who is gandhi of bagad called in hindi बागड़ का गांधी किसे कहते हैं बागड के गाँधी के नाम से ?
प्रश्न : भोगीलाल पण्ड्या कौन थे ?
उत्तर : “बागड़ के गांधी” के नाम से विख्यात और पद्म विभूषण से सम्मानित भोगीलाल पंड्या ने बागड़ सेवा संघ , बागड़ सेवा मंदिर , हरिजन समिति और बागड़ प्रजामण्डल के माध्यम से अंचल में लोकजागरण , स्वतंत्रता संग्राम , शैक्षिक चेतना , हरिजनों को मन्दिर प्रवेश , सामाजिक धार्मिक सुधार कार्य किये और हरिदेव जोशी , गौरी शंकर उपाध्याय के सहयोग से डूंगरपुर प्रजामंडल स्थापित कर अमानुषिक यातना सहते हुए उत्तरदायी शासन की स्थापना करवाई। ये माणिक्यलाल वर्मा म हीरालाल शास्त्री और जयनारायण व्यास के मंत्रीमण्डलों में के प्रमुख सदस्य रहे।
प्रश्न : नीमूचणा हत्याकांड क्या था ?
उत्तर : अलवर राज्य के किसान लगान दर में वृद्धि के विरोध में 14 मई 1925 ईस्वीं के दिन अलवर के नीमूचणा गाँव में एकत्रित हुए। शांति सभा कर रहे किसानों पर पुलिस ने मशीनगनों से गोलियाँ बरसाई , सैकड़ों लोग घटना स्थल पर मारे गए। महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया , उनके घरों और पशुओं को जलाया गया , लोगों को घरों से निकालकर घोड़ों की टापों से मारा गया। गाँधीजी ने इसे जलियांवाला हत्याकांड से भी वीभत्स और जघन्य कृत्य बताया। इसके बावजूद भी आंदोलन थमा नहीं। अंततः अलवर नरेश को झुकना पड़ा तथा लगान में छूट देनी पड़ी। तब कही जाकर यह आन्दोलन समाप्त हुआ।
प्रश्न : सीकर किसान आन्दोलन का इतिहास बताइए ?
उत्तर : अत्यधिक करों , लाग-बाग , बैठ-बेगार और सामन्ती जुल्मों के विरुद्ध सीकर के जाट किसान खड़े हुए। वर्षा न होने पर सामंत कल्याण सिंह ने 25 प्रतिशत कर वृद्धि की और कठोरता से वसूली की। सीकर कृषक आन्दोलन का मामला न केवल भारत की सेन्ट्रल असेम्बली में उठा बल्कि यह इंग्लैंड में हाउस ऑफ़ कॉमन्स में भी उठा। अखिल भारतीय जाट महासभा के सहयोग और सहायता से 1930 ईस्वीं में सीकर के जाटों ने ‘राजस्थान जाट क्षेत्रीय सभा’ की स्थापना कर सामन्ती जुल्मों और अत्याचारों का डटकर मुकाबला किया। अंततः जयपुर राज्य की मध्यस्थता से लगान में कमी और भूमि बन्दोबस्त करने पर आंदोलन समाप्त हुआ।
प्रश्न : मेव किसान आंदोलन का नेतृत्व किसने किया गया ?
उत्तर : अलवर , भरतपुर क्षेत्र में मोहम्मद हादी ने 1932 ईस्वीं में ‘अन्जुमन खादिम उल इस्लाम’ नामक संस्था स्थापित कर मेव किसान आन्दोलन को एक संगठित रूप दिया। यह संस्था मुसलमानों के हितार्थ एक सांप्रदायिक संस्था थी। इसने मेवात की मेव जाति के लोगों में जनजागृति लाने का कार्य किया। इसके नेतृत्व में मेवों ने खरीफ फसल का लगान देना बंद कर दिया। कालान्तर में इस संस्था ने मुसलमानों के लिए पृथक विद्यालय , मस्जिदों में सरकारी नियंत्रण हटाने , मुसलमानों की जनसंख्या के अनुपात में नौकरी में आरक्षण और उर्दू भाषा को महत्व देने की मांग जैसे कार्य किये।
प्रश्न : साधु सीताराम दास का इतिहास क्या है ?
उत्तर : बिजौलिया किसान आन्दोलन के नायकों में से एक साधु सीताराम दास का जन्म 1884 ईस्वीं में बिजौलिया में हुआ। इन्होने बिजोलिया ठिकाने के अधीन पुस्तकालय की नौकरी की। जब बिजौलिया के राव पृथ्वीसिंह को तलवार बंधाई के रूप में महाराणा को बड़ी धनराशि देनी पड़ी तो उनसे जनता पर “तलवार बंधी” की लगान लगा दी। अब साधु सीताराम दास पूर्णरूपेण किसानों को जागृत करने के लिए समर्पित हो गए। उन्होंने हरिभाई किंकर द्वारा संचालित ‘विद्या प्रचारिणी सभा’ से नाता जोड़ लिया तथा उसकी एक शाखा बिजौलिया में स्थापित कर दी। साधु सीतारामदास का पूरा जीवन शोषण के विरुद्ध संघर्ष में बीता।