आगमन निगमन विधि किसे कहते है inductive deductive method in hindi आगमन निगमन विधि में अंतर क्या है
inductive deductive method in hindi meaning difference आगमन निगमन विधि किसे कहते है आगमन निगमन विधि में अंतर क्या है ?
प्रश्न 2. आगमन-निगमन विधि का वर्णन कीजिए। इन विधियों के शिक्षण सूत्र लिखिये।
Describe inductive-deductive methods of teaching chemistry- Write teaching maxims of these mehods.
उत्तर-आगमन विधि का अर्थ-इस विधि में प्रत्यक्ष अनुभवों, उदाहरणों तथा प्रयोगों को भली-भाँति अध्ययन करके नियम निकाले जाते हैं । इनसे किसी भी समस्या का समाधान करने के लिए पहले से ज्ञात तथ्य अथवा नियम का सहारा नहीं लिया जाता, बल्कि पूर्व ज्ञान के आधार पर उचित सूझ-बूझ और तर्क-वितर्क शक्ति की सहायता से आगे बढ़ा जाता है।
थंग के मतानुसार, “इस विधि में बालक स्वयं भिन्न-भिन्न स्थूल तथ्यों के आधार पर अपनी मानसिक शक्ति द्वारा किसी विशेष सिद्धान्त अथवा नियम पर पहुंचता है। इसे ही आगमन विधि कहते हैं।”
लैण्डन के मतानुसार, “जब कभी छात्रों के सम्मुख अनेक तथ्य, उदाहरण अथवा वस्तुएँ प्रस्तुत करते हैं और इसके पश्चात बालकों से स्वयं उनके निष्कर्ष निकलवाने का प्रयत्न करते हैं, तो इस शिक्षण विधि को आगमन विधि कहते हैं।‘‘
आगमन विधि के शिक्षण सूत्र-
1. विशिष्ट से सामान्य की ओर 2. ज्ञात से अज्ञात की ओर 3. प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर
4. उदाहरण से नियम की ओर 5. स्थूल से सूक्ष्म की ओर।
निगमन विधि का अर्थ– यह विधि आगमन विधि की बिल्कुल विपरीत विधि है। इस विधि से छात्रों को पहले ही पूर्व अनुभवों, प्रयोगों आदि द्वारा बने हुए नियम व सिद्धान्त बतला दिये जाते हैं। छात्र स्वयं इन नियमों की रचना नहीं करते। इन नियमों को छात्रों को याद करा दिया जाता है और इन नियमों के आधार पर कुछ प्रश्नों को सरल करके दिखा दिया जाता है।
लैण्डल के अनुसार, “निगमन विधि द्वारा शिक्षण में सबसे पहले परिभाषा नियम सिखाया जाता है एवं फिर उसके अर्थ को स्पष्ट किया जाता है और अन्त में तथ्यों के प्रयोग से उसे पूर्णतः स्पष्ट कर दिया जाता है।‘‘
निगमन विधि के शिक्षण सूत्र-इसके निम्न शिक्षण सूत्र हैं-
1. अज्ञात से ज्ञात की ओर। 2. प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर। 3. नियम से उदाहरण की ओर।
4. सूक्ष्म से स्थूल की ओर। 5. सामान्य से विशिष्ट की ओर।
प्रश्न : रसायन शास्त्र पढ़ाने की प्रयोजना विधि के पद, गण व सीमाओं की चर्चा कीजिये।
Explain the steps, merits and limitations of Project Method of teaching Chemistry.
