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पादप ऊतक के प्रकार | ऊतक तन्त्र (tissue system in plants in hindi) types , example उदाहरण

ऊतक तन्त्र (tissue system in plants in hindi) पादप ऊतक के प्रकार types , example उदाहरण

प्रस्तावना :  संवहनी पौधों में विभिन्न जैविक क्रियाओं को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के ऊतक मिलकर एक इकाई के रूप में कार्य करते है। ऊतकों की यह इकाई ऊतक तंत्र को निरुपित करती है।
हम यह कह सकते है कि “ऊतकों का वह समूह जो किसी विशेष कार्य को संपादित , करने के लिए एक साथ मिलकर एक ईकाई के रूप में कार्य करता है , ऊतक तन्त्र कहलाता है। “
किसी विशेष ऊत्तक तंत्र में उपस्थित सभी ऊतक और उनकी कोशिकाएँ आकृति और संरचना में अलग अलग हो सकती है लेकिन इनकी उत्पत्ति और कार्य प्राय: एक जैसे ही होते है।
sachs 1875 ने स्थिति के आधार पर पौधों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के ऊतक तन्त्रों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है। यह है –
A. त्वचीय ऊतक तन्त्र (dermal tissue system)
B. भरण ऊतक तन्त्र (ground tissue system)
C. संवहन ऊतक तन्त्र (vascular tissue system)
वही दूसरी तरफ हैबरलैण्ड्ट ने कार्य के आधार पर ऊतक तंत्रों का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया गया है –
1. अवशोषण ऊतक तन्त्र (absorbing tissue system)
2. संचयी ऊतक तन्त्र (storage tissue system)
3. यांत्रिक ऊतक तन्त्र (mechanical tissue system)
लेकिन विषय के अध्ययन के लिए sachs नामक वैज्ञानिक द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण का अनुसरण करना ही अधिक उचित है। इसका विस्तृत विवरण अग्र प्रकार से है –

A. त्वचीय ऊतक तन्त्र (dermal tissue system)

यह पादप शरीर के आवरण की कोशिकाओं के द्वारा प्राथमिक अवस्था में निर्मित ऊतक तंत्र होता है। यहाँ बाह्य त्वचा अथवा अधिचर्म प्रमुख ऊतक के रूप में विद्यमान होते है। जड़ों की बाह्य त्वचा को मूलीय त्वचा (epiblema or rhizodermis) कहते है। विभिन्न पौधों और इनके विभिन्न भागों की बाह्य त्वचा में अलग अलग आकृति और संरचना की कोशिकाएँ उपस्थित होती है , यह सभी कोशिकाएं मिलकर एक इकाई के रूप में पौधे को सुरक्षा प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य करती है।

बाह्य त्वचा की उत्पत्ति और संरचना (origin and structure of epidermis)

