types of charge in hindi आवेश के प्रकार :आवेश कितने प्रकार का होता है यह समझने के लिए पहले निचे दिए गए प्रयोग को ठीक से समझे।
आवेश का प्रायोगिक सत्यापन (experiment on charge) :
सर्वप्रथम हम दो कांच की छड़ लेते है दोनों छड़ो को रेशम (silk) के कपडे के रगड़कर चित्रानुसार एक दूसरे के पास ले जाते है तो ये एक दूसरे से दूर जाने का प्रयास करती है अर्थात एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते है।
ठीक इसी प्रकार जब एबोनाइट की दो छड़ों को बिल्ली की खाल से रगड़कर एक दूसरे के पास लाते है तो ये भी एक दूसरे से दूर जानें का प्रयास करते है दूसरे शब्दों में कहे तो प्रतिकर्षित करते है।
लेकिन जब कांच की छड़ को रेशम के कपडे से रगड़कर तथा अन्य एबोनाइट की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़कर एक दूसरे के पास लाते है तो वे एक दूसरे के पास आने का प्रयास करती है अर्थात आकर्षित करती है।
निम्न प्रयोग से यह स्पष्ट हुआ की प्रथम दशा में जब कांच की दो छड़ों को रेशम के कपडे से रगड़ा गया था उन दोनों छडो पर समान प्रकृति का आवेश उपस्थित था अतः हम यह कह सकते है की समान प्रकृति के आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते है।
ठीक इसी प्रकार दो एबोनाइट की छड़ो को बिल्ली की खाल से रगड़ा जाता है तो उन दोनों पर भी समान आवेश उपस्थित रहता है और इसलिए वे एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते है।
लेकिन जब एक काँच की छड़ को रेशम से रगड़कर तथा एक एबोनाइट की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ा जाता है तो उन दोनों छड़ों पर विपरीत प्रकृति का आवेश उपस्थित होने के कारण वे एक दूसरे को आकर्षित करती है अतः विपरीत प्रकृति के आवेश एक दूसरे को आकर्षित करते है।
अतः हम कह सकते है की आवेश दो प्रकार का होता है , बेंजामिन फ्रेंकलिन ने इन दोनों आवेशों को धनात्मक आवेश तथा ऋणात्मक आवेश नाम दिया।
प्रयोगों द्वारा फ्रेंकलिन ने जब कांच की छड़ को रेशम के कपडे से रगड़ा इससे कांच की छड़ पर जो आवेश उत्पन्न हुआ उसे धनात्मक आवेश बताया।
इसी प्रकार फ्रेंकलिन ने एबोनाइट की छड़ को जब बिल्ली की खाल से रगड़ा जिससे एबोनाइट की छड़ पर जो आवेश उत्पन्न हुआ उसे ऋणात्मक आवेश कहा।
अतः कह सकते है की धनात्मक -धनात्मक आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते है , ठीक इसी प्रकार ऋणात्मक – ऋणात्मक आवेश (समान प्रकृति) भी एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते है लेकिन धनात्मक – ऋणात्मक आवेश (विपरीत प्रकृति के आवेश) एक दूसरे को आकर्षित करते है।
पदार्थ का धनावेशित या ऋणावेशित होने का कारण (reason of positive and negative charge things):
हम सभी जानते है की प्रत्येक द्रव्य (पदार्थ) परमाणुओं से मिलकर बना होता है तथा परमाणु नाभिक व इलेक्ट्रॉन (-) से मिलकर बना होता है।
परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन (+) तथा न्यूट्रॉन (0) से मिलकर बना होता है।
प्रोटॉन धनावेशित , इलेक्ट्रॉन ऋणावेशित तथा न्यूट्रॉन उदासीन होता है।
सामान्य अवस्था में परमाणु में इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन की संख्या बराबर होती है अर्थात ऋणावेश तथा धनावेश बराबर मात्रा में होते है जिससे परमाणु या द्रव्य उदासीन (अनावेशित) अवस्था में होता है।
यदि किसी प्रयोग द्वारा द्रव्य इलेक्ट्रॉन त्याग देता है तो उस पर प्रोटॉन (+) की संख्या अधिक हो जाती है जिससे पदार्थ धनावेशित हो जाता है।
ठीक इसी प्रकार यदि पदार्थ इलेक्ट्रॉन (-) ग्रहण कर लेता है तो इस पर ऋणावेश अधिक हो जाता है तथा वस्तु ऋणावेशित होती है।
जब कांच की छड़ को रेशम से रगड़ा गया तो कांच की छड़ रेशम के कपडे को इलेक्ट्रॉन त्याग देती है अतः धनावेशित हो जाती है ठीक इसी प्रकार एबोनाइट की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ा गया तो एबोनाइट की छड़ इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर लेती है अतः यह ऋणावेशित हो जाती है।