तुर्रा कलंगी ख्याल क्या है ? what is turra kalangi khayal in hindi तुर्रा कलंगी ख्याल कहा कि प्रसिद्ध है
तुर्रा कलंगी ख्याल कहा कि प्रसिद्ध है what is turra kalangi khayal in hindi तुर्रा कलंगी ख्याल क्या है ?
प्रश्न: तुर्राकलंगी ख्याल
उत्तर : यह राजस्थान का प्रसिद्ध लोक नाट्य मेवाड के हिन्दू संत तुकनगीर व मुस्लिम संत शाह अली द्वारा 400 वर्ष पूर्व शुरू किया गया। इसमें तुर्रा (शिव) व कलंगी (पार्वती) दो दल होते हैं जो क्रमशः भगवा व हरे वस्त्र धारण करते हैं।
इसकी प्रमुख विशेषता हैं।
गैर-व्यावसायिक प्रकृति, 2. रंगमंच की भरपूर सजावट, 3. सरल नृत्य कदम ताल, 4. लयात्मक वादन। मेवाड़ के चेतराम सोनी, हमीद बेग इसके प्रमुख कलाकार हैं। इसमें चेग लोक वाद्य का प्रयोग होता है। इसके संवाद काव्यात्मक शैली में होते हैं। जिनमें पौराणिक एवं समाज सुधार के संवादों की गजब की तुकबन्दी होती है।
राजस्थान की धरोहर रू प्रदर्शन व ललित कलाएं, हस्तशिल्प व
वास्तुशिल्प, मेले एवं पर्व, लोक संगीत व लोक नृत्य
1. प्रदर्शन व ललित कलाएं
।. प्रदर्शन कलाएं
लीलाएँ एवं लोक नाट्य
राजस्थान की प्रमुख ख्याल
क्र.सं. ख्याल का नाम प्रचलन क्षेत्र प्रवर्तक प्रसिद्ध कलाकार विशेषताएँ
1. कुचामनी ख्याल नागौर व निकटवर्ती क्षेत्र श्री लच्छीराम उगमराज हास्य विनोद व लोकगीतों की प्रधानता। चाँद-नीलगिरि, राव-रिडमल, गोगा चोहाण, मीरा-मंगल, आल्हादेव आदि प्रमुख ख्याल ‘ओपेरा‘ के समान।
2. शेखावाटी (चिड़ावा) ख्याल शेखावाटी क्षेत्र के सीकर, खण्डेला, जायल (नागौर) श्री नानूराम चिड़ावा दुलियाराणा, सोहनलाल, बंसी, बनारसी नाथूलाल हीर-रांझा, ढोला-मरवण, हरिश्चन्द, आल्हादेव, भर्तृहरि, जयदेव-कलालूं ख्याल इत्यादि लोक प्रिय ख्याल। गायन, वादन राणा व नर्तन तीनों का सम्प्रेषित मिश्रण।
3 जयपुरी ख्याल जयपुर एवं निकटवर्ती क्षेत्र सवाई जयसिंह के समय गुणीजन खाना के कलाकार स्त्री-पात्रों की भूमिका स्त्रियों द्वारा। लोकप्रिय ख्यालें-जोगी-जोगण, कान गूजरी, मियां-बीबी, पठान, रसीली-तम्बोलन।
4. तुर्रा-कलंगी ख्याल निम्बाहेड़ा, घोसूण्डा, नीमच (म.प्र.) चंदेरी के शाहअली (कलंगी) व तुकनगीर (तुर्रा) ख्त्।ै उंपदश्े 2008, जवाहरलाल पुरोहित मनीराम व्यास, फागू महाराज, सुआ महाराज मंच की सजावट, सर्वाधिक दर्शक भाग लेने की संभावना, वाद्य यंत्र-चंग, गैर व्यवसायिक प्रकृति।
5. रम्मत बीकानेर-जैसलमेर जोधपुर, फलौदी पोकरण जैसलमेर के तेजकवि द्वारा भक्त पूरणमल, स्वतंत्रत बावनी, मोरध्वज आदि प्रमुख रम्मत, ‘पाटा संस्कृति‘ के लिए प्रसिद्ध अमरसिंह राठौड़ री रम्मत, हेडाड मेरी व रावलों की रम्मत, रम्मत खेलने वाले ‘रमतिए‘ कहलाते हैं।
6. अलीबख्श ख्याल अलवर मुण्डावर (अलवर) ठिकाने के अलीबक्श के समय अलीबक्श को अलवर का ‘रसखान’ कहा जाता है।
7 कन्हैया ख्याल श्री महावीर जी (करौली)/सवाई माधोपुर, भारतपुर, धौलपुर प्रस्तुतीकरण में मेडिया तथा मींड महत्त्वपूर्ण होता है। वाद्य यंत्र नोबत, घेरा, मंजीरा, ढोलक।
8. हेला ख्याल (दंगल) लालसौट (दौसा), करौली, सवाई माधोपुर शायर, हेला लम्बी टेर देना इसकी विशेषता जिसे ‘हेला‘ देना कहते हैं। वाद्य यंत्र – नोबत।
