समुद्री संसाधन क्या है ? भारत के समुद्री जीवीय संसाधन एवं उनकी संभाव्यता सामुद्रिक संसाधन Marine Biotic Resources in hindi
what are the Marine Biotic Resources in hindi समुद्री संसाधन क्या है ? भारत के समुद्री जीवीय संसाधन एवं उनकी संभाव्यता सामुद्रिक संसाधन ?
जीवीय एवं समुद्री संसाधन
(Biotic and- Marine Resources)
जिन संसाधनों में जीव होता है उन्हें जीवीय संसाधन कहते है। इस दृष्टि से पशु, पक्षी, पौधे जल में रहने वाले जीव तथा स्वंय मनुष्य जीवीय संसाधन हैं, परंतु इस अध्याय में हम अपना ध्यान केवल समुद्र में पाए जाने वाले संसाधनों पर ही केन्द्रित करेंगे।
समुद्री जीवीय संसाधन
(Marine Biotic Resources)
समुद्र हमारी पृथ्वी के जीवीय पर्यावरण का सबसे बड़ा घटक है। समुद्री जल में अनेक प्रकार के पौधे एवं जीव पनपते हैं। अनुमान है कि समुद्री जल में 1,60,000 किस्म की प्रजातियां रहती हैं। पादप प्लवक (Phytoplankton), प्राणी प्लवक (Zooplankton), नितलस्य प्राणी (Benthic animals), जल कृषि (Aquaculture) तथा मत्स्य (Fis) समुद्री जीवीय संसाधनों के मुख्य उदाहरण हैं। प्लवक सूक्ष्म प्रकार के जीव व वनस्पति होते हैं, जो समुद्री जल की ऊपरी परत में रहते हैं। ये हरिंग, मेकरेल, ह्वेल आदि मछलियों का मुख्य आहार है। ये अपनी वृद्धि के लिए सूर्य की रोशनी पर निर्भर करते हैं और अधिक गहराई पर नहीं पाए जाते। खुले महासागरीय भाग में ये अधिकतम 100 मीटर की गहराई तक पाए जाते हैं परंतु आंतरिक सागरों में 30 से 40 मीटर की गहराई तक ही मिलते हैं। कुछ स्थानों पर तो ये कुछ सेन्टीमीटर की गहराई तक ही पाए जाते हैं। भारत के पूर्वी तट की अपेक्षा पश्चिमी तट पर पादप प्लवक अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। प्राणी प्लवकों का वितरण भी पादप प्लवकों के वितरण जैसा ही होता है। परंतु ये पादप प्लवकों की भांति केवल उथले सागर में ही नहीं रहते बल्कि 1000 मीटर की गहराई तक पाए जाते हैं। ये मानव के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये प्राथमिक उत्पादकों (पौधों) तथा आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण जीवों के बीच मुख्य कड़ी का कार्य करते हैं। नितलस्थ प्राणी समुद्र की अधिकतम गहराई (10,000 मीटर) पर मिलते हैं। अधिकांश जल कृषि ताजे जल के प्राणियों पर निर्भर करती है परंतु तटीय इलाकों में समुद्री कृषि भी की जाती है। इसके अतंर्गत फिनाफिश, शैलफिश, तथा समुद्री शैवाल प्राप्त किए जाते है। परंतु सबसे महत्वपूर्ण मत्स्य है।
मात्स्यिकी अथवा मत्स्यन (Fiseries)
