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अलगाव की परिभाषा क्या है | अलगाव का सिद्धांत किसे कहते है , प्रक्रिया का अर्थ अवधारणा segregation in hindi

segregation in hindi meaning definition in sociology अलगाव की परिभाषा क्या है | अलगाव का सिद्धांत किसे कहते है , प्रक्रिया का अर्थ अवधारणा बताइये ?

अलगाव की प्रक्रिया
मार्क्सवादी अर्थ में अलगाव एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से (अथवा जिस स्थिति में) एक व्यक्ति, एक समूह, एक संस्था, अथवा एक समाज निम्न के प्रति अलगावित (alienated) हो जाता है (अथवा अलगावित बना रहता है)ः
अ) अपने कामों के परिणामों अथवा उत्पादों के प्रति (तथा क्रियाओं के प्रति), और/या
ब) उस प्राकृतिक वातावरण के प्रति जिसमें वह रहता है, और/या
स) अन्य व्यक्तियों के प्रति, तथा इसके अतिरिक्त (अ) से (स) तक किसी एक अथवा सभी के प्रति
द) स्वयं के प्रति (स्वयं की ऐतिहासिक रूप से सृजित मानवीय संभावनाओं के प्रति)।

अलगाव सदैव आत्म-अलगाव होता है, अर्थात् अपने ही कामों द्वारा अपने से अलग हो जाना। गैजो पेत्रोविक (1983ः 10) के कथनानुसार, ‘‘अलगाव के अनेक स्वरूपों में से आत्म-अलगाव एक स्वरूप मात्र नहीं है, अपितु अलगाव की यह आधारभूत संरचना तथा सार है। यह मात्र एक विवरणात्मक अवधारणा नहीं है, बल्कि विश्व में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिये इसमें एक आह्वान है, एक अपील भी है।‘‘

अलगाव दूर करना
मार्क्स का उद्देश्य अलगाव की मात्र आलोचना करना नहीं था। उसका उद्देश्य एक आमूल क्रांति के लिये मार्ग प्रशस्त करना तथा एक ऐसे साम्यवाद की स्थापना करना था जिसे ‘‘व्यक्ति का अपनी स्वयं की ओर वापस आने की प्रक्रिया का पुनएकीकरण, या आत्म-अलगाव पर विजय‘‘ के रूप में समझा जाये। मार्क्स के अनुसार केवल निजी सम्पत्ति समाप्त करने से आर्थिक एवं सामाजिक जीवन का अलगाव दूर नहीं हो सकता है। निजी सम्पत्ति को राज्य सम्पत्ति में परिवर्तित करने से श्रमिक अथवा उत्पादक की स्थिति नहीं बदलती। पूंजीवादी उत्पादन में अलगाव के कुछ तत्वों की जड़ उत्पादन के साधनों की प्रकृति में तथा इससे संबंधित सामाजिक श्रम के विभाजन में होती है। इसी वजह से उत्पादन के प्रबंधन में परिवर्तन मात्र से अलगाव दूर नहीं होता है।

समाज का एक दूसरे पर निर्भर एवं संघर्षरत क्षेत्रों (अर्थव्यवस्था, राजनीति, विधि, कला, नैतिकता, धर्म, आदि) में विभाजित होना तथा समाज में आर्थिक क्षेत्र का अन्य सभी क्षेत्रों पर प्रभुत्व होना, मार्क्स के अनुसार, आत्म-अलगावित समाज की विशेषता है। यही कारण है कि विभिन्न मानवीय गतिविधियों का एक दूसरे से अलगाव समाप्त किये बिना समाज में अलगाव दूर करना असंभव है।

मार्क्सवादी अर्थ में, अर्थव्यवस्था के पुर्नगठन द्वारा अलगाव समाप्त नहीं किया जा सकता, चाहे यह परिवर्तन कितने ही क्रांतिकारी तरीके से लाया गया हो। व्यक्ति द्वारा अलगाव को झेलना तथा समाज में अलगाव होना, दोनों एक ही प्रक्रिया से संबंधित हैं। अतः दोनों में से केवल एक के अलगाव की समाप्ति से न तो दूसरे में अलगाव समाप्त किया जा सकता है और न इसे कम किया जा सकता है।

अलगाव की अवधारणाः विश्लेषण का आधार
अलगाव की अवधारणा मार्क्सवादी चिंतन में विश्लेषण की कुंजी है। मार्क्स के अनुसार अभी तक व्यक्ति सदैव स्व-अलगावित था। उत्पादन के बुर्जुआ संबंध वास्तव में उत्पादन की सामाजिक प्रक्रिया के अंतिम परस्पर विरोधी संबंध हैं जिनसे समाज में अलगाव उत्पन्न होता है। इसके साथ-साथ, बुर्जुआ समाज के भीतर विकसित हो रही उत्पादक शक्तियां ऐसी भौतिक दशाएं उत्पन्न करती हैं जो इस विरोध एवं अलगाव का समाधान कर देंगी। अतः एक तरह से यह सामाजिक संरचना मानवीय समाज के अंतिम अध्याय की ‘‘पूर्व ऐतिहासिक‘‘ अवस्था है। इस संरचना में बदलाव अलगाव को दूर करके ही बदलाव लाया जा सकता है। अलगाव की अवधारणा को भली भाँति समझने के लिए सोचिए और करिए 3 पूरा करें।

