rajasthan foundation day is celebrated on in hindi राजस्थान स्थापना दिवस कब मनाया जाता है ?
प्रश्न : राजस्थान स्थापना दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर : 1 नवम्बर 1956 को वर्तमान राजस्थान का एकीकरण कर राजप्रमुखादि राजतन्त्र के अवशेष समाप्त कर राज्यपाल पद सृजित कर लोकतंत्र शुरू किया। 1 नवम्बर को “राजस्थान स्थापना दिवस” मनाया जाता है।
प्रश्न : राजस्थान में ब्रिटिश आधिपत्य के प्रभावों की विवेचना कीजिये।
उत्तर : राजस्थान में ब्रिटिश आधिपत्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रभाव आधुनिक न्याय प्रणाली , प्रशासनिक विकास , भूमि बंदोबस्त , यातायात और संचार एवं कृषि और सिंचाई के साधनों के विकास में दिखाई दिया। समाज में प्रचलित कुरीतियों जैसे सती प्रथा , कन्या वध , बाल विवाह , डाकिन प्रथा आदि की तरफ ब्रिटिश सरकार का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित हुआ। जिन्हें दूर कर राजस्थान के सामाजिक जीवन में परिवर्तन की प्रक्रिया प्रारंभ की। शिक्षा चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य , औद्योगीकरण आदि क्षेत्रों में अधिक रूचि नहीं दिखाने के कारण इस क्षेत्र में राजस्थान पिछड़ा रहा।
प्रश्न : 1857 की क्रांति में राजस्थान का योगदान बताइए ?
उत्तर : 28 मई 1857 को राजस्थान में क्रांति का आरम्भ नसीराबाद छावनी से हुआ। जिसका विस्तार नीमच , आउवा , कोटा , बिथोड़ा , चेलावास , धौलपुर आदि के अलावा सुगाली देवी और कामेश्वर महादेव मंदिर भी क्रांति के प्रमुख केंद्र थे। इसके अलावा ग्रामीण जनता ने भी सैनिक तथा जागीरदारों का क्रान्ति में भरपूर सहयोग दिया। ग्वालियर के विद्रोही नेता तात्या टोपे ने भी राजस्थान के क्रांतिकारियों की ज्वाला को जगाये रखा। उनके साथ ही राजस्थान के कवियों और साहित्यकारों ने समाज के सभी वर्गों में अपनी लेखनी , गीतों के माध्यम से जनजागृति लाकर नूतन संचार किया। इन क्रान्तिकारियों ने अंग्रेजों के मन में भय उत्पन्न कर दिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रश्न : प्रजामण्डल आन्दोलन के राजनितिक प्रभावों की विवेचना कीजिये।
या
प्रजामंडल आंदोलनों के महत्व को उजागर कीजिये।
उत्तर : जनजागृति और राष्ट्रीय चेतना , सामाजिक और रचनात्मक उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की स्थानीय इकाइयों के रूप में जो राजनितिक संगठन स्थापित हुए , प्रजामंडल कहलाये। इन प्रजामण्डल आंदोलनों के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के तहत स्पष्ट किया जा सकता है –
1. राजनितिक जागृति उत्पन्न करना : राजस्थान की जनता राजशाही सामन्ती शोषण और अत्याचारों से दबी राजनितिक चेतना के प्रति उदासीन थी। प्रजामंडलों की स्थापना से जन चेतना का संचार हुआ , लोगों का मनोबल बढ़ा तथा जनजागृति पैदा हुई। जनता शोषण और अत्याचारों के विरुद्ध संगठित रूप से खड़ी हो गयी। उसमें मौलिक अधिकारों के प्रति जागृति आई।
2. उत्तरदायी शासन की स्थापना : 1938 ईस्वीं में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के बाद कांग्रेस ने प्रत्येक राज्य में जन आन्दोलन का उत्तरदायित्व स्थानीय नेतृत्व पर डाला। इन प्रजामण्डलों ने अपने सिमित साधनों से बहादुरी के साथ राजाओं की निरंकुश सत्ता से लोहा लिया। प्रजामण्डल आन्दोलन इस निरंकुश राजशाही तथा ब्रिटिश सत्ता का आखिर तक मुकाबला करते रहे तथा उत्तरदायी लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहे।
3. राष्ट्रीय चेतना का विकास : प्रजामंडल आंदोलनों से ब्रिटिश भारत की जनता तथा रियासतों की जनता में सामंजस्य स्थापित हुआ। इससे रियासतों की जनता में राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ तथा वह राष्ट्रीय मुख्य धारा में शामिल हो गयी।
4. राष्ट्रीय आन्दोलन को बल : 1938 ईस्वीं से पहले रियासतों की जनता अपने स्तर पर ही राजनितिक आंदोलन कर रही थी। इसके बाद कांग्रेस ने इन आंदोलनों को सक्रीय सहयोग देने की निति अपनाई। भारत छोड़ों आन्दोलन के दौरान यह भेद मिट गया तथा स्थानीय आन्दोलन राष्ट्रीय आन्दोलन में परिणित हो गया। संयुक्त आन्दोलन से राजाओं की निरंकुश सत्ता डगमगाने लगी। अंग्रेजों का भारत में मुख्य स्तम्भ (शासन वर्ग) धराशायी होने लगा तो वे भयभीत हो गए। अब वे सम्पूर्ण देश के एक सामान्य विद्रोह का सामना नहीं कर सकते थे।
5. देश को राजनितिक एकता के सूत्र में बांधना : स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अधिकांश राजाओं ने इन प्रजामंडल आन्दोलन से भयभीत होकर भारतीय संघ में मिलना स्वीकार किया। जैसे जोधपुर महाराजा हनुवंत सिंह , धौलपुर महाराजा उदयभान सिंह जैसे अनेक शासक पाकिस्तान में मिलना चाहते थे परन्तु आंदोलन से जन्में भारी जनमत के विरोध के कारण वे ऐसा नहीं कर सके। इस दृष्टि से प्रजामंडल आन्दोलन देश को राजनैतिक एकता के सूत्र में बाँधने की दिशा में महत्वपूर्ण सिद्ध हुए।
6. महिलाओं को राजनितिक आंदोलन से जोड़ना : प्रजामण्डल आन्दोलन ने राजस्थान की नारियों को राजनितिक आन्दोलन से सक्रीय रूप से जोड़ा। महिलाओं ने आन्दोलन में हर कदम पर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य किया। यह इस आंदोलन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
7. सामाजिक सुधार और रचनात्मक कार्य कर सामान्यजन को जोड़ना : प्रजामण्डल आंदोलन ने दलितोत्थान , आदिवासी उत्थान , शिक्षा पर जोर , शराब बंदी , नशीली वस्तुओं का प्रसार रोकना , मजदूरों के हितों में कानून निर्माण करवाना , चरखा और खादी उत्पादन केन्द्रों की स्थापना , बाढ़ अकाल राहत में कार्य छुआछूत , ऊँच-नीच और जाति पाति के भेदभाव आदि अनेक कार्यों और सुधारों को प्रोत्साहन दिया तो दूसरी तरफ कन्या वध , बाल विवाह , दहेज़ प्रथा , बहुविवाह , पर्दा प्रथा , मृत्युभोज , बेगार और बलेठ प्रथा , मद्य निषेध , अशिक्षा आदि का विरोध कर जनजागृति पैदा की। इससे आम जनता प्रजामण्डल आंदोलनों से जुड़ गयी।