जल से मछली पकड़ने के व्यवसाय को मत्स्यन कहते हैं। मानव कृषि सीखने से पहले आखेट तथा मछली पकड़ने का धन्धा करता था। अतः मत्स्यन मनुष्य के प्राचीनतम धन्धों में से एक है। भारत जैसे विकासशील देश में जनसंख्या बड़ी तीव्र गति से बढ़ रही है और कृषि संसाधन हमारी बढ़ती हुई मांग को पूरा करने में असमर्थ हैं। ऐसी परिस्थिति में मत्स्य उद्योग का महत्व बढ़ता जा रहा है। मछली के प्रयोग से हमें पौष्टिक आहार मिलता है। इसमें प्रोटीन अधिक होता है और विटामिन A , B व D भी होते हैं। अधिकांश भारतीयों के भोजन में प्रोटीन की कमी होती है जो मछली के आहार से पूरी हो सकती है। मात्स्यिकी, मत्स्यपालन तथा कई संबद्ध कार्य 14 मिलियन व्यक्तियों को आजीविका प्रदान करते हैं तथा निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सहायक बनते हैं। इसने वर्ष 2008-09 में सकल घरेलू उत्पाद के लगभग एक प्रतिशत तथा कृषि क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद के 5.3% का योगदान दिया।
यूं तो विश्व में लगभग 30,000 प्रकार की मछलियां पाई जाती हैं परन्तु भारत में लगभग 18,000 प्रकार की मछलियाँ ही पकड़ी जाती हैं। इनमें से भी कुछ ही जाति की मछलियां पर्याप्त मात्रा में पकड़ी जाती हैं। अन्य देशों की भांति भारत में भी मछली प्राप्ति के क्षेत्रों को दो भागों में बांटा जाता हैः
1. समुद्री मत्स्य क्षेत्र (Sea or Marine Fiseries)
2. ताजे जल के मत्स्य क्षेत्र (Fres Water Fiseries)
1. समुद्री मत्स्य क्षेत्र (Sea or Marine Fiseries): समय में लगभग 200 मीटर की गहराई तक महाद्वीपीय मग्न तर (Continental Sefl) पर मछलियों के विकास तथा प्रजन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ होती हैं और वहां से बड़ी में मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। समुद्री मछलियों को भी दो भागों में बांटा गया है- (क) उथले समुद्र की मछलियां, तथा, (ख) गहरे समुद्र की मछलिया।
2. ताजे जल के मत्स्य क्षेत्र (Fres Water Fiseries) : नदियों, नहरों, तालाबों, नालों व पोखरों आदि में ताजा जल होता है और इनसे पकड़ी जाने वाली मछली को ताजे जल की मछली कहते हैं। यह देश के आन्तरिक भागों में पाई जाती हैं, इसलिए इसे अन्तर्देशीय मछली (Inland Fis) भी कहते हैं। इस जल में नमक अथवा लवण नहीं होता इसलिए इसे ‘अलवण जलीय‘ मछली भी कहते हैं।
भारत में मत्स्य उत्पादन [Fis Production in India]
भारत विश्व की लगभग 4.5% मछली पकड़ता है। सन् 1950-51 में केवल 0.7 मिलियन टन मछली पकड़ी गई थी जो बढ़कर 2008-09 में 7.6 मिलियन टन हो गई। अर्थात 55 वर्षों की अवधि में भारत के मत्स्य उत्पादन में लगभग दस गुना वृद्धि हुई।
तालिका 2.28 से स्पष्ट होता है कि, पहले अन्तर्देशीय मछली की अपेक्षा समुद्री मछली अधिक होती थी। परंतु अन्तर्देशीय मछली के उत्पादन में अधिक तेजी से उन्नति हुई। सन् 2000-01 में दोनों का महत्व बराबर हो गया। उसके बाद अन्तर्देशीय मछली की मात्रा अधिक हो गई और यह स्थिति 2002-03 तथा 2003-04 में बनी रही। परन्तु उसके पश्चात् फिर समुद्री मछली का महत्व बढ़ गया और सन् 2005-06 में 57ः से अधिक समुद्री मछली थी। 2006-07 में स्थिति फिर उलट हो गई और यह प्रवृत्ति 2008-09 तक जारी थी।
