WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

कुतुब मीनार का निर्माण कब और किसने करवाया qutub minar was completed by the famous ruler in hindi

qutub minar was completed by the famous ruler in hindi कुतुब मीनार का निर्माण कब और किसने करवाया ? कार्य पूर्ण किसने करवाया था ?

कुतुबमीनार – कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1199 ई. में कुव्वल उल इस्लाम मस्जिद के पास कुतुबमीनार का निर्माण करवाया। लेकिन यह 1232 ई. में इल्तुतमिश के काल में पूरी हुई। सूफी सन्त कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी का इसका नाम कुतुबमीनार रखा। आरम्भ में कुतुबमीनार चार मंजिला (225 फीट ऊँची) मीनार थी लेकिन बिजला । इसकी चैथी मंजिल नष्ट हो गई। तब फिरोज तुगलक ने चैथी मंजिल के स्थान पर दो मंजिले बनाई और कुतुबमा कुल 5 मंजिले हो गई तथा इसकी ऊँचाई भी 240 फीट हो गई। कुतुबमीनार का प्रयोग प्रारम्भ में नमाज के लिय देने के लिए किया जाता था। यह एक सुण्डाकार स्मारक है। इसका निर्माण संभवतः तुर्कों ने अपने विजय-स्तम्भ में करवाया।
किला-ए-रायपिथौरा – दिल्ली रू यह दिल्ली का प्रथम नगर था जो ऐबक के द्वारा बनवाया गया था। यह मध्यकाल निर्मित दिल्ली के सात
शहरों में प्रथम था। .
इल्तुतमिश कालीन स्थापत्य
मकबरा शैली
इल्ततमिश को मकबरा निर्माण शैली का जन्मदाता माना जाता है। उसने सुल्तानगढ़ी में अपने पुत्र नासिरूदास का मकबरा बनवाया जो सल्तनत काल का प्रथम मकबरा है जो सल्तान गढी कहलाया। भारत में यह पहला तुका मकबरा था। इल्तुतमिश ने स्वयं का मकबरा कव्वत उल इस्लाम मस्जिद के पास लाल बलआ पत्थर से निर्मित करवाया। इल्ततमिश ने बदायँ में जामा मस्जिद व नागौर में श्अतरकीन का दरवाजाश् बनवाया। इल्ततमिश ने दिल्ली मे अपने 31 को स्मृति में श्मदरसा-ए-नासिरीश् तथा श्मदरसा-ए-मडज्जीश् का निर्माण भी करवाया। उसने हौज ए शम्सी का निमार्ण भी दिल्ली में कराया।

