(gametic fusion in hindi) युग्मक संलयन किसे कहते हैं युग्मक संलयन की परिभाषा क्या है अर्थ बताइए ?
परागनलिका का भ्रूणकोष में प्रवेश (entry of pollen tube in the embryo sac) : बीजाण्डद्वार से होकर परागनलिका भ्रूणकोष तक पहुँच जाती है। चाहे पराग नलिका बीजांड में किसी भी प्रकार से प्रविष्ट हो लेकिन भ्रूणकोष में इसका प्रवेश हमेशा बीजाण्डद्वारीय सिरे से ही होता है क्योंकि अंड समुच्चय इसी सिरे पर पाया जाता है।
भ्रूणकोष में परागनली निम्नलिखित प्रकार से प्रवेश कर सकती है –
- अंड कोशिका और एक सहायक कोशिका के मध्य
- भ्रूण कोष की भित्ति और एक सहायक कोशिका के मध्य से या
- किसी एक सहायक कोशिका को भेदते हुए।
फेगोपायरस में परागनली अंड कोशिका और सहायक कोशिका के मध्य से प्रवेश करती है। इसी प्रकार कार्डिओस्पर्मम में परागनली को सहायक कोशिका और भ्रूणकोष भित्ति के मध्य से प्रवेश करते देखा गया है। मेलिलोटस , मक्का और कस्कुटा में परागनली दो सहायक कोशिकाओं के मध्य से प्रवेश करती है और इन कोशिकाओं को कोई हानि नहीं पहुँचती है। इसके विपरीत ऐरेलिएसी कुल के सदस्यों में प्रवेश के दौरान एक या दोनों सहायक कोशिकाएँ नष्ट हो जाती है। निलम्बो में परागनली के प्रविष्ठ होने से पूर्व ही सहायक कोशिकाएँ नष्ट हो जाती है।
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा किये गए अध्ययनों से यह सुनिश्चित हो चूका है कि सहायक कोशिकाएँ पराग नली के भ्रूणकोष में प्रवेश और नर युग्मकों के भ्रूणकोष में प्रकीर्णन को भी निर्धारित करती है।
सामान्यतया दो सहायक कोशिकाओं में से एक सहायक कोशिका परागनली के भ्रूणकोष में प्रवेश करने से पूर्व ही अपहासित हो जाती है। परागनली सामान्यतया दो सहायक कोशिकाओं के मध्य से भ्रूणकोष में प्रवेश करती है और अधिकांशत: कुछ दूरी तय करने के बाद अपहासित सहायक कोशिका के तन्तुरुपी समुच्य द्वारा उसमें प्रवेश करती है। सहायक कोशिका में परागनली की वृद्धि सामान्यतया तन्तुरूपी समुच्य के आधार तक या इसके कोशिका द्रव्य में कुछ दूरी तक होती है।
नरयुग्मकों का विसर्जन और गति (discharge of male gametes and their movement)
वैसे तो इस बारे में अभी तक पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं है कि पराग नलिका से नर युग्मक किस प्रकार मुक्त होते है लेकिन यह निर्विवाद रूप से कहा जाता है कि पराग नलिका सहायक कोशिका में तन्तुरुपी समुच्य से होकर कोशिका द्रव्य में प्रवेश करती है। सहायक कोशिका के कोशिका द्रव्य में पहुँचने पर परागनली के शीर्ष या उपांतस्थ स्थिति पर एक छिद्र उत्पन्न होता है। कुछ पौधों में परागनलिका का शीर्षस्थ भाग एन्जाइमों के प्रभाव से विघटित हो जाता है अर्थात इनमें छिद्र का निर्माण नहीं होता है। उदाहरण – लाइनम लाइकोपर्सिकम आदि।
छिद्र द्वारा कोशिका द्रव्य का कुछ भाग और दोनों नर युग्मक , कायिक अथवा नलिका केन्द्रक अपहासित सहायक कोशिका में विमुक्त हो जाते है। अपहासित सहायक कोशिका का जीवद्रव्य और परागनली का जीवद्रव्य आपस में मिश्रित नहीं हो पाते है। सामान्यतया कोशिका का जीवद्रव्य बीजाण्डद्वार की तरफ और परागनलिका का जीवद्रव्य निभागी छौर की तरफ रहता है।
