पूंजी किसे कहते हैं | पूँजी की परिभाषा क्या है कितने प्रकार की होती है Capital in hindi meaning
Capital in hindi meaning definition पूंजी किसे कहते हैं | पूँजी की परिभाषा क्या है कितने प्रकार की होती है ?
पूँजी का वर्गीकरण
धन जो व्यापार का वित्तपोषण करता है: पूँजी कहलाता है। पूँजी के स्रोत को उस अवधि जिसके लिए यह जुटाया गया था अथवा स्रोत जहाँ से यह जुटाया गया था अथवा साधन जिसके द्वारा यह जुटाया गया के आधार पर उप-समूहों में बाँटा जा सकता है। दिन-प्रति-दिन के व्यापारिक प्रचालन के लिए स्वीकृत बैंक ऋणों को कार्यशील पूँजी ऋण अथवा अल्पकालिक ऋण कहा जाता है जबकि अचल परिसंपत्तियों जैसे भूमि और भवन, संयंत्र तथा मशीनरी इत्यादि की खरीद के लिए जुटाए गए ऋणों को दीर्घकालिक ऋण अथवा पूँजी परिसंपत्ति ऋण कहा जाता है। इन दोनों प्रकार के ऋणों की अलग-अलग विशेषताएँ होती हैं और इसलिए, जिस उद्देश्य के लिए धन जुटाया गया है, उससे अलग उद्देश्य के लिए उस धन का प्रयोग करना गलत अथवा अनुचित प्रथा है।
स्रोतों के आधार पर पूँजी को मोटे रूप से दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: आंतरिक स्रोत और बाह्य स्रोत।
फर्मों के लिए आंतरिक स्रोत हैंः (क) फर्म द्वारा अपने व्यापारिक प्रचालनों से सृजित अधिशेष निधियाँ और (ख) अचल अथवा चल परिसंपत्तियों की बिक्री से सृजित राजस्व ।
सामान्यतया, बाह्य स्रोतों से निधियों जुटाने के दो तरीके हैं। वे हैं:
क) प्रवर्तकों अथवा शेयरधारकों से अतिरिक्त निधियों का अंशदान अथवा जुटाना, और
ख) दीर्घकालीक उधार लेना।
निधियों के स्रोत का अन्य वर्गीकरण का आधार वे साधन हैं जिनके माध्यम से निधियां जुटाई गई हैं। इन साधनों का मोटे तौर पर इक्विटी और ऋण में वर्गीकरण किया जा सकता है। इक्विटी से जुटाई गई निधियाँ सदैव दीर्घकालिक पूँजी होती है और ऋण से जुटाई गई निधियाँ दीर्घकालिक अथवा अल्पकालिक कोई भी हो सकती है। अनेक फर्म अपनी निधियों का वित्त पोषण इन दोनों स्रोतों से करते हैं जिससे कि उन्हें निधियों के इन दोनों स्रोतों का लाभ अथवा बल प्राप्त हो सके। पूँजी संरचना में ऋण और इक्विटी स्रोतों का सही समन्वय कंपनी के लाभ को संतुलित रखता है। इस इकाई में इक्विटी श्रेणी से निधियों के अलग अलग स्रोतों पर चर्चा की गई है और अगली इकाई में ऋण वित्तपोषण स्रोतों पर चर्चा की गई है।
तुलन पत्र और निधियों का प्रवाह
इक्विटी और ऋण के माध्यम से वित्तपोषण पर समुचित चर्चा करने से पहले हम देखेंगे कि तुलन पत्र क्या है और वित्तपोषण के विभिन्न स्रोतों को इसमें किस प्रकार दिखाया गया है।
उपरोक्त तुलन पत्र जैसा कि आपने तालिका 25.1 में देखा, मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित है-भांग-क निधियों के स्रोतों को दर्शाता है और भाग-ख निधियों के उपयोग को दर्शाता है। इस पाठ्यक्रम में हमारा संबंध मुख्यतः भाग-क से है। इस भाग को पुनः दो स्थूल शीर्षों में उप विभाजित किया गया है। वे हैं: शेयरधारकों की निधियाँ (जिसमें शेयर पूँजी और आरक्षित निधि तथा अधिशेष सम्मिलित है) और ऋण निधियाँ (जिसमें प्रतिभूत और अप्रतिभूत और ऋण सम्मिलित हैं)। उपरोक्त तुलन पत्र में हम यह भी देख सकते हैं कि दो प्रकार की निधियों का प्रवाह है। वे हैंः (1) निधियों का अन्तर्वाह (भाग-क के अन्तर्गत), और (2) निधियों का बहिर्वाह (भाग-ख के अन्तर्गत)। आकृति 261 निधियों के इन मूल गवाहों को रेखाकृत में पालन किया गया है।
