difference between herbs, shrubs and trees with examples शाक झाड़ी और वृक्ष क्या है | शाक झाड़ी तथा वृक्ष में क्या अंतर है herb shrub tree in hindi difference ?
वर्गिकी शब्दावली (taxonomic terminology) : पादप वर्गिकी के अंतर्गत किसी भी पादप का वर्णन करते समय तकनिकी शब्दों का प्रयोग किया जाता है। प्राय: पौधों की विभिन्नताओं के वर्णन हेतु उचित तकनिकी शब्दों के अभाव के कारण कुछ विवरण साधारण भाषा में ही दिया जाता है। इस अध्याय में प्रमुख तकनिकी शब्द उनके लक्षणों के साथ दिए जा रहे है।
स्वभाव (habit) :
एकवर्षीय : वे पौधे जो बीज अंकुरण से लेकर जीवन चक्र की सम्पूर्ण प्रक्रियाएँ एक वर्ष में ही पूर्ण कर लेते है जैसे रेननकुलस और स्परगुला आदि।
द्विवर्षीय : ये पौधे दो वर्ष में अपना जीवनचक्र परिपूर्ण करते है , जैसे – गाजर , मूली आदि।
बहुवर्षीय : इन पौधों को अपना जीवनकाल समाप्त करने में दो से अधिक वर्ष लगते है , जैसे – आम और नीम आदि।
शाक : कोमल तने वाले छोटे पौधे होते है।
झाडी : पौधों में मुख्य तना काष्ठीय होता है और छोटी शाखाओं में विभाजित हो जाता है पौधों की ऊँचाई 2 अथवा 3 मीटर से अधिक नहीं होती।
वृक्ष : मुख्य तना मोटा और काष्ठीय होता है और ऊपर जाकर ही शाखाओं में विभाजित होता है , ऊंचाई 3 मीटर से अधिक होती है।
मूल (Root) :
मूसला जड़ : यह मूलांकुर से विकसित होने वाली मूल होती है जो एक मुख्य शाखा और अनेक उपशाखाओं में विभाजित होती है। अधिकांश द्विबीजपत्री पौधों में मूसला जड़ पायी जाती है।
झकड़ा अथवा रेशेदार अपस्थानिक जड़ (fibrous root or adventitious roots) : जब मूलांकुर से विकसित जड़ की वृद्धि रुक जाती है और अन्य स्थानों से जड़ें निकलती है जो तंतुमय अथवा संग्राहक और शाखित अथवा अशाखित होती है। उदाहरण – अधिकांश एकबीजपत्री।
स्तम्भ अथवा तना (stem) :
ऊर्ध्व (erect) : ये तने पत्तियों और शाखाओं आदि का भार सहन करके सीधे खड़े रहते है। प्राय: दृढ़ (मजबूत) होते है।
आरोही (climber plants) : ये दुर्बल तने होते है जो दूसरी वस्तुओं अथवा सहारों पर रूपान्तरित संरचनाओं की सहायता से ऊपर चढ़ते है। जैसे – लौकी।
वल्लरी (twiner plants) : दुर्बल तने वाले जो तने के द्वारा ही अन्य सहारे पर लिपट कर ऊपर चढ़ते है। जैसे – रेल्वे क्रीपर।
कठलता (woody climber or liana) : बहुवर्षीय काष्ठीय आरोही पौधे , जैसे – सेरजानिया और बिग्नोनिया।
प्रोकम्बेन्ट : ये तने भूमि पर रेंगकर वृद्धि करते है और आड़े पड़े रहते है , जैसे दूब।
उधर्वशिर्षी (decumbent plants) : स्तम्भ (शाखा) के नीचे का भाग श्यान , जबकि आगे का भाग ऊपर उठा हुआ होता है जैसे – ट्राइडेक्स।
