अभ्रक उत्पादन में प्रथम राज्य कौन कौनसे है उत्पादक राज्य नाम अभ्रक के दो उपयोग mica producing states in india
mica producing states in india in hindi highest production state name अभ्रक उत्पादन में प्रथम राज्य कौन कौनसे है उत्पादक राज्य नाम अभ्रक के दो उपयोग ?
अभ्रक [Mica]
अभ्रक अत्यन्त हल्का खनिज है, जो आग्नेय तथा परिवर्तित चट्टानों में पतों के रूप में पाया जाता है। साधारणतः यह छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में मिलता है परन्तु कई बार बड़े-बड़े टुकड़े भी पाए जाते हैं जो 4 मीटर लम्बे तथा 3 मीटर तक मोटे हो सकते हैं। यह मुख्यतः सफेद, काले अथवा हरे रंग का होता है। सफेद अभ्रक के टुकड़े पैग्मेटाइट नामक आग्नेय चट्टानों में ही मिलते हैं। इसे रूबी अभ्रक (RubyMical) अथवा मस्कोवाइट (Muscovita) अभ्रक भी कहते हैं। यह सबसे उत्तम किस्म का अभ्रक होता है। हल्का गुलाबीपन लिए अभ्रक को बायोटाइट (Biotite) अभ्रक कहते हैं।
अभ्रक अपनी लचक, पारदर्शिता तथा बिजली एवं गर्मी की कुचालकता के कारण बिजली के उपकरणों, बेतार के तार, कम्प्यूटर, वायुयान आदि के निर्माण में प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त यह लालटेन की चिमनियों, आँखों के चश्मों, मकानों की खिड़कियों, उच्च ताप में काम आने वाली भट्टियों तथा अनेक प्रकार के सजावट का समान बनाने के काम भी आता है। इसके चूरे को स्प्रिट में मिलाकर किसी भी आकार तथा प्रकार की चादरें बनाई जाती हैं।
उत्पादन तथा वितरण
भारत को अभ्रक के उत्पादन के लिए विश्व में लगभग एकाधिकार प्राप्त है। विश्व का 75 से 80ः अभ्रक भारत में ही निकाला जाता है। भारत में अभ्रक का उत्पादन पिछले 140 वर्षों से हो रहा है तो भी व्यावसायिक स्तर पर यह उत्पादन स्वतन्त्रता के बाद ही शुरू हुआ। स्वतन्त्रता के समय सन् 1947-48 में भारत में केवल 772 टन अभ्रक का उत्पादन हुआ था जो केवल तीन वर्षों की अल्प अवधि में बढ़कर 10 हजार टन हो गया। अर्थात् इस काल में हमारे देश में अभ्रक के उत्पादन में लगभग 13 गुना वृद्धि हुई। सन् 1950-51 से 1960-61 के बीच वाले दस वर्षों में भी लगभग तीन गुना वृद्धि हुई। सन् 1960-61 तक हमारा अभ्रक का उत्पादन बड़ी तेजी से बढ़ा, परन्तु उसके बाद इस उत्पादन में गिरावट आने लगी। तालिका 2.11 से उत्पादन में गिरावट की प्रवृत्ति तथा परिवर्तनशीलता स्पष्ट दिखाई दे रही है।
उत्पादन में कमी होने के कई कारण हैं। अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में अभ्रक की माँग की कमी होने लगी और भारतीय उत्पादन में भी कमी आई। देश में लगभग 350 अभ्रक की खानें हैं, जिनमें बहुत-सी खानों में अभ्रक के भण्डारों का बड़ी मात्रा में दोहन किया जा चुका है। अधिकांश स्थानों से प्रत्येक में 10 टन से कम अभ्रक निकाला जाता है। दूसरी ओर केवल 20 खानों में से भारत का 50ः अभ्रक निकाला जाता है।इन्हीं कारणों से अभ्रक के खनन को भारतीय खनन व्यवसाय का ‘बीमार बच्चा‘ कहा जाता है।‘‘
तालिका 2.12 भारत में अभ्रकका वितरण 2004-05
राज्य उत्पादन (हजार टन) भारत के कुल
उत्पादन का प्रतिशत
1. आंध्र प्रदेश 1330 97.36
2. राजस्थान 27 1.98