प्रश्न: मुगलकालीन स्थापत्य कला की मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर: सल्तनत काल की तरह ही मुगल काल में भी प्रारम्भिक दौर की स्थापत्य कला में देशी (हिन्दू) व इस्लामी वास्तु शैलियों का. मिश्रण था।
इस्लामी वास्तुकला की विशेषताएं थी नोकदार मेहराब, तहखाना, बगली डाट, और गुंबद तथा अलकरण के लिए अरबी सुलेखन, बेलबूटों
और ज्यामितीय विन्यास का प्रयोग किया। हिन्दू वास्तुकाल की विशेषताएं थी स्तम्भ, शहतीर, टोडा एवं छज्जा तथा नक्काशी का प्रयोग।
इस स्थापत्य एवं कला को भारतीय कला के सम्मिश्रण एवं ईरानी कला और इस्लामिक कला के प्रभाव के आधार पर श्इण्डो-इस्लामिक
शैलीश् या श्मुगल शैलीश् के नाम से अभिहित किया जाता है।
प्रश्न: मुगल वास्तुकला की विशेषताएं
उत्तर: मुगल वास्तुकला की विशेषताएं निम्नलिखित हैं
1. भवनों का निर्माण विशाल पैमाने पर किया गया।
1. श्रेष्ठतर सामग्री का उपयोग किया गया।
2. वास्तुकला में विभिन्नता (आकार, डिजाइन) पलस्तर और गच्चकारी (ैजनबमव) की ओर विशेष ध्यान।
3. जडावट, पच्चीकारी और अलंकरण।
4. सामंजस्य व संतुलन का समन्वय।
5. जालीदार दीवारों का निर्माण जिससे रहस्यमयी छायांकन उभरा।
6. फारसी चारबाग पद्धति का प्रयोग।
7. बलुआ लाल पत्थर एवं श्वेत संगममर का भरपूर प्रयोग।
8. पित्रादुरा का प्रयोग जिसमें श्वेत संगमरमर पर रंगीन मूल्यवान और अर्द्धमूल्यवान पत्थरों की जड़ावट की गई।
निंबधात्मक प्रश्न
प्रश्न: सल्तनतकालीन स्थापत्य कला में एक समन्वय शैली (हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति) का विकास दृष्टिगोचर होता है। इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर: भारत में सुल्तानों द्वारा लाई गयी वास्तुकला की मध्य एशियाई परम्परा को इस्लामी वास्तुकला का नाम दिया गया है। जिसकी मुख्य विशेषताएं थी-गुम्बद, मेहराब, ऊँची-ऊंची मीनारें और मेहराबी डॉटदार छतें। इस्लामी स्थापत्यकला को मेहराब परम्परा का नाम भी दिया जाता है। इस्लाम में जीवित वस्तुओं को चित्रित करने की आपत्ति के कारण सजावट में सुलेखन और ज्यामितिय डिजाईनों का ही प्रचलन था लेकिन सुल्तानों ने इसका खुला उल्लंघन किया। बलुआ पत्थर की कमी के कारण रंगीन टाईलों और संगमरमर का प्रयोग किया गया। भारतीय स्थानीय शैली जिसे श्शहतीर शैलीश् कहा जाता हैं इसकी मुख्य विशेषताएं थी – आड़ी-तिरछी रेखाएं, कड़ियों वाले छज्जे, अंलकरण के लिए फल-पत्तियों एवं पश-पक्षियों का चित्रांकन, प्रतीकों के माध्यम से सजावट जैसे – चक्र पदम, स्वास्तिक, शिखर पर आमलक अथवा कलश। इन दोनों शैलियों के समन्वय से एक नया हिन्दू-इस्लामी शैली का विकास हुआ जिसमें एक की मजबूती और दूसरे का सौंदर्य सम्मिलित था।
तुर्क शासकों द्वारा सार्वजनिक भवनों का निर्माण विशाल जनसमूह के जमाव के लिए किया गया। उनके केन्द्र में एक खुला विशाल आगन होता था। उस आंगन के चारों ओर खुला गलियारा और ऊँची-ऊँची छतों वाला इबादत घर होता सल्तनकालीन भवन शासकीय प्रश्रय एवं पोषण की उपज थे, अतः स्थापत्य कला में प्रत्येक राजवंश एवं सुल्तान की पंसदगी और नापसंदगी साफ झलकती है। मस्जिदों का जो निर्माण करवाया गया उसकी एक मूल विशेषता थी बीच में एक खुला सहन जिसके तीन तरफ खंभों वाले रिवाक (बरामदें) और चैथी तरफ मक्का की ओर मुँह किये हुए भारत के पश्चिम दिशा में एक बंद दीवार जिसे किबला-लिवान कहा गया। पश्चिमी दीवार में कई मेहराबे बनायी जाती थी। मस्जिदों की यह विशेषता कुव्वत-उल-इस्लाम से लेकर जामा मस्जिद तक देखी जा सकती हैं।
स्थापत्य के क्षेत्र में हिन्दू व इस्लामी संस्कृति का समन्वय अधिक परिलक्षित होता है। मुसलमानों ने हिन्दू स्थापत्य को विस्तार, ठोसपन व चैड़ा आकार प्रदान किया। उन्होंने भारतीय स्थापत्य कला में मेहराब व मीनारों को सम्मिलित किया। भारतीय स्थापत्य की मुख्य विशेषता श्शहतीरश् थी। इस्लामी स्थापत्य की सबसे मुख्य विशेषता थी मेहराब व गुम्बद का प्रयोग।
तुर्क हिन्दू अलंकरण चिन्हों जैसे घंटी, बेल, स्वास्तिक, कमल आदि का प्रयोग करने लगे तथा इन इमारतों पर अलंकरण के लिये ज्यामितिक व फूलों के डिजायनों के साथ कुरान की आयतों को अरबी में लिखा जाता था। अलंकरण की यह विधि श्अरेबस्कश् कहलाती थी। अतः भारतीय इस्लामी स्थापत्य मध्य एशिया में विकसित परम्पराओं के साथ हिन्दू, बौद्ध व जैन स्थापत्य परम्परा के सम्मिश्रण से बनी।
प्रश्न: प्रारम्भिक सल्तनतकालीन या गुलाम वंश के वास्तु-स्मारकों व उनकी की विशेषताओं के बारे में बताइए।
उत्तर: कव्वत-उल-इस्लाम रू भारत में पहली तुर्क मस्जिद कुव्वत-उल-इस्लाम थी। इसका निर्माण 1195-1199 ई. में कतबददीन ऐबक ने दिल्ली
में रायपिथौरा किले के पास करवाया। पहले वहां 27 हिंदू व जैन मंदिरों का निर्माण हो रहा था किन्तु बाद में विष्णु मंदिर बना। कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद इसी विष्णु मन्दिर के स्थान पर बनी। जो 5 मेहराबों के स्तम्भ पर टिकी है। यह हिंदू-मुस्लिम शैली की प्रथम इमारत है। इल्तुतमिश ने कुव्वत-उल-इस्लाम मजिस्द को बड़ा करवाया। मेहरौली का लौह स्तम्भ कुव्वत-उल-इस्लाम के प्रांगण में स्थित है।
अढाई दिन का झोपड़ा – अजमेर – 1200 ई. में अजमेर में कुतुबुद्दीन ऐबक ने चैहान सम्राट विग्रहराज चतुर्थ द्वारा बनाये गये संस्कृत विद्यालय को तोड़ कर अढ़ाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद बनाई। इस इमारत पर संस्कृत ना हरिकेलि के कुछ अंश अंकित हैं।
रजिया
इल्तुतमिश का मकबरा –
रजिया ने दिल्ली (1236 ई.) में अपने पिता इल्तुतमिश का मकबरा बनवाया जो दासों की इमारतों में सर्वाधिक अलंकृत है। लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग व छत रहित बनाया गया है। यह फारसी कला का सुंदर स्मारक है।
बलबन
बलबन का मकबरा – इसमें पहली बार मेहराब का वैज्ञानिक प्रयोग किया गया। बलबन का मकबरा शुद्ध इस्लामी पद्धति द्वारा निर्मित भारत का प्रथम मकबरा है। सही रूप से मेहराब का प्रचलन बलबन के मकबरे में ही हुआ। इसका निर्माण बलबन ने स्वयं करवाया। बलबन ने दिल्ली में लाल महल भी बनवाया।
कैकूबाद
किलूगढ़ी का महल – दिल्ली