which lens is used in myopia in hindi treatment correct निकट दृष्टि दोष में किस लेंस का प्रयोग होता है ?
आँख की कार्य प्रणाली :
(1) रेटिना पर उल्टा प्रतिबिम्ब बनना : प्रकाश किरणें जब वातावरण से अन्य किसी पारदर्शी पदार्थ जैसे पानी , कांच आदि में प्रवेश करती है तो वे अपने सीधे पथ से थोडा घूम (विचलित) जाती है। यह प्रत्यावर्तन (refraction) कहलाता है। वस्तु से आने वाली प्रकाश की किरणें कार्निया , एक्वस ह्यूमर , लैंस , विट्रस ह्यूमर से गुजरने के बाद रेटिना पर गिरती है। प्रकाश किरणों के रेटिना पर गिरने से उल्टा और छोटा प्रतिबिम्ब बनता है।
(2) समन्वयन (accommodation) : मानव आँख में लैंस की उत्तलता में परिवर्तन के द्वारा accommodation (समन्वयन) क्षमता होती है। आइरिस पेशियों की सक्रियता के कारण प्यूपिल (pupil) का आकार घट अथवा बढ़ सकता है। चमकीले प्रकाश में प्यूपिल संकुचित हो जाता है। कम प्रकाश में प्यूपिल फैलता है। सिलियरी काय की ससपेंसरी लिगामेंट की सक्रियता के कारण लैंस की फोकस लम्बाई परिवर्तित हो सकती है। इस प्रकार वस्तु को विभिन्न दूरी से प्रकाश की विभिन्न तीव्रता में फोकस किया जा सकता है।
मानव आँख दूर दृष्टि के लिए व्यवस्थित होती है। नजदीकी वस्तु को देखने के लिए वहां सिलियरी पेशियों और सस्पेंसरी लिगामेन्ट , लैंस को गोल बनाते है। जब चक्रीय सिलियरी पेशी शिथिल होती है और लिगामेंट खिंच जाते है और वस्तु का दूरस्थ फोकस के लिए प्रत्यावर्तन कम करने के लिए लैंस चपटे उपयुक्त आकार में परिवर्तित हो जाता है। (त्रिज्या को वक्रता को बढाया जाता है। )
(3) biochemistry of vision (mechanism of photoreception) :
(i) रोडोप्सीन की भूमिका : प्रकाश रोडोप्सीन को वर्णक रेटिनिन (= रेटिनॉल) और एक प्रोटीन स्कोटोप्सिन (opsin) में तोड़ देता है। विपाटन का प्रक्रम ब्लीचिंग कहलाता है। यह शलाका कोशिकाओं को न्यूरोट्रांस मीटर स्त्रावित करने के लिए विध्रुवित करते है और तंत्रिका आवेगों को द्विध्रुवीय कोशिकाओं ganglion कोशिकाओं की ओर दृक तंत्रिका तन्तु तक स्थानांतरित करते हैं।
अँधेरे में रेटिनिन और स्कोटोप्सिन का पुनसंश्लेषण होता है और शलाकाओं को कार्यरत बनाते है।
अँधेरे में रोडोप्सीन संश्लेषण में कुछ समय लगता है अत: जब चमकीले प्रकाश से अँधेरे अथवा कम प्रकाश में जाते है तो हम वस्तु को दूर पश्चात् देख पाते है। यह रोडोप्सीन के पुनः प्रकट होने के कारण होता है। इसी प्रकार हम जन अँधेरे से उजाले में जाते है तो हम कुछ समय के लिए अंधे ही बने रहते है जब तक रोडोप्सीन पुनः टूटता है जो शंकु कोशिकाओं को सक्रीय बनाता है।
(ii) role of lodopsin (colour vision) : दिवस प्रकाश या कृत्रिम प्रकाश में कार्य करता है। यह वर्णक चमकीले प्रकाश और रंग के लिए संवेदी होता है। इसकी जैव रासायनिक सही नहीं समझाई गयी है। तीन तरह की शंकु कोशिका होती है प्रत्येक में अलग अलग प्रकाश संवेदी वर्णक होता है।
(अ) शंकु जिनमें एरिथ्रोप्सिन होता है। लाल प्रकाश के प्रति संवेदी होते है।
