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बहुभ्रूणता किसे कहते हैं , बहुभ्रूणता की परिभाषा क्या है खोज किसने की (polyembryony in hindi) 

(polyembryony in hindi meaning definition) बहुभ्रूणता किसे कहते हैं , बहुभ्रूणता की परिभाषा क्या है खोज किसने की ?
बहुभ्रूणता (polyembryony) : इस तथ्य से हम भली भाँती अवगत है कि आवृतबीजी पौधों में निषेचन के पश्चात् अंडाशय फल में और अंडाशय में उपस्थित प्रत्येक बीजाण्ड एक बीज में विकसित होता है। सामान्यतया एक बीज में केवल एक ही भ्रूण पाया जाता है लेकिन कभी कभी कुछ बीजों में एक से अधिक भ्रूण पाए जाते है। एक ही बीज में एक से अधिक भ्रूणों के विकसित होने की प्रक्रिया को बहुभ्रूणता (polyembryony) कहते है।
हमारे आसपास के परिवेश में अनेक पौधे पाए जाते है , जिनके बीजों में एक से अधिक भ्रूण बनते है। अनावृतबीजी पौधों में बहुभ्रूणता एक सामान्य प्रक्रिया है लेकिन आवृतबीजी पौधों में केवल कुछ उदाहरण जैसे – सिट्रस , निकोटीआना , एलियम और क्रोटेलेरिया आदि में बहुभ्रूणता पायी जाती है।
इसी प्रकार यह तो स्पष्ट है कि प्रकृति में अनेक पौधे है जिनके बीजों में एक से अधिक भ्रूण विकसित होते है लेकिन अधिकांशत: इनमें से केवल एक ही भ्रूण परिपक्व हो पाता है जबकि शेष विकास की विभिन्न अवस्थाओं में नष्ट हो जाते है। ऐसी अवस्था में परिपक्व बीज में केवल एक ही भ्रूण पाया जाता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते है कि बहुभ्रूणता के अन्तर्गत उन बीजों को भी सम्मिलित किया जा सकता है जिनमें एक से अधिक प्राकभ्रूणों का निर्माण होता है , चाहे बाद में केवल एक ही भ्रूण परिपक्व होता हो और शेष सभी नष्ट हो जाते हो।
बीजधारी पादपों में , बहुभ्रूणता की प्रक्रिया का पर्यवेक्षण सर्वप्रथम ल्यूवेनहॉक (1719) द्वारा संतरे के बीजों में किया गया। तत्पश्चात ब्रान (1859) , श्नार्फ (1929) , वेबर (1940) , जोहनसन (1950) और माहेश्वरी (1950) आदि भ्रूणविज्ञानियों द्वारा बहुभ्रूणता की प्रक्रिया का गहन अध्ययन किया गया है।
बहुसंख्यक भ्रूणों के निर्माण हेतु उत्तरदायी बीजाण्ड के विभिन्न हिस्सों की प्रकृति को देखते हुए बहुभ्रूणता को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा गया है –
1. सत्य बहुभ्रूणता (true polyembryony) : जब एक ही भ्रूणकोष में एक से अधिक भ्रूणों का विकास होता हो।
2. आभासी अथवा कूट बहुभ्रूणता (false or pseudo polyembryony) : जब बीजांड में एक से अधिक भ्रूणकोष बनते हो और प्रत्येक भ्रूणकोष में एक भ्रूण का निर्माण होता हो तो इस प्रक्रिया को आभासी बहुभ्रूणता कहते है।

बहुभ्रूणता की उत्पत्ति (origin of polyembryony)

एक से अधिक भ्रूणों की उत्पत्ति के आधार पर ब्राउन (1859) ने बहुभ्रूणता को चार श्रेणियों में विभेदित किया है –
  1. भ्रूण के विदलन अथवा खण्डों में बंट जाने पर प्रत्येक खण्ड द्वारा स्वतंत्र भ्रूण का निर्माण।
  2. अंड कोशिका के अतिरिक्त भ्रूणकोष में उपस्थित किसी अन्य कोशिका से भ्रूण की उत्पत्ति।
  3. भ्रूणकोष के अतिरिक्त इसके बाहर की किसी भी द्विगुणित अथवा बीजाणुदभिदीय (2n) कोशिका से भ्रूण का बनना।
  4. बीजाण्ड में उपस्थित एक से अधिक भ्रूणकोषों से विकसित भ्रूण।