3. झारखण्ड़ 8 0.58
4. बिहार 1 0.08
अखिल भारत 1366 100.00
स्त्रोत: Data Computed from Statistical Abstract of India 2006, p.k~ 123
भारत में अभ्रक का वितरण भी बड़ा ही असमान है। लगभग सारा अभ्रक आंध्र प्रदेश, राजस्थान तथा झारखंड में पाया जाता है।
आंध्र प्रदेश: अभ्रक के उत्पादन की दृष्टि से अंाध्र प्रदेश को भारत में प्रथम स्थान प्राप्त है। सन् 2004-05 में इस राज्य ने 1330 हजार टन अभ्रक पैदा किया, जो भारत के कुल उत्पादन का 97 प्रतिशत से भी अधिक है। यहाँ की मुख्य अभ्रक पेटी नेल्लौर जिले में है जो 97 किमी. लम्बी तथा 24 से 32 किमी. चैड़ी है। इसका विस्तार लगभग 1,550 वर्ग किमी. क्षेत्रफल पर है। यहाँ से निकलने वाला अभ्रक हल्के रंग का होता है। यह बिहार के अभ्रक से घटिया किस्म का होता है जिससे इसका मूल्य भी कम होता है। इस पेटी में अभ्रक की खाने यत्र-तत्र बिखरी हुई हैं परन्तु अधिकांश खाने भवाली, आत्माकुर, रापुर तथा गुंटूर तालुका में स्थित हैं।
नेल्लोर के अतिरिक्त कृष्णा, विशाखापट्टनम, अनन्तपुरम, खम्माम तथा पूर्वी एवं पश्चिमी गोदावरी जिलों में भी अभ्रक का खनन किया जाता है।
राजस्थान: पिछले कुछ वर्षों में अभ्रक उत्पादन में वृद्धि हुई परंतु अब कमी हो रही है। अब राजस्थान भारत का 1.98 प्रतिशत अभ्रक पैदा करके द्वितीय स्थान पर है। सन् 2004-05 में राजस्थान ने 27 हजार टन अभ्रक पैदा किया। राजस्थान की मुख्य अभ्रक पेटी जयपुर से उदयपुर तक लगभग 322 किमी. लम्बी है। इसको औसत चैडाई 96 किमी. है। यह पेटी अपने मध्यवर्ती भाग में कुम्बलगढ़ तथा भीलवाड़ा के निकट अधिक चैड़ी है। मुख्य उत्पादक जिले भीलवाड़ा. जयपुर उदयपुर, टोंक, सीकर, डुगरपुर तथा अजमेर हैं। अधिकांश अभ्रक भीलवाड़ा जिले में निकाला जाता है। यहाँ पर कम गहराई पर मिलने वाला अभ्रक घटिया किस्म का होता है परन्तु अधिक गहराई से उच्च कोटि का अभ्रक निकाला जाता है। राजस्थान का 40 प्रतिशत अभ्रक रूबी अभ्रक (त्नइल डपबं) होता है। भारतीय भू-गर्भ सर्वेक्षण के अनुसार राजस्थान में अभ्रक के खनन का भविष्य उज्ज्वल है।
तालिका 2.11 भारत में अभ्रक का उत्पादन (टन)
वर्ष 1994-95 1996-97 1997-98 1998-99 1999-00 2000-01 2001-02 2002-03 2003-04 2004-05 2005-06
उत्पादन 1988 1954 1697 1484 1807 1154 2026 1232 1091 1366 1250
स्त्रोतः Statistical Abstract of India 2007, p.k~ 214
झारखंड/बिहार: अभ्रक की एक महत्वपूर्ण पेटी झारखंड तथा बिहार राज्यों में विस्तृत है। सन् 2004-05 में इन दोनों राज्यों ने मिलकर 9 हजार टन अभ्रक पैदा किया जो भारत के कुल उत्पादन का लगभग 6 प्रतिशत है। इन राज्यों का अभ्रक उच्च कोटि का होता है। यहाँ की मुख्य अभ्रक उत्पादक पेटी बिहार के गया जिले से शुरू होकर झारखण्ड के हजारीबाग, कोडरमा तथा गिरडीह जिलों से होती हुई बिहार के मुंगेर तथा भागलपुर जिलों तक फैली हुई है। इस पेटी की लम्बाई 160 किमी. तथा चैड़ाई 26 से 32 किमी. तक है। इस पेटी का क्षेत्रफल लगभग 3,400 वर्ग किमी. है। यहाँ रवेदार चट्टानों से विभिन्न चैड़ाई की परतों में अभ्रक प्राप्त होता है। यहां कुछ सेंटीमीटर से 30 मीटर मोटी परतों में अभ्रक पाया जाता है। इस