नोट रू राजस्थान के प्रसिद्ध युदों में से प्रायः 15 व 50 शब्दों के प्रश्न आते रहते हैं। अतः आप उपरोक्त सारणी के आधार पर उनका उत्तर आसानी से दे सकते हैं। इसका नमूना नीचे दिया जा रहा है।
प्रश्न: हेला ख्याल
उत्तरः यह राजस्थान के लालसोट (दौसा), करौली, सवाई माधोपुर क्षेत्र में प्रदर्शित किया जाने वाला रंगमंच है जिसमें नोबत वाद्ययंत्र की थाप पर समसामयिक एवं पौराणिक विषयों पर लम्बी टेर के साथ हेला दिया जाता है।
प्रश्न: रासधारी ख्याल
उत्तर: श्रासधारीश् का सामान्य अर्थ है, वह व्यक्ति जो रासलीला करता है, जो भगवान कृष्ण के जीवन-चरित्र पर आधारित होती है। सबसे पहला रासधारी नाटक लगभग 100 वर्ष पहले मेवाड़ में मोतीलाल जाट द्वारा लिखा गया। रासधारियों की लोक नृत्य नाट्य शैली ख्याल एवं अन्य लोक नाट्यों से सर्वथा भिन्न है। यह विशिष्ट शैली उदयपुर तथा आस-पड़ौस के क्षेत्रों में अभी भी प्रचलित है और सम्पूर्ण मेवाड़ इलाके में इसका प्रसार है। इसके मुख्य रसिया, बैरागी साधु लोग हैं। इसमें किसी अखाड़े या मंच के निर्माण की जरूरत नहीं होती। रास में मुख्य कथाएँ, रामलीला, कृष्णलीला, हरिश्चन्द्र, नागजी और मोरध्वज की ही है। नृत्य और गीत गाते हुए सारी कथा बयान करदी जाती है।
प्रश्न: चिड़ावा ख्याल शेखावाटी ख्याल
उत्तर: चिड़ावा ख्याल राजस्थानी लोकनाट्य की सबसे लोकप्रिय विद्या है। चिडावा के नानूराम इसके प्रसिद्ध खिलाड़ी रहे हैं और वे अपने पीछे इन ख्यालों की धरोहर छोड गए हैं। इनमें हीर-रांझा, राजा हरिश्चन्द्र, भर्तृहरि, जयदेव-कलाळी, ढोला-मरवण और आल्हादेव प्रमुख ख्याल हैं। इन ख्यालों में पौराणिक कथानक, हास्य प्रसंग के साथ समाज सुधार व नैतिक आदर्शो का यथार्थ प्रदर्शन होता है इस लोक नाट्य की प्रमुख विशेषताएं हैं – 1. सरल व सुबोध भाषा व मुद्रा में गीत गायन, 2. अच्छा पद संचालन, 3. वाद्य यंत्र की उचित संगत। इन. ख्यालों के खिलाडी प्रायः मिरासी, ढोली एवं सरगडा होते है।
प्रश्न: जयपुरी ख्याल
उत्तरः जयपुरी ख्याल राजस्थानी लोकनाट्य की एक लोक प्रिय विद्या है। इसमें पौराणिक कथानाक, ऐतिहासिक प्रसंग, हास्य प्रसंग के साथ समाज
सुधार एवं नैतिक आदर्शों का यथार्थ प्रदर्शन होता है इसकी मुख्य विशेषताएं हैं –
1. स्त्री पात्रों में स्त्रियों द्वारा भूमिका, 2. मुक्त व लचीली शैली, 3. अखबारों, कविता, संगीत, नृत्य, गान व अभिनय का समानुपातिक समावेश। इसकी लोकप्रिय ख्याल हैं – 1 जोगी-जोगन, 2 कान-गुजरी, 3 पठान, 4 मियां-बीवी, 5 रसीली तम्बोलन।
प्रश्न: कुचामनी ख्याल
उत्तर: यह राजस्थानी लोकनाट्य की एक लोकप्रिय विद्या है जिसके प्रवर्तक लच्छीराम थे। इसमें पौराणिक एवं ऐतिहासिक प्रसंगों के साथ चरित्र निर्माण की शिक्षा दी जाती है। इस ख्याल की मुख्य विशेषताएं हैं-1 रूप ओपेरा जैसा, 2 लोक गीतों की प्रधानता, 3 लयबद्ध नृत्यताल बंदी, 4 खुले मंच का प्रयोग, 5 सरल भाषा एवं धुनों का प्रयोग, 6 सामाजिक व्यंग्य पर आधाररित कथावस्तु का चुनाव। लच्छी राम इसके अच्छे नर्तक एवं प्रसिद्ध लेखक रहे हैं। चाँद-नीलगिरि, राव रिडमल मीरा मंगल इसकी प्रमुख ख्यालें हैं। इसमें ढोल, शहनाई, सारंगी वाद्य यंत्र काम में लिये जाते हैं।
