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इंडियन बोटेनिक गार्डन , सिबपुर , कोलकाता (indian botanic garden shibpur kolkata) भारतीय वनस्पति उद्यान कहां स्थित है

भारतीय वनस्पति उद्यान कहां स्थित है भारत के प्रमुख वनस्पति उद्यान (important herbaria of india) :

1. इंडियन बोटेनिक गार्डन , सिबपुर , कोलकाता (indian botanic garden shibpur kolkata) : यह न केवल हमारे भारत देश का अपितु संभवतः एशिया का अनन्यतम वानस्पतिक उद्यान है। इसकी स्थापना सन 1787 में हुगली नदी के तट पर ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिक अधिकारी कर्नल रोबर्ट किड द्वारा की गई और वे ही इस उद्यान के प्रथम अवैतनिक निदेशक थे। प्रारंभ में इसका नाम ईस्ट इण्डिया कम्पनी वानस्पतिक उद्यान था लेकिन पादप वर्गिकी विज्ञानी इसे “होर्टो बोटेनिको केलकटेन्सिस” (Horto Botanico Calcuttensis ) के नाम से जानते थे। कर्नल किड लगभग शुरू में 6 वर्षो तक इसके प्रभारी रहे लेकिन इस उद्यान के विकास को प्रारंभिक गतिशीलता प्रदान करने का श्रेय प्रसिद्ध वनस्पतिशास्त्री विलियम रॉक्सबर्ग को जाता है जो बाद में इसके निदेशक नियुक्त हुए। उनके द्वारा विभिन्न भारतीय पादप प्रजातियों की विलक्षणता और वानस्पतिक विविधता को अन्तर्राष्ट्रीय पादप विज्ञान जगत के धरातल पर मजबूती से स्थापित किया गया। बाद में उनके (अर्थात रॉक्सबर्ग) द्वारा सन 1793 में इसके परिसर में हर्बेरियम और अन्य प्रयोगशालाओं की स्थापना की गयी।
इस उद्यान को सन 1864 में आये तूफ़ान और ज्वार भाटे ने बुरी तरह तहस नहस कर दिया। अधिकांश वृक्ष इसकी चपेट में आ गए लेकिन सौभाग्य से सन 1871 में डॉ. जी. किंग। द्वारा निदेशक का कार्यभार संभालने के पश्चात् इसके पुनर्निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई और यहाँ बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और पौधों को आदर्श परिस्थितियाँ प्रदान कर उगाने का कार्य किया गया। डॉ. किंग के भागीरथ प्रयत्नों के कारण उद्यान की खोई हुई सुन्दरता और ख्याति दोनों को फिर से स्थापित किया जा सका। डॉ. जी. किंग के सद्प्रभाव के परिणामस्वरूप सन 1890 में भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण संस्थान (botanical survey of india) की स्थापना की गयी। प्रसिद्ध भारतीय वनस्पतिशास्त्री डॉ. के. बिस्वास इस उद्यान के प्रथम भारतीय निदेशक के रूप में नियुक्त हुई। आधुनिक समय में यह संस्था पादप वर्गिकी के अध्ययन की दृष्टि से न केवल हमारे देश की अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की श्रेष्ठ संस्था मानी जाती है।
इण्डियन बोटेनिक गार्डन हुगली नदी के तट पर 110 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ 12 हजार से भी अधिक वृक्षों , क्षुप , ताड़ों , घास और आर्किड्स की भारतीय और विदेशी प्रजातियाँ उगाई गयी है। इस वानस्पतिक उद्यान का भ्रमण करने पर उष्णकटिबंधीय पादप विविधता की रोचक , ज्ञानवर्धक और मनोहारी छवि का स्पष्ट आभास होता है।
इस उद्यान में भ्रमण करने वाले वनस्पतिशास्त्रियों और प्रकृतिप्रेमी नागरिकों के लिए प्रमुख आकर्षण केंद्र के रूप में 200 वर्ष पुराना बरगद का विशाल वृक्ष है। उद्यान की स्थापना के समय यह एक छोटा सा पौधा था लेकिन वर्तमान समय में इसकी शाखाएँ 15000 वर्ग मीटर के घेरे में फैली हुई है। यद्यपि इस वृक्ष का मुख्य तना अब नहीं है लेकिन इसमें लगभग 1150 स्तम्भीय मूल है , जिन पर इसकी मोटी मोटी शाखाएँ रुकी हुई है। इस एतिहासिक बरगद वृक्ष को स्थानीय नागरिक और ग्रामीण बड बाबा अथवा बरगद बाबा भी कहते है। इस वृक्ष की ऊँचाई लगभग 100 फीट है।
इस उद्यान के ताड़घर अथवा पामेन्टम में पाम वृक्षों का भी अच्छा संग्रह है। इसमें दुर्लभ अफ़्रीकी शाखित पाम हाइफीनी थिबेका , अफ़्रीकी तेलपाम , फिश टेल पाम और डबल कोकोनट आदि देखने को मिलते है। उद्यान में अनेक केक्टस और माँसल पादपों का भी अद्भुत संग्रह है। ये सभी पादप केक्टेसी और युफोर्बियेसी कुलों के सदस्य है। एक दुर्लभ और विचित्र केक्टस पेरेस्किया इस उद्यान की प्रमुख विशेषता है। यह एक लम्बी और काष्ठीय झाड़ी है जिस पर बहुत ही सुन्दर पुष्प खिलते है।

2. राष्ट्रीय वनस्पति उद्यान , लखनऊ (national botanic garden lucknow , NBG)

इसकी स्थापना अवध के नवाबों के द्वारा 1789 से 1814 के मध्य एक शाही बाग़ के रूप में उस समय की गयी जब सेंटोनिन नामक औषधि को प्राप्त करने के लिए इसके प्रमुख पादप स्रोत आर्टिमीजिया मैरिटिमा को उगाने के प्रयत्न किये गए। इससे पूर्व सेंटोनिन नामक औषधि रूस से मंगवाई जाती थी। शुरू में इस उद्यान का नाम नवाब वाजिद अली शाह की बेगम सिकंदर बाग़ रखा गया था। यह ऊँची दीवारों से घिरा हुआ अत्यन्त सुन्दर बगीचा था परन्तु सन 1857 में अंग्रेजी फ़ौज के आक्रमण के बाद पूरी तरह से बर्बाद हो गया। इसके पश्चात् 1903 से 1907 में इसका पुनर्निर्माण हुआ। सिकन्दर बाग़ और इसके आसपास की भूमि को मिलाकर वर्तमान वानस्पतिक उद्यान की स्थापना सन 1948 में प्रो। के. एन. कौल के प्रेरणादायी नेतृत्व में संभव हो सकी। प्रो। कौल इसके प्रथम निदेशक थे और उनके सेवानिवृत हो जाने पर उद्यान का प्रशासन विद्वान वनस्पतिशास्त्री डॉ. टी. एन. खोशु द्वारा सम्भाला गया। राष्ट्रीय वानस्पतिक शोध संस्थान (NBRI) के अन्तर्गत वर्तमान समय में यह उद्यान सी. एस. आई. आर. द्वारा संचालित किया जाता है और इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 75 एकड़ है।
इस उद्यान में पौधों की विभिन्न प्रजातियाँ सुव्यवस्थित रूप से उगाई गयी है। यहाँ पाम , फर्न्स , आर्किड्स , केक्टाई , औषधीय और शोभाकारी पौधों का दुर्लभ और समृद्ध संग्रह है। इसके अतिरिक्त यहाँ निम्बू कुल के पौधों की अनेक प्रजातियाँ और गुलाब की अनेक किस्में क्रमशः सिट्रस ओरचार्ड और रोजेरियम में उगाई गयी है।

3. लॉयड वानस्पतिक उद्यान , दार्जिलिंग (lloyd botanical garden darjeeling)

इस उद्यान का नामकरण खुबसूरत हिल स्टेशन दार्जिलिंग के प्रबुद्ध और प्रतिष्ठित नागरिक विलियम लॉयड के सम्मान में रखा गया है। इस उद्यान की स्थापना के लिए सन 1878 में उन्होंने भारत सरकार को 40 एकड़ भूमि उपहार स्वरूप प्रदान की थी। इस उद्यान के 40 एकड़ क्षेत्र को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जा सकता है , जिनमें ऊपरी क्षेत्र में स्थानीय पादप प्रजातियाँ , निचले भाग में विदेशी अथवा बाह्य पादप प्रजातियाँ और मध्यवर्ती भाग में मिश्रित पादप प्रजातियाँ उगाई गयी है।
यह उद्यान समुद्र तल से लगभग 2000 मीटर की ऊँचाई पर अवस्थित है और यहाँ की वार्षिक वर्षा का औसत लगभग 270 सेंटीमीटर है। ऐसी जलवायु में इस उद्यान में सिक्किम हिमालय क्षेत्र की प्रारूपिक वनस्पति और पादप विविधता दृष्टिगोचर होती है। अत: यह संस्थान पादप वर्गिकी के शोधकर्ताओं के लिए एक आदर्श अध्ययन केंद्र के रूप में विकसित हुआ है।
इस उद्यान में सदाहरित और पर्णपाती वृक्षों की अनेक प्रजातियाँ विद्यमान है , जिनमें जिरेनियम , रोड़ोडेन्ड्रोन और अनेक कोनिफर वृक्ष अपनी आकर्षक छवि के कारण उल्लेखनीय है। इस उद्यान में विश्व की कुछ बहुमूल्य और दुर्लभ पादप प्रजातियाँ भी प्राकृतिक अवस्था में उगती हुई दिखाई देती है , जैसे – नीली पत्तियों वाला ऑस्ट्रेलियाई कोनीफर , कैलीट्रिस और मेटासिकोइया फिलिप्टोस्ट्रोपोडिज आदि। इनमें मेटासिकोइया वृक्ष का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है , क्योंकि कुछ वर्ष पूर्व तक यह वृक्ष केवल पादप जीवाश्म के रूप में ही मिलता था।

4. वानस्पतिक उद्यान , सहारनपुर (botanical garden saharanpur)

उत्तर प्रदेश के इस अनूठे वानस्पतिक उद्यान का एतिहासिक महत्व इसलिए स्थापित है क्योंकि इस उद्यान में कार्यरत रहकर प्रसिद्ध पादप वर्गीकरण विज्ञानी जे. एफ. डथी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक दि फ्लोरा ऑफ़ अपर गेजेंटिक प्लेन्स का सजृन किया। दो खण्डो में प्रकाशित यह फ्लोरा उत्तर भारत की पुष्पीय पादप प्रजातियों की पहचान के लिए पादप वर्गिकी वेत्ताओं द्वारा प्रामाणिक ग्रन्थ के रूप में प्रयुक्त की जाती है।
सहारनपुर का वानस्पतिक उद्यान 40 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ एक सुन्दर बगीचा है। इसकी स्थापना सन 1779 में जाबिता खान के शासनकाल में हुई थी। इस उद्यान में शुरू से ही विदेशी मानवोपयोगी पादप प्रजातियों जैसे आलू , तम्बाकू , अमरुद , सेब , पपीता , मिर्च आदि के पुन: स्थापन का महत्वपूर्ण कार्य जे. डथी जैसे सुयुग्य अधिकारियो के मार्गदर्शन में सम्पादित किया गया। आधुनिक समय में यह उद्यान , उत्तरप्रदेश सरकार के फलोद्यान विभाग के अधीन एक शोध संस्थान है।

5. लालबाग़ उद्यान , बंगलौर (lalbagh botanical garden bangalore)

लालबाग़ उद्यान की गणना आज भी विश्व के अनन्यतम वानस्पतिक उद्यानों की श्रेणी में की जाती है। इसका नाम लालबाग़ मैसूर के प्रसिद्ध शासक हैदर अली द्वारा रखा गया था। प्रारंभ में इसका नियंत्रण ईस्ट इण्डिया कंपनी के द्वारा किया जाता था लेकिन सन 1831 से मुख्य आयुक्त मैसूर के अधिकार क्षेत्र में यह उद्यान दे दिया गया।
वर्तमान समय में यह उद्यान लगभग 240 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। शोभाकारी पादपों के अतिरिक्त यहाँ वैज्ञानिक महत्व की अनेक पादप प्रजातियाँ उगाई गयी है। यहाँ ऑस्ट्रेलिया , अफ्रीका और उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका महाद्वीपों से प्राप्त अनेक मानवोपयोगी पौधों का पुर:स्थापन किया गया है। सर जॉन केमरोन के कार्यकाल में इस उद्यान का सर्वांगीण विकास हुआ। वे सन 1874 में इस उद्यान के अधीक्षक नियुक्त हुए थे। इस उद्यान के प्रथम भारतीय निदेशक के रूप में स्व. रायबहादुर एच. सी. जयराजा सन 1899 में नियुक्त हुए थे। उनके कार्यकाल में आर्थिक महत्व की विभिन्न विदेशी पादप प्रजातियों के दशानुकुलन और गुणन के कार्य में इस उद्यान ने अपनी विशेष ख्याति स्थापित की। आज भी यहाँ इस बारे में निरंतर शोध कार्य चलते रहते है।