इसकी उत्पत्ति शीर्षस्थ विभाज्योतकी कोशिकाओं की सबसे बाहरी पर्त से होती है। इसे त्वचाजन या डर्मेटोजन कहा जाता है।
सामान्यतया अधिकांश पौधों में बाह्यत्वचा परत की मोटाई केवल एक पंक्तिक होती है लेकिन कुछ पौधों जैसे नेरियम और फाइकस में बाह्यत्वचा की मोटाई एक से अधिक पंक्तियों की होती है। कुछ पौधों जैसे पेपरोमिया में बाह्यत्वचा की मोटाई कोशिका की 15 पंक्तियों तक पायी गयी है।
इस बहुस्तरीय बाह्यत्वचा का निर्माण करने के लिए डर्मेटोजन विभाज्योतकी कोशिकाएँ परिनत रूप से विभाजित हो सकती है या यह विभाज्योतकी प्रारंभिक कोशिकाएँ शुरू से ही अनेक पंक्तियों में निर्मित होती है।
आर्किड की अधिपादपीय जड़ों में उपस्थित बहुस्तरीय बाह्यत्वचा में विशेष प्रकार की कोशिकाएँ जिनको वेलोमेन कहते है , पाई जाती है। यह आर्द्रताग्राही कोशिकाएँ होती है , जो कि वातावरण में उपस्थित जलवाष्प और नमी का अवशोषण पौधों की जलापूर्ति के लिए करती है। अधिकांश पौधों में प्रोढ़ अवस्था में बाह्यत्वचा कोशिका का स्थान एक दूसरी रक्षक परत जिसे परित्वक कहते है , द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है।
बाह्यत्वचा परत की कोशिकाएं पौधे के कुछ हिस्सों जैसे पत्तियाँ , दलपत्र , अण्डाशय और बीजाण्डो में समव्यासी हो सकती है जबकि तने , पर्णवृन्त और एकबीजपत्री पौधों की पत्तियों में यह आयताकार और कुछ चपटी होती है , जिनकी चौड़ाई अधिक तथा ऊँचाई कम होती है। बाह्यत्वचा कोशिकाओं के जीवद्रव्य में विभिन्न प्रकार के कोशिका उपांग और इनकी उपापचयी प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप निर्मित पदार्थ भी उपस्थित रहते है , यहाँ तक की अनेक उदाहरणों में इन कोशिकाओं में म्यूसिलेज , टेनिन , रेजीन और ओक्जेलेट क्रिस्टल आदि भी पाए जाते है। कुछ पादप कुलों जैसे ग्रेमिनी के सदस्यों के बाह्यत्वचा ऊतक में सिलिका और कार्क कोशिकाएँ भी पायी जाती है। इसी कुल के कुछ अन्य सदस्यों जैसे पोआ और ट्रिटिकम की पत्तियों में उपस्थित बाह्यत्वचा पर्त में पायी जाने वाली कुछ कोशिकाएं आस पास की अन्य कोशिकाओं की तुलना में बड़ी साइज की होती है। इन्हें प्रेरक कोशिकाएँ कहते है। यह कोशिकाएँ आर्द्रताग्राही होती है अधिक तेज धुप और शुष्कता में पत्तियों के अंतर्वलन में सहायक होती है इससे तेज धूप में इस अनुकूलन के कारण अधिक मात्रा में वाष्पोत्सर्जन नहीं हो पाता।
बाह्यत्वचा की कोशिकाएं मृदुतकी होती है। इनके बीच अंतर्कोशिकीय स्थान नहीं पाए जाते। यही नहीं , इन कोशिकाओं में प्राय: अवर्णी लवक पाए जाते है। वैसे कुछ अपवादों में बाह्यत्वचा कोशिकाओं में हरितलवक और स्टार्चकण भी पाए जाते है। वे बाह्यत्वचा कोशिकाएँ जो पुष्पों के दलपत्रों में और कुछ पौधों जैसे गाजर की जड़ों में मिलती है , उनमें कोशिका के रस में घुले हुए वर्णक जैसे एंथोसाइनिन , केरोटिन और जैथोफिल आदि भी पाए जाते है जिसके कारण यह संरचनायें रंगीन दिखाई देती है। ट्रेडिस्केंशिया के पुष्प दलपत्र में उपस्थित एंथोसाइनिन वर्णक , इसका उपयुक्त उदाहरण है।
