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चने के बीज की संरचना (structure of gram seed in hindi) | एकबीजपत्री बीज की संरचना (structure of monocot seed in hindi)

(structure of gram seed in hindi) चने के बीज की संरचना एकबीजपत्री बीज की संरचना (structure of monocot seed) |

चने के बीज की संरचना (structure of gram seed in hindi) : चने का बीज भूरे रंग के एक कठोर आवरण द्वारा ढका होता है , इसे बीज चोल कहते है। यह बीजाण्ड अध्यावरण की दो परतों द्वारा विकसित होता है जो आगे चलकर बाहरी आवरण टेस्टा और आंतरिक परत टेग्मेन में रूपांतरित हो जाती है। टेस्टा भूरे रंग का और अपेक्षाकृत मोटा होता है जबकि टेग्मेन सफ़ेद रंग का पतला और झिल्लीदार होता है और टेस्टा से चिपका रहता है। यह बीज चोल बीज में उपस्थित भ्रूण को उपयुक्त सुरक्षा प्रदान करता है। बीज के ऊपर की तरफ एक उभरा हुआ सिरा होता है , जिसके नीचे एक गर्त के रूप में हाइलम मौजूद होता है। हाइलम अथवा नाभिक बीज के अपने वृन्त से जुड़ाव को निरुपित करता है। हाइलम के ठीक नीचे एक स्पष्ट खांच के रूप में माइक्रोपाइल छिद्र उपस्थित होता है। जब पानी सोख कर फूले हुए बीज को कुछ दबाया जाता है तो इससे वायु के बुलबुले बाहर निकलते हुए दिखाई देते है। नाभिक के ठीक ऊपर एक उभार के रूप में राफे पाया जाता है।

बीज चोल को हटा देने के बाद जो हल्के पीले रंग की बीज संरचना दिखाई देती है , वह भ्रूण अथवा शिशु पादप होती है। चने के बीज में भ्रूणपोष अनुपस्थित होता है इसलिए इन बीजों को अभ्रूणपोषी कहते है। भ्रूण में दो मांसल बीजपत्र और एक छोटा अक्ष होता है। ये बीजपत्र अक्ष से जुड़ें हुए होते है। अक्ष के दो भाग होते है –
(1) मूलांकुर , जो उपरी नुकीले सिरे की तरफ उन्मुख होता है और अंकुरण के पश्चात् शिशु नवांकर पादप में जड़ों का विकास करता है , और
(2) प्रांकुर , जिसके ऊपरी सिरे पर सूक्ष्म शिशु पर्णों का गुच्छा पाया जाता है। यहाँ बीज के अंकुरण के पश्चात् प्रांकुर पौधे के प्ररोह के रूप में विकसित होता है। वैसे बीज में उपस्थित बीजपत्रों के मध्य में यह एक पक्षवत संरचना के रूप में दिखाई पड़ता है। चने के बीज में उपस्थित बीजपत्र भोज्य पदार्थो को संचित करने का कार्य करते है।

अरण्डी के बीज की संरचना (structure of castor seed in hindi)

अरंडी का बीज एक भ्रूणपोषी संरचना है। इसका बीज चोल एक मोटी खोल के रूप में होता है , जिसके ऊपर भूरे अथवा काले रंग की चित्तियाँ अथवा आकृतियाँ दिखाई पड़ती है। हाइलम अथवा नाभिक एक अतिवृद्धि केरन्कल द्वारा लगभग ढका अथवा छुपा रहता है। यह अतिवृद्धि केरेन्कल बीजाण्ड के बाह्य अध्यावरण के ऊपरी सिरे से विकसित होती है।
बीज में एक सुस्पष्ट उभार राफे होता है जो नाभिक से लेकर लम्बवत रूप से नीचे की तरफ तक जाता है। कठोर बीज चोल के ठीक नीचे कागज के समान पतली झिल्ली परीभ्रूणपोष पायी जाती है जो बीजाण्डकाय की अवशिष्ट संरचना होती है। परिभ्रूणपोष के अन्दर अथवा नीचे , कुछ चपटी , माँसल , तेलयुक्त और अण्डाकार भ्रूणपोष ऊतक संहति पायी जाती है जो अंकुरणशील पादप के लिए पोषण प्रदान करने का कार्य करती है। इस भ्रूणपोष संहति के भीतर भ्रूण परिवेष्ठित होता है। भ्रूणीय अक्ष को टाइजेलम कहते है। जिसके केन्द्रीय भाग से दो पतले और कागज के समान बीजपत्र जुड़े होते है। यहाँ टाइजेलम का एक सिरा जिसे प्रांकुर कहते है। वह दोनों बीजपत्रों द्वारा परिवेष्ठित रहता है जबकि दूसरा सिरा जिसे मुलान्कुर कहते है , वह बीजपत्रों से बाहर निकला होता है।