1. विदलन बहुभ्रूणता (cleavage polyembryony) : आवृतबीजी पौधों के बीजों में यह एक से अधिक भ्रूणों के विकसित होने की सरलतम और सर्वाधिक सामान्य प्रक्रिया है। इसके अंतर्गत युग्मनज अथवा निषिक्तांड या प्राकभ्रूण का विखंडन अथवा विदलन , दो अथवा दो से अधिक खण्डों या इकाइयों में हो जाता है और प्रत्येक खण्ड विकसित होकर स्वतंत्र भ्रूण का निर्माण करता है। विदलन बहुभ्रूणता की यह प्रक्रिया , जिम्नोस्पर्म्स में तो सामान्य रूप से बहुतायत में पायी जाती है लेकिन आवृतबीजी पौधों में यह बहुत कम यदा कदा ही देखने को मिलती है। इस प्रक्रिया का उल्लेख सर्वप्रथम जैफ्रे (1895) द्वारा लिलियेसी कुल के सदस्य इरीथ्रोनियम अमेरिकानम के भ्रूण विकास में किया गया था। उसके अनुसार यहाँ निषिक्ताण्ड विभाजित होकर बहुसंख्य कोशिकाओं का एक समूह बनाता है जिसके निचले हिस्से में चार अथवा अधिक अतिवृद्धियाँ उत्पन्न होती है और प्रत्येक अतिवृद्धि एक भ्रूण का निर्माण करती है।
इरीथ्रोनियम के अतिरिक्त बहुभ्रूणता की प्रक्रिया अनेक आवृतबीजी पौधों में जैसे टूलिपागेस्नेरियाना और लिम्नोकेरिस इमारजीनेटा और हेबेनेरिया प्लेटिफिल्ला में भी पायी जाती है।
आइसोटोमा लोंगीफ्लोरा में अतिरिक्त भ्रूणों का निर्माण निलंबक की कोशिकाओं से होता है। सेन्टेलेसी कुल के सदस्य एक्सोकार्पस में भी निलम्बक कोशिकाओं के सक्रीय योगदान के कारण बहुभ्रूणता सामान्य रूप में पायी जाती है।
अनेक उदाहरणों में विदलन बहुभ्रूणता के असामान्य प्रारूप भी देखने को मिलते है जैसे – निम्फिया एडविना में प्राकभ्रूण के दो खण्डों में बंट जाने से दो भ्रूणों का निर्माण होता है।
इसी प्रकार से क्रोटेलेरिया और एम्पिट्रम में भी प्राकभ्रूण के दो अथवा अधिक खण्डों में बंट जाने के कारण बहुभ्रूणता दिखाई देती है। विभिन्न भ्रूणविज्ञानियों के अध्ययन के अनुसार आर्किडसी कुल के विभिन्न सदस्यों में विदलन बहुभ्रूणता का पाया जाना एक अतिसामान्य प्रक्रिया है। स्वामी (1943) के अनुसार एक आर्किड यूलोफिया एपीडेन्ड्रा में विदलन बहुभ्रूणता तीन विधियों द्वारा संपन्न हो सकती है।
1. युग्मनज में अनेक अनियमित विभाजन होते है जिसके परिणामस्वरूप कोशिकाओं का एक सघन समूह अथवा पिण्ड बनता है। इस समूह के निभागी छोर पर उपस्थित कोशिकाओं से अनेक भ्रूण बनते है।
2. प्राकभ्रूण की कोशिकाओं से कलिका समान अनेक सूक्ष्म अतिवृद्धियाँ उत्पन्न होती है , जिनसे अतिरिक्त भ्रूण बनता है।
3. तन्तुवत भ्रूण शाखित हो जाता है और प्रत्येक शाखा के शीर्ष पर एक भ्रूण बनता है।
2. भ्रूणकोष में अंड के अतिरिक्त किसी अन्य कोशिका से भ्रूण की उत्पत्ति : कुछ पादप प्रजातियों में ऐसे उदाहरण भी देखे गए है , जहाँ अंड कोशिका (जो निषेचित होकर भ्रूण बनाती है) के अतिरिक्त भ्रूणकोष की अन्य कोशिकाएँ भी अतिरिक्त भ्रूण का निर्माण करती है। इनमें सहाय कोशिकाएँ प्रमुख है जो अतिरिक्त भ्रूण का निर्माण एक नर युग्मक (जनन केन्द्र) से संलयन के द्वारा करती है। जैसा कि हम जानते है , सहाय कोशिकाओं में तो अनेक पौधों में असंगजनन के द्वारा निषेचन के बिना अगुणित भ्रूण का निर्माण भी होता देखा गया है जैसे आर्जीमोन मेक्सिकाना और फेसिओलस वल्गेरिस में अनिषेचित सहाय कोशिकाओं द्वारा अगुणित भ्रूण का निर्माण होता है। सेजिटेरिया ग्रेमिनिआ , पोआ एल्पाइन , एरिस्टोलोकिया ब्रेक्टियेटा और क्रीपिस कैपिलेरिस में सहाय कोशिकाएँ अंड के समान बड़े आकार की हो जाती है। इन पौधों में भ्रूणकोष में दो अथवा दो से अधिक पराग नलिका प्रविष्ट होती है और जनन केन्द्रक अथवा नर युग्मक जो अब संख्या में दो से अधिक हो जाते है , वे सहाय कोशिकाओं को निषेचित कर द्विगुणित भ्रूण बनाते है।
