lag bag kya hai meaning in english and hindi लाग बाग किसे कहते है | लाग बाग़ का अर्थ क्या है परिभाषा मतलब बताइए ?
प्रश्न : लाग बाग से आप क्या समझते है ? राजस्थान के कृषक आन्दोलनों में इसकी भूमिका की विवेचना कीजिये ?
उत्तर : यह एक सामन्ती उपकर था। रियासतकालीन कृषक सामन्तों को ‘रसाल’ के रूप में जो एच्छिक भेंट देता था वह लाग बाग़ में बदल गयी जो खिराज और बैठ बेगार के अतिरिक्त ली जाने वाली भेंट थी। कालान्तर में इसकी संख्या सौ से ऊपर हो गयी परन्तु कृषक से 29 प्रकार की लाग बाग वसूली जाती थी। शेष ऐच्छिक थी। इनमें चार भूमि और पशुधन पर आधारित , तीन अनिवार्य अथवा जबरन श्रम से सम्बन्धित और शेष 22 सामाजिक शोषण पर आधारित थी। माता जी की भेंट , तलवार बंधाई , चंवरी कर , बाईजी का हाथ खर्च , खिचड़ी लाग आदि प्रमुख लाग बाग़ थी। इन लाग-बाग के कारण ही बिजोलिया , बेंगू , अलवर , मारवाड़ आदि कृषक आन्दोलन हुए। इन कृषक आन्दोलनों को बेरहमी से कुचलने का प्रयास किया परन्तु अंततः विजय किसानों की ही हुई।
प्रश्न : मध्यकालीन राजस्थान की राजस्व व्यवस्था में प्रमुख लाग बागों के बारे में बताइए ?
उत्तर : भू राजस्व के अतिरिक्त कृषकों से कई प्रकार के कर वसूल किये जाते थे उन्हें लाग बाग़ कहा जाता था। लाग दो प्रकार की थी –
1. नियमित और
2. अनियमित
नियमित लाग की रकम निश्चित होती थी और उनकी वसूली प्रतिवर्ष अथवा दो तीन वर्ष में एक बार की जाती थी। अनियमित लाग की रकम निश्चित नहीं थी। उपज के साथ साथ ये कम अथवा अधिक होती रहती थी। इन लोगों के निर्धारण का कोई निश्चित आधार नही था। एक ही राज्य के विभिन्न गाँवों में ये भिन्न भिन्न थी। कुछ लागें नकद और कुछ जिन्स के रूप में वसूल की जाती थी जैसे –
राली लाग : प्रतिवर्ष काश्तगार अपने कपड़ों में से एक गद्दा अथवा राली बनाकर देता था जो जागीरदार अथवा उसके कर्मचारियों के काम आती थी।
बकरा लाग : प्रत्येक काश्तकार से जागीरदार एक बकरा स्वयं के खाने के लिए लेता था। कुछ जागीरदार बकरे के बदले प्रति परिवार से दो रुपया वार्षिक लेते थे।
दस्तूर लाग : भू राजस्व कर्मचारी पटेल , पटवारी , कानूनगो , तहसीलदार और चौधरी जो अवैध रकम किसानों से वसूल करते थे उसे दस्तूर कहा जाता था।
नजराना : यह लाग प्रतिवर्ष किसानों से जागीरदार और पटेल वसूल करते थे। जागीरदार राजा को और पटेल तहसीलदार को नजराना देता था जिसकी रकम किसानों से वसूल की जाती थी।
न्यौता लाग : यह लाग जागीरदार पटेल और चौधरी अपने लड़के लड़की की शादी के अवसर पर किसानों से वसूल करते थे।
चंवरी लाग : किसानों के पुत्र अथवा पुत्री के विवाह पर एक से पच्चीस रुपये एक चंवरी लाग के नाम पर लिए जाते थे।
कुंवर जी का घोडा लाग : कुँवर के बड़े होने पर घोड़े की सवारी करना सिखाया जाता था। तब घोड़ा खरीदने के लिए प्रति घर एक रुपया कर के रूप में लिया जाता था।
खर गढ़ी लाग : सार्वजनिक निर्माण अथवा दुर्गों के भीतर निर्माण कार्यों के लिए गाँवों से बेगार में गधों को मंगवाया जाता था लेकिन बाद में गधों के बदले “खर गढ़ी” लाग वसूल की जाने लगी।
खीचड़ी लाग : जागीरदार द्वारा अपने प्रत्येक गाँव से उनकी आर्थिक स्थिति के अनुसार ली जाने वाली लाग “खिंचड़ी” कहलाती थी।
अंग लाग : प्रत्येक किसान के परिवार के प्रत्येक सदस्य से जो पांच वर्ष से ज्यादा आयु का होता था प्रति सदस्य एक रुपया लिया जाता था , जिसे अंग लाग कहा जाता था। इसी प्रकार लाग बाग़ 100 से अधिक थी।