पेटी में से निकाले गए अभ्रक अयस्क में 2 से 36 प्रतिशत तक शुद्ध अभ्रक होता है। यहाँ से निकाला गया अभ्रक उच्च कोटि का होता है, जिसे रूबी अभ्रक (Ruby Mica) कहते हैं। इस प्रकार यह पेटी अधिक मात्रा में उच्च कोटि का अभ्रक प्रदान करती है जिस कारण इसे विश्व का अभ्रक भण्डार कहा जाता है। हजारी बाग झारखण्ड का सबसे बड़ा अभ्रक उत्पादक जिला है, जो इस राज्य का 75 प्रतिशत से भी अधिक अभ्रक पैदा करता है। बिहार का सबसे महत्वपूर्ण जिला गया है, जो इस राज्य का आधे से भी अधिक अभ्रक पैदा करता है। मुंगेर जिले में बिहार का 5 प्रतिशत अभ्रक पैदा किया जाता है।
मुख्य अभ्रक पेटी के बाहर झारखण्ड के धनबाद, पलामू, तथा राँची जिलों में भी अभ्रक के भण्डार मिलते हैं।
अन्य उत्पादक
तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली, सलेम, कोयम्बटूर, मदुरई तथा नीलगिरि जिलेय उड़ीसा के गन्जाम, कोरापुट, सम्बलपुर, सुन्दरगढ़, कटक, थेंकनाल जिलेय मध्य प्रदेश के बालाघाट, नरसिम्हापुर व छिंदवाड़ा जिलेय छत्तीसगढ़ के बस्तर व सरगुजा जिले तथा पश्चिम बंगाल के बांकुरा व मिदनापुर जिलों में भी अभ्रक का उत्पादन होता है। हरियाणा के नारनौल व गुड़गाँव, हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले तथा केरल के एर्णाकुलम जिले में भी अभ्रक की खानें हैं। ये सभी क्षेत्र मिलकर भारत का केवल एक प्रतिशत से भी कम अभ्रक पैदा करते हैं।
व्यापार: भारत में अभ्रक का उत्पादन मुख्यतः निर्यात के लिए ही किया जाता है। भारत का 90 प्रतिशत अभ्रक निर्यात कर दिया जाता है। 2001-02 में लगभग बीस हजार करोड़ रुपए मूल्य का अभ्रक निर्यात किया गया। भारतीय अभ्रक के मुख्य ग्राहक जापान, रूस, ब्रिटेन संयुक्त राज्य अमेरिका, पोलैण्ड, चेक रिपब्लिक, स्लोवाकिया, जर्मनी, फ्रांस, हंगरी तथा नीदरलैण्ट्स हैं। ये देश मिलकर भारत का 80 प्रतिशत अभ्रक खरीदते हैं। अधिकांश अभ्रक कोलकाता, विशाखापट्टनम,
1. भारत 2010, वार्षिक संदर्भ ग्रंथ, i 738
मुम्बई तथा चेन्नई बन्दरगाहों से निर्यात होता है। पिछले कुछ वर्षो से हमारे अभ्रक निर्यात में कमी आई है हालाकि अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में कीमतें बढ़ जाने से अभ्रक के निर्यात में विदेशी मुद्रा अधिक कमाई गई। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
(i) भारत में औद्योगिक विकास के साथ साथ अभ्रक की घरेलू खपत बढ रही है जिससे निर्यात के लिए कम अभ्रक बच पाता है।
(ii) उन्नत देशों में कृत्रिम अभ्रक पैदा होने लगा है।
(iii) हमारे अभ्रक को अन्य देशों के अभ्रक की प्रतिस्पर्दा का सामना करना पड़ता है। ब्राजील का अभ्रक भारत के अभ्रक का मुख्य प्रतिद्वन्द्वी है।
(iv) कई देशों में अभ्रक के प्रतिस्थापन्न (Substitutes) प्रयोग होने लगे हैं। इस कारण भारतीय अभ्रक की मांग घटने लगीहै।
भारत में अभ्रक के खनन सम्बन्धी नई तकनीकों का प्रयोग करके कार्य-कुशलता बढ़ाई जा रही है। इससे अभ्रक का खनन कम कीमत पर हो सकेगा और भारत अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अपने निर्यात का बनाए रखने में सफल होगा।
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