कंपनी अथवा फर्म से वार्षिक प्रतिवेदनों में तुलन पत्र की अनुसूची के रूप में निधियों के स्रोतों का पूरा विवरण प्रस्तुत किया जाता है। इन अनुसूचियों से हमें निधियों के स्रोतों के विभिन्न मदों के बारे में पता चलता है जिन्हें अलग-अलग शीषर्को में दिखाया जाता है। इनमें से कुछ अनुसूचियों नीचे तालिका 25.2 में दी गई है।
तुलन पत्र के भाग-क में, दो प्रमुख उपशीर्ष देखे जा सकते हैं। वे हैं: (क) शेयरधारकों की निधियाँ और (ख) ऋण निधियाँ । इस इकाई का सार उपशीर्ष “शेयरधारकों की निधियाँ‘‘ और उपरोक्त अनुसूची 1 और 2 में संगत विवरणों के बारे में है। ठीक इसी प्रकार, अगली इकाई “ऋण के माध्यम से वित्तपोषण‘‘ में उपशीर्ष ‘‘ऋण निधियों‘‘ और अनुसूची 3 तथा 4, जो इससे संबंधित है पर चर्चा की गई है। आगे बढ़ने से पहले पूँजी संरचना का अर्थ क्या है और यह कंपनी के लिए किस प्रकार प्रासंगिक है का अध्ययन करना चाहिए।
पूँजी संरचना और इसकी प्रासंगिकता
पूँजी सरंचना से निधियों के विभिन्न श्रोतों के समन्वय का निरूपण होता है। इसमें दीर्घकालीन ऋणों का अनुपात, इक्विटी पूँजी का अनुपात और अल्पकालीन दायित्वों का अनुपात सम्मिलित है। संक्षेप में, पूँजी संरचना का अर्थ तुलन पत्र का संपूर्ण स्रोत भाग है। इसमें सभी प्रकार का दीर्घकालिक और अल्पकालिक ऋण तथा इक्विटी सम्मिलित होता है। एक फर्म के लिए उपयुक्त पूँजी संरचना करते समय वित्त प्रबन्धक को कतिपय बुनियादी सिद्धान्तों पर विचार करना चाहिए। एक विवेकवान वित्त प्रबन्धक इन विरोधाभासी सिद्धान्तों में से प्रत्येक को अपेक्षित महत्त्व प्रदान करके पूर्ण संतुलन स्थापित करता है। विरोधाभासी सिद्धान्तों में से कुछ निम्नलिखित हैंः
लागत सिद्धान्त: इस सिद्धान्त के अंतर्गत कंपनी को पूँजी की लागत न्यूनतम रखने का प्रयास करना चाहिए और इक्विटी शेयर धारकों के लिए अधिकतम बचत करने का प्रयास करना चाहिए।
जोखिम सिद्धान्त: इस सिद्धान्त के अनुसार, फर्म को इस तरह की पूँजी संरचना तैयार करनी चाहिए जो अनावश्यक जोखिम से मुक्त हो।
नियंत्रण सिद्धान्त: इस सिद्धान्त के अन्तर्गत कंपनी के प्रवर्तकों को इस तरह की पूँजी संरचना बनानी चाहिए जिससे कि किसी भी समय पर कंपनी पर उनका नियंत्रण समाप्त न हो जाए।
नम्यता सिद्धान्त: इस सिद्धान्त के अनुसार, प्रबन्धन को प्रतिभूतियों के ऐसे संयोजन के लिए प्रयास करना चाहिए जिससे कि प्रबन्धन निधियों की आवश्यकता में बड़े परिवर्तनों के प्रत्युत्तर में निधियों के श्रोतों का सरलता पूर्वक संचालन कर सके।
समय निर्धारण सिद्धान्त: समय निर्धारण सिद्धान्त फर्म के लिए अत्यन्त ही आवश्यक होता है। यदि कंपनी की प्राप्तियाँ ऋण पूँजी के पुनर्भुगतान के समय पर नहीं आती है तो इसका विनाशकारी परिणाम हो सकता है।
इसलिए, पूँजी संरचना के स्वरूप का निर्धारण करना फर्म के लिए अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है।
अगले भाग में, हम इक्विटी के माध्यम से वित्तपोषण क्या है, इस शीर्ष के अंतर्गत आने वाले साधन क्या है, इन साधनों के लाभ शक्तियाँ और दुर्बलताएँ क्या हैं इत्यादि के बारे में समझने का प्रयास करेंगे।
बोध प्रश्न 1
1) आप पूँजी से क्या समझते हैं? पूँजी जुटाने के विभिन्न स्रोतों का वर्णन कीजिए।
2) निधियों के विभिन्न प्रवाहों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
3) पूँजी संरचना क्या है? कंपनी के लिए इसकी प्रासंगिकता क्या है?
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics