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integrated pest management in hindi एकीकृत कीट और रोग प्रबंधन के सिद्धांतों समन्वित कीट प्रबंधन के मूल सिद्धांत

एकीकृत कीट और रोग प्रबंधन के सिद्धांतों समन्वित कीट प्रबंधन के मूल सिद्धांत integrated pest management in hindi ?

पीड़क-प्रबंधन में निर्णय लेना
एक अच्छे IPM प्रोग्राम को तैयार करना, सूचना के ऐसे छोटे-छोटे अंतर्ग्रथित अंशों पर निर्भर करता है जिनको मिलाजुला कर प्रबंधन के बारे में कोई निर्णय लिया जाता है। किसी IPM -निर्णय-समर्थन-तंत्र (IPM decision support system) के लिए जो मूलभूत सुचना आवश्यक होती है वह चित्र 6.1 में दिखाई गई है और जिसे श्श्निर्णय-सोपान’ कहा जा सकता है। यह निर्णय-सोपान एक ऐसा श्श्सोपान रूपक’ होता है जो इस धारणा को व्यक्त करता है कि हमें सूचना तली से लेकर शीर्ष तक की सूचना प्राप्त करनी चाहिए। गलत सूचना अथवा किसी भी चरण पर सूचना के अभाव के आधार पर लिए गए निर्णय अपर्याप्त अथवा अशुद्ध हो सकते हैं।

IPM में प्रभावी निर्णय लेने के लिए यह आवश्यक है कि कोई निर्णय लेने से पहले सभी चरणों से संबंधित सूचना प्राप्त करली जाए।

चित्र 6.1 – निर्णय-सोपान । यह आरेख सूचना की उन महत्वपूर्ण किस्मों का निरूपण करता है जो अनुप्रमाणित पीड़क-प्रबंधन-निर्णय का एक अंश होता है। तली से लेकर शीर्ष तक की सूचनाओं का अध्ययन करना चाहिए। प्रत्येक-सोपान में जो Rs. का चिह्न है वह इस बात का घोतक है कि प्रत्येक चरण में कुछ न कुछ खर्च अवश्य होता है।

1. पीड़क-स्पीशीज की ठीक-ठीक पहचान करनी चाहिए, जैसा कि इकाई 1 में वर्णन किया गया है। यदि सही-सही पहचान नहीं हो सकी है, तब पीड़क की जैविकी और पारिस्थितिकी के आधार पर प्राप्त सूचना से लिए गए निर्णय सही नहीं होंगे।
2. निर्णय लेने की प्रक्रिया का दूसरा चरण है पीड़क और फसल की जैविकी के पैरामीटरों (प्राचलों) का निर्धारण करना, जिसमें पीड़क-समष्टि का साइज, पीड़क-वितरण, पीड़क-परिवर्धन की अवस्था, पीड़क को पहचानना, हितकारियों का वितरण और संख्या,
परपोषी फसल का महत्व, और फसल का आर्थिक महत्व भी शामिल है (इनके बारे में विस्तार से इकाई 7 में बताया जाएगा)।
3. तीसरा चरण है पीड़क-घनत्व की तुलना में फसल को हुई संभावी क्षति का मूल्यांकन करना। इसके अंतर्गत विभिन्न क्रियाओं, आर्थिकी अथवा क्षति-आरंभन सीमाओं (जहाँ भी उपलब्ध हों) पर सोच विचार भी शामिल है (इनके बारे में आप विस्तार से इकाई 7 में अध्ययन करेंगे।
4. चौथा चरण है लक्ष्य पीड़क का प्रबंध करने के लिए उपलब्ध सभी तरीकों का पुनरीक्षण करना। फसल से प्राप्त होने वाले प्रत्याशित आर्थिक लाभ की तुलना में नियंत्रण के प्रत्येक तरीके को कार्यान्वित करने में आने वाली लागत का मूल्यांकन (इसके बारे में विस्तार से आप खंड 3 और 4 में अध्ययन करेंगे)।
5. पाँचवा चरण है लक्ष्य पीड़क और अन्य पीड़कों के बीच होने वाली संभावित पारस्परिक क्रियाओं और कृषि-पारितंत्र में मौजूद लाभकारियों पर सोच-विचार करना। क्या लक्ष्य पीड़क वास्तव में प्रमुख पीड़क है? क्या ऐसा कोई तरीका अपनाया जा सकता है जो प्रमुख पीड़क को तो नियंत्रित कर दे और साथ ही द्वितीयक पीड़क का भी नियंत्रण कर दे। समाकलित पीड़क-प्रबंधन को क्रियान्वित करने में यह बहुत ही महत्वपूर्ण चरण है (इसके बारे में आप खंड 5 में विस्तार से अध्ययन करेंगे)।
6. वांछित अनुकूलतम रणनीति को पहचान लेने के बाद, स्थानीय और क्षेत्रीय पर्यावरणपरक और सामाजिक अधिनियम संबंधी प्रतिबंधों का मूल्यांकन करना भी आवश्यक है। इसके बारे में आप खंड 5 में विस्तार से अध्ययन करेंगे।
7. अंतिम चरण है निर्णय लेने का। निम्नलिखित चार सामान्य संभावनाएँ हैं –
क) कोई रणनीति न अपनाएँ।
ख) क्षति के प्रति फसल की सुग्राह्यता को कम करें।
ग) पीड़क-समष्टि के साइज को कम करें।
घ) (क) और (ख) का समुच्चयन ।

