आई पी एम में मॉडल, सूचना प्रौद्योगिकी और संचार प्रौद्योगिकी model in ipm in hindi Information and Communication Technology
model in ipm in hindi Information and Communication Technology आई पी एम में मॉडल, सूचना प्रौद्योगिकी और संचार प्रौद्योगिकी ?
आई पी एम : कुछ प्रश्न
आई पी एम पीड़क जातियों के नियंत्रण के लिए एक सामाजिक दृष्टि से स्वीकार्य दृष्टिकोण है क्योंकि यह व्यापक एवं लचीला है जो किसानों, नगरवासियों, स्कूल तंत्रों तथा नगरपालिकाओं को सतत् पर्यावरण की दृष्टि से स्वस्थ एवं आर्थिक दृष्टि से व्यवहार्य तंत्र विकसित करने के योग्य बनाता है।
प) इन कसौटियों को ध्यान में रखते हुए अनेक महत्त्वपूर्ण प्रश्न उभरते हैं। क्या आई पी एम पीड़कनाशियों का निवेश कम करने की
उन प्रत्याशाओं को पूरा कर पाएगा जिनका वायदा उसने 1960 के दशक के उत्तरार्ध और 1970 के दशक के शुरू में किया था? शायद नहीं।
पप) क्या सरकार से लगभग तीन दशक तक सहायता मिलने के बाद भी आई पी एम सफल हो पाया है? उत्तम समाज की दृष्टि से,
शायद नहीं ।
पपप) क्या हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं जब पीड़क प्रबंधन के निर्णय समाज के पूरे हित में और उत्पादकों की सामयिक एवं लाभकर
उत्तम दृष्टि को ध्यान में रखकर लिए जाएंगे? शायद हां।
अब इस इकाई में हम यह देखें कि हमारी भावी रणनीतियां और संभावित परिवर्तनों की दिशाएं क्या होंगी ताकि हम विश्वास के साथ घोषित कर सकें कि आई पी एम सफल रहा है।
आई पी एम में साकल्यवादी दृष्टिकोण
श्सही मायनेश् में आई पी एम को अधिक सीमा तक कार्यान्वित किया जा सकता है यदि आई पी एम की एक विश्वव्यापी परिभाषा स्वीकार कर ली जाए। आई पी एम को अपनाने में प्रगति तो हुई है किंतु यदि नियंत्रण नीतियों को लागू करने में कुछ परिवर्तन कर दिए जाएं तो भविष्य में और अधिक आशा की जा सकती है।
पीड़क नियंत्रण की अनेक विधियां है जो पारिस्थितिकी के अनुकूल हैं जैसे यांत्रिक विधियां, संवर्धन विधियां, व्यवहारपरक विधियां, जैव विधियां और परपोषी प्रतिरोध आदि। हम जानते हैं कि अकेली ये विधियां पर्याप्त नहीं हैं लेकिन अन्य विधियों के साथ मिलाकर बहुत प्रभावी हो सकती हैं। उदाहरणतः अकेले प्राकृतिक शत्रु या अकेली प्रतिरोधी किस्म शायद पीड़कों की संख्या का अपेक्षित स्तर तक दमन न कर पाए लेकिन जब उन दोनों को मिला दिया जाए तो वे बहुत प्रभावी सिद्ध होते हैं। ऐसी विधियों के समाकलन पर अधिक काम नहीं किया गया है। अतरू समय की मांग है कि प्रभावी तथा संगत पीड़क नियंत्रण विधियों का समाकलन किया जाए।
कीट पीड़कों का प्रतिरोधी कृषज-उपजातियों, प्राकृतिक शत्रुओं और चयनात्मक पीड़कनाशियों द्वारा प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है। फसलों में पीड़कों के प्राकृतिक शत्रु प्राणियों की भरमार होती है जिनका उपयोग पीड़कों के दमन के लिए सही विधि से किया जाना चाहिए। प्राकृतिक शत्रुओं को व्यापक स्पेक्ट्रम वाले पीड़कनाशियों के हानिकर प्रभावों से बचाने के प्रयास किये जाने चाहिए। यदि चयनात्मक पीड़कनाशी उपलब्ध न हों तो उपयुक्त संरूपणों या पीड़कनाशी प्रयोग की विधियों द्वारा भी चयनात्मकता प्राप्त की जा सकती है। दैहिक पीड़नाशियों के कणिकामय संरूपण प्राकृतिक शत्रुओं को बहुत हानि पहुंचाते हैं क्योंकि वे प्राकृतिक शत्रुओं के साथ प्रत्यक्ष संपर्क में नहीं आते, उदाहरणतः कार्बोफ्यूरान और फोरेट के कण धान पारिस्थितिक तंत्र में परभक्षियों तथा परजीव्याभों के लिए कम हानिकारक होते हैं। पीडकनाशियों का प्रयोग अंतिम उपाय के रूप में तभी करना चाहिए जब पीड़कों की संख्या को नियंत्रित करने के अन्य उपाय विफल हो जाएं, न कि प्रथम विकल्प के रूप में। प्रतिकूल मौसम के दौरान कुछ फसलों में प्राकृतिक शत्रु कुछ अवधि के लिए गायब हो जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में पीड़कनाशियों का प्रयोग किया जा सकता है। बाद में, जब प्राकृतिक शत्रु सक्रिय हो जाएं, तब पीड़कनाशियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उदाहरणतः गेहूं के मामले में दिसंबर से मार्च तक ऐफिड सक्रिय रहते हैं। दिसंबर से मध्य फरवरी तक उनके परभक्षी यथा कॉक्सिनेलिड और सिर्फिड सक्रिय रहते हैं। उनकी अनुपस्थिति में ऐफिड़ों की संख्या बहुत बढ़ जाती है। मौसम के गरम होने के साथ कॉक्सिनेलिड और सिफिड सक्रिय हो जाते हैं और ऐफिडों को तेजी से खाने लगते हैं। कड़ी सर्दी के दौरान ऐफिड की संख्या को पीड़कनाशियों द्वारा नियंत्रण में रखा जा सकता है और बाद में प्राकृतिक शत्रुओं का पूरा लाभ उठाने के लिए पीड़कनाशियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
आई पी एम में मॉडल, सूचना प्रौद्योगिकी और संचार प्रौद्योगिकी
प्रौद्योगिकी में भारी परिवर्तनों के साथ आई पी एम का भविष्य कौतूहल और चुनौती से भरा होगा। इन्टरनेट क्षमताओं वाला प्रौद्योगिक युग सूचना तक शीघ्र पहुंच के लिए भरपूर अवसर उपलब्ध कराता है लेकिन जनता तक उपयुक्त रूप से पहुंचाने की चुनौतियां भी प्रस्तुत करता हैं।
मॉडल किसी तंत्र का निरूपण होते हैं। पीड़क प्रबंधन में मॉडलों और सुदूर संवेदन के प्रयोग के बारे में आप इकाई 8 में पढ़ चुके हैं। इन्टरनेट के माध्यम से किसानों तथा सामान्य जनता की पीड़क प्रबंधन के मुद्दों से संबंधित विविध प्रकार की अभिज्ञ तथा अनभिज्ञ राय, सूचना तथा डाटा तक पहुंच पहले से ही है। वैज्ञानिक निहित स्वार्थ वाले वर्ग भोजन एवं पर्यावरणी सुरक्षा से संबंधित मामलों पर (जैसे पीड़कनाशी अवशेष GMOS) निजीकृत नई जानकारी प्राप्त कर सकेंगे जिससे सामान्य जनता को अधिक अभिज्ञ और जागरूक बनाया जा सकेगा।
प्रौद्योगिक विकास निम्नलिखित आई पी एम नीतियों में क्रांति लाएगा।
पीड़क मॉनीटरन और निर्णय लेना
प्रौद्योगिक प्रगति ने आर्थोपोड पीड़क निगरानी और निर्णय लेने के प्रति दृष्टिकोणों को 1980 के दशक से ही बदल दिया है।
अन्य महत्वपूर्ण घटनाएं 1980 के दशक के आरंभ से तेजी से प्रसार कर रही कम्प्यूटर एवं भूमंडलीय संचार प्रौद्योगिकियों पर आधारित हैं। कम्प्यूटर की शक्ति में वृद्धि और उसके आकार तथा वजन में कमी के फलस्वरूप खेत में विश्लेषण तथा तत्काल निर्णय के लिए। कम्प्यूटरों के अधिक प्रयोग को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। शक्तिशाली सुवाह्य कम्प्यूटरों और डाटा लॉगरों के प्रयोग से डाटा की पुनरू प्राप्ति (retrieval) समाकलन एवं रिकार्डिंग, मॉडलों के चालन, तथा खेत में निपुण तंत्रों के प्रयोग में वृद्धि होगी। पीड़क प्रबंधन का समाकलन प्राप्त करने का एकमात्र संभावित उपाय डाटा के मूल्यांकन के लिए कम्प्यूटरों का प्रयोग होगा। प्रत्याशित भावी परिवर्तनों में निम्नलिखित शामिल हैं :
प) पीड़क की पहचानरू निपुण तंत्र पीड़क पहचान तक पीड़कों की चित्र सूचियों सहित पहुंच सामान्य हो जाएगी। यह माना जा
सकता है कि है कम्प्यूटर, अंकीय प्रतिबिंबन प्रौद्योगिकी के माध्यम से, पीड़क जीवों की पहचान जल्दी कर पाएंगे। आनुवंशिक प्रोफाइलों द्वारा पीड़कों की पहचान तत्परता से हो जाएगी और पहचान के लिए आनुवंशिक सूचकों का प्रयोग एक मानक व्यवहार बन जाएगा, विशेषतरू गोपक (cryptic) जीवों के लिए जैसे रोगजनक और सूत्रकृमि ।
पप) भविष्यवाणीरू घटानाओं की भविष्यवाणी करने वाले मॉडलों को चलाने की योग्यता में सुधार, रोग और कीट पीड़क प्रबंधन के
लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र होगा।
पपप) संशोधित अवसीमा और निगरानीरू दस्ती क्षेत्र कम्प्यूटरों (Hand held field computer) पर चलने वाले प्रयोक्ता-मैत्रीपूर्ण
(user friendly) निपुण तंत्रों का विकास आर्थिक सीमाओं के प्रयोग की योग्यता में बहुत सुधार करेगा, जहां ऐसे निर्णय लेने के पैरामीटर उपयोगी हों। कम्प्यूटर का एक अन्य अनुप्रयोग पीड़क के प्रभाव और संभावित प्रचुरता के पूर्वानुमान के लिए मात्रा-दिवस मॉडल (degree day model) का प्रयोग है।
पअ) सिफारिशों के लिए डाटा भंडारण और पुनरू प्राप्ति (रिट्रीवल) क्षेत्र से विशाल डाटाबेसों जैसे क्षेत्र के ऐतिहासिक रिकार्ड, पीड़क जैविकी, नियंत्रण की सिफारिशें और पीड़कनाशी लेबल सूचना तक शीघ्र एवं सरल पहुंच PCAS (पीड़क नियंत्रण सलाहकारों) की आई पी एम के निर्णय तत्काल लेने की क्षमता में बहुत वृद्धि करेगी।
अ) कम्प्यूटर अंकीय प्रतिबिंबन प्रौद्योगिकी (Computer Digital Imaging Technology) : यह प्रौद्योगिक मशीन द्वारा
फसल तथा पीड़क (विशेषत: खरपतवार) की तत्काल पहचान कर सकने के लिए विकसित की जाएगी। फिर उससे स्प्रेयर
तथा क्षेत्र के अन्य यांत्रिक उपस्कर के नियंत्रण के लिए रोबोटिक उपस्कर की प्रोग्रामिंग की जा सकेगीय इस प्रकार पीड़कनाशी के प्रयोग और मानव प्रचालकों को जोखिम में कमी आएगी।
यथार्थ खेती (Precisionf arming) : भूमंडलीय स्थापन तंत्र (GPS) तथा भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS) के माध्यम से यथार्थ खेती के लिए कम्प्यूटरों के प्रयोग के फलस्वरूप नियंत्रण नीतियों का स्थल- विशिष्ट अनुप्रयोग तत्काल हो सकेगा। यथार्थ खेती के पैकेज तेजी से विकसित और कार्यान्वित किया जा रहे हैं। इस दृष्टिकोण से किसान, निवेश की लागत पर बेहतर नियंत्रण रख कर आर्थिक लाभ को अधिकतम और पर्यावरणी प्रभाव को न्यूनतम कर सकते हैं। वर्तमान यथार्थ कृषि तंत्र कीट प्रबंधन के लिए निर्णय समर्थन (decision support) उपलब्ध हैं।
बोध प्रश्न 1
मॉडल और सूचना प्रौद्योगिकी आई पी एम के भविष्य को कैसे उज्जवल बना सकते हैं?
प्रस्तावना
ष्खेतिहर जमीन को संवारता है. कृषिकार खेतिहर को संवारता है”।
यूजीन एफ वेयर (Eugene F- ware)
ष्समाकलित पीड़क प्रबंधन” अभिव्यक्ति स्पष्ट रूप से 1960 के दशक मे उत्तरार्ध में प्रस्तुत की गई थी और तभी से इसकी संकल्पना कड़ी संवीक्षा के अंतर्गत रही है। अब यह सामान्यत: मान लिया गया है कि यद्यपि अधिकांश फसलों में और विश्व के अधिकांश भागों में आई पी एम को अपनाने में ढील बरती जा रही है, तथापि यह कोई विकल्प नहीं है, यदि कृषि उत्पादन को बढ़ती हुई जनसंख्या की मांगें पूरी करते रहना है तो यह एक अनिवार्यता है। जैसा कि भौतिकविज्ञानी नील बोहर (Niel Bohr) ने कहा था, ष्किसी घटना का पूर्वानुमान लगाना कठिन है, विशेषत: भविष्य के बारे में!” आई पी एम का लक्ष्य यह होना चाहिए : अन्य पारिस्थितिक तंत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव को न्यूनतम रखते हुए पारिस्थितिक तंत्र की प्रक्रियाओं के साथ हस्तक्षेप का वह अपेक्षित स्तर प्राप्त किया जाए जो पीड़क प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए जरूरी हो।
21वीं शताब्दी की कृषि में, पीड़कनाशी अवशेषों, जैवप्रौद्योगिकी के उत्पादों, जैव-विविधता की परिरक्षा, भोजनध्पोषण की सुरक्षा और भूमंडील कृषि व्यापार मुददों के बारे में बढ़ती हुई चिंता के कारण आई पी एम की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाएगी। इक्कीसवीं शताब्दी का समय बहुत चुनौतीपूर्ण होने की संभावना है और राष्ट्र को उसका सामना पादप संरक्षण कर्मियों की सक्षमता तथा निष्पादकता में उत्कृष्टता द्वारा करना होगा। आई पी एम भावी पीड़क प्रबंधन का तरीका है। अत: पादप संरक्षण विस्तार कर्मियों के प्रशिक्षण और किसानों के प्रशिक्षण द्वारा भी मानव संसाधनों के सृजन की गति पर अधिक जोर देने की जरूरत है।
सतत् विकास की परिधि के भीतर समाकलित फसल प्रबंधन (ICM) की धारणा आती है। यह विकासशील राष्ट्रों में व्याप्त होने वाला एक नया कृषि प्रतिमान है जिसमें सस्य का लाभकर, किंतु पर्यावरण का ध्यान रखते हुए, प्रबंधन निहित है। एक प्रकार से जो स्थानीय मृदा तथा जलवायु के अनुकूल है और दीर्घ काल में खेल की प्राकृतिक परिसंपत्तियों की रक्षा करता है। जैव और तकनीकी प्रगति का उपयोग उत्तरदायित्व के साथ करना चाहिए।
उद्देश्य
इस इकाई का अध्ययन करने के बाद आप:
ऽ आई पी एम में साकल्यवादी दृष्टिकोण का वर्णन कर सकेंगे,
ऽ आई पी एम में संचार प्रौद्योगिकी की भूमिका को समझ सकेंगे,
ऽ आई पी एम नीतियों में संभावित परिवर्तनों की व्याख्या कर सकेंगे,
ऽ पादप स्वास्थ्य निदानिकाओं (PHC) की आवश्यकता, उनकी भूमिका और विशेषताओं को समझ सकेंगे और
ऽ आई पी एम में भावी कार्यनीतियों पर चर्चा कर सकेंगे।
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