उत्तर-प्रायोजना विधि का अर्थ- यह विधि शिक्षा दर्शन की एक प्रमुख विचारधारा प्रयोजनवाद पर आधारित है। इस विधि के जन्मदाता WH.k~ Kilpatrik है। यह विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि छात्र सम्बन्ध, सहयोग एवं क्रिया द्वारा सीखते हैं। इस विधि में यों का संकलन एक केन्द्रीय लक्ष्य को दृष्टिगत रखते हुए किया जाता है।
किलपैटिक (Kilpatrik)- ‘‘प्रोजेक्ट वह उद्देश्यपूर्ण कार्य है जिसे लगन के साथ सामाजिक वातावरण में किया जाता है।‘‘
बेलार्ड (Ballard)- ‘‘प्रोजेक्ट यथार्थ जीवन का ही एक भाग है जो विद्यालय में प्रदान किया गया है।
प्रो. स्टीवेन्सन (Prof.k~ Stevenson)- ‘‘प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है जिसे स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्ण किया जाता है।”
कर (Parker)- “यह क्रिया की एक इकाई है जिसमें विद्यार्थियों को योजना और उद्देश्य निर्धारित करने के लिए उत्तरदायी बनाया जाता है।‘‘
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर इस परिणाम पर पहुंचा जा सकता है कि प्रोजेक्ट या परियोजना विद्यार्थियों के वास्तविक जीवन से सम्बन्धित किसी समस्या का हल खोज निकालने के लिए अच्छी तरह से चुना हुआ तथा प्रसन्नतापूर्वक हाथ में लिया जाने वाला वह कार्य है जिसे पूर्ण स्वाभाविक परिस्थितियों में सामाजिक वातावरण में ही पूर्ण किया जाता है।
योजना विधि की कार्य प्रणाली (Working Process of Project Method) – योजना विधि को सुचारु रूप से चलाने हेतु उसे निम्न पदों में विभाजित किया जाता है-
(प) परिस्थिति प्रदान करना (Provision of a Situation)- छात्रों की आयु, इच्छाओं एवं योग्यताओं को दृष्टिगत रखते हुए शिक्षक को चाहिए कि वह ऐसी स्थिति छात्रों के सम्मुख उत्पन्न कर दे जिसमें छात्रों को रुचि हो जाये और उसमें निहित समस्या की ओर उनका ध्यान केन्द्रित हो जाये।
(पप) योजना के उद्देश्य एवं चयन (Selection and Objectives of Project) – योजना का उपयुक्त चयन सफलता की एक आवश्यकता है। अध्यापक को अप्रत्यक्ष रूप से छात्रों को उपयुक्त योजना के चयन हेतु मार्गदर्शन करना चाहिए। योजना छात्रा का आवश्यकता के अनुरूप होनी चाहिए तभी अधिक उपयोगी हो सकती है। तत्पश्चात सस सम्बन्धित उद्देश्य छात्रों के सम्मुख स्पष्ट कर देने चाहिए जिससे वह अपनी शक्तियों का वांछित रूप से मार्गान्तिकरण कर सके।
(पपप) कार्यक्रम बनाना (Planring)- योजना की सफलता एवं असफलता इस पद करता है। अध्यापक को वाद विवाद के माध्यम से योजना के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धी कायक्रम सुचारु रूप से बना लेना चाहिए। उसी के अनुसार दायित्वों का विभाजन करना चाहिए।
(पअ) क्रियान्वयन (Execution)- प्रत्येक छात्र की योग्यता, प्रकृति, रुचि एवं क्षमता के अनुरूप उसे दायित्व दिया जाना चाहिए । प्रत्येक छात्र को कुछ न कुछ कार्य अवश्य मित जाना चाहिए। जिससे वह योजना की पूर्णता में स्वयं को भागीदार समझ सके। अध्यापन को अप्रत्यक्ष रूप से योजना के प्रत्येक प्रश्न पर ध्यान देना चाहिए और आवश्यकता पर पर मार्गदर्शन करना चाहिए।
(अ) मूल्यांकन (Evaluation) योजना की समाप्ति पर अध्यापक एवं छात्रों द्वारा सारे कार्य का मूल्यांकन किया जाता है । यह बहुत महत्वपूर्ण है । यदि योजना में कोई त्रुटि रह गई हो तो उसे खोजने का प्रयास किया जाना चाहिए। छात्रों को स्वयं अपने कार्यों की आलोचना करनी चाहिए तथा अपनी उपलब्धियों एवं असफलताओं का मूल्यांकन करना चाहिए ।
