मूत्र का pH मान कितना होता है ? human urine ph value in hindi मनुष्य के यूरीन पीएच क्या होता है मानव मूत्र
human urine ph value in hindi मूत्र का pH मान कितना होता है ? मनुष्य के यूरीन पीएच क्या होता है मानव मूत्र में क्या क्या पाया जाता है बताइए ?
सामान्य मूत्र का संघटन : मूत्र यकृत कोशिकाओं में मृत RBCs के विखण्डन से बने यूरोक्रोम वर्णक के कारण हल्का पीला होता है | यह प्रकृति में अम्लीय होता है , pH 6.0 होती है | मूत्र pH की सीमा 4.5 से 8.0 होती है | विशिष्ट गुरुत्व 1.003-1.04 होती है इसलिए यह जल से भारी होता है | मूत्र में दुर्गन्धयुक्त पदार्थ यूरीनोइड के कारण तीव्र एरोमेटिक गंध होती है | यूरिया के अमोनिया में अपघटित होने के कारण यह तीव्र गंध देता है | एक सामान्य वयस्क व्यक्ति में सामान्यत: मूत्र आयतन 1.5-1.8 लीटर होता है | मूत्र आउटपुट का आयतन कई कारकों पर निर्भर करता है , जैसे द्रव्य अंतर्ग्रहण , उच्च तापमान , उपापचयी क्रिया , डाययुरेटिक जैसे चाय , कॉफ़ी , एल्कोहल आदि के अन्तर्ग्रहण पर निर्भर करता है जो कि मूत्र आउटपुट बढ़ा देते है | रासायनिक रूप से मानव मूत्र निम्न पदार्थो का बना होता है –
- जल = 95-96%
- यूरिया = 2%
- अन्य अपशिष्ट जैसे यूरिक अम्ल , हिप्यूरिक अम्ल , क्रिएटिनिन , K+ , H+ , फास्फेट , ऑक्सेलेट = 2-3%
मूत्र में सामान्यत: शर्करा , प्रोटीन अथवा रक्त कोशिकाएँ नहीं होती हैं लेकिन रोगकारी अवस्था में मूत्र के साथ कुछ पदार्थ पाए जाते हैं | जैसे डायबीटीज में मूत्र में शर्करा जिसे ग्लाइकोसूरिया (glycosuria)कहते हैं | मूत्र के साथ एल्ब्यूमिन प्रोटीन , एल्ब्यूमिनयूरिया कहलाता है जबकि मूत्र में रक्त की उपस्थिति haematuria कहलाता है | मूत्र में पित्त वर्णक की उपस्थिति पीलिया को इंगित करती है |
नलिकीय स्त्रावण : यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा नेफ्रोन की ग्रंथिल कोशिका , विशेषत: DCT , उत्सर्जी पदार्थ जैसे यूरिक अम्ल , क्रिएटिनिन , हिप्यूरिक अम्ल , K+ , H+ , अमोनिया आदि को रक्त से पैरीट्यूबलर केशिकाओं में सक्रीय परिवहन द्वारा बाहर निकालती है और इन्हें नेफ्रिक छनित्र में स्त्रावित करती है | अधिकांश K+मूत्र में निष्कासित हो जाते हैं जो DCT और संग्रह नलिका में Na+अवशोषण के आदान प्रदान के साथ स्त्रावित होता है | यह समुद्री मछलियों और रेगिस्तानी एम्फिबियन्स में उत्सर्जन का तरीका है जिनके नेफ्रोन ग्लोमेरूलाई और बोमन केप्सूल युक्त होते हैं |
मूत्र उत्सर्जन अथवा मूत्रण (micturition)
मूत्राशयमूत्र का अस्थायी संचय करता है | जब मूत्राशय आधे से अधिक मूत्र से भर जाता है | i.e. 400-500 ml तब एक प्रतिवर्त क्रिया प्रारंभ होती है जिसमें मूत्राशय की भित्ति में उपस्थित चिकनी पेशियों में संकुचन होता है और मूत्राशयी कपाट में शिथिलन हो जाता है | यह उदरीय पेशियों के संकुचन द्वारा भी होता है जिससे यह मूत्र को मूत्रमार्ग से होते हुए शरीर से बाहर निकालता है |
मूत्र निकलने की यह प्रक्रिया मूत्रण अथवा मूत्र उत्सर्जन कहलाती है | मूत्रण एक प्रतिवर्ती क्रिया है लेकिन यह वयस्क व्यक्ति में सिमित समय के लिए इच्छा पर निर्भर कर सकती है |
मूत्र सांद्रण की प्रतिप्रवाह गुणन क्रियाविधि (counter current mechanism of urine concentration)
उच्च वर्टीब्रेट जैसे पक्षी और मैमल्स और मानव में भी उच्च सांद्रित मूत्र उत्सर्जन करने के लिए प्रतिप्रवाह गुणन क्रियाविधि पायी जाती है | ये उच्च वर्टीब्रेट इस प्रकार जल को संरक्षित रखते है जो कि स्थलीय जीवन के लिए आवश्यक होता है | नेफ्रोन का हेनले लूप और वासा रेक्टा (कोशिका लूप) इस क्रियाविधि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं | हेनले लूप में ग्लोमेरूलर द्रव और वासा रेक्टा में रक्त लूप की दोनों भुजाओं में विपरीत दिशाओं में बहते हैं | हेनले लूप की अवरोही भुजा में रीनल मेड्युला की तरफ और हेनले लूप की आरोही भुजा में रीनल कॉर्टेक्स की तरफ रक्त बहता है | ये दो प्रतिप्रवाह गुणन तंत्र मूत्र की सान्द्रता बढाने में मदद करते हैं |
लूप ऑफ हेनले : छनित्र हेनले लूप की आरोही भुजा से गुजरताहै | सोडियम सक्रीयरूप से अंतरकोशिकीय द्रव में प्रवाहित होता है जबकि क्लोराइड आयन्स निष्क्रिय रूप से गुजरते हैं इसलिए अंतरकोशिकीय द्रव्य में Na+ और Cl–की सान्द्रता बढ़ जाती है | उच्च सान्द्रता के कारण Na+ और Cl– हेनले लूप की अवरोही भुजा से निष्क्रिय रूप से गुजरते हैं |
Na+और Cl– की चक्रीय गति अंतरकोशिकीय द्रव्य में आरोही भुजा से अवरोही भुजा और हेनले लूप द्वारा अवरोही भुजा से आरोही भुजा में अंतरकोशिकीय द्रव्य में इन आयन्स की उच्च सान्द्रता को स्थापित करने और बनाये रखने में सहायक होती है | इसके अनुसार इनकी सान्द्रता मेड्युला में अधिक और कॉर्टेक्स के समीप कम होती है |
आरोही भुजा में लवण आयन जल के स्थान पर अवशोषित होते हैं इसलिए छनित्र तेजी से कम परासरी हो जाता है | दूसरी ओर , अवरोही भुजा से जल अवशोषित होता और लवण आयन्स अवशोषित नहीं होते इसलिए हेनले लूप की अवरोही भुजा में छनित्र उच्च परासरी हो जाता है |
वासा रेक्टा : वासा रेक्टा में रक्त रीनल मेड्युला की तरफ बहता है इसमें अंतरकोशिकीय द्रव से सोडियम और क्लोराइड आयन विसरित होते हैं | हालाँकि जब रक्त पीछे रीनल कॉर्टेक्स की तरफ प्रवाहित होता है तो ये आयन रक्त से अंत: कोशिकीय द्रव में विसरित हो जाते हैं | रक्त का प्रतिप्रवाह गुणन रीनल मेड्युला से Na+आयन्स और Cl–आयन की हानि को रोकना है | यह अंतरकोशिकीय द्रव में सान्द्रता प्रवणता बनाये रखने में भी मदद करता है |
संग्रह नलिका : यूरिनीफेरस नलिका (नेफ्रोन) से मूत्र संग्रह नलिका में प्रवेश करता है जो अंतरकोशिकीय द्रव में Na+और Cl–की सान्द्रता बढ़ने के साथ रीनल मेड्युला से गुजरता है | इस नलिका की भित्ति जल के लिए पारगम्य होती है इसलिए जल परासरण द्वारा संग्रह नलिका से तनु मूत्र गुजरता है | अंतरकोशिकीय भाग में उच्च विलेय सांद्रता होती है |
प्रति-प्रवाह गुणन प्रक्रिया नेफ्रोन और संग्रहनलिका के चारों तरफ लवण सान्द्रता बढ़ाकर समपरासरी ग्लोमेरूलर छनित्र को अतिपरासरी मूत्र में परिवर्तित करती है |
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