कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्र क्या है , कार्य , महत्व agroecology in hindi definition meaning krishi paristhitiki की योजना
krishi paristhitiki कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्र क्या है , कार्य , महत्व agroecology in hindi definition meaning ?
IPM पीड़क की व्याख्या
पीड़क की जैविकी का भली भांति अध्ययन चाहिए ताकि उसके जीवन-चक्र में कमजोर अवस्थाएँ पता लग सके। इस जानकारी सेनियंत्रक कार्यवाहियों से अधिकतम लाभ प्राप्त हो सकें। हमें पता लगना चाहिए कि पीड़क एकप्रज (univoltine) है अथवा बहुप्रज
(multivoltine)। एकप्रज स्पीशीजों के मामले में पीड़क के जीवन-चक्र की कमजोर अवस्था का नियंत्रण करने से उनकी समष्टि बहुत हद तक कम हो सकती है, उदाहरण के लिए धान के टिड्डे (grass hopper) और आम के मीली बग (mealy bug) के मामले में अंडे क्रमशरू धान के खेतों के पुश्तों पर और आम के वृक्ष के नीचे मिट्टी में दिए जाते हैं। गर्मियों में पुश्तों पर हल चलाकर अंड-शिम्बों को नष्ट कर देने पर धान की फसल पर टिड्डों की समष्टि काफी कम हो जाती है। इसी प्रकार, आम के वृक्ष के आधार के समीप की मिट्टी को उलट-पुलट कर अंडों को नष्ट करके आम के बग के विस्तार को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
फल-बेधकों और तना-बेधकों के मामले में अंडे में से हाल ही निकले लारवों को नष्ट कर देना ही इन पीड़कों के नियंत्रण करने का सबसे उपयुक्त तरीका है अन्यथा एक बार उत्तकों के भीतर कुछ जाने के बाद इनका नियंत्रण करना बहुत ही कठिन हो जाता है। इसी प्रकार शलभों (मॉथों) को आकर्षित कर और मार कर समष्टि में कमी लाई जा सकती है। पीड़क की सही-सही पहचान करना आवश्यक होता है ताकि उसके प्राकृतिक शत्रुओं का पता लगाया जा सके और उन्हें संरक्षण प्रदान किया जा सके, और यदि आवश्यक हो तो बड़े पैमाने पर अन्य स्थानों से प्राप्त किया जा सकता है और पीड़क के खिलाफ छोड़ा जा सकता है।
कृषि पारिस्थितिक तंत्र की व्याख्या
पारितंत्र वे आत्मनिर्भर आवास होते हैं जहाँ जीवित प्राणी और अजैव पर्यावरण एक अविराम चक्र में ऊर्जा और द्रव्य का आपस में आदान-प्रदान करने के लिए परस्पर क्रिया करते हैं।
पारितंत्र अस्तित्व, जैसे कि जंगल, तालाब, खेत और सामान्यतरू उनका नियमन अपने आप हो जाता है। प्राकृतिक पारितंत्रों के, जैसे कि जंगल और प्रशाद्वल प्रियरी, prairie) की तुलना में कृषि पारितंत्र में जंतु और पादप स्पीशीजों में कम विविधता पाई जाती है। कृषि-पारितंत्र में आमतौर से केवल कुछेक प्रमुख स्पीशीज और अनेक अप्रमुख स्पीशीज पाई जाती हैं, और पीड़क का प्रकोप होने पर, आमतौर में केवल एक ही पीड़क-स्पीशीज (जो अक्सर एक प्रमुख स्पीशीज होती है) बड़ी संख्या में पाई जाती है। एक प्ररूपी कृषि इकाई में 1-4 तक प्रमुख फसल-स्पीशीज और 6-10 तक पीड़क-स्पीशीज हो सकती हैं। लेकिन वास्तव में पौधों और कीटों की विविधता उतनी सीमित नहीं होती है जितनी कि परिस्थितियाँ सुझाती हैं।
कृषि पारितंत्र में मनुष्य के द्वारा की गई जुताई, कटाई और पीड़कनाशियों के इस्तेमाल के कारण बहुत हद तक हेर-फेर हो जाती है क्योंकि इन मानव-क्रियाओं के कारण प्राकृतिक शत्रुओं को क्षति पहुँचती है।
