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अनाज में नीम की पत्तियां क्यों रखी जाती है why dried neem leaves are used to store wheat in hindi अनाज में नीम रखने का कारण क्या है

why dried neem leaves are used to store wheat in hindi अनाज में नीम की पत्तियां क्यों रखी जाती है why are dried neem leaves used for storing food grains at home अनाज में नीम रखने का कारण क्या है ?

काल महत्त्वपूर्ण घटनाएँ
प्राचीन भारतवर्ष में बहुत पुराने जमाने से पीड़कों को दूर रखने के लिए अनाज की धानियों (bins) में नीम की पत्तियों को रखा जाता था। मध्यपूर्वी देशों में गुलदाऊदी के फूलों को कीटनाशियों के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। चीनवासियों द्वारा भंडारित अनाजों को कीट-पीड़कों के नियंत्रण के लिए चाक मिट्टी और लकड़ी की राख का, तथा बीजों के उपचार के लिए जैविक कीटनाशियों का इस्तेमाल होता था।

सत्रहवीं शताब्दी अमरीका में हेसियन मक्खी के लिए प्रतिरोधी गेहूँ की “अंडरसेल” किस्म ।
(1682)

उन्नीसवीं शताब्दी पाइरीथ्रम को सबसे पहले अमरीका में (1858) कीट-पीड़कों के नियंत्रण के लिए इस्तेमाल किया गया। अमरीका में (1858-1892) नींबू की फसल पर कॉटनी कुशन स्केल का जैविक नियंत्रण ऑस्ट्रेलिया से आयातित वेडैलिया भंग द्वारा किया गया (1888-89)। यूरोप में फाइलोक्सेरा अंगूर में विटियस विटिफोलिआई के कारण होने वाले रोग के प्रबंधन में अंगूर की बेल को उत्तरी अमरीकी के प्रतिरोधी प्रकंदों की कलम चढ़ाकर किया गया।

सन् 1992 में अमरीका में जिप्सी मॉथ के नियंत्रण के लिए लेड आर्सिनेट का प्रयोग किया गया।

बीसवीं शताब्दी मद्रास राज्य में काॅटन पेस्ट ऐक्ट (1911) लागू किया गया। इस ऐक्ट के अंतर्गत प्रत्येक वर्ष काॅटन (कपास) के
(1911-1999) वंृतो को पहली अगस्त तक हर हालत में हटाना पड़ता था ताकि पिंकबाॅल वर्म होने से होन वाली क्षति कम से कम हो जाऐं।

बीसवीं शताब्दी सन् 1923 में अमरीका में बॉलवीविल के नियंत्रण के लिए बहल संघटक संपीड़न तकनीकों का इस्तेमाल किया गया
पहला अर्धांश जिनमें प्रतिरोधी किस्मों और स्वच्छ-सफाई की विधियों का प्रयोग, और कीटनाशी का आवश्यकता के आधार पर उपयोग किया गया। स्विटजरलैंड में पॉल मुलर (1939) ने DDT के कीटनाशक गुणों का विवरण दिया।
फ्रांस (1991) में हेक्साक्लोरो साइक्लोहेक्सेन की कीटनाशक सक्रियता की खोज हुई।

सन् 1946 में सबसे पहला ऑर्गेनो फॉस्फेट कीटनाशी, पैराबिऑन बनाया गया।

अमरीका में सन् 1948 में जापानी भंग के लाखों के नियंत्रण के लिए “धूम” पर आधारित बैंसिलस पैपिलिआई और बैसिलस लेंटिमॉर्बस पर आधारित डूम” रजिस्टर किए गए।

बीसवीं शताब्दी आर.एच. पेंटर (1951) ने अपनी प्रतिष्ठित पुस्तक ‘‘फसली पौधों में कीट प्रतिरोध‘‘ प्रकाशित की।
समाकलित नियंत्रण की संकल्पना जिसके अंतर्गत रासायनिक और जैविक नियंत्रण-विधियों का समाकलन शामिल है।
वी.एम. स्ट्रीम और उनके साथियों (1959) में आर्थिक-क्षति स्तर और आर्थिक प्रारंभ सीमा की संकल्पनाएँ विकसित की।
रैकल कारसन (1962) ने अपनी पुस्तक ‘साइलैंट स्प्रिंग‘ में पीड़कनाशियों का गलत इस्तेमाल, अधिक इस्तेमाल और पीड़कनाशियों का पर्यावरण पर प्रभाव के विषय में प्रकाशित किया है।
पॉल डीबैक (1964) ने अपनी पुस्तक “कीट पीड़कों और अपतृणों का जैविक नियंत्रण‘‘ पुस्तक प्रकाशित की जिसमें यह बात स्थापित हो गई कि फसल-संरक्षण में जैविक नियंत्रण एक अलग ही विषय हो सकता है।
सन् 1973 में पहला प्रकाश-स्थायी पाइरीथ्रॉइड-पर्मेथिन विकसित किया गया। सन् 1975 में एल्कार (Elcar) हेलिकोवा छच्ट कपास में बॉलवर्म और हॉर्न वर्म के नियंत्रण के लिए रजिस्टर किया गया।
सन् 1975 में अमरीका में पहला कीट-वृद्धि नियामक (मेथोप्रीन) व्यापारिक इस्तेमाल के लिए रजिस्टर किया गया।
आर.एल. मेट्काफ और डब्ल्यू.एच.ल्युकमान् ने अपनी पुस्तक ‘‘कीट-पीड़क-प्रबंधन की भूमिका‘‘ प्रकाशित की, जो प्च्ड पर पहली विस्तृत पुस्तक थी।
पादपजन्य पीड़कनाशियों में अभिरुचि फिर से जाग्रत होने लगी, और रोटेख ईगर्न, जर्मनी (1980) में नीम पर पहली अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई।
बेल्जियन बायोटेक्नोलॉजी कंपनी के एम.वाईक और उनके साथियों (1987) ने पहले ट्रांसजेनिक पौधे के विकास के बारे में बताया।
1989-1990 एक IPM कार्य-बल (task force) की स्थापना की गई जिसका काम था IPM के विभिन्न कार्यक्रमों के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन और कार्यान्वयन को विकसित करे। कार्यबल द्वारा नियुक्त परामर्शदाताओं की एक टीम ने IPM की स्थिति का पुनरीक्षण किया और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की। बाद में इस कार्यबल को 1989-90 में बदल कर एक समाकलित पीड़क-प्रबंधन-कार्यसंचालन ग्रुप (IPMWG) का रूप दे दिया गया।
सन् 1990 में आई.पी. पेडिगो और एल.जी. हिग्ले ने पर्यावरण-आर्थिक क्षति स्तर की संकल्पना का प्रस्ताव दिया।
एक कार्य-बल, जिसमें FAO, विश्व बैंक और UNDP के अधिकारी गण शामिल थे, ने विश्व स्तर के लिए IPM की सुविधा के लिए सह प्रत्याभूति प्रदान की और इसका मुख्यालय था FAO, रोम ।

समाकलित पीड़क-प्रबंधन की संकल्पना
पीड़क-प्रबंधन की संकल्पना की उत्पत्ति 1950 के दशकों की पीड़क-नियंत्रण के शुद्ध रूप से कीटनाशी उपागम से असंतोष के कारण हुई। हालांकि यह शीर्षक 1960 के आरंभ में प्रचलित हुआ था, फिर भी पीड़क-प्रबंधन के आधार तत्व जैविक नियंत्रण के आरंभिक सिद्धांतों में मौजूद थे। बाद में समाकलित नियंत्रण की संकल्पना विकसित की गई जिसमें कीटनाशियों के चयनात्मक उपयोग पर जोर दिया गया ताकि कृषि पारितंत्र के प्राकृतिक शत्रु आरक्षित बने रहें। बाद के वर्षों में नियंत्रक तकनीकों के श्समाकलनश्श् को विस्तृत रूप दिया गया ताकि उसमें अन्य तकनीकों को भी शामिल किया जा सके लेकिन प्राकृतिक शत्रु का आरक्षण समाकलित नियंत्रण का हमेशा ही एक व्यापक सिद्धांत बना रहा।
पीड़क-प्रबंधन का समग्र संकल्पनात्मक दृष्टिकोण, जिसे इस पाठ्यक्रम में प्रस्तुत किया है, चित्र 5.2 में दिखाया गया है। पीड़क-प्रबंधन
का कोई अस्तित्व ही नहीं होगा जब तक पीड़क विद्यमान न हों। पीड़कों को इस संकल्पनात्मक आरेख में आधार पर दिखाया गया है ।

प्च्ड प्रोग्राम को विकसित करने में इन पीड़कों की पारिस्थितिकी और समष्टि जैविकी की समझ का मूलभूत महत्व है (इकाई 7)। प्च्ड के अंतर्गत कुछ तकनीकें शामिल हैं जिन्हें पीड़क-समष्टि के प्रबंधन में इस्तेमाल किया जा सकता है (खंड 3 और 4)। किसी पीड़क जीव के नियंत्रण में प्रयुक्त रणनीतियों का चयन (निर्णय लेना) निर्धारित नहीं होता, बल्कि उसमें आर्थिकी की विविधताएँ और प्च्ड तंत्र के समग्र पर्यावरणपरक नियंत्रण की झलक दिखाई देती है। IPM शून्य में कार्य नहीं करता। मानव समाज पीड़क-प्रबंधन की पद्धति में कुछेक प्रतिबंधों की माँग करता है। सामाजिक दृष्टिकोण और प्रतिबंध संकल्पनात्मक आरेख के शीर्ष पर दिखाए गए हैं, क्योंकि सामाजिक स्तर पर लिए गए निर्णय किसी IPM प्रोग्राम के सभी पहलुओं को बता सकते हैं।