मनोवृत्ति की तीव्रता क्या होती है (Attitude Strength in hindi) , नैतिक मनोवृत्ति (Moral Attitude)
नैतिक मनोवृत्ति (Moral Attitude) मनोवृत्ति की तीव्रता क्या होती है (Attitude Strength in hindi) ?
मनोवृत्ति की सरंचना एवं इसकी गत्यात्मक विशेषताएं
(Structure of Attitude and the Dynamic Properties of Attitude)
मनोवृत्ति किसी वस्तु के संबंध में तीन संघटकों का स्थाई तंत्र है। ये तीन संघटक हैं- उस वस्तु के संबंध में विश्वास (संज्ञानात्मक संघटक), उस वस्तु के संबंध में भाव (भावात्मक संघटक) तथा उस वस्तु के प्रति क्रिया या व्यवहार (व्यवहारात्मक या क्रियात्मक संघटक)। इन तीन संघटकों के विश्लेषण से ही मनोवृत्ति की संरचना व विशेषताओं का परीक्षण किया जा सकता है। जहां तक मनोवृत्ति की विशेषताओं का प्रश्न है, ये मुख्य रूप से तीन हैं और इनकी प्रकृति गत्यात्मक है क्योंकि इन्हीं के आधार पर एक व्यक्ति किसी व्यक्ति वस्तु या स्थिति के प्रति अनुक्रिया करता है या फिर उसके संबंध में निर्णय लेता है। ये तीन विशेषताएं हैं-
ऽ मनोवृत्ति की तीव्रता (Strength)
ऽ मनोवृत्ति के आधार पर प्रतिक्रिया करने की तत्परता (Accessibility)
ऽ मनोवृत्ति की द्वैधवृत्ति/उभयमुखता (Ambivalence)
मनोवृत्ति की तीव्रता (Attitude Strength)
मनोवृत्ति चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक, उसकी अपनी तीव्रता या शक्ति होती है। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति की विभिन्न मनोवृत्तियों के तंत्र में अमुक मनोवृत्ति का स्थान केन्द्र में है, केन्द्र से निकट है अथवा केन्द्र से दूर परिधि में है। इसमें मनोवृत्ति के तीनों संघटक अर्थात् संज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक शामिल होते हैं। सामान्यतः सबल एवं तीव्र मनोवृत्ति इस तंत्र के केन्द्र या उसके निकट होती है जबकि कमजोर मनोवृत्ति परिधि में होती है। इससे यह पता चलता है कि व्यक्ति किसी मनोवृत्ति विशेष को कितना महत्व देता है। यह एक वास्तविकता है कि व्यक्ति किसी मनोवृत्ति को अधिक महत्व देता है और किसी को कम। केन्द्रीयता (Centrality) तथा प्रमुखता (Salience) के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है। जैसे- संभव है कि कोई व्यक्ति अपने स्वयं (Self) के प्रति मनोवृत्ति को केन्द्रीय स्थान देता हो या अपने सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन में किसी अन्य बात की प्रमुखता देता हो।
मनोवृत्ति के आधार पर प्रतिक्रिया करने की तत्परता (Attitude Accessibility)
मनोवृत्ति की एक खास बात यह भी है कि यह कोई प्रतिक्रिया नहीं है बल्कि अनुकूल या प्रतिकूल प्रतिक्रिया करने की मानसिक तत्परता है। दूसरी बात यह भी है कि यद्यपि मनोवृत्ति अर्जित होती है परन्तु इसका निर्माण प्रधानतः अचेतन होता है अर्थात् भूतकाल की घटनाएं मनोवृत्ति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अब जहां तक प्रतिक्रिया करने की तत्परता का प्रश्न है तो यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति के अचेतन मन में स्थित मनोवृत्ति कितनी सहजता से उसके व्यवहार में परिलक्षित हो रही है। दूसरे शब्दों में, व्यक्ति किसी वस्तु या स्थिति के प्रति अपनी मनोवृत्ति को कितनी तेजी से व्यक्त करता है। किसी व्यक्ति के अचेतन मन अथवा याददाश्त में व्याप्त मनोवृत्ति जितनी तेजी से क्रियात्मक रूप लेगी, उस मनोवृत्ति के बारे में उतनी ही आसानी से पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। अर्थात् इस आधार पर व्यक्ति के व्यवहार तथा किसी खास मुद्दे अथवा परिस्थिति के बारे में उसकी अनुक्रिया का आसानी से पूर्वानुमान किया जा सकता है। ऐसी मनोवृत्तिया अपेक्षाकृत अधिक स्थायी होती हैं।