अतः कृषि पारितंत्र में प्राकृतिक शत्रुओं की सघनता अपेक्षाकृत कम होती है। इसलिए कृषि पारितंत्र पीड़क द्वारा क्षति के लिए तथा भंयकर प्रकोपों के लिए अधिक प्रभाव्य होते हैं। ऐसा पादप – और कीट-स्पीशीज की विविधता कम होने के कारण और मौसम तथा मानव द्वारा अचानक परिवर्तन थोप देने के कारण होता है। अक्सर कोई कीट आक्रमण करता है, स्थापित हो जाता है और केवल थोड़ी अवधि के लिए जीवित रहता है। लेकिन यहाँ-वहाँ पौध रोपित .होने के कारण पीड़कों को लंबी अवधि तक भोजन मिलता रहता है और इससे पीड़क-समस्याएँ बढ़ जाती हैं।
कृषि पारितंत्र की योजना तैयार करना
पीड़क-समस्याओं को कम करना रू फसलों का रोपण इस प्रकार करना चाहिए ताकि पीड़क-समस्याएँ कम हो जाएँ अथवा रुक जाएँ। इस काम के लिए कृषि-पद्धतियों को बदला जा सकता है। गर्मियों में पहली जुताई करने से मिट्टी में पाए जाने वाले पीड़क, जैसे कटवर्म, व्हाइट ग्रब, छछुन्द झींगुर, आर्मीवर्म, आदि, मिट्टी के बाहर आ जाते हैं और मानो परभक्षियों के शिकार बन जाते हैं अथवा अत्यधिक गर्मी अथवा सर्दी के कारण मर जाते हैं और इस प्रकार आने वाली फसल के मौसम में उनकी समष्टि घट जाती है। इसी प्रकार रोपण-काल को अग्रसित अथवा स्थगित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए रेपसीड-सरसों को अक्तूबर में रोपित करने की बजाए यदि सितम्बर में रोपित किया जाए तो इन फसलों पर ऐफिडों का ग्रसन कम जाएगा। जून अथवा जुलाई में रोपित फसल के मुकाबले में फसल अगस्त में रोपित गंधी बग के संक्रमण के लिए कम सुप्रभाव्य होती है। कभी-कभी रोपण तिथि में परिवर्तन करने से विभिन्न पीड़कों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ सकता है। इस प्रकार की स्थिति में, रोपण-तिथि का चयन पीड़कों के अपेक्षित महत्व के आधार पर करना चाहिए।
यदि पीड़क का असर फसल-पौद पर नर्सरी में ही दिखाई दे रहा है तो पीड़क का नियंत्रण नर्सरी में ही कर लेना आसान होगा, क्योंकि
उसका नियंत्रण छोटे पैमाने पर तथा पर्यावरण को कम-से-कम संदूषित किए आसान होता है। इसी प्रकार, प्रतिरोपण के समय पौद को
पीड़कनाशी घोल में डुबा लेना, बुवाई करने से पहले बीजों को पीड़कनाशी से उपचारित कर लेना भी पीड़क-समस्याओं को और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में बहुत कारगर सिद्ध होता है। धान की पौद को प्रतिरोपित करने से पहले क्लोरपाइरिफॉस में डुबो लेना
तना-बेधक, गॉल-मिज और पादप टिड्डे के खिलाफ बहुत प्रभावी होता है।
प्रतिरोधी कृषिजोप जातियाँ (cultivars) उगाएँ रू जहाँ तक संभव हो फसलों की प्रतिरोधी कृषिजोप जातियाँ उगाएं। इन कृषिजोप
जातियों से पीड़कनाशियों को इस्तेमाल करने की आवश्यकता बहुत हद तक कम हो जाती है। इस प्रकार की किस्में नियंत्रण की सस्य विधियों के साथ और जैविक नियंत्रण के कर्मकों के साथ संगतता भी करती हैं। उन फसलों को जो समान ही प्रकार के पीड़क-प्राणि समूहों के संक्रमित होती हैं, सस्यावर्तन में नहीं उगाना चाहिए, क्योंकि कुछ पीड़कों को वर्ष भर अक्षुब्ध रूप से भोजन मिलता रहेगा। यह देखा गया है कि सिंध-गंगा प्रदेशों में धान के बाद गेहूँ और गेंहूँ के बाद फिर धान बोने पर गुलाबी बेधक, सेसेमिया इंफरेंस का आक्रमण तीव्र हो जाता है। यह पीड़क दोनों फसलों से अपना भोजन प्राप्त करता है। इसी प्रकार, एक ही फसल को बार-बार नहीं उगाना चाहिए। हमारे देश के कुछ भागों में धान की लगातार दो या तीन फसलें उगाई जाती हैं जिससे पीड़क-समस्याएँ बढ़ जाती हैं। फार्म के बड़े क्षेत्रों में एक ही फसल नहीं उगानी चाहिए बल्कि एक फार्म पर विभिन्न प्रकार की फसलें उगानी चाहिए। अंतरासस्यन से अनेक पीड़कों के प्रभाव कम हो जाते हैं क्योंकि अंतरासस्यन से पीड़कों के परपोषी पौधों की विभिन्न कतारों के बीच एक प्रकार का अवरोध बन जाता है।
