राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 क्या है ? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए National Curriculum Frame work (NCF) 2005 in hindi
National Curriculum Frame work (NCF) 2005 in hindi ?
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 क्या है ? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
What is National Curriculum Frame work, (NCF) 2005- Write down is salient features.
उत्तर-राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 (NCF) राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के अनुसार, ‘‘राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली को विकसित करने का एक साधन है, तथा शैक्षिक घटकों के साथ-साथ यह भारत की भौगोलिक एवं सांस्कृतिक वातावरण की विविधता का उत्तरदायित्व निभाते हुए मूल्यों के सामान्य आधार निश्चित कर सके।‘‘
शिक्षा नीति 1986 के सन्दर्भ में 1988 में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के लिए एक रूपरेखा को विकसित किया गया था। लगभग 12 वर्षों के अन्तराल के बाद सन् 2000 में स्कलीय शिक्षा के लिए राष्टीय पाठयचर्या की रूपरेखा विकसित की गई। राष्टीय पाठ्यचर्या 2005 प्रारम्भ करने के लिए 21 फोकस समूह बनाए गए जिन्होंने स्कूलीय शिक्षा का गहनता से अध्ययन किया और राष्ट्रीय स्तर पर इन चर्चा करने के पश्चात् इन्हें एनसीईआरटी द्वारा प्रकाशित किया गया। इस पाठ्यचर्या के कुछ प्रारम्भिक निर्णय निम्नलिखित हैं
यह पाठ्यचर्या, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के महत्त्वपूर्ण निर्णय जैसेकृभाषा शिक्षा सम्बन्धित निर्णय, शिक्षा का माध्यम, शिक्षा के विभिन्न स्तरों के लिए एक सामान्य संरचना 10 ़ 2, सामाजिक संसक्ति, धर्म निरपेक्षता, राष्ट्रीय एकता और उनसे सम्बन्धित तमाम शैक्षिक प्रविधि उसी प्रकार बनी रहेगी। इस पाट्यचर्या में आधारभूत भाग, परिप्रेक्ष्य, अधिगम और ज्ञान, विषय सम्बन्धित परिचर्चा तथा संगठन आदि पर बल दिया गया है।
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 (NCF) की प्रमुख विशेषतायें-
(1) एनसीएफ 2005 में स्कूलीय शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर चर्चा की गई है।
(2) इसके लिए 21 केन्द्र समूह (Focus group) बनाए गए थे।
(3) एनसीएफ 2005 का मूल आधार भारतीय संविधान है-धर्म निरपेक्ष, समतावादी, बहुलतावादी समाज जो सामाजिक न्याय व समानता के प्रमुख मूल्यों पर आधारित है।
(4) ज्ञान और सूचना में विभेद करना।
(5) शिक्षण रटने के स्थान पर बोध के लिए।
(6) बालक को संसार के ज्ञान के लिए क्रिया एक प्रमुख साधन है। छात्रों को स्व-अध्ययन का अवसर मिले, प्राकृतिक संसार तथा सामाजिक वातावरण की खोज कर सकें।
(7) छात्र स्वयं ज्ञान का निर्माण कर सकें।
(8) पाठयचर्या समता, समावेशी शिक्षा के लिए।
(9) पाठ्यचयो का बोझ कम किया जाए।
(10) पर्यावरण शिक्षा को अन्य स्कूली विषयों के साथ एकीकृत किया जाए।
(11) एक मानवीय, छात्र-मित्रवत् मूल्यांकन प्रणाली विकसित की जाए।
(12) ग्रेडिंग पर बल दिया जाए।
(13) विद्यालय प्रणाली और अन्य नागरिक समूह में भागीदारी बनाई जाए।
(14) विवेचनात्मक शिक्षा शास्त्र पर बल दिया जाए।
(15) शिक्षा में गुणवत्ता और उत्तरदायित्व को निश्चित किया जाए।
ऽ अधिगम में छात्र की सक्रियता सुनिश्चित करना।
ऽ अधिगम में चिन्तन की सरलता की उपलब्धता।
ऽ अधिगम में शैक्षिक तकनीकी की भव्यता।
ऽ समृद्ध, सम्पोषित, अनुभावात्मक अधिगम वातावरण उपलब्ध कराना।
ऽ सम्प्रेषण एवं सहभागिता को प्रोत्साहित करना।
प्रश्न 2. राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 की प्रमुख सिफारिशों का वर्णन कीजिए।
Explain the main recommendations of National Curriculum Frame work, (NCF) 2005.