भारत में कुल प्रयोग होने वाली मछली का 60% खाद्य के रूप में, 20% धूप में सुखाई मछली, 10% नमक लगाई मछली तथा शेष 10% मछली का खाद के लिए प्रयोग होता है।
समुद्री मत्स्योत्पादन [Sea Fis Production]
भारत की आधी से अधिक मछली समद्र से प्राप्त होती है। भारत का समुद्र-तट छः हजार किलोमीटर से भी अधिक लम्बा है और उसका महाद्वीपीय मग्न तट 3,11,680 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर फैला हुआ है। भारत के पश्चिमी तट पर महाद्वीपीय मग्न तट इसके पूर्वी तट की अपेक्षा अधिक चौड़ा तथा विस्तृत है। यहां यह 1,68350 वर्ग किमी. क्षेत्रफल पर फैला हुआ है। इसकी सबसे अधिक चौड़ाई 20° उत्तरी अक्षांश पर दादरा और नगर हवेली के निकट है जहां यह 193 किमी. चौडी है। स्पष्ट है कि पश्चिमी तट पर पूर्वी तट की अपेक्षा अधिक मछली पकड़ी जाती है। अनुमान है कि अरब सागरीय तट पर भारत की 75% समुद्री मछली पकड़ी जाती है।
भारत में गहरे जल का मत्स्योत्पादन यहां क्षमता से कहीं कम है। यहां की वर्तमान क्षमता लगभग 1.4 करोड़ टन है जबकि 2008-09 में समुद्री मछली का उत्पादन केवल 29.0 लाख टन था। इस प्रकार हम अपनी क्षमता का केवल 20% भाग ही प्राप्त करते हैं। 60ः समुद्री मछलियां देशी नौकाओं द्वारा पकड़ी जाती हैं, जिन्हें मछुआरे स्वयं चलाते हैं। शेष 40% मछलियां स्वचालक नौकाओं द्वारा पकड़ी जाती हैं। भारत का केवल 11% सम्भाव्य मछली क्षेत्र 200 मीटर से अधिक गहरा है। फिर भी हम इसका लाभ नहीं उठा पाते। इसके निम्नलिखित कारण हैः
i. भारत उष्णकटिबन्धीय गर्म जलवायु वाला देश है जहां गर्मी अधिक पड़ती है। अतः यहां मछलियों को अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता।
ii. गर्म जलवायु के कारण शीत भण्डारण की आवश्यकता पड़ती है। इससे मछली महंगी हो जाती है और बाजार में इसकी मांग घट जाती है।
iii. भारत का तट कटा-फटा तथा खाड़ियों एवं द्वीपों से युक्त नहीं है। इसलिए यहां मछली पकड़ने के उत्तम क्षेत्रों का अभाव है।
iv. भारत में मछली पकड़ने का धन्धा सारा साल नहीं चलता। मानसून के दिनों में तेज हवाएं चलती हैं जिससे मछली पकड़ने में बाधा पड़ती है। कई बार मछुआरे समुद्री तूफानों में फंस जाते हैं जिसमें उनकी जान को भी खतरा हो जाता है।
अण् भारत की अधिकांश जनसंख्या शाकाहारी है जिससे मांस तथा मछली की खपत कम होती है।
vi. अधिकांश भारतीय मछुआरे अभी तक प्राचीन अवैज्ञानिक विधियों से मछली पकड़ते हैं। वे अपनी छोटी छोटी नौका में बैठकर साधारण जाल से अल्प मात्रा में मछली पकड़ते हैं। ये मछुआरे लगभग 18 मीटर की गहराई तक ही मछली पकड़ते हैं और तट से 10 किलोमीटर से अधिक दूर नहीं जाते। अधिकांश मछुआरे दिन में ही समुद्र में मछलियाँ पकड़ते हैं और रात को तट पर वापस आ जाते है।
केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारें मत्स्योत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रयत्न कर रही हैं ताकि समुद्र के विशाल सम्भाव्य संसाधन का दोहन किया जा सके।
