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अशोक स्तंभ में कितने जानवर हैं ? सारनाथ स्तम्भ में पशुओं का क्रम pillars of ashoka in hindi animals

pillars of ashoka in hindi animals अशोक स्तंभ में कितने जानवर हैं ? सारनाथ स्तम्भ में पशुओं का क्रम ?

अशोक के एकाश्म स्तम्भ
मौर्यकाल के सर्वोत्कृष्ट नमूने, अशोक के एकाश्मक स्तम्भ है जोकि उसने धम्म प्रचार के लिए देश के विभिन्न भागों में स्थापित किए थे। ये चुनार के बलुआ पत्थर के बने हुए हैं। अशोक के कुल स्तम्भों की संख्या 17 थी। अशोक के रामपुरवा स्तम्भ पर वृषभ, लौरिया नन्दगढ़ पर सिंह तथा साँची और सारनाथ स्तम्भ पर चार सिंहों की आकृतियाँ मण्डित की गई हैं।
सारनाथ के स्तम्भ का सिंहशीर्ष
अशोक के एकाश्म स्तम्भों का सर्वोत्कृष्ट नमूना सारनाथ के सिंह स्तम्भ का शीर्ष है। सारनाथ के शीर्ष स्तम्भ पर सिंह आपस में पीठ सटाए बैठे हैं। शेरों के नीचे के पत्थर पर धर्म चक्र और चार पशु घोड़ा, शेर, हाथी और बैल अंकित हैं। नीचे उल्टी घंटी बनी हुई है। सिंहों के मस्तक पर महाधर्म-चक्र उत्कीर्ण था जिसमें मूलतरू 32 तिलियां भी बुद्ध की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। नीचे चार पशु यह शक्ति के ऊपर धर्म की विजय का प्रतीक है जो बढ़ अशोक दोनों के व्यक्तित्व में दिखाई देता है। सिंहों के नीचे फलकों पर चार चक्र बने हुए हैं जो धर्मचक्रप्रर्वतन के प्रतीक हैं। इसी पर जो नीचे चारों पशु (हाथी, अश्व, वृष व सिंह) आकृतियों चलती हुई अवस्था में है।
इनके प्रतीकात्मक अर्थ के विषय में अनेक मत दिये गये हैं। वोगेल का विचार है कि ये अलंकरण की वस्तु मात्र है जिनका कोई प्रतीकात्मक अर्थ नहीं है। ब्लाख ने इन्हें चार हिन्दू देवताओं – इन्द्र, सूर्य, शिव तथा दुर्गा का प्रतीक माना। क्योंकि हिन्दू धर्म में हाथी इन्द्र का, अश्व सूर्य का, वृष शिव का तथा सिंह दुर्गा का वाहन माना गया है। उनके अनसार इनके अंकन के पीछे शिल्पी का उद्देश्य यह था कि इन्हें बुद्ध के वशवर्ती दिखाया जाये। फूशे की धारणा है कि ये पश बुद्ध के जीवन की चार महान् घटनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। तद्नुसार हाथी उनके गर्भस्थ होने (जिसमें उनकी माता महामाया ने एक श्वेत हाथी को स्वर्ग से उतर कर अपने गर्भ में प्रविष्ट होते हुए देखा था), वृष जन्म (बुद्ध की राशि वष थी), अश्व गृह-त्याग तथा सिंह बुद्ध का प्रतीक है (जो स्वयं में शाक्य सिंह थे) किन्तु वी.एस. अग्रवाल की मान्यता है कि इन पशुओं को किसी संकीर्ण दायरे में सीमित करना उचित नहीं प्रतीत होता क्योंकि इनकी परम्परा सिंधु घाटी से लेकर उन्नीसवीं सदी तक मिलती है। भारत के बाहर लंका, बर्मा, स्याम, तिब्बत आदि में भी इनका अंकन मिलता है। महावंश में इन्हें श्चतुष्पद पंक्तिश् कहा गया है। रीतिकालीन कवि केशवदास (सत्रहवी सदी) ने राम राजमहल के चार द्वारों के रक्षक के रूप में इन पशुओं का उल्लेख किया है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि लोक भावना में इन चार पशुओं को मंगल सूचक माना जाता