नर युग्मकों में अमीबीय या निष्क्रिय गति पायी जाती है। एक नर युग्मक अंड की तरफ और दूसरा नर युग्मक ध्रुवीय केन्द्रक की तरफ गमन करता है। नर युग्मक अंड की भित्ति के जिस स्थान पर उसके सम्पर्क में आता है वहां पर उभयनिष्ठ भित्तियों की निरंतरता अनेक स्थानों पर टूट जाती है जिसके फलस्वरूप अनेक छिद्र बन जाते है। नर युग्मक इन छिद्रों द्वारा अंड कोशिका में प्रवेश करता है। दूसरा नर युग्मक सहायक कोशिका के निभागी छोर की भित्ति के सम्पर्क में आता है।
सम्पर्क स्थल पर भित्तियों के विलीन होने से नर युग्मक केन्द्रीय कोशिका में प्रवेश कर जाता है।
युग्मक संलयन (gametic fusion)
दोनों नर युग्मकों के मुक्त होने के पश्चात् एक नर युग्मक अंड कोशिका अथवा मादा युग्मक से संयोजित हो जाता है। संयोजन की इस क्रिया को सत्य निषेचन अथवा युग्मक संलयन कहते है। आवृतबीजी पौधों में इसे प्रथम निषेचन भी कहा जाता है। निषेचित अंड अब द्विगुणित (2N) हो जाता है और इसे युग्मनज अथवा निषिक्ताण्ड कहते है। दूसरा नर युग्मक दो ध्रुवीय केन्द्रकों के संलयित होने से बने द्विगुणित द्वितीयक केन्द्रक की तरफ आगे अभिगमन करता है और इससे संयोजित हो जाता है , परिणामस्वरूप एक त्रिगुणित (3N) प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक का निर्माण होता है। इस क्रिया को त्रिसंलयन कहते है।
इस प्रकार आवृतबीजी पौधों में दो निषेचन होते है –
(A) सत्य निषेचन : नर युग्मक (प्रथम) (N) + अंड कोशिका (N) = निषिक्ताण्ड (2N)
(B) त्रिकसंयोजन : नर युग्मक (द्वितीय) (N) + द्वितीयक केन्द्रक (2N) = भ्रूणपोष केन्द्रक (3N)
सत्य निषेचन + त्रिकसंयोजन = द्विक निषेचन
यह कहा जा सकता है कि पादप जगत में द्विकनिषेचन और त्रिसंयोजन की प्रक्रिया पर आवृतबीजी पौधों का एकाधिकार है। यह अन्य पादप समूहों में नहीं पाया जाता।
निषेचन से कुछ समय पहले अथवा निषेचन के समय अथवा निषेचन के बाद प्रतिमुखी कोशिकाएँ विघटित हो जाती है। इस प्रकार द्विकनिषेचन अथवा त्रिसंयोजन की प्रक्रिया के बाद भ्रूणकोष में निषिक्ताण्ड और भ्रूणपोष केन्द्रक ही क्रियाशील रहते है। द्विगुणित (2N) निषिक्ताण्ड से भ्रूण का और भ्रूणपोष केन्द्रक (3N) से भ्रूणपोष का विकास होता है।
द्विकनिषेचन का महत्व
- विकासशील भ्रूण के लिए पोषण की अत्यधिक आवश्यकता होती है। द्विकनिषेचन द्वारा विकसित (3N) भ्रूणपोष भ्रूण को पोषण प्रदान करने का कार्य करता है।
- चूँकि (3N) भ्रूणपोष में नर और मादा दोनों जनक पौधों के गुणसूत्र विद्यमान होते है। अत: ऐसे पोषण को प्राप्त करके स्वस्थ और सबल भ्रूण और आगे चलकर स्वस्थ सन्तति पौधे विकसित होते है।
- जिम्नोस्पर्म्स में भ्रूणपोष का निर्माण निषेचन के पूर्व ही हो जाता है अर्थात यह अगुणित होता है लेकिन किसी कारणवश यदि निषेचन न हो तो भ्रूणपोष की कोई उपयोगिता नहीं रह जाती और यह नष्ट हो जाता है। इस सन्दर्भ में द्विनिषेचन और त्रिकसंयोजन एक अनूठी प्रक्रिया है जिसमें यदि भ्रूण बनता है तभी भ्रूणपोष बनेगा अन्यथा नहीं।
- आवृतबीजी पौधों के (3N) भ्रूणपोष में जो त्रिकसंयोजन से बनता है , अधिक मात्रा में खाद्य पदार्थ संचित रहते है। अत: विकासशील भ्रूण को यहाँ पर्याप्त मात्रा में पोषण उपलब्ध होता है।
निषेचन से सम्बन्धित असामान्य लक्षण
कई बार ऊपर वर्णित सामान्य निषेचन क्रिया से अलग अनेक असंगत उदाहरण है। इसमें प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित है –
(अ) बहुसंयोजन और बहुशुक्राणुता (multiple fusion and polyspermy) : सामान्य अवस्था में एक भ्रूणकोष में केवल एक ही परागनलिका प्रवेश कर दो नर युग्मकों को विसर्जित करती है लेकिन अनेक पौधों में इससे भिन्न अवस्था भी अपवाद के रूप में यदाकदा पायी गयी है।
- कभी कभी दो अथवा अधिक पराग नलिकाएँ एक ही भ्रूणपोष तक पहुँच जाती है परन्तु एक ही परागनली भ्रूणकोष में प्रवेश करती है।
- एक से अधिक परागनलिकाओं का भ्रूणकोष में प्रवेश पा जाना भी उल्लेखनीय है। ऐसी दशा में अधिसंख्य शुक्राणु अथवा नर युग्मक पाए जाते है। इसी स्थिति को बहुशुक्राणुता कहते है। कभी कभी एक परागनलिका में दो से अधिक नर युग्मक भी बन जाते है।
कस्कुटा एपिथाइमम में निषेचन के पूर्व तीन और हीलोसिस में चार और क्रीपिस केपिलेरिस में भ्रूणपोश में नर युग्मकों के पाँच युग्म पाए गए है।
असंख्य नर युग्मकों में से एक से अधिक नर युग्मक के अंडकोशिका से संयोजित होने से बहुगुणित सन्तति बनती है। जैसी सेजिटेरिया ग्रेमिना और क्रिपिस केपिलेरिस। इसके अतिरिक्त नाइलेजा आर्वेन्सिस में प्रतिमुखी कोशिका का निषेचन पाया गया है। भ्रूणकोष में दो से अधिक संयोजनों को बहुसंयोजन कहते है। कई बार दोनों ध्रुवीय केन्द्रक आपस में संयोजित होने की बजाय दोनों नर युग्मकों से संयोजित हो जाते है।
जब दो अथवा अधिक पराग नलिकाएँ भ्रूणकोष में नर युग्मक मुक्त करती है तो यह सम्भावना रहती है कि यहाँ एक परागनलिका का नर युग्मक अंडकोशिका से और दूसरी नलिका का एक युग्मक द्वितीयक केन्द्रक से संयोजित हो। यह विषम निषेचन कहलाता है।
(ब) परागनलिका का सम्भावित चूषण कार्य (haustorial function of pollen tube) : सामान्यतया निषेचन के बाद परागनलिका विघटित होकर विलुप्त हो जाती है। कुछ पादपों में यह भ्रूण की सात कोशिकी अवस्था से बीस कोशिकीय अवस्था तक भी देखी गयी है। कुछ पौधों में यह भ्रूणकोष और विकासशील भ्रूण के लिए चूषण का कार्य भी करती है। कुकुरबिटा की कुछ जातियों में बीजाण्डकाय की अधिचर्म क्यूटिनयुक्त हो जाती है तथा भ्रूणकोष का आधारी भाग और निभागी क्षेत्र भी क्युटियुक्त हो जाता है।
अत: भ्रूणकोष की सामान्य पोषण आपूर्ति अवरुद्ध हो जाती है। इस कमी की पूर्ति परागनलिका करती है। भ्रूणकोष तक पहुँचकर परागनलिका का सिरा फुल जाता है तथा इसमें से कई शाखाएँ निकलती है। कोई एक शाखा भ्रूणकोष में प्रवेशकर नर युग्मकों को विसर्जित कर देती है। अन्य शाखाएँ बीजाण्डकाय ऊतकों में प्रवेश कर जाल बनाती है जो पोषकों के चूषण का कार्य करती है।
प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1 : आवृतबीजी पौधों में निषेचन की खोज की थी –
(अ) स्ट्रांसबर्गर ने
(ब) ज्यूल ने
(स) डेविस ने
(द) माहेश्वरी ने
उत्तर : (अ) स्ट्रांसबर्गर ने
प्रश्न 2 : द्विकनिषेचन का अध्ययन किया गया –
(अ) मटर में
(ब) लिलियम में
(स) पोलीगोनम में
(द) ऐडोक्सा में
उत्तर : (ब) लिलियम में
प्रश्न 3 : प्रथम नर युग्मक का अंड केन्द्रक से संयोजन कहलाता है –
(अ) आभासी युग्मन
(ब) असंयुग्मन
(स) सत्य निषेचन
(द) संलयन
उत्तर : (स) सत्य निषेचन
प्रश्न 4 : प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक का निर्माण होता है –
(अ) सत्य निषेचन द्वारा
(ब) असंग जनन द्वारा
(स) अपयुग्मन
(द) त्रिकसंलयन द्वारा
उत्तर : (द) त्रिकसंलयन द्वारा
प्रश्न 5 : बन्द वर्तिका पायी जाती है –
(अ) धतूरा में
(ब) मटर में
(स) पोलीगोनम में
(द) मूंगफली में
उत्तर : (अ) धतूरा में