सरकार गरीब मछुआरों को उनकी परंपरागत नौकाओं में मोटर लगाकर यांत्रिक नौकाओं में बदलने के लिए सब्सिडी देती है। इन नौकाओं में मछुआरे अधिक बार तथा अधिक समुद्री क्षेत्र में जा कर अधिक मात्रा में मछली पकड़ सकते हैं। इससे मछली का उत्पादन बढ़ेगा तथा मछुआरों की आय में वृद्धि होगी। अब तक लगभग 44860 परपरागत नौकाओ को मोटर नौकाओं में परिवर्तित किया जा चुका है। 20 मीटर से कम लम्बी नौकाओं वाले मछुआरों को उचित दाम पर डीजल उपलब्ध कराया जाता है।
मछली पकड़ने वाले जहाजों का सुरक्षित अवतरण करने तथा लगर डालने की आधारभूत सुविधाए प्रदान करने की योजना बनाई गई है। इस योजना के आरंभ से लेकर अब तक मछली पकड़ने वाली नौकाओं तथा जहाजों के लिए छरू प्रमुख बदरगाहों, कोच्चि, चेन्नई, विशाखापट्टनम, रायचौक, पाराद्वीप तथा सासून गोदी में 40 छोटे बदरगाहों और 151 मछली अवतरण केन्द्रों का निर्माण किया गया है। 19 छोटे मछली बंदरगाह तथा 38 मछली घाट निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं। छरू प्रमुख मात्स्यिको बदरगाह लगभग 2,80,000 मात्स्यिकी जलयानों के लिए आधार का कार्य करते हैं। इनमें 1,86,00 गैर-मोटरयुक्त परंपरागत जलयान, 45,000 मोटरयुक्त जलयान तथा 54,000 यंत्रीकृत नावें सम्मिलित हैं। 180 गहरे समुद्र मात्स्यिकी पोतों में से इस समय केवल 60 ही क्रियाशील है।
सन् 1977 में भारत ने अपने 200 नॉटिकल मील के समुद्री क्षेत्र को (Exclusive Economic oZne eZ~E) घोषित कर दिया और 20 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र के समुद्री संसाधनों का दोहन करने का अधिकार प्राप्त किया।
मछुआरों के कल्याण के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्यक्रम शुरू किए गए हैंः
i. कार्यरत मछुआरों के लिए सामूहिक दुर्घटना बीमा योजना
ii. मछुआरों के लिए आदर्श ग्रामों का विकास
iii. बचत व राहत योजना
ताजे जल की मछलियाँ [Fres Water Fiseries]
नदियों, नहरों, नालों, तालाबों तथा अन्य जलाशयों से पकड़ी जाने वाली मछलियों को ताजे जल की मछलियाँ कहते हैं। नदियों के डेल्टों, नदमुखों (म्ेजनंतपमे), लैगूनों तथा तटीय झीलों में भी ताजे जल की मछलियाँ मिलती हैं। ताजे जल की मछलियों का उत्पादन सन् 1950-51 में 2 लाख टन से बढ़कर सन् 2008-09 में 47 लाख टन हो गया। अर्थात 58 वर्षों की अवधि में ताजे जल की मछलियों के उत्पादन में लगभग 23.5 गुना वृद्धि हो गई। भारत में ताजे जल की मछली की मांग अधिक रहती है।
भारत में गंगा, ब्रह्मपुत्र व सिन्धु तथा इनकी सहायक नदिया में बड़ी मात्रा में मछली पकड़ी जाती है। दक्षिणी भारत की नदियों में भी मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। भारत में मत्स्योत्पादन की मुख्य नदियों तथा उनकी सहायक नदियों की कुल लम्बाई 27359 किमी. है और उनसे निकाली गई सिंचाई नहरों की लम्बाई 1,12,654 किमी. है। इन सिंचाई नहरों से भी मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। 29 लाख हेक्टेयर पर बाँधों के जलाशय व छोटी झीलें तथा 26 लाख हेक्टेयर पर कम खारे जल की तटीय झीलें व लैगून हैं। तालाबों तथा पोखरों का विस्तार 16 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर है, जिसमें से 6 लाख हेक्टेयर मत्स्योत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है।