एकबीजपत्री बीज की संरचना (structure of monocot seed in hindi)

बहुतायत से उपयोग में आने वाले एकबीजपत्री पौधों के बीज भ्रूणपोषी प्रकार के होते है , जैसे गेहूं , मक्का और चावल में। इन सभी पौधों में बीज चोल और परिभ्रूणपोष दोनों संयोजित होकर संयुक्त रूप से पाए जाते है। इस प्रकार उपरोक्त वर्णित सभी पौधों के बीज अथवा दाने वस्तुतः इनके फल केरिओप्सिस होते है। इनके बीजों में फल भित्ति के मध्य में आ जाने से माइक्रोपाइल अथवा बीजाण्डद्वार छिद्र और नाभिक नहीं दिखाई देते। इनके बीज का अधिकांश हिस्सा भ्रूणपोष से भरा होता है और भ्रूण अपेक्षाकृत छोटा और दाने के एक छोटे हिस्से में ही मौजूद रहता है। एक बीजपत्री पौधों के कुछ उदाहरणों की बीज संरचना का यहाँ हम अध्ययन करेंगे।

1. गेहूँ दाने की संरचना (structure of wheat grain in hindi)

गेहूं में केरिओप्सिस प्रकार का फल होता है जो स्वयं बीज को निरुपित करता है। बीज का दाना दीर्घवृत्ताकार अथवा अण्डाकार होता है , जिसके पश्च भाग में एक लम्बवत दरार पायी जाती है। दाने अथवा बीज की भित्ति (पेरीकार्प और टेस्टा) हल्के पीले अथवा हल्के भूरे रंग की होती है। यदि दाने की लम्बवत काट का अध्ययन किया जाए तो इसकी आंतरिक संरचना को देखने से ज्ञात होता है कि दाने का अधिकांश हिस्सा स्टार्च युक्त भ्रूणपोष का बना होता है जो सफ़ेद रंग का पाया जाता है। भ्रूण बहुत छोटे भाग में रहता है। भ्रूण की एक दिशा में एक ढाल जैसी संरचना स्कूटैलम पायी जाती है। यह गेहूं का एकमात्र बीज पत्र होता है जो पाशर्व दिशा में स्कूटैलम अक्ष से संलग्न होता है। स्कूटैलम की विपरीत दिशा में एक जिव्हाकार अतिवृद्धि दिखाई देती है इसे इपिब्लास्ट कहते है।

 

2. मक्का के दाने की संरचना (structure of maize seed in hindi)

मक्का का दाना अथवा बीज लगभग दीर्घायताकार और चपटा होता है। इसकी चपटी सतह पर सफ़ेद क्षेत्र द्वारा निरुपित भ्रूण को देखा जा सकता है। परिभ्रूण और बाह्य बीज चोल जो संयुक्त होते है , वे पीले भूरे रंग के होते है। दाने की लम्बवत काट का अध्ययन करने पर भ्रूणपोष और भ्रूण के क्षेत्रों को स्पष्टतया देखा जा सकता है। भ्रूण ढाल जैसी आकृति का होता है और यह ऊपरी पाशर्व सिरे पर स्कूटैलम के रूप में उपस्थित होता है (एक बीज पत्र)
स्कूटैलम का वह ऊतक क्षेत्र जो भ्रूणपोष के नजदीक होता है एपीथिलियम का निर्माण करता है। एपीथिलियम एक ग्रंथिल ऊतक है जो भ्रूणपोष से प्राप्त पोषण को पचाने के लिए एन्जाइमों का स्त्राव करता है। स्कूटैलम के पाशर्व में एक छोटा अक्ष होता है जिसका निचला सिरा मुलांकुर होता है जो कोलियोराइजा नामक आवरण से ढका होता है। अक्ष के ऊपरी सिरे पर प्रांकुर होता है जो कोलियोप्टाइल आवरण से ढका रहता है। कोलियोप्टाइल के आधारीय भाग (प्रथम पर्व) और बीजपत्री पर्व सन्धि के बीज का क्षेत्र मीजोकोटाइल कहलाता है।