प्राय: बाह्यत्वचा की कोशिकाओं की सतह में एकरूपता पायी जाती है लेकिन पर्णरंध्रों की उपस्थिति के कारण और तने और शाखाओं में छाल और फलों में वातरन्ध्रों की उपस्थिति के कारण इनमें व्यवधान आ जाता है। इसके अतिरिक्त बाह्यत्वचा के ऊपर क्यूटिकल जैसे पदार्थो का निक्षेपण भी पाया जाता है और रोम जैसे उपांग भी उपस्थित होते है। उपर्युक्त विवरण से प्रतीत होता है कि बाह्यत्वचा में निम्नलिखित प्रकार की मुख्य संरचनायें पायी जाती है।
1. उपचर्म (cuticle)
2. रन्ध्र (stomata)
3. रोम (hairs / Trichome)
1. उपचर्म (cuticle) : सामान्य परिस्थितियों में उगने वाले संवहनी पौधों में में बाह्यत्वचा के ऊपर एक सुरक्षात्मक परत पायी जाती है , इसे उपचर्म कहते है। मरुद्भिभिदीय पौधों में उपचर्म विशेष रूप से उपस्थित होती है और यह एक मोटी परत के रूप में पायी जाती है। इसमें क्यूटीन , मोम , गोंद , रेजिन और सिलिका या लिग्निन का निक्षेपण पाया जाता है। विभिन्न पौधों में भूमिगत भागों और जलीय पौधों में सम्पूर्ण पादप शरीर पर क्यूटिकल की परत या तो बहुत पतली या पूर्णतया अनुपस्थित हो सकती है।
2. रन्ध्र (stomata) : यह बाह्यत्वचा परत की विशेष इकाई होते है। दो विशेष प्रकार की रक्षक अथवा द्वार कोशिकाओं से घिरे हुए छिद्र को रन्ध्र कहते है। द्विबीजपत्री पौधों में रक्षक कोशिकाएँ वृक्काकार और एक बीजपत्री पौधों में यह डम्बलाकार हो सकती है। रक्षक कोशिकाओं में हरितलवक भी पाए जाते है और इनकी आंतरिक भित्ति मोटी और बाहरी भित्ति पतली होती है। रक्षक कोशिकाएँ विशेष प्रकार की सहायक कोशिकाओं से घिरी होती है। जलीय पौधे और अन्य पौधों के भूमिगत भागों और जड़ों में रन्ध्र नहीं पाए जाते है।
वितरण : रंध्र पौधों के वायवीय हरे और कोमल भागों पर सामान्य रूप से मिलते है लेकिन पत्तियों पर आवश्यक रूप से पाए जाते है। पत्तियों में इनकी संख्या बहुत अधिक होती है। इसके अतिरिक्त पुष्प के दलपत्रों , पूंकेसरों की परागकोष भित्ति और अंडाशय भित्ति में भी रन्ध्र देखे गए है लेकिन यह कार्यक्षम नही होते।
रन्ध्रों की उपस्थिति के आधार पर विभिन्न संवहनी पौधों की पत्तियों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। यह निम्न है –
(i) ऊपरिरन्ध्री : यहाँ पर्णरन्ध्र केवल पत्तियों की ऊपरी सतह पर पाए जाते है , जैसे – कमल में।
(ii) अधोरन्ध्री : यहाँ पर्णरन्ध्र पत्तियों की केवल निचली सतह पर पाए जाते है जैसे – कनेर में।
(iii) उभयरन्ध्री : इन पौधों में पत्तियों की दोनों सतहों पर रंध्र उपस्थित होते है , जैसे – गेहूं और मक्का।
(iv) अरन्ध्री : इन पौधों में रंध्र नहीं पाए जाते। उदाहरण – अधिकांश जलीय पौधे और कुछ पराश्रयी पौधे। कुछ जलीय पौधों में जैसे पोटामोजीटोन में पत्तियों की सतहों पर अवशिष्ट अथवा अकार्यक्षम रन्ध्र उपस्थित होते है।

