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दिष्ट करण , कार्यप्रणाली , पूर्ण तरंग दिष्टकारी , शुद्ध दिष्टधारा के लिए फिल्टर परिपथ

प्रश्न 1 : दिष्ट करण किसे कहते है परिपथ चित्र बनाकर अर्द्धतंरग दिष्ट कारी की कार्य प्रणाली समझाइये? और प्राप्त निर्गत वोल्टता का तरंग चित्र दीजिए?

उत्तर :  दिष्ट करण :-प्रत्यावृत्ति धारा को दिष्ट धारा में बदलना दिष्टकरण कहलाता है और जिस परिपथ के द्वारा दिष्टकरण किया जाता है। उसे दिष्टकारी कहते है। इसके लिए प्रत्यावृत्ति का सम्बद्व ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुण्डली से कर देते है और द्वितीयक कुण्डली के साथ एक डायोड और लोड RL जोड़ देते हैं।

डाईग्राम

कार्यप्रणाली:- जब द्वितीयक कुण्डली का a सिरा धनात्मक और b सिरा ऋणात्मक होता है तो डायोड D पर अग्र बायस लगता है और परिपथ में धारा बहती है। परन्तु शेष आधे चक्र में a ऋणात्मक और b धनात्मक होता है जिससे डायोड पर पश्य बायस लगता है और परिपथ में धारा नहीं बहती है। इस प्रकार पुनः धनात्मक आधे चक्र में धारा प्रवाहित होती है। इस प्रकार अर्द्धतरंग का दिष्टिकरण होता है।

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प्रश्न 2 :  पूर्ण तरंग दिष्टकारी का परिपथ चित्र बनाइये औंस इसकी कार्य प्रणाली समझाइये और निर्गत वोल्टता के लिए तरंग चित्र दीजिए।

डाईग्राम

उत्तर :  इसके लिए प्रत्यावृत्ति स्त्रोत को ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुण्डली से जोड़ देते है और द्वितीयक कुण्डली के साथ डायोड D1 व D2  जोड़ते है इसके मध्य निष्कासि ट्रांसफार्मर काम में लेते है। इस ट्रांसफार्मर के मध्य बिन्दु डायोडों के उभयनिष्ठ बिन्दु और लोड RL जोड़ देते है।

कार्य प्रणाली:- जब द्वितीयक कुण्डली पर प्रत्यावृत्ति वोल्टता आरोपित होती है तो अर्द्धचक्र में a सिरा धनात्मक और b सिरा ऋणात्मक होता है। जिससे डायोड D1 पर अग्र बायस और D2 पर पश्य बायस लगता है। जिससे डायोड D1 में धारा का प्रचालन होता है जबकि D2 में नहीं होता है जिससे लोड RL में धारा x से y कीओर बहती है। दूसरे अर्द्धचक्र में  a सिरा ऋणात्मक और b सिरा धनात्मक बनता है। जिससे डायोड D1 पर पश्च बायस और D2 पर अग्र बायस लगता है। जिससे डायोड D2 में धारा का प्रचालन होता है और D1 में नहीं होता परन्तु धारा लोड RL में अब भी x से y की ओर बनती है। इस  प्रकार पूर्ण तरंग का दिष्टीकरण हो जाता है।

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प्रश्न 3 :  शुद्ध दिष्टधारा प्राप्त करने के लिए फिल्टर परिपथ की कार्य प्रणाली समझाइये?

उत्तर :  पूर्ण दिष्टकारी से प्राप्त वोल्टता में उच्चावचन होते रहते है। अतः इस धारा को दिष्ट और प्रत्यावृत्ति धारा का मिश्रण मान सकते है। इसमें से शुद्व दिष्ट धारा प्राप्त करने के लिए समानान्तर क्रम में एक संधारित C एवं श्रेणीक्रम में प्रेरकत्व L जोड़ देते है जो फिल्टर परिपथ की तरह कार्य करता है। संधारित्र में से प्रत्यावृत्ति धारा गुजर जाती है दिष्ट धारा नहीं तथा प्रेरक में से प्रत्यावृत्ति धारा नहीं गुजरती है और दिष्ट धारा गुजरने से लोड़ RL पर शुद्ध दिष्ट धारा प्राप्त होती है।