गेहूँ के साथ सरसों के अंतरासस्यन से सरसों में ऐफिड़ का प्रभाव कम हो जाता है। इसीप्रकार अनाजों के साथ दालों का अंतरासस्यन (जैसे कि गेहूँ के साथ चने अथवा मसूर, आदि का) किया जा सकता है इससे न केवल पीड़क समस्याएँ ही कम होती हैं बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बरकरार बनी रहती है।
उर्वरकों का इस्तेमाल संतुलित तरीके से करना चाहिए रू कभी कभी किसान अपने खेतों में नाइट्रोजन जरूरत से ज्यादा मात्रा में देते हैं और फॉस्फोरस तथा पोटाश बिल्कुल नहीं देते। पीड़क-नियंत्रण की दृष्टि से यह कोई स्वस्थ परंपरा नहीं है। नाइट्रोजन की अधिक मात्रा के कारण अनेक पीड़कों का प्रभाव, विशेष रूप से फसलों पर चूषक पीड़कों का प्रभाव बढ़ जाता है, अतः नाइट्रोजन केवल उतनी ही मात्रा में देनी चाहिए जितनी कि सलाह दी जाती है। इसी प्रकार फॉस्फोरस और पोटाश को भी अनुशंषित भागों में दिया जाना चाहिए। पोटाश फसलों को पीड़कों के लिए प्रतिरोधी बनाता है।
कुछ फसलों में जल-प्रबंधन भी पीड़क-प्रभाव को कम करता है रू धान के मामले में, खेतों को एकांतर क्रम में नमी प्रदान करना और खुश्क रखना भी पादप-टिड्डों के प्रकोपों से बचाता है। पाश फसल (trap crop) से भी फसलों के पीड़कों के प्रभाव को कम किया जा सकता है। प्रमुख फसल की अपेक्षा पाश फसल सस्ती होनी चाहिए और पीड़कों के लिए वह प्रमुख फसल के मुकाबले में अधिक आकर्षण होनी चाहिए। बंद गोभी और पत्ता गोभी के मामले में सरसों एक पाश फसल के रूप में इस्तेमाल की जाती है ताकि सब्जियों पर ऐफिडों का प्रभाव कम हो जाए। पाश फसल को मुख्य फसल के चारों तरफ अथवा उसकी कतारों के बीच थोड़े-थोड़े फासले पर लगाना चाहिए। उसके बाद सरसों पर ऐफिडों को मारने के लिए पीड़कनाशी का प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार पीड़कनाशी का प्रयोग कम हो जायेगा और अंततरू सब्जियों में पीड़कनाशी-अवशिष्टों की समस्या भी कम हो जाएगी। टमाटर के खेत में एक पाश-फसल के रूप में गेंदा लगाने से नेमैटोड़ों और फल-वेधक का ग्रसन कम हो जाता है।
खेत में पीड़कों के प्राकृतिक शत्रुओं की भी बड़ी विविधता पाई जाती है। ये प्राकृतिक शत्रु पीड़कों को सीमित संख्या में बनाए रखते हैं बशर्ते कि विस्तृत स्पेक्ट्रम पीड़कनाशियों के कारण तथा किसानों की अन्य कार्यगुजारियों के कारण इन्हें क्षति न पहुँचे। अतः पीड़कनाशी का उतना ही उपयोग करें जितना कि आवश्यक है। पीड़कनाशियों का रोगनिरोधक अथवा कलैंडर उपयोग करने से बचें। किसी फसल पर कितना पीड़कनाशी इस्तेमाल करना है यह बात फसल के ऊपर मौजूद पीड़क-समष्टि की संख्या पर निर्भर होती है। लघुत्तम समष्टि-सघनता, जिस पर नियंत्रण-कार्यवाही आरंभ करनी चाहिए, आर्थिक प्रारंभन सीमा स्तर (म्ज्स्) कहलाती है। इस स्तर का विकास विभिन्न फसलों पर प्रभाव पीड़कों के लिए किया गया है। म्ज्स् – संकल्पना को अपनाने से पीड़कनाशी के इस्तेमाल को 50 प्रतिशत से भी अधिक कम किया जा सकता है।
फसलों पर पीड़क-समष्टि का निर्धारण करने के लिए नियमित रूप से मॉनीटरन भी आवश्यक है। कुछेक मामलों में, पीड़क-समष्टि का स्वरूप तब तक दिखाई नहीं पड़ता जब तक कि समष्टि प्रकोप के स्तरों तक न पहुँच जाए, और तब पीड़क को नियंत्रित करना बहुत कठिन हो जाता है। नियमित रूप से मॉनीटरन करते रहने से पीड़कों के क्रियाकलापों पर निगरानी बनी रहती है।
चयनात्मक पीड़कनाशियों का इस्तेमाल कीजिए रू पीड़कनाशियों का उसी स्थिति में इस्तेमाल कीजिए जब अन्य विधियाँ पीड़कों को सीमित रखने में असफल हो जाएँ। चयनात्मक पीड़कनाशियों को, यदि वे उपलब्ध हैं प्राथमिकता देनी चाहिए। ये पीड़कनाशी पीड़कों के खिलाफ तो कारगर होते हैं, लेकिन उपयोगी जीवों, जैसे कि पीड़कों के प्राकृतिक शत्रु, के लिए अहानिकर होते हैं। यहाँ तक कि गैर-चयनात्मक पीड़कनाशियों को उपयुक्त संरूपों के जरिए पर्यावरण के लिए कम हानिकर बनाया जा सकता है, उदाहरण के लिए फॉरेट अथवा कार्बाफ्यूरान जैसे पीड़कनाशियों के कणिकामय संरूप पीड़कों के प्राकृतिक शत्रुओं के लिए कम हानिकर होते हैं। यदि फसल पर प्राकृतिक शत्रु निष्क्रिय हो, तो पीड़कनाशियों का मुक्त रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है। फिर भी, जब प्राकृतिक शत्रु सक्रिय हो तब विस्तृत स्पेक्ट्रम पीड़कनाशियों का प्रयोग यथासंभव नहीं करना चाहिए। रेपसीड-सरसों के मामले में, दिसम्बर-जनवरी की कड़ी सर्दी में परभक्षी नहीं होते। इस अवधि के दौरान, ऐफिड-समष्टि बिना किसी रोकटोक के बढ़ जाती है। ऐफिडों को सीमित रखने के लिए उनकी समष्टि कम करने के लिए इस अवधि में पीड़कनाशियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। फरवरी के दौरान परभक्षी सक्रिय हो जाते हैं और ऐफिडों को खा जाते हैं। इस प्रकार, रेपसीड-सरसों पर ऐफिड़ों की संख्या कम करने के लिए प्राकृतिक शत्रुओं और पीड़कनाशियों का समकलन किया जा सकता है।
यदि पीड़कनाशियों का उपयोग प्राकृतिक शत्रुओं की मौजूदगी में ही किया जाए तो खेत के कुछ भाग को अनुपचारित ही छोड़ देना चाहिए ताकि प्राकृतिक शत्रुओं को राहत मिल सके। पादपजन्य पीड़कनाशी, जैसे कि नीम, बैक्टीरिया (बैसीलस थुरिजिऐन्सिस, ठज). और न्यूक्लियर पोलीहेड्रोसिस वाइरस (NPV) गैर लक्ष्य जीवों के लिए कम खतरनाक हैं।
समुचित कटाई रू फसलों की कटाई इस प्रकार करनी चाहिए ताकि फसलों के ठूठों में पीड़क कम-से-कम संख्या में ही जीवित बचे रहें, उदाहरण के लिए धान की जमीन-स्तर तक कटाई करते समय, तना-बेधक के लारवे भूसे में बचे रहते हैं, जो धान की पिटाई (प्रेसिंग) करते समय कुचल जाते हैं। यदि कटाई जमीन-स्तर तक नहीं की गई है तब अधिकांश लारवे दूंठों में रह जाते हैं जिसका परिणाम यह होता है कि अगली फसल के पीड़क-समष्टि बहुत बड़ी संख्या में उत्पन्न हो जाती है। इसी प्रकार फसल की पिटाई में देर नहीं करनी चाहिए और पिटाई-आहते में फसल के अवशिष्टों को नष्ट कर देना चाहिए। पिटाई करने के बाद रेपसीड-सरसों के अवशिष्टों को नष्ट करने पर पेन्टिड बग-समष्टि भी कम हो जाती है।
पादप-संरक्षण से संबंधित वैज्ञानिकों को सस्य वैज्ञानिकों तथा कृषि से संबंधित अन्य वैज्ञानिकों के साथ मिलकर कृषि पारितंत्र की योजना पर काम करना चाहिए ताकि भरपूर खाद्य उत्पादन हो सके और पीड़क-समस्याएँ कम-से-कम हों। फसल-उत्पादन और फसल-संरक्षण तंत्रों में समाकलन तो होना ही चाहिए।
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