क) कोई रणनीति न अपनाएँ रू जब पीड़क-सघनताएँ आर्थिक आरंभन सीमाओं से कम हों, तक निश्चय ही श्श्कुछ न करोश्श् की रणनीति अपनाएँ, अन्यथा होने वाले लाभ के मुकाबले में अधिक धन खर्च हो जायेगा। इसके लिए केवल परिणामों पीड़क-समष्टि की निगरानी की आवश्यकता होती है।

ख) क्षति के प्रति फसल की प्रभाव्यता (susceptibility) को कम करें रू कीट से होने वाली क्षति के लिए फसल की प्रभाव्यता को कम करना उपलब्ध रणनीतियों से सबसे प्रभावी और पर्यावरण-परक रूप से वांछित रणनीति है। इसके लिए, कीट-समष्टि में कोई फेर-बदल नहीं की जाती, बल्कि परपोषी पौधे अथवा जंतु में इस प्रकार परिवर्तन कर दिया जाता है ताकि वह अन्यथा हानिकारक पीड़क-समष्टि के लिए कम प्रभाव्य हो जाए। फसल की प्रभाव्यता को कम करने में निहित तरीकों में आमतौर से परपोषी पौधे और पशुधन में प्रतिरोधी तत्व और पारिस्थितिक प्रबंधन (फसल के पर्यावरण में फेर-बदल करना) शामिल हैं। फसल की प्रभाव्यता को कम करने के लिए पारिस्थितिक प्रबंधन के कुछेक तरीकों में ये शामिल हैं रू निषेचन द्वारा और रोपण तिथियों को बदल कर पीड़क तथा प्रभाव्य पादप-अवस्था के बीच समकालिकता में गड़बड़ पैदा करके पौधे की जीवन क्षमता को बेहतर बना देना।

ग) पीड़क-समष्टि के साइज को कम करना – समस्याओं को रोकने के लिए कीट-संख्या को कम करना पीड़क-प्रबंधन की सबसे व्यापक रूप से काम में लाई जाने वाली रणनीति है। इस रणनीति को या तो रोगहारी तरीके से (जबकि पीड़क सघनताएँ वास्तव में आर्थिक आरंभन सीमाओं तक पहुँच जाती हैं)। अथवा निरोधक तरीके से (समस्याओं के इतिहास पर आधारित) काम लिया जाता है।

घ) (क) और (ख) का समुच्चयन रू इसके अंतर्गत उन सभी रणनीतियों का समुच्चयन शामिल है जिनका वर्णन पहले किया चुका है ताकि अनेक तरीकों से पीड़ितप्रबंधन-कार्यक्रम को लागू किया जा सके। इस तरकीब का लाभ यह है कि बहुपक्षीय कार्यक्रम किसी एक तरीके पर निर्भर नहीं होते, और यदि कोई एक तरकीब असफल हो जाए तो और औसत नुक्सानों की भरपाई के लिए अन्य तरकीबें उपलब्ध होती हैं।

अंततरू, महत्वपूर्ण रूप से सभी पूर्ववर्ती चरणों को एक आर्थिक-ढाँचे के भीतर रखना चाहिए। यदि प्रबंधक किसी एक चरण को घाटे के बिना लागू करने में असमर्थ रहता है, तभी प्रबंधन-रणनीति को आर्थिक रूप से अनुचित माना जाता है। फिर भी, यह बात हमेशा ही सही नहीं है क्योंकि ऐसे भी उदाहरण हैं जिनमें आर्थिक घाटे को कुछ समय के लिए स्वीकार कर लिया जाता है ताकि समस्या उत्पन्न कर रहे पीड़क का नियंत्रण किया जा सके। इसके लिए आवश्यकता है कि प्रबंधन-प्रणालियों को लगातार कई मौसमों में जारी रखने पर विचार किया जाए। क्योंकि निर्णय प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में लागत निहित होती है, अतरू कभी कभी छोटे तथा सरल उपाय आवश्यक हो जाते हैं अथवा कुछ चरणों को पूरी तौर पर छोड़ दिया जाता है। ऐसे छोटे उपायों के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसमें पीड़कों का तो नियंत्रण हो जाता है लेकिन आदर्श IPM प्राप्त नहीं होता। कभी-कभी कुछ समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं क्योंकि वांछित सूचना अथवा जैविकी का विकास नहीं किया गया अथवा उन पर ध्यान ही नहीं दिया गया। ऐतिहासिक दृष्टि से, जब कुछ चरणों पर विशेष रूप से चरण 5 और 6 पर, ध्यान नहीं दिया गया, तब कुछ ऐसी समस्याएँ उठ खड़ी हुईं, जैसे प्रतिरोध, पुनरुत्थान, पर्यावरण संदूषण और अवैध कीटनाशक रसायनों के अवशेषों का बचे रहना।

 निर्णय लेने की पद्धति
पीड़क-प्रबंधन में निर्णय लेते समय आर्थिक आरंभन सीमा (ET) संभवत: सबसे सुविदित और सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाली निर्देशिका है।
सबसे अधिक व्यापक रूप से ET (आर्थिक आरंभन सीमा) का प्रयोग वहाँ होता है जहाँ रोगहारी (अरोग्यकर) प्रबंधन तरकीबें (प्रमुखत: कीटनाशी रसायन) इस्तेमाल की जाती हैं। इससे कीट-समष्टियों से नियमित रूप से नमूने प्राप्त किए जाते हैं और उन्हें कम करने के लिए कार्यवाही की जाती है। आमतौर से इस निर्णय-नियम को उस समय कम महत्व दिया जाता है जब पीड़क हमेशा ही आर्थिक हानि पहुँचाता है और निरोधक प्रबंधन की एक रणनीति अपनाई जाती है। IPM में प्रतिचयन (नमूना प्राप्त करना) प्रोग्राम की एक किस्म को अधिकाधिक महत्व दिया जा रहा है और वह है श्रमिक प्रतिचयन अथवा श्रमिक निर्णय प्रोग्राम। ये प्रोग्राम कीट अवनमन प्रतिरूपों और आर्थिक-निर्णय स्तरों पर आधारित है। कोई भी श्रमिक प्रतिचयन यह कार्य कर सकता है यदि आर्थिक-निर्णय स्तर ज्ञात है, लेकिन श्रमिक प्रतिचयन से हम आमतौर से अपेक्षाकृत कम नमूनों से ही निर्णय ले सकते हैं। अतरू पीड़क-प्रबंधन प्रोग्राम में श्रमिक प्रतिचयन से पैसे की बचत होती है। किसी समष्टि का वर्गीकरण हम कुछेक नमूने लेकर उसी स्थिति में कर सकते हैं जब वह समष्टि अपनी उच्च अथवा निम्न पराकाष्ठा पर हो, लेकिन यदि स्तर मध्यवर्ती है तब हमारा वर्गीकरण सही है या नहीं इसकी जाँच के लिए हमें अधिक नमूने लेने पड़ेंगे। श्रमिक प्रतिचयन से पता चलता है कि किसी पीड़क-प्रबंधन-निर्णय को लेने के लिए हमें कितने नमूने लेने पड़ेंगे।

आर्थिक आरंभन से हमें कीटों की संख्या (सघनता अथवा तीव्रता) का पता चलता है कि कब हमें प्रबंधन क्रिया को चालू करना है। इसीलिए इसे कभी कभी क्रिया आरंभन कहते हैं। हालांकि इसे कीट-संख्या से अभिव्यक्त किया जाता है, लेकिन वास्तव में म्ज् एक समय-पैरामीटर है, जिसमें पीड़क की संख्याओं को एक सूचक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है कि हमें कब प्रबंधन की शुरुआत करनी है। जिस प्रकार की आर्थिक-क्षति स्तरों (EILS) में होता है, ठीक उसी प्रकार आर्थिक आरंभन सीमाओं को भी कीट-समानकों के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है।

