newspapers of vijay singh pathik in hindi विजय सिंह पथिक प्रकाशित अखबार | विजय सिंह पथिक ने मुख्य किन समाचार पत्रों का संपादन किया समाचार पत्र के नाम बताइए ?
प्रश्न : विजयसिंह पथिक के बारे में जानकारी दीजिये।
उत्तर : भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारी भूपसिंह (विजय सिंह पथिक) की जन्म भूमि बुलंद शहर और कर्मभूमि राजस्थान था। ‘वीर भारत सभा’ और ‘राजस्थान सेवा संघ’ के संस्थापक और सम्पूर्ण भारत में किसान आन्दोलन के जनक और चोटी के क्रांतिकारी थे। पथिक जी न केवल बिजौलिया कृषक आन्दोलन का सफल नेतृत्व किया अपितु सम्पूर्ण राजस्थान में आंदोलनों के मुख्य कर्णधार रहे। अजमेर में सशस्त्र क्रांति की क्रियान्विति , क्रांतिकारियों की भर्ती और प्रशिक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साथ ही “राजस्थान केसरी” , “नवीन राजस्थान” पत्रिकाओं का संपादन किया। क्रान्तिकारियों की भर्ती और प्रशिक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संकट की घड़ी में राजस्थान की जनता और स्वतंत्रता सेनानी विजयसिंह पथिक से ही प्रेरणा पाते थे।
प्रश्न : राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम में प्रेस की भूमिका और प्रभाव की समीक्षा कीजिये।
उत्तर : यहाँ समाचार पत्रों की भूमिका और प्रभाव का किसी क्षेत्र विशेष को बजाज राष्ट्रीय सन्दर्भ में अध्ययन करना प्रासंगिक होगा क्योंकि सभी समाचार पत्रों का उद्देश्य समान ही था। राष्ट्रीय भावना के उदय और विकास में और राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रत्येक पहलू के विषय में चाहे वह आर्थिक हो अथवा सामाजिक , सांस्कृतिक हो अथवा राजनितिक – प्रेस की भूमिका उल्लेखनीय रही है। प्रेस से जनता को आवश्यक राजनीतिक शिक्षा दी। प्रेस के ही माध्यम से विभिन्न रजनीतिक नेताओं ने अपने विचारों को आम लोगों तक फैलाने में सफलता प्राप्त की।
सरकार की वास्तविक नीति को , उसकी दोहरी चालों को , उसके द्वारा भारतीयों के शोषण को सबके समक्ष रखने वाला और सरकार की कटू आलोचना को जनता तक पहुँचाने वाला माध्यम प्रेस ही था। विभिन्न नेताओं द्वारा प्रेस की स्थापना और समाचार पत्रों का संपादन इसका सूचक है कि प्रेस को एक महत्वपूर्ण संस्था माना जाता था। जनता के मध्य प्रेस को रचनात्मक भूमिका को समझते हुए उसे राष्ट्र का एक अभिन्न अंग बना लिया गया। प्रेस ने सभी ज्वंलत समस्याओं को प्रभावशाली रूप से प्रकाशित किया। उस युग का मुख्य उद्देश्य जनजागरण था। इस उद्देश्य की प्राप्ति में प्रेस की भूमिका सक्रीय और उल्लेखनीय रही। विदेशी सत्ता में त्रस्त जनता को सन्मार्ग दिखाने , साम्राज्यवाद के विरोध में निर्भीक स्वर उठाने का कार्य सरल नहीं था। पत्रकारिता के साथ अनेक देशभक्तों और जाने माने नेताओं का नाम जुड़ा था। शिक्षित भारतीय पत्रकारिता को अपना बहुमूल्य समय देकर समाचार पत्रों के माध्यम से सरकार के विभिन्न कार्यों और देश की समकालीन स्थिति से अवगत करा रहे थे।
भारत मित्र में राजनितिक लेख प्रकाशित होते रहते थे। सभाओं में भाग लेने के लिए समाचार पत्र जनता को प्रोत्साहित करते रहते थे। पूरे वर्ष हिंदी पत्र पत्रिकाओं में कांग्रेस के अधिवेशनों में पेश किये गए प्रस्तावों और माँगों पर चर्चा होती रहती थी। इन माँगों को बार बार दोहराकर सरकार और जनता को प्रेस प्रभावित करता रहता था। इससे राष्ट्रीय चेतना का प्रचार द्रुत गति से होने लगा था।