था। हिन्दू तथा जैन परम्परा में भी इन चारों पशुओं को मांगलिक द्रव्यों में स्थान दिया गया है। बौद्ध परम्परा में ये चारों पशु ब्रह्माण्ड के प्रतीक अनवतप्त सरोवर, जिसमें बुद्ध ने स्नान किया था, के चार द्वारों के रक्षक कहे गये हैं जहां से चार महानदियाँ निकलती हैं। प्रत्येक पशु का संबंध एक-एक चक्र से है। चक्र प्राणरूपी पुरुष है। इस प्रकार प्रत्येक युग्म पुरुष-पशु का प्रतीक है। प्रथम दैवी शक्ति तथा द्वितीय भौतिक तत्व का प्रतीक है। इस प्रकार ये सभी चित्र अत्यन्त आकर्षक एवं सुन्दर हैं। मार्शल के शब्दों में श्सारनाथ का सिंहशीर्षश् यद्यपि अद्वितीय तो नहीं है तथापि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में संसार में कला का जितना विकास हुआ था, उसमें यह सर्वाधिक विकसित कलाकृति है। इसके शिल्पी को पीढ़ियों का अनुभव प्राप्त था।श् इसी प्रकार स्मिथ ने इनकी प्रशंसा में लिखा है श्शिल्प की निपणता सबसे अधिक पर्णता को प्राप्त हो गयी तथा आज बीसवीं सदी में भी कला का ऐसा प्रदर्शन असंभव है। तीस-चालीस फुट ऊँचे स्तम्भों की यष्टियाँ ऐसी प्रभा से मण्डित हैं जिसका रहस्य आज भी विश्व का कोई देश नहीं जानता।श्
ये चार सिंह एक चक्र धारण किये हुए हैं। यह चक्र बौद्ध धर्म चक्र प्रवर्तन का प्रतीक है।
जॉन मार्शल – स्तम्भों की पशु आकृतियां शैली और तकनीकी दोनों ही दृष्टियों से अत्युतम कृतियां है। ये आकार तथा शैली की दृष्टि से भारत की शिल्पकला की निस्संदेह सर्वोत्तम कृतियाँ हैं और मैं समझता हूँ कि ये संसार के प्राचीन इतिहास में अद्वितीय हैं।श् सारनाथ का स्तंभ सारे पत्थर के स्तंभों से अधिक सुंदर है। इसमें चार शेरों की आकृतियाँ हैं जो परस्पर पीठ सटाए बैठी हैं। शेरों के नीचे के पत्थर पर चार धर्म-चक्र और घोड़ा, शेर हाथी और बैल (नंदी) के चित्र अंकित हैं और नीचे उल्टी घंटी-सी बनी है। समस्त मस्तक पर काले रंग की पॉलिश की हुई है। डॉ. वी.ए. स्मिथ ने लिखा है कि श्श्संसार के किसी भी देश में कला की इस सुंदर कृति से बढ़कर अथवा इसके समान शिल्पकला का उदाहरण पाना कठिन होगा।श्श् सर जॉनमार्शल भी सारनाथ स्तंभ को स्थापत्यकला का उत्कृष्ट नमूना मानते हैं।
स्तम्भों की, विशेषतः सारनाथ स्तम्भ की चमकीली पॉलिश, घण्टाकृति तथा शीर्ष भाग में पशु आकृति के कारण पाश्चात्य विद्वानों ने यह मत व्यक्त किया है कि कला की प्रेरणा अखमीनी ईरान से मिली है। अशोक के अभिलेखों की साम्यता ईरानी शासक डेरियस के अभिलेखों से की जा सकती है।

प्रश्न: मौर्यकालीन स्तम्भ वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: अशोक कालीन स्तंभ दो प्रकार के हैं – (1) स्तंभ जिन पर धम्म-लिपियाँ खुदी हुई हैं, (2) स्तंभ जो बिल्कुल सादे हैं।
पहले प्रकार में दिल्ली-मेरठ, दिल्ली-टोपरा, इलाहाबाद, लौरिया नन्दगढ़, लौरिया अरराज, रामपुरवा (सिंह-शीर्ष), संकिसा, साँची, सारनाथ, लुम्बिनी, निगाली सागर आदि के स्तंभ आते हैं। दूसरे प्रकार में रामपुरवा (बैल-शीर्ष), बसाढ़, कोसम आदि प्रमुख हैं।