अथवा
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना के अध्यायों का विवरण दीजिए।
A Give a description of parts of National curriculum frame work 2005.
उत्तर-राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना (NCF), 2005 की रूपरेखा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् का मानना था कि कोई भी पाठ्यक्रम पूर्ण एवं निश्चित नहीं होता है। समय की धारा के परिवर्तन के साथ पाठ्यक्रम में भी परिवर्तन किये जाने चाहिये। पाठ्यक्रम सदैव विकासात्मक प्रक्रिया में रहता है। समाज के विकास की प्रक्रिया के अनुरूप ही राष्ट्रीय पाठ्यक्रम के विकास की प्रक्रिया भी होती है। इस अवधारणा को कार्य रूप में परिवर्तित करते हुए तत्कालीन एन.सी.ई.आर.टी. के अध्यक्ष ने राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 को प्रस्तुत किया, जिसमें राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 1988 एवं राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2000 के विषयों को परिमार्जित, क्रमबद्ध एवं सुसंगठित रूप.में प्रस्तुत किया। इसके साथ-साथ इसमें नवीन विषयों का समावेश भी किया गया।
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना. 2005 को निम्नलिखित पाँच अध्यायों में प्रस्तुत किया गया है-
(1) परिप्रेक्ष्य
(2) सीखना और ज्ञान
(3) पाठ्यचर्या के क्षेत्र (विविध विषय)
(4) विद्यालय और कक्षा का वातावरण
(5) व्यवस्थागत सुधार
अध्याय 1: परिप्रेक्ष्य (Prespectives) – इस अध्याय में स्वतंत्रता के पश्चात् भारतवर्ष में किए गए शैक्षिक प्रयासों का संक्षिप्त वर्णन किया गया है। इसके मुख्य बिन्दु निम्नलिखित है-
(1) शिक्षा के उद्देश्य, छात्रों का सामाजिक परिप्रेक्ष्य, ज्ञान की प्रकृति, मानव विकास प्रकृति और मनुष्य के सीखने की प्रविधि (निर्मितवाद) आदि को समग्रता में देखना।
(2) कक्षा के मन को जीवन अनुभव से जोड़ना।
(3) समावेशी एवं समता आधारित शिक्षा, सबके लिए शिक्षा।
(4) छात्रों को पर्यावरण, पर्यावरण संरक्षण, सम्पोषणीयता, जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील बनाना।
(5) बहुलतावादी समाज में राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली को सबल बनाना।
(6) पाठ्यचर्या का बोझ कम करना।
(7) पाठ्यचर्या अभ्यास, संवैधानिक मूल्य, जैसे सामाजिक न्याय, समानता, धर्म निरपेक्षता आधारित हो।
(8) शिक्षा के हर स्तर पर गुणब्ता।
(9) विवेचनात्मक चिन्तन, सृजनात्मकता तथा समावेशी मूल्यों का विकास।
अध्याय: 2 सीखना और ज्ञान (Learning and Knowledge) – इस अध्याय में छात्रों को स्वाभाविक रूप से सीखने वाले, जिज्ञासु, मानसिक क्षमता और सोखने को अन्तज्र्ञान प्रकृति को स्थापित किया गया है।
(1) छात्र में अपना ज्ञान निर्माण करने की अथवा सृजित करने की स्वाभाविक क्षमता है।