मनोवृत्ति की उभयमुखता या द्वैधवृत्ति (Attilide Ambivalence)
मनोवृत्ति की उभयमुखता का अर्थ है मनोवृत्ति की दिशा का स्पष्ट न होना। आमतौर पर मनोवृत्ति या तो सकारात्मक दिशा में होती है या नकारात्मक दिशा में। परन्तु कई बार व्यक्ति किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थिति के प्रति सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों प्रकार की मनोवृत्ति रखता है। व्यावहारिक जीवन में प्रायः ऐसा देखने को मिलता है कि एक व्यक्ति किसी वस्तु, स्थान, स्थिति या घटना के बारे में निश्चित रूप से कुछ मूल्यांकन नहीं कर पाता बल्कि उसकी प्रतिक्रिया मिश्रित होती है अर्थात् हो सकता है एक समय वह अनुकूल रूप से प्रतिक्रिया करे तथा दूसरे समय में उसकी प्रतिक्रिया उसी वस्तु, व्यक्ति या घटना के बारे में नकारात्मक हो।
मनोवृत्ति की इस द्वैधवृत्ति को मूल्यों के संघर्ष के संदर्भ में भी समझा जा सकता है। व्यवहार में ऐसा भी देखने को मिलता है कि एक व्यक्ति माता-पिता की आज्ञानुसार पारंपरिक विवाह की स्वीकृति तो देता है। साथ में कई बार व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं अपनी इच्छा का ख्याल रखते हुए पारंपरिक विवाह की आलोचना भी करता है।
नैतिक मनोवृत्ति (Moral Attitude)
नैतिक प्रवृत्तियां प्रत्येक व्यक्ति के व्यवहार में परिलक्षित होती हैं। यहां प्रवृत्तियों के नैतिक होने का अर्थ है किसी वस्तु या व्यक्ति के बारे में नैतिक निर्णय देना अर्थात मुल्यांकन करना कि वह उचित है या अनुचित। वर्तमान विश्व में कई राष्ट्र हैं और इन राष्ट्रों के बारे में अच्छा या बुरा कहने मात्र से भी किसी व्यक्ति के नैतिक मनोवृत्ति का पता चलता है यानी उसके इस प्रकार के वक्तव्य से विश्व के प्रति उसकी मनोवृत्ति तथा मूल्यों में उसकी आस्था का पता चलता है। पुनः मूल्यों का संस्कृति से प्रत्यक्ष संबंध है। प्रत्येक संस्कृति का अपना-अपना सांस्कृतिक प्रतिरूप होता है। उसके अपने-अपने मूल्य, मानदंड तथा परंपराएं होती हैं। अतः किसी संस्कृति के सदस्यों की मनोवृत्ति के निर्माण पर उसके सांस्कृतिक प्रतिरूपों का भी प्रभाव पड़ता है। इसी कारण जहां एक संस्कृति के लोगों की मनोवृत्ति में अधिक समानता पाई जाती है, वहां भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के लोगों की मनोवृत्ति में अधिक भिन्नता।
नैतिक मूल्य सभी प्राकृतिक मूल्यों में सर्वश्रेष्ठ है- अच्छाई, पवित्रता, सत्यवादिता, विनम्रता आदि नैतिक मूल्यों के अंतर्गत आते हैं। ये नैतिक मूल्य, बुद्धिमत्ता, मेधाविता, खुशी, शक्ति-संपन्नता, प्राकृतिक सुन्दरता अथवा कला या फिर किसी राज्य में व्याप्त शक्ति एवं स्थायित्व आदि मूल्यों से कहीं अधिक उच्चतर स्थान रखते हैं। वैसे तो सांस्कृतिक मूल्य अनेक हैं दया, करुणा, दानशीलता, निःस्वार्थ प्रेम जैसे नैतिक मूल्यों की बात ही अलग है। ये अन्य नैतिक मूल्यों की अपेक्षा चिरस्थायी हैं तथा ज्यादा सार्थक भी। स्वयं ग्रीक के महान दार्शनिकों प्लूटो तथा अरस्तु द्वारा भी इन्हीं मूल्यों का गुणगान किया गया है। प्लूटो ने तो कहा भी है कि अन्याय करने से ज्यादा उचित है कि कष्ट ही सहा जाए। नैतिक मूल्यों की समझ तथा उनकी महत्ता हमारी भारतीय संस्कृति का भी सारतत्व रहा है।
राजनीतिक मनोवृत्ति (Political Attitude)
जैसा कि पिछली चर्चाओं में भी कहा गया है- विशिष्ट वस्तुओं के प्रति विशेष रूपों से व्यवहार करने की प्रवृत्ति (झुकाव) को मनोवृत्ति कहते हैं। जहां तक राजनीतिक मनोवृत्ति का प्रश्न है, यहां मनोवृत्ति वस्तु (Attitude-object) राजनीति से जुड़े होते हैं, जैसे कि राजनीतिक उम्मीदवार, राजनीतिक मुद्दे, राजनीतिक दल अथवा राजनीतिक संस्थाएं आदि।