वितरण (Distribution)ः यद्यपि देश के सभी भागों में थोड़ी बहुत मछली पकड़ी जाती है। तथापि केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा गजरात मिलकर भारत की 97% समुद्री मछली तथा 77% ताजे जल की मछली पकड़ते है।
केरलः केरल भारत की 22% मछली पकड़कर प्रथम स्थान पर है। यहाँ समुद्र तट से समानान्तर कई लम्बे-लम्बे लैगून स्थित हैं और यहां का 590 किमी. लम्बा तट काफी कटा-फटा है। वास्तव में केरल के तट पर भारत के सभी तटों से अधिक मछली पकड़ी जाती है। केरल के लगभग 1.35 लाख मछुआरे 3,038 स्वचालित नौकाओं तथा 26,271 साधारण नौकाओं का प्रयोग करके मछली पकड़ते हैं। स्वचालित नौका द्वारा साधारण नौका की अपेक्षा लगभग तीन गुना अधिक मछली पकड़ी जाती है। यहां पकड़ी जाने वाली मछलियों में पोमफ्रेट, मैकेरल, सीयर, शार्क बटरफिश, कैटफिश आदि हैं। कोच्चि, तिरुवनंतपुरम, कोझीकोड, अजीकेडि, कानानोर, विझिजनम, बालियापट्टनम आदि प्रमुख मत्स्योत्पादक केन्द्र हैं। मछलियों को शीत भण्डारों में रखने, डिब्बों में बन्द करने तथा उनसे विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बनाने की भारत की 85% सुविधाएं केरल में उपलब्ध हैं। इनमें 117 जमाने की इकाइयों (Freeezing units),56 बर्फ की इकाइयां (Ice-mkaing units), 141 शीत भण्डार, 42 डिब्बा बन्द करने की इकाइयां तथा 3 मत्स्य आहार (Fis meals) की इकाइयां है। कोझीकोड़, कोच्चि, किलोन तथा तिरुवनंतपुरम शीत भण्डार के मुख्य केन्द्र हैं। यहाँ पर पकड़ी जाने वाली कुल मछली का 60% राज्य में प्रयोग किया जाता है, 22% अन्य राज्यों को भेज दिया जाता है और शेष 18% मछली विदेशों को निर्यात कर दी जाती है।
तमिलनाडुः यह राज्य भारत की 21% मछली पैदा करके द्वितीय स्थान पर है। यहाँ वार्षिक उत्पादन आठ लाख टन से अधिक है। तमिलनाडु का 1,000 किमी. लम्बा तट अधिक कटा-फटा नहीं है जिस कारण साधारण नौकाओं से मछली पकड़ना कठिन कार्य है। विशेषज्ञों के सुझाव पर स्वचालित नौकाओं का प्रयोग अधिक होने लगा है। इस समय तमिलनाडु में 2,757 स्वचालित नौकाएं तथा 43,343 साधारण नैकाएं मछली पकड़ने के लिए प्रयोग की जाती हैं। यहां शार्क, मुलेट,ज्यू, रिबन, कैटफिश आदि मछलियां अधिक पकड़ी जाती हैं। मछली पकड़ने के मुख्य केन्द्र चेन्नई, तूतीकोरिन, एन्नोर, कुड्डालोर, मंडपम, नागपट्टनम आदि हैं। चेन्नई सबसे बड़ा केन्द्र है और तूतीकोरिन में मछली पकड़ने के लिए विशेष प्रकार के पत्तन का निर्माण किया गया है। तमिलनाडु के तट के साथ लगभग 300 मछुआरों के गांव हैं। इन ग्रामवासियों की आजीविका का आधार मत्स्योत्पादन है। राज्य के मछुआरों की कुल संख्या लगभग 3 लाख है। यहां पर मछलियों के क्रय-विक्रय का कार्य मुख्यतरू तीन सहकारी संस्थाएं करती हैं। इससे मछुआरों को उनकी मछली का उचित दाम मिल जाता है। यहां पर मछली को सुखाने, उससे तेल निकालने तथा खाद बनाने के व्यवसाय भी प्रचलित हैं।