प्रश्न: रम्मत
उत्तर: बीकानेरी लोकनाट्य की लोकप्रिय विद्या है। इसमें सुविख्यात लोक नायकों, महापुरुषों आदि पर काव्यमय एवं समसामयिक विषयों पर व्यंग्यात्मक मंचन किया जाता है जो मनोरंजन ही प्रदान नहीं करता बल्कि शिक्षाप्रद भी होता है। इससे समाज में हो रही क्रान्ति प्रदर्शित होती है। इसमें ऊँचे पाटों पर कलाकार बैठते हैं। नगाड़ा, ढोलक वाद्ययंत्रों के साथ संवाद गाकर चैमासा, गणपति वंदना से गीत शुरू होते हैं। पूरन भक्त, स्वतंत्र बावनी, मोरध्वज आदि प्रमुख रम्मत हैं इसमें टेरियों एवं गायकों की प्रमुखता रहती है।
प्रश्न: भवाई नाट्य उत्तर:
उत्तर: मेवाड अंचल का भवाई नाट्य अपने ढंग का अनूठा लोकनाट्य है। इसमें बिना रंगमंच के पात्र व्यंग्यात्मक शैली में तात्कालिक सवाल-जवाब तथा सामाजिक समस्याओं पर चोट करते हैं। इनमें गायकों की गायकी और भवाईयों की हंसी-मजाक, संवाद और नृत्य बड़े रोचक होते हैं। इनमें कथानक तो गौण होता हैं पर गायन, हास्य और नृत्य पूरे तौर पर छा जाते हैं। इस शैली पर आधारित शांता गांधी लिखित श्जस्मा ओडनश् प्रसिद्ध नाट्य है जिसे देश विदेश में खेला गया है।
प्रश्न: हेला ख्यालध्हेला दंगल
उत्तर: यह राजस्थान के पूर्वी अंचल (दौसा, सवाईमाधोपुर, भरतपुर) की प्रसिद्ध लोक नाट्य विद्या की शैली है जिसे दंगली नाट्य भी कहते हैं। इसमें
दो पक्ष ढोल, नगाड़ा आदि वाद्य यंत्रों के साथ अपनी – अपनी टेर शुरू करते हैं। इसमें कलाकार सामाजिक एवं स्थानीय समस्या को लेकर व्यंग्यों का निरूपण कर दर्शकों को दंग कर देते हैं। इनमें कन्हैया दंगल, करौली दंगल, हेला ख्याल, भेंट दंगल आदि प्रसिद्ध है। इसमें मंच
की बजाए खाली मैदान में ही दोनों पक्ष आमने-सामने खड़े होकर बोल बोलते हैं।
प्रश्न: चारबैत
उत्तर: टोंक क्षेत्र में खेली जाने वाली संगीत दंगल रूपी लोक नाट्य विधा, जिसमें गायक पात्र डफ बजाता हुआ घुटनों के बलखड़े होकर अपनी बात गाकर कहता है। इसमें कुछ गायक ऊँची कूद लेकर ढ़फ उछालते हुए भी गाते हैं। पठानी मूल की इस काव्य प्रधान लोक नाट्य विधा में अब लोक भाषा में ही प्रस्तुतीकरण होता है। चारबैत लोक नाट्य शैली टोंक के नवाब फैजुल्ला खां के समय अब्दुल करीम खां एवं खलीफा करीम खां निहंग ने प्रारंभ की।
प्रश्न: ख्याल
उत्तर: यह लोक नाट्य की वह विधा है जिसमें किसी धार्मिक, सामाजिक, ऐतिहासिक या पौराणिक आख्यान को पद्यबद्ध रचनाओं के रूप में अलग-अलग पात्रों द्वारा गा-गाकर लोक मनोरंजन हेतु लोकनाट्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। ख्याल एक संगीत प्रधान लोकनाट्य हैं। ख्याल लोक नाट्य में नगाड़ा व हारमोनियम, सारंगी, मंजीरा, ढोलक प्रमुख वाद्य प्रयुक्त होते हैं। ख्याल पेशेवर लोक नाट्यों की श्रेणी में आ गये हैं। अली बख्शी ख्याल, अलवर (मुण्डावर ठिकाना) करौली ख्याल, अमरसिंह रो ख्याल आदि। ढ़प्पाली ख्याल, बीकानेरी ख्याल, बीकानेर (मोतीचंद), किशनगढ़ी ख्याल, किशनगढ़ (बंशीधर शर्मा) राजस्थान के प्रमुख ख्याल (विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार) निम्न है।
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