3. रोम (hairs / Trichome)

विभिन्न पौधों में त्वचा की सतह पर सभी पादप भागों में यह रोमिल उपांग पाए जाते है। वातावरण के अनुसार रोमों की आकृति और संरचना में बहुत विभिनायें पायी जाती है। यह एककोशिकीय अथवा बहुकोशीय सजीव या निर्जीव अल्पजीवी अथवा दीर्घजीवी हो सकते है। विभिन्न पौधों में रोम की आकृति और संरचना और इनकी अन्य विविधताएँ वर्गीकरण के लिए एक आवश्यक लक्षण माना जाता है।
अपहाफ नाम वैज्ञानिक के अनुसार विभिन्न संवहनी पौधों में मुख्यतः दो प्रकार के रोम पाए जाते है। यह है –
(i) अग्रंथिल रोम (non glandular hairs)
(ii) ग्रंथिल रोम (glandular hairs)
(i) अग्रंथिल रोम (non glandular hairs) : इन रोमों के आधारीय भागों में स्त्रावी ग्रन्थियां अनुपस्थित होती है .कोशिकाओं की संख्या और आकृति के आधार पर इनको निम्न उपश्रेणियों में विभेदित किया जा सकता है।
(a) एककोशीय रोम : यह रोमिल संरचनायें कुछ बाह्यत्वचा कोशिकाओं के सुदीर्घित हो जाने से विकसित होती है और केवल एक कोशिका के द्वारा ही बनती है।
उदाहरण : लेंटाना।
(b) बहुकोशिक रोम : यहाँ रोम का निर्माण करने वाली बाह्यत्वचा कोशिकाएँ विभाजित हो जाती है। इस प्रकार रोम में दो कोशिकाएँ होती है।
उदाहरण : चौलाई।
शाखाओं की उत्पत्ति के आधार पर यह द्विकोशिकीय रोम भी दो प्रकार के हो सकते है। 
अशाखित रोम : इन रोमिल संरचनाओं में शाखाएँ उत्पन्न नहीं होती। उदाहरण – टमाटर और सूरजमुखी।
शाखित रोम : यहाँ रोम की कोशिकाएँ शाखित हो जाती है , यह रोम भी अनेक प्रकार के होते है , जैसे गुच्छित रोम कपास में , वृक्षाभ रोम प्लेन्टेनस में ताराकृत रोम साइडा में।
(ii) ग्रंथिल रोम : कोशिकाओं की संख्या के आधार पर इनको भी दो उपश्रेणियों में रखा जा सकता है –
(a) एककोशीय रोम : इनमें केवल एक कोशिका पायी जाती है जो स्त्राव का कार्य करती है।
पुष्प में जायांग के वर्तिकाग्र पर यह उभार के रूप में पाए जाते है।
(b) बहुकोशीय रोम : पाचक ग्रंथियां जो कीटभक्षी पौधों जैसे ड्रोसेरा और नेपेंथिस आदि में पायी जाती है। इनका कार्य पाचक रसों का स्त्राव करने का होता है।
(c) छत्रिकाकार रोम : इनके ऊपरी सिरे पर एक छत्री जैसी फैली हुई संरचना होती है जो कि बाह्यत्वचा परत में एक पाद के माध्यम से धंसी हुई रहती है। उदाहरण – बिच्छु बूटी।

बाह्यत्वचा के कार्य (functions of epidermis in plants)

बाह्यत्वचा को हम संवहनी पौधों की एक बहुउपयोगी परत कह सकते है। इनके मुख्य कार्य निम्नलिखित प्रकार से है –
  • यह सुरक्षात्मक परत के रूप में कार्य करते हुए पौधे के कोमल आंतरिक भागों को तेज प्रकाश , आघात , जीवाणुओं और कीड़े मकोडो के आक्रमण से बचाती है।
  • बाह्य त्वचा पर उपस्थित मोम , तेलिय पदार्थ और क्यूटिकल और गुच्छ रोम वाष्पोत्सर्जन की दर को नियंत्रित करने का कार्य भी करते है।
  • चूँकि बाह्यत्वचा क्षेत्र में रंध्र भी पाए जाते है। अत: वाष्पोत्सर्जन और गैसीय विनिमय का कार्य इसी परत के द्वारा होता है।
  • कुछ पौधों में बाह्यत्वचा पर्त के दंश रोम इनको शाकाहारी जन्तुओं से सुरक्षा प्रदान करते है।
  • एकबीजपत्री पौधों तथा घासों में उपस्थित बाह्यत्वचा की बुलीफ़ार्म कोशिकाएं जल संग्रहण के साथ साथ परिपक्व पत्ती में जलाभाव के समय भीतर की ओर मुड़ने में सहायक होती है।