूसरी एक तितली – कैंकर-तितली- की इल्लियां कभी कभी फलदार पेड़ों की सभी पत्तियां नष्ट कर देती हैं। सेब के अंदर घुसनेवाली काडलिन पतंग की इल्लियों को हर कोई जानता है। इस प्रकार के हानिकर कीटों की संख्या बहुत बड़ी है।
कीटों में ऐसे कई परजीवी कीट भी हैं जो मनुष्य तथा घरेलू प्राणियों को नुकसान पहुंचाकर जीवित रहते हैं। एस्कराइड एक ऐसा कीट है।
मनुष्य हानिकर प्राणियों के विरुद्ध डटकर संघर्ष कर रहा है। इस संघर्ष को सफलतापूर्वक जारी रखने के लिए हमें इन प्राणियों की संरचना, जीवन और परिवर्द्धन का अध्ययन करना चाहिए। निम्नलिखित उदाहरण से स्पष्ट होगा कि ऐसी जानकारी कितनी लाभदायक है। कैंकर-तितली के अध्ययन से पता चला कि उसकी नन्हीं नन्हीं इल्लियां जाड़ों के दिन पेड़ों पर बची हुई सूखी पत्तियों में बिताती हैं (आकृति १)। यदि इन घोंसलों को शरद के आखिरी दिनों में या जाड़ों में हटाकर जला दिया जाये तो फलबाग को इन नुकसानदेह कीटों से बचाया जा सकता है।
इस प्रकार प्राणि-शास्त्र न केवल प्राणियों के जीवन, संरचना और परिवर्द्धन . के सम्बन्ध में सही धारणा बना लेने की दष्टि से बल्कि प्राप्त किये गये ज्ञान के आधार पर हानिकर प्राणियों के विरुद्ध संघर्ष करने, उपयोगी प्राणियों की रक्षा करने और घरेलू प्राणियों का उचित ढंग से पालन तथा संवर्धन करने की दृष्टि से भी हमारी सहायता करता है।
प्रश्न- १. घरेलू प्राणियों से हमें क्या फायदा मिलता है ? २. स्कूल के प्रायोगिक फार्म में तुम्हें कौनसे हानिकर प्राणी मिले? उनका सामना कसे किया जाता था? ३. मनुष्य ने संबल का कृत्रिम संवर्द्धन करना सीखा इसका श्रेय किसको है ? ४. कैंकर तितली के परिवर्द्धन से सम्बन्धित ज्ञान उसका सामना करने में किस प्रकार सहायक होता है ? ५. प्राणि-शास्त्र का महत्त्व क्या है?
भूमिका
(अध्यापक के लिए)
इस पाठ्य पुस्तक में प्रोटोजोत्रा से लेकर प्राइमेट तक प्राणि-जगत् के मुख्य समूहों की प्रणालीबद्ध रूप-रेखा दी गयी है। प्राणि-शास्त्र के निम्नलिखित विविध क्षेत्रों की सामग्री का उपयोग करते हुए इस पुस्तक की रचना की गयी है –
बाह्याकारिकी (morphology), कायिकी (physiology), पारिस्थितिकी (ecology), भ्रूण-विज्ञान (embryology), लुप्त-जीव-विज्ञान (paleontology) और प्राणियों का वर्गीकरण ।
लेखकों के सम्मुख निम्नलिखित शैक्षणिक उद्देश्य हैं-
(क) संरचना, वासस्थान, जीवन-स्थिति , जनन और परिवर्द्धन की दृष्टि से प्राणियों की विविधताओं से छात्रों को परिचित कराना य
(ख) क्रम-विकास के सिद्धान्त के आधार पर प्राणि-जीवन विषयक भौतिक विचार का विवेचन करना य
(ग) मनुष्य की व्यावहारिक गतिविधियों की दृष्टि से प्राणि-शास्त्र का महत्त्व कथन करना य
(घ) उपयुक्त प्राणियों का संरक्षण और हानिकर प्राणियों की समाप्ति का तत्त्व स्वीकार करते हुए छात्रों के बीच प्राणियों के प्रति सचेत और तर्कसंगत प्रवृत्ति जागृत, करना।
पाठ्यक्रम के बुनियादी तत्त्व हैं प्राणियों का क्रम-विकास ( ऐतिहासिक परिवर्द्धन) और सिद्धान्त तथा व्यवहार का समन्वय।
प्राणि-जगत् के क्रम-विकास की कल्पना छात्रों के मन में चढ़ते क्रम से अर्थात् एककोशिकीय प्राणियों से लेकर बहुकोशिकीय प्राणियों तक , निम्न प्रकार के प्राणियों से लेकर उच्च प्रकार के प्राणियों तक के क्रम से प्रविष्ट की गयी है। इससे, क्रमविकास की प्रक्रिया में प्राणियों की संरचना में जो जटिलता बढ़ती गयी उसे समझ लेने में छात्रों को सहायता मिलती है ।