(ब) शंकु जिनमें chlorolabe होता है हरे प्रकाश के प्रति संवेदी।
(स) शंकु जिनमें cyanolabe होता है नीले प्रकाश के प्रति संवेदी होता है।
यह trichromacy theory के अनुसार होता है।
binocular vision : जब दोनों आँख तात्क्षणिक रूप से एक सामान्य वस्तु पर फोकस करती है, जैसा की मानव आँख में होता है।
दृष्टि दोष (defects of vision)
(1) निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) : व्यक्ति को दूर की वस्तु स्पष्ट देखने में परेशानी होती है व्यक्ति पास की वस्तु को आसानी से देख पाता है अत: यह शोर्ट साइट भी कहलाता है। निकट दृष्टि नेत्र में नेत्र गोलक अत्यधिक लम्बा और रेटिना , लैंस से अत्यधिक दूर हो जाता है। प्रकाश की किरणें रेटिना के सामने एक बिंदु पर एकत्रित (coverge) होती है , परिणाम स्वरूप धुंधला प्रतिबिम्ब बनता है। अवतल लैंस प्रकाश की किरणों को पुनः पश्च बिंदु पर रेटिना पर फोकस करके इस स्थिति को सही कर सकते है।
(2) दूर दृष्टि दोष (हाइपर मेट्रोपिया) : व्यक्ति को पास की वस्तु देखने में कठिनाई होती है। दूर दृष्टि दोष मायोपिया का बिल्कुल विपरीत होता है। नेत्र बहुत छोटा और रेटिना लैंस के अत्यधिक समीप आ जाता है। प्रकाश किरण रेटिना पर फोकस होने से पहले ही रेटिना पर पहुँचती है और पुनः धुंधला प्रतिबिम्ब बनता है। उत्तल दर्पण प्रकाश की किरणों को आगे की तरफ रेटिना पर फोकस कर दूर दृष्टि दोष से सही करता है।
(3) दृष्टि वेमश्य : कार्निया और लैंस की अ\नियमितता के कारण प्रतिबिम्ब फोकस बिंदु से बाहर बनता है। दृष्टि वेमष्य होता है। यह बेलनाकार लैंस द्वारा सही किया जाता है।
(4) प्रेसबायोपिया (ओल्ड साइट) : यह वृद्ध अवस्था में समन्वय (एकोमोडेशन) में खराबी के कारण होता है। लैंस अप्रत्यास्थ हो जाता है तो पास की वस्तु का प्रतिबिम्ब सही फोकस नहीं होता है जबकि दूर दृष्टि सही रहती है। यह old sightedness कहलाती है। यह दोष उत्तल लैंस के उपयोग द्वारा सही होता है।
(5) strabismus : इसे सामान्यतया squint के नाम से जानते है , नेत्र गोलक अपने ही कक्ष में एक और मुड जाता है अत: प्रकाश अक्ष वस्तु से निर्देशित नहीं हो सकती है। कुछ बाह्य ओक्युलर पेशी छोटी अथवा बड़ी हो जाती है।
(6) कैटरेक्ट (सफ़ेद मोतिया) : लैंस अपनी पारदर्शित खो देता है और प्रकाश के लिए अपारदर्शी होता है अत: दृष्टि अनियमित हो जाती है। यह अपारदर्शी लैंस को शल्य चिकित्सा द्वारा हटाकर अथवा द्विउत्तल लैंस के प्रयोग से सही की जा सकती है।
(7) ग्लूकोमा (काला मोतिया) : यह वृद्ध लोगों में सामान्य है। उपचार नहीं कराये जाने पर अंधापन उत्पन्न होता है। ग्लोकोमा में आँख की अग्र गुहा में दाब सामान्य से अधिक हो जाता है। यह पश्च गुहा पर दबाव डालता है और रेटिना को रक्त आपूर्ति कम करता है। पोषक तत्वों की कमी से रेटिना की कोशिकाएं नष्ट होती है। यदि दाब canal of schlemm के अवरुद्ध होने के कारण होता है तो उपचार में नयी केनाल बनाई जाती है।