सोचिए और करिए 3
क्या आपकी मातृ भाषा में अलगाव के लिये कोई शब्द है? यदि हां, तो इस शब्द को बताइये व अपने रोजमर्रा के जीवन से उदाहरण देकर इसे समझाइये।

 शब्दावली
बुर्जुआ वे लोग जिनके पास उत्पादन के साधन का स्वामित्व है। उदाहरण के लिये, सामन्तवादी युग में भूपति, पूंजीपति युग में उद्योगपति
सर्वहारा वे लोग, जिनके पास अपनी श्रमशक्ति के अतिरिक्त किसी भी उत्पादन के साधन का स्वामित्व नहीं है। अतः सामन्तवादी समाज में सभी भूमिहीन किसान और कृषक मजदूर तथा पूंजीवादी समाज में सभी औद्योगिक श्रमिक सर्वहारा की श्रेणी में आते हैं।
वर्ग वे लोग, जिनके उत्पादन के साधनों से समान सम्बन्ध होते हैं, अर्थात् अपने समान हितों के प्रति जिनमें समान जागरूकता पाई जाती है। वे एक से वर्ग का निर्माण करते हैं।
वर्ग हित किसी भी सामाजिक वर्ग के इतिहास, आकांक्षायें और मान्यताएँ, जिनमें उसके सदस्य समान रूप से विश्वास करते हैं
वर्ग चेतना अन्य व्यक्तियों की निष्पक्ष (वइरमबजपअम) वर्ग स्थिति की तुलना में अपनी वर्ग स्थिति के बारे में जागरूकता तथा समाज के परिवर्तन में इसकी ऐतिहासिक भूमिका के बारे में जागरूकता।
उत्पादन के साधन उत्पादन के लिये आवश्यक सभी साधन। इसमें शामिल हैं, उदाहरण के लिये भूमि, कच्चा माल, फैक्ट्री, पूंजी तथा श्रम, आदि।
उत्पादन के सम्बन्ध मार्क्स के अनुसार उत्पादन शक्तियां उत्पादन के सम्बन्धों की प्रकृति को निर्धारित करती हैं। वस्तुतः ये उत्पादन की प्रक्रिया में पाये जाने वाले सामाजिक सम्बन्ध अथवा आर्थिक भूमिकायें हैं, उदाहरण के लिये सामन्तवादी समाज में कृषक मजदूरों तथा भूपति के मध्य संबंध एवं पूंजीपति समाज में पूंजीपति तथा औद्योगिक श्रमिक के मध्य संबंध ।
उत्पादन प्रणाली इसका तात्पर्य सामान्य आर्थिक संस्था से है, जिसे दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि यह वह विशिष्ट तरीका है, जिसके द्वारा लोग जीवनोपयोगी वस्तुओं का उत्पादन एवं वितरण करते हैं। उत्पादन की शक्ति और उत्पादन के संबंध दोनों मिलकर उत्पादन प्रणाली को परिभाषित करते हैं, उदाहरण के लिये पूंजीवादी उत्पादन के तरीके, सामन्तवादी उत्पादन के तरीके।
वर्ग संघर्ष जब विपरीत एवं परस्पर विरोधी वर्ग हितों वाले वर्ग आपस में टकराते हैं ताकि वे अपने वर्ग हितों की रक्षा कर सकें, यह वर्ग संघर्ष कहलाता है।
पूंजीवाद यह समाज की वह ऐतिहासिक अवस्था है, जिसमें उत्पादन के साधन मुख्यतया मशीनरी, पूंजी तथा श्रम होते हैं।
सामतवाद यह समाज की वह ऐतिहासिक अवस्था है, जिसमें उत्पादन के साधन भूमि एवं श्रम होते हैं।
क्रांति वर्ग संघर्ष की परिपक्व दशाओं तथा वर्ग संघर्ष के अत्यधिक बढ़ने के कारण समाज में लाया गया पूर्ण तथा आमूल परिवर्तन क्रांति कहलाता है।
अधोसंरचना मार्क्स के अनुसार किसी भी समाज की आधारशिला उस समाज की आर्थिक संरचना होती है अथवा दूसरे शब्दों में अधोसंरचना होती है। यह मूलतः उत्पादन प्रणाली से बनती है। अतः इसमें उत्पादन शक्तियां और उत्पादन संबंध सम्मलित होते हैं। इसी के ऊपर समाज की अधिसंरचना टिकी होती है।
अधिसंरचना यह समाज की अधोसंरचना पर टिकी होती है, इसके अन्तर्गत समाज की आर्थिक संस्थाओं के अतिरिक्त सभी सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संस्थायें आती हैं।

 कुछ उपयोगी पुस्तकें
कोजर, लेविस ए. 1971,मास्टर्स ऑफ सोशियॉलॉजिकल थॉटः आइडियाज इन हिस्टॉरिकल एण्ड सोशल कॉनटैक्स्ट, हरकोर्ट ब्रेस जोवैनोविश्वः न्यूयार्क (पाठ 2, पृष्ठ 43-88)

बोटोमोर, टी.बी. 1975, मार्क्सवादी समाजशास्त्र, (अनुवादकः सदाशिव द्विवेदी) मैकमिलन कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेडः नई दिल्ली