यदि कोई पीड़क-समष्टि मौसम के साथ-साथ फल-फूल रही है, तब वृद्धि-दरों के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है और तब म्ज् का मान म्प्स् के मान से नीचे ही रहता है। म्ज् के मान को निम्न स्तर पर रखते हुए, हम यह भविष्यवाणी करते हैं कि जब कभी समष्टि म्ज् के स्तर तक पहुँचेगी तब इस बात के अच्छे अवसर होंगे कि वृद्धि करके म्प्स् के मान से अधिक निकल जाऐगी। इस प्रकार, हमारे लिए यह उपयुक्त हो जाता है कि हम दोनों में किसी एक स्थिति पर (EIL के पहुँचने तक हमें घाटा हो) कार्यवाही करें।

म्प्स् और म्ज् के बीच के संदर्भ को निम्नलिखित चित्र में (चित्र 6.2) में दिखाया गया है जिसमें हम देख सकते हैं कि समष्टि-स्तर म्ज् से अधिक हो गया तब कार्यवाही की गई, और म्प्स् तक पहुँचने से पहले समष्टि को कम कर दिया गया। ET से नीचे के स्तर पर कोई कार्यवाही नहीं की गई।

अब आपको यह स्पष्ट हो गया होगा कि म्ज् एक जटिल मान है। यह म्प्स् पर आधारित होता है – जहाँ म्प्स् अर्थशास्त्र का एक मान है और जिससे क्षति की संभावना होती है। हालांकि, यह समष्टि गतिकी की व्याख्या पर भी निर्भर होता है क्योंकि संभावित वृद्धि दरों की भविष्यवाणी की आवश्यकता होती है।

पीड़क-प्रबंधन-प्रोग्रामों में आर्थिक आरंभन सीमाओं का स्थान और निर्णायक प्रयोग अपेक्षाकृत स्पष्ट हो जाता है यदि हम इन प्रोग्रामों के विकास की अवस्था के अनुसार उन्हें श्रेणीबद्ध कर लें। इस प्रकार, आज हम जिन अधिकांश निर्णय-नियम का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें चार श्रेणियों में से एक में रखते हैं – (क) कोई आरंभन सीमाएँ नहीं, (ख) नाममात्र आरंभन सीमाएँ (ग) सरल आरंभन सीमाएँ और (घ) व्यापक आरंभन सीमाएँ।

क) कोई आरंभन सीमाएँ नहीं रू इस श्रेणी में निर्णय लेना अनुप्रयुक्त कीट विज्ञान में 1950 के उत्तर दशक से पहले आम बात थी, जब ष्पहचानों और छिड़काव करोश्श् परंपरागत प्रथा थी। हालांकि अधिकांश कीट-समस्याओं के लिए आज भी आरंभन सीमाओं का इस्तेमाल करना एक प्रगति की बात माना जाता है, फिर भी कम से कम ऐसी पाँच परिस्थितियाँ हैं जिनमें वे उपयुक्त नहीं हैंरू
प) पीड़क प्रतिचयन आर्थिक दृष्टि से सस्ता नहीं हो सकता,
पप) समस्या प्रतिकार के लिए प्रायोगिक अनुक्रिया सही समय पर कार्यान्वित नहीं की जा सकती,
पपप) एक बार पता लग जाने पर, समस्या का प्रतिकार नहीं किया जा सकता,
पअ) म्ज् अत्यधिक कम होता है (गुणों की हानि, रोग-संचारण, तीव्र वृद्धि संभावना),
अ) समष्टियाँ तीव्र होती हैं जहाँ घटाव-बढ़ाव का आम स्तर हमेशा ही EIL के ऊपर होता है।

इन परिस्थितियों में प्रबंधन का कार्यान्वयन आमतौर से प्रतिकार पर नहीं बल्कि रोकथाम पर निर्भर होना चाहिए। रोकथाम के लिए जब कीटनाशियों को प्रयोग किया जाता है, तब कलैंडर की तिथि के अथवा सस्य-प्रक्रिया के अनुसार अनुसूचित उपचारों से काम लेना चाहिए। अधिक उन्नत प्रोग्राम डिग्री-डे मॉडलों (degree day models) और कंप्यूटर पर आधारित डिलीवरी तंत्रों (computer bsaed delivery system) का इस्तेमाल करते हुए उपचार-तिथियों की भविष्यवाणी कर सकते हैं।

ख) नाममात्र आरंभन सीमाएँ रू इस श्रेणी के अंतर्गत वे निर्णय-नियम आते हैं जिनको प्रबंधन के अनुभवों के आधार पर बताया जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से पहले पहल इस्तेमाल की गई आरंभन सीमाएँ यही थीं और सबसे अधिक इस्तेमाल में लाई जाने वालीआरंभन सीमाएँ आज भी यही हैं। हालांकि कभी-कभी इनकी इस नाते भी आलोचना की जाती है कि ये परिशुद्ध शोध पर आधारित नहीं होती, फिर भी नाममात्र आरंभन सीमा को श्कोई आरंभन सीमा नहीं” के ऊपर वरीयता दी जाती है क्योंकि ये निर्णय-नियम संतुलित होते हैं (अर्थात् इनके कारण कीटनाशी रसायन कम मात्रा में इस्तेमाल किए जाते हैं)।
ग) सरल आरंभन सीमा रू इस प्रकार की प्रारंभन सीमा में विभिन्न स्तरों का आकलन किसी कीट के द्वारा होने वाली क्षति के प्रति परपोषियों की औसत अनक्रियाओं के आधार पर किया जाता है। इसमें आकलन करते समय चार प्रमुख निवेशों बाजारमूल्य, प्रबंधन लागतों, प्रति कीट द्वारा क्षतिग्रस्त ऊतक और प्रति क्षतिग्रस्त ऊतक के कारण उपज (अथवा गुण) का हास- का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि ये आरंभन सीमाएँ व्यवहार में लाए जाने वाली सबसे अधिक प्रचलित आरंभन सीमाएँ हैं, फिर भी वे आमतौर से अनेकों पीड़कों और निर्णयों पर प्रभाव डालने वाले सस्य-पर्यावरण के बीच होने वाली संभावी अंतरक्रियाओं पर ध्यान नहीं दे पातीं।
घ) व्यापक आरंभन सीमाएँ रू इस श्रेणी में निर्णय-नियम भावी परिणाम पर निर्भर करते हैं। इसमें ये विषय आते हैं जैसे पौधे पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव पर कीट और अपतृण की अंतरक्रियाओं के प्रभाव, और इसमें म्प्स्े के आकलन में मौसमपरक कारक शामिल होते। फसलों के वास्तविक बोधशील आरंभन सीमाओं के मूल में परपोषी पौधे और सभी कारकों (जिनमें जैविक और भौतिक दोनों ही कारक शामिल हैं) के साथ उसकी क्रियाओं की समझ होनी चाहिए। इस समझ के अंतर्गत मात्रात्मक प्रक्रियाएँ शामिल होनी चाहिए जैसे कि सूखे हुए पदार्थ को फसल के संपूर्ण वृद्धि-काल के दौरान अलग करना, न कि, जैसाकि विगत वर्षों में होता रहा है, उपज का सरल मापन ।

यही तरीका है जिसके द्वारा पीड़क-समुदाय के प्रभावों को समझा जा सकता है और सकल उत्पादन-तंत्र के संदर्भ में आरंभन सीमाओं को विकसित किया जा सकता है। इस प्रकार की आरंभन सीमाओं को क्रियान्वित करने के अवसर कम्प्यूटर पर आधारित सूचना-डिलीवरी तंत्रों (computer bsaed information delivery system) और अभि-फॉर्म (onf-arm) कंप्यूटरों में विकास होने पर अधिक बढ़ेंगे।

बोध प्रश्न 1
IPM में प्रभावी निर्णय लेने में अंतनिर्हित विभिन्न चरणों की सूची बनाइए।

बोध प्रश्न
1. देखिए भाग 6.2
2. पद्ध रणनीति, फसल-उत्पादन-तंत्र पर और पीड़कों की जैविकी और पारिस्थितिकी पर आधारित सफल क्रिया की एक योजना है।
तरीके, पीड़क-नियंत्रण के लिए उपलब्ध विधियाँ हैं।

पप) क) पीड़क में हेर-फेर
ख) परपोषी में हेर-फेर
ग) पर्यावरण में हेर-फेर