(2) छात्रों को सार्थक अनुभव देने वाली तथा समाहित शिक्षा (प्दबसनेपअम मकनबंजपवद) प्रदान करनी है।
(3) पाठ्यपुस्तक केन्द्रित अधिगम को संस्कृति से छात्रों को मुक्त कराना है।
(4) छात्रों को सीखने में उनकी सक्रियता व रचनात्मक सामर्थ्य को पोषित और संवर्दि्धत करना है। सीखना अपने आप में एक सक्रिय और सामाजिक गतिविधि है।
(5) कक्षा में छात्रों के लिए एक समाहित वातावरण (Inclusive environment) का सृजन करना। जान निर्माण के लिए तथा सृजनात्मकता के पोषण के लिए छात्रों को व्यस्त रखना।
(7) अनुभवात्मक विधि (प्रणाली) द्वारा सक्रिय अधिगम बनाए रखना।
(8) छात्रों को व्यस्त रखने के लिए विविध प्रविधियों, जैसे-अवलोकन, अन्वेषण, खोज, विश्लेषण करेंना, विवेचनात्मक चिन्तनं आदि को अपनाना।
(9) सामाजिक एवं सांस्कृतिक वास्तविकता के प्रति विवेचनात्मक परिप्रेक्ष्य विकसित करने हेतु, पाठ्यक्रमीय अभ्यास में स्थान देना।
(10) पाठ्य-पुस्तक एवं शिक्षाशास्त्र अभ्यास में स्थानीय ज्ञान एवं छात्रों के अनुभव एक महत्त्वपूर्ण भाग हैं।
(11) सीखने में विविधता और चुनौतियाँ हों। ज्ञान प्राप्ति का अर्थ चुपचाप ग्रहण करना नहीं हैं। इसका अर्थ है दुनिया से सक्रिय जुड़ाव, मनन, कर्म और अनुभवों को बाँटना।
एनसीएफ ने निर्मितवाद (ब्वदेजतनबजपअपेउ) को बालकों के सीखने का सामाजिक सिद्धान्त माना है-
(1) निर्मितवाद को सीखने में बालक में होने वाली क्रियाओं को केन्द्र माना है। जान का अस्तित्व सीखने वाले के मस्तिष्क के बाहर नहीं होता।
(2) ज्ञान का बाहर से स्थानान्तरण नहीं किया जा सकता और यह बालक वास्तविकता का निर्माणकर्ता है।
(3) बालक, पूर्व ज्ञान के आधार पर, नवीन अनुभवों से ज्ञान का निर्माण करते हैं।
(4) अधिगम एक सक्रिय प्रक्रिया है। छात्रों को व्यापक अनुभवों की आवश्यकता है जिससे उनमें चिन्तन प्रेरित हो सके और यह प्रभावी बन सके।
(5) छात्रों के लिए भौतिक क्रियाएँ महत्त्वपूर्ण हैं किन्तु अधिगम के लिए भौतिक एवं मानसिक क्रियाओं में सह-सम्बन्ध है।
(6) भौतिक एवं मानसिक क्रिया द्वारा जो अनुभव होते हैं और उनसे जो भाषा का निर्माण होता है वह बालक के संज्ञान को व्यक्त करता है।
(7) बालक का सामाजिक विकास, शैक्षिक सफलता से सम्बन्धित है इसलिए छात्रों में सहभागिता से प्रभावी अधिगम होता है।
(8) स्वाभिमान (ैमस िमेजममउ) सीखने के लिए स्व-अध्ययन की आवश्यकता है।
अध्याय 3-पाठ्यचर्या के क्षेत्र (विविध विषय) (Curriculuar Areas, School Stages and Assessment) – इस अध्याय में पाठ्यचर्या के विविध विषयों पर परिचर्चा की गई है। यहाँ पर मात्र विज्ञान का सार दिया गया है।
विज्ञान गतिशील और विकासमान ज्ञान का संसार है। इसमें अनुभव के नए-नए क्षेत्रों को शामिल किया गया है। एक प्रगतिशील और आगे की सोचने वाले समाज में वह मुक्तकारी भूमिका निभा सकता है।