प्राणियों का परीक्षण उनकी जीवन-स्थितियों पर ध्यान देते हुए किया गया है। प्रत्येक प्राणी के वर्णन के साथ साथ उसके वासस्थान , आवश्यक जीवन-स्थिति और वातावरण के अनुसार उसकी संरचना और वर्ताव के अनुकूलन का विवरण दिया गया है। अंगों की संरचना का परीक्षण उनके कार्यों पर ध्यान देते हुए किया गया है।
विशिष्ट समह के लिए असाधारण जीवन-स्थितियों में विशिष्ट अनुकूलन दिखानेवाले प्राणियों ( उदाहरणार्थ, स्तनधारियों में से चमगादड़, सील और ह्वेल ) और विभिन्न अंगों के व्यवहार तथा व्यवहाराभाव ( उदाहरणार्थ , दौड़ता हुआ शुतुर्मुर्ग ) के प्रभाव के अन्तर्गत परिवर्तनों का वर्णन काफी विस्तार के साथ दिया गया है।
कुछ फौसिल प्राणियों का भी वर्णन दिया गया है। इनका परिचय प्राप्त कर लेने से छात्र को प्राणि-जगत् (लुप्त उरग, आरकियोप्टेरिक्स) का ऐतिहासिक परिवर्द्धन समझ लेने में सहायता मिलेगी।
पाठ्य पुस्तक में जल-स्थलचर, उरग, पक्षी और स्तनधारी प्राणियों की उत्पत्ति से सम्बन्धित तथ्य इस प्रकार दिये गये हैं कि छात्र उन्हें सुगमता से समझ सकें।
उपसंहार में प्राणि-जगत् के क्रम-विकास सम्बन्धी सामग्री संकलित की गयी है। इसमें प्राणि-जगत् के ऐतिहासिक परिवर्द्धन तथा वर्गीकरण का सारांश , डार्विन के सिद्धान्त की साधारण कल्पना और मनुष्य की उत्पत्ति की समस्या से सम्बन्धित चर्चा संगृहीत है।
पूरे पाठ्यक्रम में सिद्धांत तथा व्यवहार के समन्वय के तत्त्व का भी पालन किया गया है।
उदाहरणार्थ:
(क) प्राकृतिक स्रोतों ( मछलियों, व्यापारिक पक्षियों और फरदार जानवरों का शिकार , उपयुक्त पक्षियों का संरक्षण एवं आकर्षण, रक्षित उपवन ) के तर्कसंगत उपयोग और सुरक्षा का परिचय कराते समय य
(ख) रोग के उत्पादकों तथा वाहकों की बायोलोजी के अध्ययन में, जहां उनके वर्णन के साथ साथ उनके मलेरिया परजीवी, परजीवी कृमि , और कीट’ विरोधी उपाय भी दिये गये हैंय
’जो रोग-उत्पादकों के वाहक हैं और कुतरनेवाले जंतु – जो प्लेग-पिस्सू के वाहक हैं।
(ग) विभिन्न कृषिनाशक जंतुओं (कीट , कुतरनेवाले तथा मांसाहारी जंतु) के वर्णन मेंय
(घ) प्राणि-पालन की – मधुमक्खी-पालन , रेशमी कीट-पालन , मछलियों का शिकार, पोल्ट्री, मवेशी-पालन – विभिन्न शाखाओं के जीव वैज्ञानिक तत्त्वों का परिचय कराते समय। मवेशी आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं अतः एक विशेष अध्याय में उनका परीक्षण किया गया है।
उक्त सारी ‘व्यावहारिक‘ सामग्री इस प्रकार प्रस्तुत की गयी है कि छात्र न केवल वैज्ञानिक जानकारी के व्यावहारिक उपयोग से परिचित होंगे बल्कि प्राणियों की संरचना तथा जीवन के सम्बन्ध में अपना ज्ञान और विस्तृत तथा गहरा कर पायेंगे।
पाठ्यक्रम की आधारभूत कल्पनाएं क्रमशः और धीरे धीरे विकसित की गयी हैं । इस प्रकार शरीर के परमावश्यक कार्यों का वर्णन (पोषाहार, श्वसन , उत्सर्जन ) आरंभिक अध्यायों में दिया गया है जबकि उपापचय (metabolism) की प्रारंभिक साधारण कल्पना पहली बार आरथ्योपोडा विषयक अध्याय में ही दी गयी है। बाद में मछलियों तथा रीढ़धारियों के अनुगामी वर्गों की विशेषता बताते समय यह कल्पना अधिक गहराई के साथ स्पष्ट की गयी है।