विसर्पी : ये तने भूमि पर रेंगते है और मूल स्कन्ध से शाखाएँ निकलती है , उदाहरण विष्णु कांता।
प्रवृंत स्केप : पर्णरहित पुष्पक्रम उदाहरण प्याज।
क्षुपशेष : तने का आधारीय भाग काष्ठीय और ऊपरी भाग शाकीय , उदाहरण रोटेला।
स्तम्भ के रूपान्तरण (modification of stem in hindi)
(a) भूमिगत : भोजन संग्रह के लिए रूपांतरण अत: गुद्देदार।
शल्ककंद – प्याज
प्रकंद – अदरक
कंद – आलू
घनकंद – अरबी
(b) अर्धवायवीय : कायिक वृद्धि और जनन के लिए तने का रुपान्तरण।
ऊपरी भूस्तारी – दूब।
अंत:भूस्तारी – पोदीना
भूस्तारिका – जलकुम्भी
भूस्तारी – खट्टी बूटी
(c) वायवीय – विशिष्ट कार्य करने के लिए रूपांतरित
पर्णाभ पर्व – सतावरी।
पर्णाभ स्तम्भ – नागफनी।
फिल्लोड़ – ऑस्ट्रेलियन बबूल।
तना पौधे की सर्वाधिक महत्वपूर्ण संरचनाओं में से है जो प्रांकुर से विकसित होती है और पर्व एवं पर्व सन्धियों में विभेदित रहती है और इसकी पर्वसंधियों से कलिकाएँ और शाखाएँ उत्पन्न होती है।
कुछ पौधों में तने रोमिल और कुछ में शल्कमय हो सकते है। ये काष्ठीय अथवा शाकीय , शिरामय अथवा संघित , ठोस अथवा खोखले और बेलनाकार अथवा कोणीय हो सकते है।
पत्ती अथवा पर्ण (leaf)
सिमित वृद्धि वाली पादप संरचना जो प्ररोह शीर्ष के बाहरी ऊतकों से विकसित होकर पाशर्व वृद्धि करती है और यह प्राय: पृष्ठाधारीय संरचना होती है।
पत्तियों का विकासक्रम (bearing of leaves) :
1. स्तम्भिक : ऐसी पत्तियाँ जो केवल मुख्य तने पर ही लगती है , जैसे – खजूर और सायकस में।
2. स्तम्भिक और शाखीय : ऐसी पत्तियाँ जो मुख्य तने और शाखाओं दोनों पर लगती है , जैसे – आम में।
3. मूलज : वे पत्तियाँ जो समानित भूमिगत तने से उत्पन्न होती है। जैसे – मूली में।
पर्ण विन्यास (phyllotaxy) :
तने पर पत्तियों के लगने का व्यवस्थाक्रम पर्णविन्यास कहलाता है। यह निम्नलिखित प्रकार का पाया जाता है –
1. एकान्तरित : जब प्रत्येक पर्वसन्धि पर केवल एक ही पत्ती विकसित होती है , जैसे रेननकुलस में।
2. सम्मुख : जब प्रत्येक पर्वसंधि पर 2 पत्तियाँ जोड़े में आमने सामने विकसित होती है अर्थात युग्म अथवा जोड़े में लगती है जैसे – इक्जोरा।
A. सम्मुख और क्रासित : जब पत्तियों का जोड़ा अपने से ऊपर अथवा नीचे की पत्तियों के जोड़ें के साथ समकोण बनाता है जैसे – केलोट्रोपिस।
B. अध्यारोपित : जब प्रत्येक जोड़े की पत्तियाँ अपने से ठीक पहले जोड़ें की पत्तियों के ऊपर होती है और एक ही तल में हो जाती है जैसे – अमरुद और ट्राइडेक्स।
3. चक्रिक : जब प्रत्येक पर्वसंधि पर दो से अधिक पत्तियाँ होती है जो एक वृत्त अथवा चक्र में व्यवस्थित रहती है – जैसे छटिंग अथवा एल्सटोनिया।
अनुपर्ण (stipules) :
कुछ पादप प्रजातियों में पत्तियों के आधार के आसपास हरे अथवा शल्की कायिक उपांग पाए जाते है। इनको अनुपर्ण अथवा अनुपत्र कहते है।
1. अनुपर्णी : जिन पत्तियों में अनुपर्ण उपस्थित हो। जैसे – गुड़हल गुलाब आदि।
2. अननुपर्णी : जिन पत्तियों में अनुपर्ण अनुपस्थित हो अर्थात अनुपर्ण रहित। जैसे – आइपोमिया।
3. अनुपर्णिका : अनुपर्णों के समान उपांग जो कि एक संयुक्त पत्ती के पर्णकों के आधार पर उपस्थित होते है। जैसे पेपिलियोनेसी कुल के सदस्य।
4. अनुपर्णिका युक्त : अनुपर्णिका वाले पर्णक जैसे – मटर।
5. मुक्त पाशर्वी अनुपर्ण : दो मुक्त अनुपर्ण जो पर्णाधार के दोनों तरफ विकसित होते है जैसे – गुडहल।
6. संलग्न अनुपर्ण : दो पाशर्वीय अनुपर्ण जो पर्णवृन्त के साथ एक निश्चित ऊँचाई तक चिपके रहते है तथा पर्णवृन्त को पंखों के समान बना देते है जैसे गुलाब।
7. अन्तरावृन्तक अनुपर्ण : दो अनुपर्ण जो सम्मुख अथवा चक्रिक पत्तियों के मध्य पाए जाते है जैसे इक्जोरा और मुसेंडा।
8. ओक्रिएट अनुपर्ण : इस प्रकार का अनुपर्ण पर्वसंधि से कुछ ऊँचाई तक पर्णवृन्त के सम्मुख तने के चारों तरफ एक पोली नली के समान संरचना बनाता है जैसे – पोलीगोनम।
9. पर्णाकार : दोहरी विशाल पर्णवत संरचना। ये पर्णवत अनुपर्ण , बिल्कुल पत्तियों जैसे लगते है जैसे लेथाइरस।
पत्तियों के प्रकार (types of leaves)
1. सरल पर्ण : प्रत्येक ऐसी पत्ती जो अच्छिन्न कोर होती है या कटी फटी होने पर भी कटाव मध्यशिरा अथवा पर्णवृन्त तक नहीं पहुँचता है जैसे आम और पपीता।
2. संयुक्त पर्ण : ऐसी पत्ती जिसमें पर्ण फलक का कटाव जगह जगह पर मध्यशिरा अथवा पर्णवृन्त तक पहुँचकर उसे दो अथवा अधिक पर्णकों में विभाजित कर देता है जैसे मटर।
A. हस्ताकार संयुक्त : ऐसी संयुक्त पत्ती जिसके पर्णक , पर्णवृंत के अग्रसिरे पर जुड़े होते है तथा इस प्रकार एक सामान्य बिंदु से चारों तरफ उसी प्रकार फैले हुए प्रतीत होते है जिस प्रकार हथेली के चारों तरफ से अंगुलियाँ।
I. एकपर्णी : केवल एक पर्णक पर्णवृन्त के साथ जुड़ा होता है , जैसे – सिट्रस।
II. द्विपर्णी : पर्णवृंत के साथ केवल दो पर्णक जुड़े होते है , जैसे प्रिन्सेपिआ।
III. त्रिपर्णी : पर्णवृन्त के साथ तीन पर्णक जुड़े होते है जैसे मेडिकागो।
IV. चतुष्पर्णी : पर्णवृंत के साथ चार पर्णक जुड़े होते है जैसे – मारसीलिया।
V. बहुपर्णी या अंगुलाकार : पाँच अथवा इससे अधिक पर्णक , पर्णवृन्त के साथ जुड़कर अंगुलियाँ की भांति चारों तरफ फैले रहते है , जैसे क्लिओम और सेमल (बोम्बेक्स)
B. पिच्छाकार संयुक्त पर्ण : ऐसी संयुक्त पत्ती , जिसमें पर्णक एक सामान्य अक्ष के दोनों तरफ लगे होते है जैसे इमली।