विज्ञान के उपयोग से, समाज में व्याप्त अज्ञान, गरीबी और अन्धविश्वास को दूर किया जा सकता है । विज्ञान और तकनीकी के प्रयोग से कृषि, उद्योग आदि का नवीनीकरण सम्भव है। विज्ञान के अध्ययन से लचीलापन. नवाचार और रचनात्मकता जैसे प्रमख कौशल विकसित होते है। विज्ञान पाठ्यचर्या को निम्नलिखित वैध मानकों की आवश्यकता है-
(1) संज्ञानात्मक वैधता ।
(2) विषय-वस्तु की वैधता।
(3) प्रविधि की वैधता।
(4) ऐतिहासिक वैधता ।
(5) पर्यावरण सम्बन्धी वैधता ।
(6) नैतिक वैधता।
एनसीएफ 2005 का दृष्टिकोण है कि भारत में विज्ञान की शिक्षा में तीन प्रमुख दोष हैं
(1) विज्ञान शिक्षा आज भी हमारे संविधान में निहित समता के उद्देश्य की प्राप्ति से बहुत दूर है।
(7) भारत में विज्ञान की शिक्षा मात्र दक्षता को विकसित करती है, रचनात्मकता और अन्वेषण को विकसित नहीं करती है।
(3) भारत में विज्ञान शिक्षा मूलभूत समस्याओं का आधार है-परीक्षा की बोझिल व्यवस्था।
इसलिए वर्तमान विज्ञान शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन के लिए एक प्रतिमान पर (च्ंतंकपहउ ेीपजि) की आवश्यकता है।
इस परिवर्तन में रटने को हतोत्साहित करना, पाठ्य-पुस्तक केन्द्रित अधिगम से छान मुक्त कराना तथा शिक्षक मात्र ज्ञान का स्थानान्तरण करने वाला न हो।
विज्ञान की विषय-वस्तु, प्रविधि और विज्ञान शिक्षण की भाषा, छात्रों की आयु आदि संज्ञानात्मक विकास के अनुरूप होनी चाहिए।
विज्ञान शिक्षण छात्रों को इस प्रकार की प्रविधियों में व्यस्त करें जो उनकी जिला सृजनात्मकता और पर्यावरणीय संवेदनशीलता का पोषण करें। विज्ञान शिक्षा द्वारा पर्यावरण सम्बन्धित समस्त प्रकरणों का अध्ययन स्कूलीय पाठ्यचर्या का भाग हो।
अध्याय: 4-विद्यालय एवं कक्षा का वातावरण (School and Classroom Environment) –
(1) विद्यालय में छात्र अपने को सुरक्षित, प्रसन्न एवं स्वीकृत महसूस करें।
(2) विद्यालय में न्यूनतम संसाधन एवं सुविधाएँ उपलब्ध हों।
(3) स्कूल का भौतिक वातावरण जीवन्त हों, सहभागिता हो तथा विद्यालयी संस्कृति हो।
(4) विद्यालय में सीखने का वातावरण भेदभाव रहित हो। उन क्रियाओं पर बल दिया जाए जिनमें छात्रों की भागीदारी, स्व-अनुशासन तथा प्रजातान्त्रिक कार्यात्मक प्रविधि आधारित हो। विद्यालय में अभिभावकों और समुदाय की सहभागिता सुनिश्चित की जाए।
अध्याय: 5- दृव्यवस्थागत सुधार (Systematic Reform) शिक्षा में गुणवत्ता सुधार
(1) सूचना को ज्ञान समझने की प्रवृत्ति पर नियन्त्रण करें।
(2) उत्पादक कार्य को शैक्षिक कार्य से जोड़ना।
(3) पाठ्यचर्या का चुनाव छात्रों की आयु के समकक्ष हो।
(4) शिक्षक शिक्षा प्रविधि में परिवर्तन हो तथा शिक्षक छात्रों में ज्ञान-निर्माण का सरलीकरण करने वाले हो।
(5) परीक्षा सुधार में आवश्यक परिवर्तन किए जाए।
(6) शैक्षिक नवाचारों पर बल दिया जाए।
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