desh hiteshini sabha in hindi देश हितैषिणी सभा की स्थापना | देश हितैषी सभा की स्थापना किसने की कहाँ और कब हुई थी और किसके द्वारा की गयी थी ?
प्रश्न : देश हितैषनी सभा , उदयपुर ?
उत्तर : 19 वीं शताब्दी में विभिन्न राज्यों के सामन्तों के समक्ष आर्थिक कठिनाइयाँ उत्पन्न होनी शुरू हो गयी। ब्रिटिश संरक्षण के बाद उनकी ये कठिनाइयाँ बड़ी तेजी से बढ़ने लगी। सामन्तों की आय के स्रोत सिमित होते जा रहे थे , इसलिए उन्हें अपनी पुत्रियों का विवाह उच्च कुल में करने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा , अत: विवाह खर्च में कमी करना नितान्त आवश्यक हो गया था। इस समस्या का समाधान करने के लिए 2 जुलाई 1877 ईस्वीं महाराणा सज्जनसिंह की अध्यक्षता में उदयपुर में ‘देश हितैषनी सभा ‘ का गठन किया गया। इसका उद्देश्य राजपूतों की वैवाहिक समस्याओं को सुलझाना था। इस सभा ने राजपूतों में उत्पन्न विवाह सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करने के लिए दो प्रकार के प्रतिबन्ध लगाये – 1. राजपूतों में विवाह के अवसर पर खर्च कम कर दिया गया तथा 2. राजपूतों , ब्राह्मणों और महाजनों में बहु विवाह के सम्बन्ध में नियम बना दिए गए।
प्रश्न : नरेन्द्र मण्डल : (chamber of princes) , दिल्ली ?
उत्तर : ‘द चैम्बर ऑफ़ प्रिंसेज’ नाम से फरवरी 1921 में ब्रिटिश क्राउन के अधीन भारतीय देशी रियासतों का एक संघ बनाया गया जो सलाहकारी और परामर्श देनी वाली संस्था थी। अलवर नरेश जयसिंह ने इसे नरेन्द्र मंडल नाम दिया क्योंकि वे हिंदी के बहुत हिमायती थे। नरेन्द्र मण्डल की स्थापना 8 फरवरी 1921 को दिल्ली में कि गयी। इसका अध्यक्ष वायसराय लार्ड रीडिंग था और बीकानेर महाराजा गंगासिंह को इसका प्रथम चांसलर नियुक्त किया गया। इसके अलावा वायस चांसलर तथा सात सदस्यों की एक समिति बनाई गयी। नरेन्द्र मण्डल देशी राज्यों की समस्याओं के सम्बन्ध में सरकार को अवगत कराता था। सभी राज्यों का इसमें शामिल होना अनिवार्य नहीं था। अत: हैदराबाद तथा मैसूर इसमें शामिल नहीं हुए।
प्रश्न : अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् , बम्बई ?
उत्तर : अप्रैल 1927 में देशी राज्यों के कार्यकर्त्ताओं की एक बैठक पूना में हुई जिसमें मई 1927 में ‘अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद’ का पहला अधिवेशन बुलाया तय किया लेकिन गुजरात में आयी भयंकर बाढ़ के कारण इसका प्रथम अधिवेशन 17-18 दिसम्बर 1927 को बम्बई में हुआ , जिसमें 70 राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस संस्था का मुख्यालय बम्बई में रखना तय किया गया। इसका मुख्य लक्ष्य देशी राज्यों में शासकों के तत्वाधान में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था। इस संस्था की कार्यकारिणी में राजस्थान से निम्नलिखित सदस्य थे – कन्हैयालाल कलंत्री (जोधपुर) , रामदेव पोद्दार और बालकिशन पोद्दार (बीकानेर) , त्रिलोकचन्द माथुर (करौली) | विजयसिंह ‘पथिक’ को उपाध्यक्ष तथा रामनारायण चौधरी को राजस्थान तथा मध्य भारत के लिए प्रांतीय सचिव बनाया गया। इस अधिवेशन के दस दिन बाद ही मद्रास में दक्षिण भारतीय राज्यों के प्रतिनिधियों की एक अलग ‘ऑल इण्डिया स्टेटस सब्जेक्ट कान्फ्रेंस’ स्थापित की गयी।
प्रश्न : विद्या प्रचारिणी सभा , चित्तौड़गढ़।
उत्तर : बिजौलिया में हरिभाई किंकर ने विद्या प्रचारिणी सभा की स्थापना चित्तोडगढ में 1911 में की। इसका उद्देश्य राष्ट्रभक्त नागरिक तैयार करना था। 1915 ईस्वीं में विजयसिंह पथिक ने इस पाठशाला के संचालन का दायित्व ग्रहण किया। इस पाठशाला में अध्ययन के साथ साथ राष्ट्रभक्ति और चरित्र निर्माण की शिक्षा भी दी जाती थी। रात्रिशाला में प्रौढ़ नागरिकों को शिक्षण कराया जाता था। विद्या प्रचारिणी सभा ने बिजौलिया किसान आन्दोलन के लिए किसान स्वयंसेवकों की विशाल सेना तैयार की , जिसने अहिंसक सत्याग्रह द्वारा दीर्घकाल तक सामंत और राज्य की सत्ता से संघर्ष किया।
प्रश्न : सर्वहितकारिणी सभा , चुरू ?
उत्तर : 1905 ईस्वीं में बंगाल विभाजन के फलस्वरूप हुए आन्दोलन से बीकानेर राज्य के प्रबुद्धजन भी प्रभावित हुए तथा 1907 ईस्वीं में चुरू में स्वामी गोपालदास ने पं. कन्हैयालाल और पं. श्रीराम मास्टर के सहयोग से चुरू में ‘सर्वहितकारिणी सभा’ की स्थापना की , जो अपने राजनैतिक कार्यो के कारण ‘चुरू की कांग्रेस’ कहलायी। विद्या प्रचार , दु:खियों की सेवा और समाज सुधार कार्यो को इसने अपना उद्देश्य बनाया। नारी शिक्षा के लिए चुरू में ‘सर्वहितकारिणी पुत्री पाठशाला’ की स्थापना की गयी। इसी प्रकार हरिजनों को शिक्षित करने और स्वावलम्बी बनाने के लिए ‘कबीर पाठशाला’ की स्थापना की गयी। इसने राजकीय अदालतों में हिंदी भाषा का प्रयोग करने की भी सरकार से मांग की। सभा की गतिविधियों से आशंकित होकर सरकार ने इसकी जांच करवाई।
प्रश्न : आजाद मोर्चा , जयपुर ?
उत्तर : 1942 ईस्वीं की अगस्त क्रांति के दौरान जयपुर प्रजामण्डल के नेता हीरालाल शास्त्री के प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल से जेन्टिलमेन्स समझौता करके महाराजा जयपुर के विरुद्ध आन्दोलन करने का विचार त्याग दिया था परन्तु प्रजामण्डल के अन्य प्रमुख नेता बाबा हरिश्चन्द्र के गुट ने एक अलग आजाद मोर्चा स्थापित कर आन्दोलन छेड़ दिया जो शांतिपूर्वक चला। सरकार ने आजाद मोर्चा के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। मोर्चे के नेताओं ने शास्त्री जी पर विश्वाघात का आरोप लगाया , अंततः 1945 ईस्वीं में पं. नेहरु ने दोनों गुटों का विवाद समाप्त करके आपस में विलय करवाया।