महाराष्ट्रः भारत की लगभग 12% मछली पकड़कर महाराष्ट्र तृतीय स्थान पर है। यहां पर मुख्यतः समुद्री मछली ही पकड़ी जाती है और ताजे जल की मछली का महत्व अपेक्षाकृत कम है। इसका कारण यह है कि महाराष्ट्र के 750 किमी. लम्बे तट का अधिकांश भाग कटा-फटा है जहां 250 गांवों में मछली पकड़ने का धन्धा मुख्य है। यहां लगभग 2.6 लाख व्यक्ति मत्स्योत्पादन में लगे हुए हैं जो 4,718 स्वचालित नौकाओं तथा 5,662 साधारण नौकाओं का प्रयोग करते हैं। महाराष्ट्र के तट पर समुद्र वर्ष में लगभग 7 मास शांत रहता है, जिससे समुद्री मछली पकड़ने में सुविधा होती है। मछलियों को सुरक्षित रखने के लिए अनेक कम्पनियों ने शीत भण्डारों की व्यवस्था की है। यहां पर समुद्र से पकड़ी जाने वाली प्रमुख मछलियां श्वेत पोमफ्रेट, काली पोमफ्रेट, ज्यूफिश, मुम्बई डक, भारतीय सालमन, टूना, ग्रे मुल्लेट, मैकरेल, ईल, शार्क आदि हैं। मुख्य केन्द्र मुम्बई, रत्नागिरि, अलीबाग, कोलाबा व बसीन है।
पश्चिम बंगालः यहां भारत की लगभग 11% मछली पकड़ी जाती है और यह भारत का चौथा बड़ा उत्पादक राज्य है। यहां पर समुद्री मछली की अपेक्षा ताजे जल की मछली का महत्व अधिक है। गंगा के मुहाने पर स्थित चौबीस परगना जिला महत्वपूर्ण उत्पादक है। यहां लगभग एक लाख मछुआरे रहते हैं। हिलसा, रोहू, कतला तथा प्रॉन मछलियां बड़ी मात्रा में पकड़ी जाती हैं। यहां की स्थानीय मांग लगभग 6 लाख टन है और यह राज्य अपनी मांग का केवल 20% भाग ही पूरा कर पाता है। शेष मछली अन्य राज्यों से मंगवाई जाती है। कोनताई तट पर मछली का तेल निकालने तथा मछली से सम्बन्धित अन्य गौण धन्धे शुरू किए गए हैं।
आंध्र प्रदेशः पूर्वी तट पर आन्ध्र प्रदेश समुद्री मछली पकड़ने वाला महत्वपूर्ण राज्य है। यहां देश की लगभग 10ः मछली पकड़ी जाती है। विशाखापट्टनम, मसूलीपट्टनम और काकीनाड़ा मत्स्योत्पादन के प्रमुख केन्द्र हैं। आन्ध्र प्रदेश के 960 किमी. लम्बे तट के साथ-साथ मछुआरों के अनेक गांव हैं। यहां 83,903 मछुआरे, 580 स्वचालित नौकाएं तथा 36,031 साधारण नौकाएं मछली पकड़ने का कार्य कर रही हैं। ऑयल, सॉर्डिन, मैकरेल, सिल्वर बैलीस, रिबन फिश, कैटफिश, सोल्स आदि मछलियाँ अधिक मात्रा में पकड़ी जाती हैं। आंन्ध्र प्रदेश में 557 सहकारी संस्थाएं हैं, जो यहां की अधिकांश मछली पकडती हैं। प्रशीत व्यवस्था से युक्त रेलगाड़ियां विजयवाड़ा से कोलकाता तक बड़ी मात्रा में मछली ले जाती हैं। कोलकाता सहित पश्चिम बंगाल के अन्य भागों में मछली की मांग रहती है।
गुजरातः गुजरात भारत की 9% मछली पकड़ता है। इस राज्य की तट रेखा लगभग 1,000 किमी. लम्बी है और लगभग 65,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में मछली पकड़ने का धन्धा किया जाता है। यहां 52 मत्स्य बन्दगाह हैं, जहां पर समुद्र से मछली पकड़ी जाती है। कांडला, पोरबन्दर, द्वारिका, नवाबन्दर, जाफराबाद तथा अम्बर गांव प्रमुख बन्दरगाह हैं। इसके अतिरिक्त कई छोटे-छोटे कस्बों तथा गांवों में भी मछलियां पकड़ी जाती हैं। यहां पर लगभग 1.5 लाख मछुआरे हैं। यहां पकडी जाने वाली मछलियों में बम्बई डक, पोमफ्रेट, ज्यू-फिश, भारतीय सालमन, टुना, मैकरेल, ईल तथा शार्क प्रमुख हैं। इस राज्य में स्थानीय खपत कम है. अतः यहां की 97% मछली मम्बई, कोलकाता तथा दिल्ली को भेज दी जाती है। कुछ मछली श्रीलंका, म्यांमार, मॉरीशस व सिंगापुर आदि को निर्यात कर दी जाती है। यह काम यहां पर स्थित 69 सहकारी समितियां करती हैं। यहां पर दस शीत भण्डार तथा 3 शार्क लिवर तेल निकालने के कारखाने हैं।
कर्नाटकः यह राज्य भारत की 9% मछली पकड़ता है। यहां पर समुद्री मछली तथा ताजे जल की मछली की मात्रा लगभग एक समान है। मंगलौर, कारवार, अन्कोला, कुमता, होनावार, भतकल, मजाली, बिन्गी, चेन्डिया, गँगूली, मालगे, उदयावार तथा बोकापट्टनम प्रमुख केन्द्र हैं। कारवार में मछली पकड़ने के लिए विशेष बन्दरगाह का निर्माण किया गया है। यहां पर लगभग 20,000 मछुआरे इस कार्य को कर रहे हैं। कर्नाटक की प्रमुख मछलियों में सारडिन, मैकरेल, सीयर, शार्क तथा प्रॉन हैं। ताजे जल की अधिकांश मछली नेत्रवती, शरावती तथा काली नदियों में पकड़ी जाती हैं। इस राज्य में 2,700 बड़े तालाब, 30,000 छोटे तालाब, 17 नदी बाँधों के जलाशय तथा 6,885 किमी. लम्बी नदियां हैं।
उड़ीसाः इस राज्य में भी समुद्री मछली तथा ताजे जल की मछली का लगभग समान उत्पादन है। उड़ीसा का समुद्री तट लगभग 720 किमी. लम्बा है। सम्भलपुर तथा कटक प्रमुख केन्द्र हैं। उड़ीसा के तट पर स्थित चिल्का झील बहत प्रसिद्ध है। इस झील में से पकड़ी जाने वाली मछली स्वादिष्ट होती है, जिसकी बड़ी मांग रहती है। उड़ीसा के भीतरी भागों में प्रमुख जलाशयों में अनसूपा झील, कौंदा तथा कौशल्या, गंगा के नाम प्रमुख हैं।
अन्य उत्पादकः अन्य उत्पादकों में बिहार (3%), असम (1.68%), उत्तर प्रदेश (1.11%), पुदुचेरी, मध्य प्रदेश, गोवा, त्रिपुरा आदि प्रसिद्ध हैं।
व्यापारः भोजन के अतिरिक्त मछलियों से कई प्रकार की वस्तुएं प्राप्त की जाती हैं, जिनमें मछली का तेल, खाद, जबड़े व शार्क के पिन उल्लेखनीय हैं। भारत के आकार के अनुपात में यहां पर मछली का उत्पादन कम होता है और निर्यात के लिए अधिक मछली उपलब्ध नहीं होती। भारत अपने कुल उत्पादन का लगभग 8% निर्यात करता है। हमारी मछली तथा मछली के विभिन्न उत्पादों के मुख्य ग्राहक श्रीलंका, म्यांमार, मॉरीशस तथा सिंगापुर हैं। अकेला श्रीलंका ही हमारी 80% मछली खरीदता है। 2008-09 में भारत ने 7066 करोड़ रुपए की मछली तथा मछली के विभिनन उत्पादों का निर्यात किया।
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