द्विगुणित युग्मनजीय भ्रूण के साथ साथ सहाय कोशिका से अगुणित भ्रूण का परिवर्धन लिलियम में देखा गया है। कार्थेमस टिकटोरियस में अंड और दोनों सहाय कोशिकाओं के निषेचन से तीन भ्रूणों का विकास होता है।
सहाय कोशिकाओं की तुलना में प्रतिमुखी कोशिकाओं से भ्रूण अपेक्षाकृत बहुत कम उदाहरणों में देखे गए है। यद्यपि कुछ पौधों जैसे एलियम ओडोरम और अल्मस अमेरिकाना आदि में प्रतिमुखी कोशिकाओं से भ्रूण निर्माण देखा गया है लेकिन यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है कि ऐसे भ्रूण जीवनक्षम होते है या नहीं।
3. भ्रूणकोष के बाहर स्थित बीजाण्ड की किसी भी द्विगुणित (2n) कोशिका से भ्रूण का विकास : अनेक पौधों जैसे – सिट्रस , जामुन और आम आदि में अध्यावरण और बीजाण्डकाय कोशिकाओं से भ्रूण परिवर्धन होता है। यद्यपि विकास की प्रारम्भिक अवस्थाओं में ये अपस्थानिक भ्रूण , भ्रूणकोष के बाहर अवस्थित होते है लेकिन बाद में आकर ये भ्रूणकोष के अन्दर घुस जाते है , जहाँ इनका पोषण भ्रूणपोष के द्वारा होता है।
बीजाण्ड की बीजाणुदभिद कोशिकाओं की सक्रियता से उत्पन्न भ्रूण अपस्थानिक भ्रूण कहलाते है। सिट्रस की कुछ जातियों में 40 तक भ्रूण पाए गए है।
4. बीजाण्ड में उपस्थित अन्य भ्रूणकोष से विकसित भ्रूण : कुछ आवृतबीजी पादपों में एक से अधिक भ्रूणकोष निर्मित होते है तथा उनमें उपस्थित अंड कोशिका के निषेचित होने से अतिरिक्त बहुसंख्यक भ्रूण बन सकते है। बीजाण्ड में एक से अधिक अथवा बहुसंख्यक भ्रूणकोष निम्नलिखित कारणों से उपस्थित हो सकते है –
1. बीजांड में एक से अधिक गुरुबीजाणु मातृ कोशिकाओं के विभेदित होने के कारण जैसे – हाइड्रिला वर्टिसिलेटा , सोलेनम मेलोन्जिना , जुसिया रेपेन्स और केजुराइना मोंटाना आदि में।
2. एक ही सामान्य गुरुबीजाणु मातृ कोशिका विभेदित होती है लेकिन इसके अर्द्धसूत्री विभाजन के बाद विकसित चार गुरुबीजाणुओं में से दो अथवा दो से अधिक गुरूबीजाणु सक्रीय होते है और इस प्रकार से दो अथवा दो से अधिक भ्रूणकोष बन जाते है , जैसे – रोजा और कल्सीटियम रिफ्लेक्सम आदि।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि सामान्य भ्रूणकोष में निषेचित अंड कोशिका द्वारा विकसित युग्मनजी भ्रूण के अतिरिक्त भ्रूणकोष की अन्य कोई भी कोशिका जैसे प्रतिमुखी कोशिका अथवा सहाय कोशिका अथवा इससे संलग्न अध्यावरण ऊतक से अतिरिक्त भ्रूणों का विकास हो सकता है लेकिन अन्तत: केवल सामान्य युग्मनजी भ्रूण ही परिपक्वता प्राप्त करता है।
अनिषेचित द्विगुणित भ्रूणकोष (असंगजनन की प्रक्रिया में) की कोई सी भी कोशिका भ्रूण का विकास प्रारंभ कर सकती है परन्तु अंत में ऐसे सभी भ्रूण पोषण के अभाव में (जो कि भ्रूणपोष के नहीं बनने से प्राप्त नहीं हो पाता) विघटित होकर नष्ट हो जाते है।
भ्रूणकोष में उपस्थित द्विगुणित केन्द्रक के एक नर युग्मक से संयोजित होने पर (त्रिसंयोजन ) भ्रूणपोष बनता है ऐसी अवस्था में भ्रूणकोष की अन्य कोशिकाओं से भ्रूण का विकास तो प्रारंभ हो सकता है लेकिन सामान्य अंड कोशिका से विकसित भ्रूण ही परिपक्व हो पाता है।