प्राणियों और वातावरण के बीच के संबंधों के स्वरूप पर भी क्रमशः ध्यान दिया गया है। हाइड्रा का वर्णन करते समय अनियमित प्रतिवर्ती क्रियाएं समझायी गयी हैं और केंचुए तथा उसके अनुगामी प्राणियों के वर्णनों में उनके प्रमाण दिये गये हैं। सहज प्रवृत्तियां एक प्रकार की जटिल अनियमित प्रतिवर्ती क्रियाएं होती हैं यह दिखाने के लिए कीटों का उपयोग किया गया है। केवल रीढ़धारियों वाले अध्यायों में ही यह पाठ्य पुस्तक नियमित प्रतिवर्ती क्रियाओं को अस्थायी संबंधों के रूप में प्रस्तुत करती है।
प्राणियों के वर्गीकरण की कल्पना भी धीरे धीरे समझायी गयी है। आरथ्योपोडा वाले अध्याय से पहले वर्गीकरण की समस्या का विवेचन नहीं किया गया है। आरोपोडा का वर्णन करते समय समूह और वर्ग के अभिप्राय समझाये गये हैं। रीढ़धारियों का वर्णन वर्गानुसार दिया गया है। श्रेणी, कुल, जाति और प्रकार का स्पष्टीकरण, कुतरनेवाले जंतुओं के उदाहरण से सम्बन्धित एक विशेष परिच्छेद में दिया गया है।
इस पाठ्य पुस्तक की रचना में लेखकों ने जो प्रणाली अपनायी है उससे प्राणि-गास्त्र विषयक पाठ्यक्रम की आधारभूत धारणाओं का क्रमिक विकास संभव है। इसी लिए अनुवाद का रूप वही रखा गया है जो रूसी में प्रकाशित मूल पुस्तक का है। फिर भी भारतीय छात्रों के लिए अधिक रोचक बनाने की दृष्टि से पुस्तक को परिवर्दि्धत किया गया है और उसमें भारतीय प्राणि-समूह के विशिष्ट प्राणियों का समावेश किया गया है। इनका वर्णन भी उसी प्रकार दिया गया है जिस प्रकार वाकी प्राणियों का। इसलिए नये परिच्छेदों का उपयोग या तो मुख्य पाठ्यक्रम की पूर्ति के रूप में किया जा सकता है और या तो पाठ्यक्रम के मुख्य भाग में वर्णन किये गये प्राणियों के स्थान में।
आम तौर पर इस पाठ्यक्रम का उपयोग करते समय किसी विशेष समूह के प्रतिनिधि प्राणियों के स्थान में ऐसे दूसरे प्राणी लिये जा सकते हैं जो स्कूलवाले इलाके की स्थितियों में पाये जाते हैं। उदाहरणार्थ, मछलियों की संरचना का अध्ययन करते समय यह किसी प्रकार अनिवार्य नहीं है कि पर्च-मछली को ही लिया जाये। उसके स्थान में दूसरी कोई भी अस्थिल मछली ली जा सकती है। कीटों के प्रतिनिधि के रूप में काकचेफर जैसे कीट के स्थान में अन्य बड़े कीट ( उदाहरणार्थ तिलचटे) को और रूक के स्थान में कौए, कबूतर इत्यादि को लिया जा सकता है।
पाठ्य पुस्तक की रचना संक्षिप्त रूप में की गयी है ताकि अध्यापक द्वारा क्लास में दी गयी जानकारी का अनुशीलन करने में उसका उपयोग हो सके । अध्ययन-सामग्री के साथ छात्रों का परिचय केवल अध्यापक के कथन और पाठ्य पुस्तक के पठन तक ही सीमित न रहे बल्कि उसे जिन्दा प्राणियों के प्रदर्शन, शिक्षा के भिन्न भिन्न दर्शनीय साधनों ( संग्रह, उपकरण, मसाला भरे हुए प्राणी, सारणियां), फिल्मों, प्रयोगशाला के पाठों, सैर-सपाटों और स्कूल के बाहर प्राणियों के निरीक्षणों का साथ दिया जाये। .
इस पाठ्य पुस्तक का उपयोग करनेवाले सभी लोगों से लेखकों की प्रार्थना है कि वे निम्नलिखित पते पर पुस्तक के संबंध में अपनी सम्मतियां और परामर्श भेज दें-विदेशी भाषा प्रकाशन गृह, 21, जूबोव्स्की बुलवार, मास्को, सोवियत संघ ।
व० शलायेव
न 0 रीकोव
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics