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पादशाहनामा के रचयिता कौन है , पादशाहनामा के लेखक कौन है किसने लिखी padshahnama was written by in hindi

padshahnama was written by in hindi पादशाहनामा के रचयिता कौन है , पादशाहनामा के लेखक कौन है किसने लिखी ?

उत्तर :  पादशाहनामा: मुहम्मद अमीन कजवीनी शाहजहाँ के समय का ‘प्रथम सरकारी इतिहाकार‘ था, उसने शाहजहाँ के शासन के प्रथम वर्षों का इतिहास पादशाहनामा में लिखा है। बाद में शाहजहाँ ने अब्दुल हमीद लाहौरी को सरकारी इतिहासकार बनाया। उसने पादशाहनामा लिखा, जिसे मुहम्मद वारिस ने अन्तिम रूप से पूरा किया।

प्रश्न: किन्हीं दो पर टिप्पणी लिखिए।
(I) हुमायूंनामा, (II) अकबरनामा, (III) तुजुक-ए-जहांगीरी, (IV) मुन्तखब-उत-तवारीख, (V) पादशाहनामा, (VI) आलमगीरनामा
उत्तर:
1. हुमायूँनामा: हुमायूँनामा की रचना बाबर की पुत्री व हिन्दाल की सगी बहन गुलबदन बेगम ने बादशाह अकबर के आदेश पर फारसी भाषा में की। इसकी एकमात्र पाण्डुलिपि लंदन के ब्रिटेन म्यूजियम में संग्रहित है। यह मुगल हरम के बारे में जानने का प्रामाणिक स्त्रोत है।
2. अकबरनामा: अबुल फजल द्वारा 7 वर्षों में लिखी गयी (1591 – 98 ई.) यह पुस्तक तीन जिल्दों में बटी है। इसको आखिरी जिल्द ‘आइने अकबरी‘ है। ‘आइने-अकबरी‘ पुनः 5 भागों में बटी है। यह पुस्तक अकबर कालीन शासन प्रणाली तथा मुगल आर्थिक जीवन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इसके अन्तिम भाग में अबुल फजल की जाव वर्णित है।
3. मुन्तखब-उत-तवारीख: बदायूँनी द्वारा अकबर के शासन काल में 1590 ई. में प्रारम्भ। इस पुस्तक को ‘हिन्दुस्तान का आम इतिहास‘ माना जाता है। ‘बदायूँनी‘ अकबर की धार्मिक नीतियों का कट्टर विरोधी था, उसने अकबर इस्लाम विरोधी नीतियों की एक लम्बी सूची तैयार की थी।
4. तुजुके जहाँगीरी: जहाँगीर की फारसी में लिखी आत्मकथा ‘तुजुके जहाँगीरी‘ में जहाँगीर ने अपने शासन के प्रथम बारह वर्षों का इतिहास अपने हाथों से लिखा। बाद का उन्नीसवें वर्ष तक इतिहास मोतमिद खाँ ने लिखा। ‘मुहम्मद हादी‘ ने इसे अन्तिम रूप से पूरा किया। मुहम्मद हादी ने जहाँगीर के काल का वर्णन ‘ततिम्मावकयात-ए-जहाँगीरी‘ में किया है।
6. आलमगीरनामा: मिर्जा मुहम्मद काजिम औरंगजेब के समय का प्रथम व अन्तिम सरकारी इतिहासकार था। उसने आलमगीरनामा में औरंगजेब के शासन के प्रथम इक्कीस वर्षों का इतिहास लिखा है। बाद में औरंगजेब ने राज्य में समकालीन इतिहास लेखन पर रोक लगा दी।

प्रश्न: बाबरनामा पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर: बाबर द्वारा चतगाई तुर्की भाषा में लिखी अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी‘ में तत्कालीन भारत की राजनीति सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं जलवायु संबंधी जानकारी मिल जाती है। तुजुक-ए-बाबरी का चार बार फारसी में तथा तीन बार अंग्रेजी में अनुवाद हुआ। तुजुक-ए-बाबरी के फारसी में प्रथम दो अनुवाद हुमायूं के समय में ‘जैना खां‘ तथा ‘पईन्दा खां‘ ने, तीसरा अनुवाद अकबर के सपय में ‘अब्दुर रहीम खानखाना‘ द्वारा तथा चैथा अनुवाद शाहजहां समय में ‘मीर अबु तलिब तुरबाती‘ द्वारा किया गया। श्रीमती ए.एस. बेवरिज ने 1905 ई. में मूल तुर्की भाषा से अंग्रेजी में पहला अनुवाद किया। जबकि लीडन और एरिस्कन ने फारसी से अंग्रेजी में 1826 ई. में अनुवाद किया है।
प्रश्न: मुगलकालीन शिक्षा पर एक लेख लिखिए।
उत्तर: मुगलकाल में प्राथमिक शिक्षा ‘मकतब‘ में दी जाती थी जो शिक्षा का प्राथमिक केन्द्र था तथा उच्च शिक्षा के लिए ‘मदरसों‘ की व्यवस्था थी। इनमें फारसी भाषा में शिक्षा दी जाती थी। हुमायूँ ने माहम अनगा के सहयोग से दिल्ली में ‘मदरसा-ए-बेगम‘ की स्थापना की। हुमायूँ अपने साथ एक चुना हुआ पुस्तकालय लेकर चलता था। अकबर ने फारसी को राजभाषा बनाया। शाहजहाँ ने भी दिल्ली में एक ‘मदरसा‘ बनवाया व ‘दारूल बर्का‘ नामक मदरसे की मरम्मत करवाई। औरंगजेब ने मदरसों एवं मकतबों की सहायता की व हिन्दू पाठशालाओं को बन्द करवाने की कोशिश की। औरंगजेब को निर्वासित पुत्री जेबुन्निसा ने दिल्ली में ‘बैतुल-उल-उलूम‘ नामक स्कूल खुलवाया।
मुगल काल में लखनऊ का फरहंगी महल मदरसा ‘न्याय की शिक्षा‘ के लिए तथा स्यालकोट का मदरसा ‘व्याकरण की शिक्षा‘ के लिए प्रसिद्ध था। दिल्ली का शाह उल्लाह स्कूल परम्परागत मान्यताओं की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था। इस समय बनारस हिन्दू शिक्षा केन्द्र का बड़ा केन्द्र था जिसकी टेवर्नियर ने प्रशंसा की है। मुगल काल में विद्यार्थियों को शिक्षा के क्षेत्र में तीन प्रकार की उपाधि प्रदान की जाती थी। तर्क एवं दर्शन के लिए फाजिल, धार्मिक शिक्षा के लिए आमिल तथा साहित्य शिक्षा के लिए काबिल।

प्रश्न: मध्यकाल में उर्दू भाषा के विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: उर्दू मूलतः तुर्की भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है शाही खेमा व शिविर। मध्यकाल में उर्दू को हिन्दवी कहा जाता था। उर्दू का विकास फारसी, तुर्की, पंजाबी, अवधी व अन्य स्थानीय भाषाओं के संयोग से हुआ। दक्षिण में उर्दू के जिस रूप का विकास हुआ उसे दक्कनी कहा जाता है। उर्दू भाषा को रेख्ता नाम से भी पुकारा जाता है। उर्दू भाषा में सबसे पहले ऐतिहासिक ग्रंथ लिखने वाला अमरी खुसरो था। उर्दू की उत्पत्ति 13वीं शताब्दी के प्रथम दशक में मानी जाती है। सल्तनतकाल में उर्दू का विकास हुआ जो भारतीय भाषा व फारसी का मिश्रण था।
बहमनी शासकों ने अपनी जनता के साथ संचार साधन के रूप में उर्दू का प्रयोग किया परिणामस्वरूप उर्दू दक्षिण की अन्य भाषाओं की भांति बोलचाल की भाषा बन गई। गैसुदेराज दक्षिण का पहला विद्वान था जिसने मिराक-उल-आजिकीन नामक शीर्षक से फारसी लिपि में उर्दू का ग्रंथ लिखा। इब्राहिम आदिलशाह द्वितीय ने सर्वप्रथम उर्दू को बीजापुर की राजभाषा बनाया। ‘गुलशन-ए-इंसाक‘, ‘अलीनामा‘ और ‘तारिख-ए-सिकन्दरी‘ के लेखक मुहम्मद नूसरत ने सम्पूर्ण दक्षिण भारत में उर्दू के उत्कृष्ट विद्वान के रूप में ख्याति प्राप्त की।
निंबधात्मक प्रश्न
प्रश्न: अमीर खुसरो का एक इतिहासकार के रूप में वर्णन कीजिए। भारत को अमीर खुसरो की क्या देन रही?
उत्तर: अमीर खुसरो पहला इतिहासकार था जो भारत में जन्मा था। इसका जन्म स्थान पटियाली था। यह फारसी भाषा का मध्यकालीन प्रमुख साहित्यकार था। इसने कुल 100 काव्य ग्रंथ रचे। जिनमें 6 प्रमुख ऐतिहासिक ग्रंथ हैं। जो निम्न हैं:-
(1) किरात-उस-सादाईन: बलबन के पौत्र कैकूबाद के शासन की कुछ घटनाओं का उल्लेख एवं उसके पिता बुगरा खां के मिलाप का वर्णन है।
(2) मिफ्ता-उल-फुतुह: जलालुद्दीन खिलजी के शासन काल का वर्णन है।
(3) खजाईन-उल-फुतुह: (तारीख-ए-अलाई/अलाईनामा) – यह प्रमुख ऐतिहासिक ग्रंथ है जो अलाउद्दीन के समय में लिखा। इसमें अलाउद्दीन के उत्तरी तथा दक्षिणी भारत के अभियानों तथा मंगोल आक्रमणों का उल्लेख किया है।
(4) देवलरानी-खिज्रखानी (आशिका): यह एक प्रेमग्रंथ है। जिसमें गुजरात की राजकुमारी देवलरानी एवं अलाउद्दीन खिलजी के शहजादे खिज्रखां का प्रेम बताया गया है।
(5) नूहसिपिहर: इसमें मुबारकशाह खिलजी के शासन का वर्णन करते हुए हिन्दुस्तान की प्रशंसा की है।
(6) तुगलकनामा: यह इसके द्वारा रचित अंतिम ऐतिहासिक ग्रंथ है जो गयासुद्दीन तुगलक के समय खुसरो खाँ (1330) पर विजय की याद में लिखा।
अमीर खुसरो की देन अमीर खुसरो दिल्ली के 7 सुल्तानों का समकालीन रहा। इसे ‘तूती-ए-हिंद‘ (भारत का तोता) भी कहा जाता है। इसने भारतीय वीणा एवं तम्बूरे को मिलाकर सितार का निर्माण किया। यह भारत का प्रथम गजलकार था। इसने कव्वाली की रचना की जो भारतीय भजनों एवं कीर्तनों के आधार पर लिखी गयी। इसने पहली बार अपने ग्रंथों में हिन्दी शब्दों का भरपूर प्रयोग किया। फारसी तथा हिन्दी के शब्दों को मिलाकर हिन्दवी या दहलवी (उर्दू) भाषा में 400000 दोहे बनाये। उर्दू भाषा में सबसे पहले ऐतिहासिक ग्रंथ लिखने वाला अमीर खुसरो था।
प्रश्न: जियाउद्दीन बरनी की एक इतिहासकार के रूप में विवेचना कीजिए।
उत्तर: इसका जन्म बरन (बुलंद शहर) में हुआ। इसका चाचा अलाउलमुल्क दिल्ली का कोतवाल था। यह खिलजी एवं तुगलक सुल्तानों का समकालीन था और मोहम्मद तुगलक. का निजी मित्र भी था। फिरोज तुगलक ने इसे जेल में डाल दिया। लेकिन बाद में मुक्त करके पूरी सुविधाएं छीन ली। यह कट्टर मुसलमान था। इसने अपने दोनों ग्रंथ तारीख-ए-फिरोजशाही व फतवा-ए-जहाँदारी जेल में लिखे। तारीख-ए-फिरोजशाही में बलबन के सिंहासनारोहण से (1266 ई.) लेकर फिरोजशाह तुगलक के शासन के छठे वर्ष (1357 ई.) तक 9 शासकों का इतिहास दिया गया है। बरनी पहला इतिहासकार था जिसने राजनीतिक वर्णन के साथ-साथ सल्तानों के प्रशासनिक सुधारों का भी वर्णन किया है विशेषकर अलाउद्दीन के संदर्भ में इसका लेखन वर्णनात्मक न होकर विश्लेषणात्मक एवं आलोचनात्मक है विशेषकर मोहम्मद बिन तुगलक की योजनओं के संदर्भ में। फतवा-ए-जहाँदारी में मुस्लिम शासन व्यवस्था के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक नियमों का उल्लेख किया इसमें सल्तनतकालीन शासन व्यवस्था का स्वरूप, राजत्व का सिद्धांत, राजनीतिक दर्शन आदि की जानकारी मिलती है।