स्तंभ के मुख्य भाग हैं- (1) यष्टि, (2) यष्टि के ऊपर अधोमुख कमल (घंटे) की आकृति, (3) फलका, (4) स्तंभ को मंडित करने वाली पश-आकति। स्तंभों की यष्टि एक ही पत्थर को तराश कर बनाई गई है। इन पर इतना बढिया पॉलिश है कि वे आज भी शीशे की तरह चमकते हैं। यष्टि के सिरे पर उल्टे कमल की आकृति है। कुछ विद्वान् इनकी तुलना पर्सिपोलिस (हखामनी सम्राटों की राजधानी) के घंटाशीर्ष से करते हैं। डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने इसे भारतीय पूर्णघट या श्मंगलकलशश् का प्रतीक बताया है। इसके ऊपर फलक ताँबे की कीलों द्वारा स्थापित है। यह कुछ स्तंभो में चैकोर तथा कुछ में गोल और अलंकृत है। फलक पर भिन्न-भिन्न पशुओं की आकृतियाँ, जैसे-हंस, सिंह, हाथी, बैल आदि मिलती है।
वे सभी स्तंभ अपने-आप में पूर्ण स्वतंत्र हैं तथा बिना किसी सहारे के खुले आकाश के नीचे खड़े हैं। सभी चुनार के बलुये पत्थर से बने हैं। ऐसा लगता है कि चुनार (मिर्जापुर) में स्तंभों के निर्माण का कारखाना रहा होगा।
ये स्तंभ दो प्रकार के पत्थरों से निर्मित किए गए हैं। कुछ को तो मथुरा क्षेत्र से प्राप्त चित्तीदार लाल एवं श्वेत बलुए पत्थर से निर्मित किया गया है। जबकि अधिकांश अन्य स्तंभों को चुनार से खोदकर निकाले गए पीतवर्णी बारीक दानेदार कठोर भूरे बलुए पत्थर से निर्मित किया गया है। स्तंभ की संपूर्ण लाट एक ही पत्थर से बनी है। ये स्तंभ गोलाकार और नीचे से ऊपर तक चढ़ाव-उतारदार हैं। नीचे से ऊपर तक इनका व्यास 125 सेंटीमीटर से 90 सेंटीमीटर तक है एवं इनकी टर के बीच है। इन स्तंभों तथा इनके शीर्ष पर वज्रलेप किया गया है जो अत्यंत सुंदर, चमकदार और चिकना है सी वज्रलेप के द्वारा की गई है या पत्थर की घुटाई करके, यह कहना कठिन है। लाटों पर प्रतिष्ठापित शीर्ष भाग को पृथक् से बनाकर स्थापित किया गया है।
स्तंभ के तीन भाग किए जा सकते हैं। पहला भाग ध्वज या स्तंभ का तना जो बिल्कुल सादा परंतु चिकना और चमकीला है। दूसरा भाग अंड या गल जो गोला बना हुआ है और धार्मिक प्रतीकों-चक्र, पशु-पक्षी, लता, पुष्प आदि से विभक्त और अलंकृत है। सबसे ऊपर स्तंभ का शीर्ष है जिसमें सिंह, हस्ति, अश्व, वृषभ आदि की मूर्तियाँ-एक या कई साथ बनी हैं। इन स्तंभों की ऊँचाई 40 से 50 फुट और वजन 50 टन तक है। 80 टन वजन के स्तंभों का भी वर्णन मिलता है।
शीर्ष के ऊपर निर्मित फलक पर विभिन्न पशुओं, पक्षियों एवं धर्मचक्र को उत्कीर्णित किया गया है। इन स्तंभों का भव्य सौंदर्य मुख्यतया पशु मूर्तियों के कारण ही है। इन स्तंभों के शीर्ष पर उत्कीर्णित पशु इस प्रकार हैं –
1. लौरिया-नन्दगढ़ स्तम्भ शीर्ष पर एक सिंह खड़ा है, नीचे ब्रह्मगिरि के राजहंस मोती चुग रहे हैं।
2. संकिसा (फर्रुखाबाद) में शीर्ष पर विशाल हाथी है।
3. रामपुरवा स्तम्भ शीर्ष पर एक वृषभ की आकृति है।
4. वी.ए.स्मिथ के अनुसार लौरिया-अरराज स्तम्भ शीर्ष पर एक गरूड़ की आकृति है।
चीनी यात्री फाहियान और होनसांग ने संकिसा और कपिलवस्तु में सिंह शीर्ष, पाटलीपुत्र में चक्र शीर्ष, श्रावस्ती में वष शीर्ष, लुम्बिनी में अश्व-शीर्ष और राजगृह में हस्ति शीर्ष युक्त स्तंभ देखे थे।