कॉपर क्या है , ताम्र अथवा तांबा (copper or cuprrum in hindi) , Cu का निष्कर्षण , उपयोग , गुण
(copper or cuprrum in hindi) कॉपर क्या है , ताम्र अथवा तांबा Cu का निष्कर्षण , उपयोग , गुण का मुख्य अयस्क क्या है ?
मुख्य अयस्कों से धातुओं का निष्कर्षण (extraction of metals from their mainores)
- कॉपर , ताम्र अथवा तांबा (copper or cuprrum) , Cu
परमाणवीय संख्या = 29
परमाण्विय भार = 63.546
यह प्रथम संक्रमण श्रेणी का अंतिम संक्रमण तत्व है एवं वर्ग II अथवा IB समूह का प्रथम सदस्य है। इस समूह के तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में (n-1)s2p6d10ns1 व्यवस्था होती है। अर्थात बाह्यतम कोश में 1 इलेक्ट्रॉन होता है जबकि भीतर के कोश में 18 इलेक्ट्रॉन कोर अथवा आभासी उत्कृष्ट गैस विन्यास है। कॉपर का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्नलिखित होता है –
Cu(29) = 1s2 , 2s2 2p6 , 3s2 3p6 3d10 , 4s1
इतिहास और प्राप्ति
तांबा अपनी मिश्र धातुओं पीतल और कांसे के साथ बहुत प्राचीन समय से सिक्कों , हथियारों आदि बनाने में प्रयुक्त होता रहा है। रोम में साइप्रस की खानों से खनन द्वारा प्राप्त करने के कारण इसका नाम क्यूप्रम पड़ा। प्रकृति में यह मुक्त और संयुक्त दोनों अवस्थाओं में पाया जाता है।
मुक्त अवस्था में यह उत्तरी अमेरिका की सुपर झील के किनारे , मैक्सिको , साइबेरिया , चिली , चीन , स्वीडन और ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है। संयुक्त अवस्था में यह निम्नलिखित रूपों में पाया जाता है –
(i) ऑक्साइड क्यूप्राइट अथवा रूबी कॉपर Cu2O
(ii) सल्फाइड कॉपर पाइराइटीज CuFeS2(Cu2SFe2S3) और कॉपर ग्लांस Cu2S
(iii) कार्बोनेट मैलेकाइट CuCO3.Cu(OH)2 और ऐजुराइट 2CuCO3.Cu(OH)2
इनमे से कॉपर पाइराइटीज सबसे प्रमुख है जिससे कॉपर का निष्कर्षण होता है। यह अयस्क भारत के बिहार , राजस्थान , आंध्रप्रदेश और कर्नाटक प्रदेशों के अतिरिक्त नेपाल , भूटान और सिक्किम में भी पाया जाता है। हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड की परियोजनाएं मध्यप्रदेश , राजस्थान और बिहार राज्यों में है।
धातुकर्म (Metallurgy)
- मुक्त ताम्बे से: मुक्त तांबे युक्त चट्टानों में चारों तरफ खाई बनाकर उसमें कॉपर सल्फेट विलयन भर देते है तथा उसमे शुद्ध ताम्बे की छड को कैथोड के रूप में लटका देते है , चट्टान अशुद्ध तांबे की एनोड की तरह कार्य करती है एवं इस प्रकार कुछ मिलाकर यह एक वृहद सेल की भाँती कार्य करने लगती है जिसमे विद्युत प्रवाहित करने से चट्टान का शुद्ध कॉपर घुलता जाता है एवं Cu2+आयन मुक्त होकर शुद्ध तांबे की कैथोड पर एकत्रित होते जाते है।
- ऑक्साइड या कार्बोनेट अयस्कों से: पहले अयस्क के बारीक चूर्ण का निस्तापन करते है जिससे अयस्क में से नमी दूर हो जाती है एवं कार्बोनेट अयस्क ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है –
CuCO3 → CuO + CO2
निस्तापित अयस्क को कोकचूर्ण के साथ मिलाकर परावर्तनी भट्टी में गर्म करते है जिससे ऑक्साइड अपचयित होकर मुक्त ताम्बा बना लेता है –
CuO + C → Cu + CO
Cu2O + C → 2Cu + CO
- सल्फाइड अयस्क से: कॉपर , पाइराइटीज जैसा कि ऊपर भी बताया गया है , ताम्बे का एक प्रमुख अयस्क है। इससे कॉपर का निष्कर्षण निम्नलिखित पदों में किया जाता है –
(i) सांद्रण : इसका सांद्रण झाग प्लवन विधि द्वारा किया जाता है।
(ii) भर्जन : सांद्रित अयस्क को वायु की अधिक मात्रा में कम ताप पर एक परावर्तनी भट्टी में गर्म किया जाता है इससे S , As , Sb आदि की अशुद्धियाँ वाष्पशील होकर निकल जाती है एवं कॉपर ऑक्साइड बन जाता है –
2CuFeS2 + O2 → Cu2S + 2FeS + SO2
2CuFeS2 + 4O2 → Cu2S + 2FeO + 3SO2
2Cu2S + 3O2 → 2Cu2O + 2SO2
इस प्रकार FeO और FeS की अशुद्धियों के साथ Cu2O बनता है।
(iii) प्रगलन : भर्जित अयस्क को रेत (गालक) और कोक के साथ मिलाकर एक वात्या भट्टी में लेकर वायु की अधिक मात्रा में गरम करते है। निम्नलिखित अभिक्रियाएँ संपन्न होती है –
Cu2O + FeS → Cu2S + FeO
FeO + SiO2 → FeSiO3
FeS की थोड़ी सी मात्रा की अशुद्धि के साथ कॉपर सल्फाइड पिघली हुई अवस्था में द्रव की निचली सतह बनाता है जिसे मैट या कच्ची धातु कहते है जबकि धातुमल इसकी ऊपरी सतह बनाता है .