राजनीतिक मनोवृत्ति और व्यक्तित्व के शीलगुण
(Political Attitude & Personality Traits)
विद्वानों के बीच इस तथ्य पर सहमति है कि व्यक्तित्व के कुछ ऐसे शीलगुण (ज्तंपजे) हैं जिनका राजनीतिक मनोवृत्ति पर स्पष्ट रूप से प्रभाव पड़ता है। ऐसे पांच शीलगुणों (ज्तंपजे) की पहचान की गई है जिनकी चर्चा नीचे की जा रही है-
बहिर्मुखता (Extraversion)ः इसका अर्थ है ऊर्जावान, कर्मठ तथा क्रियाशील होना। जिन व्यक्तियों में यह शीलगुण पाया जाता है वे समाज तथा देश-दुनिया के प्रति अधिक सजग तथा क्रियाशील होते हैं। बहिर्मुखी व्यक्ति वह है जिसमें सामाजिकता, आधिपत्य, सहकारिता, प्रतियोगिता आदि शीलगण पाए जाते हैं। इनमें किसी विषय पर निर्णय लेने तथा उसे कार्यान्वित करने की क्षमता भी अधिक होती है। ये स्वभावतः व्यवहार कुशल, सामाजिक एवं मिलनसार होते हैं।
सत्योगशीलता (Agreeableness)ः यह व्यक्तित्व का प्रमुख, शीलगुण है जो सामाजिक तथा साम्प्रदायिक मनोवृत्ति से बिल्कुल भिन्न होता है। इस शीलगुण से युक्त व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में भी ईमानदार बना रहता है। ऐसे व्यक्तियों में परोपकारिता, विनम्रता जैसी भावना होती है तथा ये भरोसेमंद होते हैं। कई बार इनके व्यवहार से मानसिक अपरिपक्वता भी झलकती है अर्थात् ये संवेदनशील भी होते हैं।
कर्तव्यनिष्ठता (Conscientiousness)ः यह भी व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण शीलगुण है। इस शीलगुण से युक्त व्यक्ति लक्ष्य प्रधान होते हैं। इन्हें स्वयं पर नियंत्रण होता है। अतः ये नियंत्रित व्यवहार करते हैं। इनका हर कार्य सुविचारित होता है। ऐसे शीलगुण वाले व्यक्ति नियमों व मान्यताओं के अनुपालन में विश्वास रखते हैं। ये अपनी प्राथमिकताओं को समझते हैं और उसी के अनुसार एक व्यवस्थित योजना पर कार्य करते हैं।
संवेगात्मक स्थिरता (Emotional Stability)ः ऐसे शीलगुण वाले व्यक्ति संवेगात्मक रूप में परिपक्व होते हैं। जिस व्यक्ति का व्यक्तित्व विकास सामान्य एवं संतुलित होता है, उसमें संवेगात्मक स्थिरता रहती है। ये परिस्थिति को समझकर उसके अनुकूल प्रतिक्रिया करते हैं। इनमें नकारात्मक प्रवृत्ति अर्थात् चिन्ता, उदासी, क्रोध या तनाव आदि अनावश्यक रूप से नहीं पाया जाता जैसा कि संवेगात्मक रूप से अस्थिर व्यक्तित्व में देखने को मिलता है।
खुलापन तथा अनुभव के प्रति उन्मुखता (Openness to Experience)ः ऐसे व्यक्ति महत्वाकांक्षी होते हैं। ये संकीर्ण सोच वाले व्यक्तियों से भिन्न होते हैं। खुले दिमाग तथा अनुभवों के प्रति उत्सुक शीलगुण वाले व्यक्ति में स्वाभाविकता होती है। ये गहन विचारशील तथा उच्च आकांक्षा स्तर वाले व्यक्ति होते हैं। इनका मानसिक क्षितिज विकसित किन्तु थोड़ा जटिल भी हो सकता है।
उपर्युक्त शीलगुणों में बहिर्मुखता को छोड़कर बाकी सभी शीलगुण हमारे अर्थ संबंधी आदर्शों पर काफी कुछ प्रभाव डाल सकते हैं। हमारा सामाजिक आदर्श भी इनसे प्रभावित हो सकता है। जहां तक अर्थ संबंधी आदर्शों का प्रश्न है तो कोई मुक्त बाजार व्यवस्था को पसंद कर सकता है या फिर कुछ लोग हस्तक्षेप – सिद्धान्त की वकालत कर सकते हैं। इसी प्रकार समाज के संदर्भ में कोई परम्पराओं को ज्यादा तरजीह देने वाला होता है तो कोई व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ज्यादा महत्व देता है या फिर सामाजिक समानता व असमानता के बारे में अलग-अलग विचार प्रकट कर सकता है। बहिर्मुखता ही वह शीलगुण है जो हमारे आदर्शों को नहीं बल्कि राजनीति में हमारी भागीदारी को प्रभावित कर सकता है।
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