(अप) कार्य लेखन (Recording)- प्रत्येक छात्र को अपनी क्रियाओं का विवरण रखना होता है। जो दायित्व उसे सौंपा गया है उससे सम्बन्धित सब लेखा-जोखा उसे रखना होता है। अध्यापक उसका निरीक्षण करता है और यह जानने का प्रयास करता है कि छात्र अपने उत्तरदायित्व को कितना निभा रहे हैं। सम्पूर्ण योजना का एक पूर्ण विवरण भी रखा जाता है।
प्रोजेक्ट विधि के गुण
(प) अधिगम का स्थाईकरण (Permanency of Learning)- क्योंकि छात्र पाठ्यवस्तु को स्वाभाविक परिस्थितियों में सीखते हैं इस कारण इस विधि द्वारा अर्जित ज्ञान अधिक स्थाई होता है।
(पप) मानसिक विकास के लिए उपयुक्त (Suitable for Mental Development)- क्योंकि छात्र समस्या समाधान हेतु स्वयं ही चिन्तन करते हैं और विभिन्न पक्षों के मध्य कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करते हैं। फलस्वरूप उनके मानसिक रूप से विकसित होने की संभावना बढ़ती है।
(पपप) आत्म विकास (Self Development)-छात्र इस विधि में स्वयं मूल्यांकन करते हैं। साथ ही उन्हें आत्मविश्वास, आत्म निर्भरता एवं आत्म प्रकाशन का अच्छा अवसर मिलता है।
(पअ) सामाजिकता की भावना (Social Well feeling)- छात्रों में परस्पर सहयोग और स्वस्थ स्पर्धा के आधार पर कार्य करने की आदत बनती है। इससे उनमें आत्म अनुशासन एवं सहिष्णुता जैसे गुणों का विकास होता है । उन्हें परस्पर समायोजन करना होता है।
(अ) विकास के समान अवसर (Equal Chance for Development)- क्योंकि प्रत्येक छात्र को अपनी योग्यता एवं रुचि के अनुसार कार्य करने का अवसर मिलता है फलस्वरूप कोई भी छात्र उपेक्षित अनुभव नहीं करता है। इस प्रकार सब को विकसित होने का समान अवसर प्राप्त होता है।
(अप) गृह और समाज से संबंधित (Related with Home and Society)- इस विधि में पाठशाला का गृह और समाज के साथ सजीव सम्पर्क बन जाता है क्योंकि विद्यालय में अर्जित ज्ञान गृह और समाज की परिस्थितियों के समरूप ही होता है। विद्यालय का प्रारुप एक लघु समाज जैसा होता है।
(अपप) मनोवैज्ञानिक विधि (Psychological Method)- यह विधि सुदृढ़ मनोवैज्ञानिक आधारों पर आधारित है। अधिगम सिद्धांतों एवं व्यक्तिगत भिन्नता एवं छात्र की योग्यता, रुचि, प्रकृति आदि का इसमें समुचित ध्यान रखा जाता है।
प्रोजेक्ट विधि के दोष-
(प) अव्यवस्थित पाठ्य विधि (Unsystematic Teaching)- इस विधि के माध्यम से पाठ्यक्रम को एक व्यवस्थित रूप से समाप्त करना कठिन होता है।
(पप) उचित मूल्यांकन संभव नहीं (Appropriate Evaluation not possible)वर्तमान शिक्षण प्रणाली में प्रचलित मूल्यांकन विधि में प्रयोग करना कठिन होता है।
(पपप) अधिक महंगी (Costly)- यह विधि दूसरी विधियों की अपेक्षा अधिक महंगी विधि है क्योंकि इसमें काफी सुसज्जित पुस्तकालय एवं प्रयोगशाला की आवश्यकता पड़ती है।
(पअ) विषयों के क्रमबद्ध अध्ययन का अभाव (Systematic study of Subject not possible)- क्योंकि इस विधि में पाठ्यवस्तु का चयन विभिन्न स्थानों से किया जाता है इस कारण किसी भी विषय का गहन एवं क्रमबद्ध अध्ययन संभव नहीं है।
(अ) प्रत्येक विद्यालय में संभव नहीं (Not Applicable in Every School)- इस विधि में प्रयुक्त होने वाले साधन साधारणतः प्रत्येक विद्यालय में उपलब्ध नहीं होते हैं। उदाहरणार्थ न तो इतने कुशल अध्यापक उपलब्ध है न उपयुक्त पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध हैं।
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