(iv) बेसेमरीकरण : द्रवित मैट रेत के साथ मिलाकर बेसेमर परिवर्तक में डालते है एवं गर्म वायु द्वारा गर्म करते है। निम्नलिखित अभिक्रियाएँ संपन्न होती है –
2FeS + 3O2 →2FeO + 2SO2
FeO + SiO2 → FeSiO3
2Cu2S + 3O2 → 2Cu2O + 2SO2
2Cu2O + Cu2S → 6Cu + SO2
इस प्रकार प्रमुख अशुद्धियाँ SO2 गैस या धातुमल के रूप में निकल जाती है एवं मुक्त कॉपर प्राप्त होता है। SO2 गैस के निकलने से धातु की सतह पर फफोले से बन जाते है अत: इसे फफोलेदार तांबा कहा जाता है। इसमें दो से चार प्रतिशत तक अशुद्धियाँ होती है।
(v) शोधन : फफोलेदार ताम्बे से शुद्ध ताम्बा प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित विधियों का उपयोग किया जाता है –
(a) हरी लकड़ी के डंडो द्वारा : सर्वप्रथम सिलिका का अस्तर लगी हुई परावर्तनी भट्टी में फफोलेदार ताम्बे को पिघलाते है।
C , S , As और Sb आदि की अशुद्धियाँ ऑक्साइड बनाकर गैस अथवा वाष्प के रूप में निकल जाती है। जबकि FeO जैसी अशुद्धि सिलिका के साथ संयुक्त होकर धातुमल (FeSiO3) बना लेती है जिसे पृथक कर लिया जाता है। अब इसमें रहे हुए शेष कॉपर ऑक्साइड को अपचयित करने के लिए इस द्रवित धातु पर थोडा सा एंथ्रेसाइट कोक छिडककर इसे हरी लकड़ियों के डंडो से हिलाते है। इस प्रक्रम में लकड़ी से गैसीय हाइड्रोकार्बन निकलते है जो रहे हुए कॉपर ऑक्साइड को कॉपर में अपचयित कर देते है एवं लगभग 98-99% शुद्ध कॉपर प्राप्त होता है।
(b) विद्युत अपघटनी विधि : अम्लीय CuSO4 विलयन को विद्युत अपघट्य के रूप में लेकर इसमें अशुद्ध कॉपर का एक मोटा एनोड और शुद्ध धातु का एक पतला कैथोड डालकर इसमें विद्युत धारा प्रवाहित करते है। धीरे धीरे एनोड का अशुद्ध तांबा घुलता जाता है एवं कैथोड की पतली छड पर एकत्रित होता जाता है। अशुद्धियाँ एनोड के निचे एनोड पंक अथवा एनोड मड के रूप में एकत्रित होती जाती है। एनोड मड से Ni , Fe , Zn आदि के साथ Pt , Au , Ag जैसी कीमती धातुएं भी प्राप्त होती है।
गुण (properties)
(i) यह भूरे लाल रंग का धात्विक चमक वाला धातु है।
(ii) इसका गलनांक 1083 डिग्री सेल्सियस , क्वथनांक 2570 डिग्री सेल्सियस और घनत्व 8.95 g cm-3 होता है।
(iii) यह एक मुलायम , तन्य और आघातवर्ध्य धातु है परन्तु गलनांक से कुछ पहले यह भंगुर हो जाता है।
(iv) यह ऊष्मा और विद्युत का सुचालक है।
(v) द्रवित तांबा अनेक धातुओं के साथ घुलकर मिश्र धातु बनाता है।
(vi) द्रव अवस्था में यह कई गैसों को अधिधारित भी कर लेता है परन्तु ठंडा होने पर ये गैसें निकल जाती है।
(vii) नम वायु में इस पर बेसिक कॉपर कार्बोनेट की हरे रंग की परतें बन जाती है।
2Cu + H2O + CO2 + O2 → CuCO3.Cu(OH)2
औधोगिक नगरों में जहाँ वातावरण में SO2 गैस की अधिक मात्रा होती है , वहां कॉपर पर हरे रंग की बेसिक कॉपर सल्फेट की परतें बनती है।
8Cu + 5O2 + 6H2O + 2SO2 → 2[CuSO4.3Cu(OH)2]
समुद्री क्षेत्रों में यह पपड़ी बेसिक कॉपर क्लोराइड [CuCl2.4Cu(OH)2] की बनती है।
(viii ) वायु की उपस्थिति में रक्त तप्त करने पर यह क्यूप्रस और क्युप्रिक ऑक्साइड बनाता है –
4Cu + O2 → 2Cu2O
2Cu + O2 → 2CuO
(ix) रक्त तप्त धातु पर भाप को प्रवाहित करने पर भी क्यूप्रिक ऑक्साइड बनता है एवं H2 मुक्त होती है –
Cu + H2O → CuO + H2
(x) अम्लों के साथ यह विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाता है।
2Cu + 2HCl → 2CuCl + H2
2Cu + 4HCl → 2CuCl2 + 2H2O
Cu + 2H2SO4 → CuSO4 + 2H2O + SO2
4Cu + 10HNO3 → 4Cu(NO3)2 + 5H2O + N2O
3Cu + 8HNO3 → 3Cu(NO3)2 + 4H2O + 2NO
Cu + 4HNO3 → Cu(NO3)2 + 2H2O + 2NO2
5Cu + 12HNO3 → 5Cu(NO3)2 + 6H2O + N2
Cu + 2CH3COOH → (CH3COO)2Cu + H2O
2Cu + 4HBr → H2[Cu2Br4] + H2
ठण्डे और तनु HCl और H2SO4 के साथ यह कोई क्रिया नहीं करता।
(xi) यह कई अधातुओं के साथ गर्म करने पर द्विअंगी यौगिक बनाता है। उदाहरण –
Cu + Cl2 → CuCl2
Cu + S → CuS
(xii) विद्युत रासायनिक श्रेणी में अपने से निचे स्थित धातु आयनों के विलयनों में से यह धातुओं को विस्थापित कर देता है। उदाहरण –
2AgNO3 + Cu → Cu(NO3)2 + 2Ag
2AuCl3 + 3Cu → 3CuCl2 + 2Au
(xiii) वायु की उपस्थिति में यह जलीय अमोनिया के साथ क्रिया करके नीले रंग के कॉपर संकुल का विलयन बनाता है –
2Cu + 2H2O + O2 → 2Cu(OH)2
Cu(OH)2 + 4NH3 → [Cu(NH3)4](OH)2
उपयोग (uses)
इसके प्रमुख उपयोग निम्नलिखित है –
- विद्युत का सुचालक होने के कारण विद्युत यंत्रों के तार बनाने में।
- सिक्के बनाने में।
- वायु और जल से अप्रभावित रहने के कारण बर्तन , केटली और वाष्पीकरण कड़ाह बनाने में।
- विद्युत लेपन और विद्युत मुद्रण में।
- कॉपर यौगिक बनाने में और
- उपयोगी मिश्र धातु बनाने में , कॉपर की कुछ मुख्य मिश्रधातु का विवरण सारणी में दिया जा रहा है जो निम्नलिखित है –
नाम | संघटन | उपयोग |
कांसा | 75-90% cu और 10-25% Sn | बर्तन , मूर्तियाँ और सिक्के बनाने में |
एलुमिनियम ब्रांज | 90% Cu और 10% Al | सस्ते आभूषण , सिक्के , तस्वीरों के फ्रेम और सुनहरे रंग बनाने में |
पीतल | 60-80% Cu और 20-40% Zn | बर्तन , कारतूस एवं द्रवणित नालियां बनाने में |
मोनेल मेटल | 30% Cu , 67% Ni और Fe + Mn 3% | नल और अम्ल रखने के बर्तन बनाने में |
घंटा मेटल | 80% Cu और 20% Sn | घंटे और घड़ियाल बनाने में |
गन मेटल | 87% Cu , 10% Sn और 3% Zn | गन , गेयर्स आदि बनाने में |
जर्मन सिल्वर | 50% Cu , 30% Zn और 20% Ni | बर्तन , रोधक कुंडली आदि बनाने के लिए |
कांस्टेन्टन | 60% Cu और 40% Ni | विद्युत यंत्रों के लिए |
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