आर्कमिडीयन धर्मनिरपेक्षता क्या है | Archimedean secularism in hindi बे मोलतोल स्वभाव किसे कहते है ?
(Archimedean secularism in hindi) आर्किमिडियन धर्मनिरपेक्षता आर्कमिडीयन धर्मनिरपेक्षता क्या है बे मोलतोल स्वभाव किसे कहते है ?
शब्दावली
आर्कमिडीयन धर्मनिरपेक्षता ः भारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने आर्कमिडीयन अथवा बे-मोलतोल स्वभाव का होने के कारण साम्प्रदायिक चुनौतियों से निबटने में पर्याप्त शक्तिशाली नहीं है, यह विभिन्न संप्रदायों के बीच बहस और बातचीत का परिणाम नहीं है।
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राजीव भार्गव (सं.), सैक्यूलरिज्म एण्ड इट्स क्रिटिक्स, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, नई दिल्ली, 1998.
सारांश
भारतीय धर्मनिरपेक्षता इस धारणा पर आधारित थी कि राज्य धर्म से एक सैद्धांतिक दूरी बनाकर रखेगा लेकिन आवश्यकता पड़ने पर उठने वाले धर्म-संबंधी मामलों पर स्वयं ही सम्बोधन देगा। बहरहाल, मौलिक नियम यह रखेगा कि तटस्थता रखने और हस्तक्षेप करने, दोनों के लिए तर्क हमेशा असम्प्रदायिक होगा। धर्मनिरपेक्षता के भारतीय राज्य के व्यवहार में यह दिक्कत रही है कि यह उत्तरोत्तर रूप से साम्प्रदायिक हितों के लिए काम करती रही है। संवैधानिक प्रावधानों के एक सर्वेक्षण ने बहुत स्पष्ट तौर पर एक धर्मनिरपेक्ष राज्य (कुछ असंगतियों के बावजूद) के ढाँचे का सुझाव दिया है, यद्यपि भारतीय राज्य की राजनीति, प्रकृति और कार्यात्मकता इस ढाँचे से दूर ही एक अभिप्राय सुझाते लगते हैं । लोकतांत्रिक राजनीति, दल-व्यवस्था और राजनीतिक संस्थाओं की घटती प्रतिष्ठा ने एक शून्य-स्थान बना दिया है जो सांप्रदायिक ताकतों द्वारा घेर लिया गया है । यह निश्चित रूप से भारत राज्य के धर्मनिरपेक्ष ढाँचे के लिए एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती से लड़ने के लिए, धर्मनिरपेक्षता के लिए संघर्ष को भारत की आम जनता के उस संघर्ष का हिस्सा बनना होगा, जो कि वे अपने ऐसे जीवन के अधिकार के लिए कर रहे हैं जो गौरवपूर्ण हो और राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक रूप से स्वतंत्र हो।
बोध प्रश्न 3
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तरों की जाँच इकाई के अंत में दिए गए आदर्श उत्तरों से करें।
1) भारतीय धर्मनिरपेक्षता का बे-मोल तोल अथवा आर्कमिडीयन जैसा चरित्र-चित्रण करने से क्या तात्पर्य है?
2) अस्सी के दशक में कांग्रेस पार्टी की चुनावीय रणनीति के परिणामों के कारण संक्षेप में स्पष्ट करें।
3) भारत में धर्मनिरपेक्षता को साम्प्रदायिक चुनौती को रणधीर सिंह ने कैसे परिभाषित किया है?
बोध प्रश्न 3 उत्तर
आपके उत्तर में निम्नलिखित बिन्दु आने चाहिए:
1) भारतीय धर्मनिरपेक्षता साम्प्रदायिक चुनौतियों से निबटने के लिए पर्याप्त सबल नहीं है क्योंकि यह आर्कमीडियन अथवा बे-मोलतोल स्वभाव का है, यह विभिन्न संप्रदायों के बीच बहसों व बातचीतों का परिणाम नहीं है।
2) सत्तर के दशक के अंत तक कांग्रेस को यह स्पष्ट हो गया कि उसके समाजवाद व धर्मनिरपेक्षता के पूर्व-प्रयुक्त नारे परम्परावादी समर्थकों के बीच तेजी से असर खोते जा रहे हैं क्योंकि ये नारे मात्र नारे रहे और समाज के गरीब और हाशिये पर रख छोड़े तबकों जिनमें अनेक परम्परावादी कांग्रेस समर्थक थे, के जीवन में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं लाए। ये तबके धीरे-धीरे कांग्रेस से अलग हो गए। पार्टी ने अब एक नए चुनाव-क्षेत्र की और रुख किया और अस्सी के दशक में परिश्रम से हिन्दू मध्यम व निम्न वर्गों को उपजाया जो विभिन्न पिछड़ी जातियों व निचले दर्जे के आंदोलनों के दवाब द्वारा निरंतर डरा हुआ महसूस कर रहे थे। इस प्रकार, उसने साम्प्रदायिक राजनीति की भूमिका तैयार की जिसने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का रूप ले लिया।
3) उसने भारत में धर्मनिरपेक्षता को सांप्रदायिक चुनौती को ऐसे परिभाषित किया है – एक सामूहिक सामन्ती-औपनिवेशिक उत्तराधिकारिता वाले, अपने ही गहरे धार्मिक विभाजनों को झेलते, ऐतिहासिक रूप से पूँजीवादी विकास के आकार वाले एक समाज में भारतीय शासक वर्गों की विचारधारा और राजनीति का अभ्यास ।
बोध प्रश्न 4
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तर की जाँच इकाई के अंत में दिए गए आदर्श उत्तरों से करें।
1) भारत में धर्मनिरपेक्षता की असफलता को आशीष नन्दी ने किस पर आरोपित किया है?
2) आज हमारे देश को डराने वाली साम्प्रदायिक चुनौतियों के विरुद्ध लड़ने की रणनीति पर संक्षेप में चर्चा करें।
बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 4
आपके उत्तर में निम्नलिखित बिन्दु आने चाहिए:
1) यह असफल रहा क्योंकि इसको आज एक बड़े पैकेज से हिस्से के रूप में देखा जा रहा है जिसमें मानकीकृत वैचारिक उत्पाद तथा विकास, महा विज्ञान व राष्ट्रीय सुरक्षा जैसी सामाजिक प्रक्रियाओं का एक सेट शामिल है। राज्य के कृपा-बल से इसके अन्दर कहीं ‘हिंसा‘ लिखा गया
2) आपके उत्तर में निम्नलिखित बिंदु आने चाहिए:
ऽ धर्म-निरपेक्षता के लिए संघर्ष, भारत के जन सामान्य का उनके ऐसे जीवन के अधिकार के लिए संघर्ष का हिस्सा हो जो कि गौरवपूर्ण और राजनैतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक रूप से मुक्त हो।
ऽ सांस्कृतिक प्रश्नों से जूझना भी इस संघर्ष का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।
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