नई शिक्षा के परिणामस्वरूप लोगों की विचारधारा अवश्य बदली थी लेकिन जो असंतोष जन जीवन में व्याप्त था उसको सरकार के समक्ष प्रस्तुत करने और उन तक पहुँचाने का कार्य प्रेस ने ही किया। अंग्रेजी शासकों और देशी राजाओं का वास्तविक रूप जनता के समक्ष लाने वाले पत्रकार ही थे। अंग्रेजों द्वारा भारत का जो आर्थिक शोषण हो रहा था उसके विरुद्ध इस काल के प्रेस ने भी आवाज उठाई थी। भारत की जनता की गरीबी ही भारत की आर्थिक समस्या थी जो विदेशी समस्या थी जो विदेशी लोगों की हवस और निति के परिणामस्वरूप पैदा हुई थी। भारत से धन के निष्कासन को रोकने का आह्वान किया गया। स्वदेशी और बॉयकाट अखिल भारतीय चर्चा का विषय बन गए थे। स्वदेशी का प्रयोग राजनितिक शस्त्र के रूप में किया जाने लगा। समाज सुधार और समाज के उद्धार से देशोन्नति की आशा भी की गयी थी और प्रेस विभिन्न सामाजिक समस्याओं के विषय पर पर्याप्त चर्चा किया करता था। उदाहरणार्थ , सामाजिक रुढियों , रीति – रिवाजों , अंधविश्वास और अंग्रेजी सभ्यता के प्रभाव को लेकर हिंदी प्रदीप में बालकृष्ण भट्ट का व्यंग्यात्मक लेख लिया जा सकता है।
प्रेस ने जोधपुर , बीकानेर भरतपुर , अलवर , धौलपुर आदि के शासकों की प्रजा हितों की अवहेलना करके अपना समय घुड़दौड़ , इंग्लैंड में जाकर आराम करने , मदिरापान कर मस्त रहने की कड़ी आलोचना की। बंगवासी और हिवादी का भारत में वितरण अत्यधिक था। इन्होने लार्ड कर्जन के उन कदमों का स्वागत किया था जिनके द्वारा नरेशों पर विदेश जाने के बारे में प्रतिबन्ध लगाया गया था।
देश के स्वतंत्रता आन्दोलन और राष्ट्र निर्माण में प्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रही , जिसका विस्तृत उल्लेख इस लेख में सम्भव नहीं है।
इस प्रकार प्रेस ने राष्ट्रीय आन्दोलन को लोकप्रिय बनाने , उसके प्रत्येक रूप को विकसित करने , जनता को लोकतांत्रिक संस्थाओं से अवगत कराने , सरकार की नीतियों की समीक्षा कर जनता को प्रभावित करने , जनमत के निर्माण और विभिन्न दलों के विचारों से भारतवासियों को परिचित कराने , देश के विभिन्न भागों में सामाजिक वर्गों के मध्य व्यापक विचारों का आदान प्रदान कराने , प्रादेशिक लोगों के मध्य एक मानसिक सम्बन्ध स्थापित कराने , राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलनों (राजनितिक , सामाजिक , सांस्कृतिक आदि) को सफल बनाने , प्रादेशिक संस्कृतियों और साहित्य का विकास करने , विभिन्न कुरीतियों (जैसे जाति प्रथा , बाल विवाह , छुआछूत) को दूर करने , जनतांत्रिक पुननिर्माण के कार्यक्रमों से लोगों को अवगत कराने , संसार में होने वाली घटनाओं से भारतवासियों को परिचित कराने तथा उन पर अपनी विचारधारा निर्मित करने तथा जनता के विचारों से सरकार को अवगत कराने का महत्वपूर्ण और कठिन कार्य उस काल के प्रेस ने अत्यंत कुशलता और सफलता से पूरा किया था। इस प्रकार भारतीय प्रेस ने राष्ट्रीयता के प्रचार प्रसार में अभूतपूर्व योगदान किया। इसने भारतवासियों को एक सूत्र में बाँधने , आपसी सहपति के क्षेत्र में विस्तार में , विभिन्न समुदायों के मध्य के विरोध तथा वैमनस्य को दूर करने , विभिन्न राष्ट्रीय , सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए उपाय सुझाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। यह जनमत का प्रबल उत्प्रेरक तथा साम्राज्य विरोधी भावना का मुखर वाहन बन गया। कानून के संकुचित दायरे तथा सरकारी दमन के बावजूद इसने अभिव्यक्ति के नए नए मार्ग ढूंढ़कर लोगों में राजनितिक चेतना फलाई तथा अन्याय से लड़ने के लिए इन्हें प्रोत्साहित किया। निष्कर्षत: हम कह सकते है कि प्रेस हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन तथा राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया का भारी स्तम्भ बन गया।