एवीज वर्ग : पक्षी अथवा चिड़ियाँ (aves class : the birds in hindi) पक्षी वर्ग के 4 सामान्य लक्षण लिखिए
पक्षी वर्ग के 4 सामान्य लक्षण लिखिए ? स्थानी वर्ग के चार लक्षण लिखिए ?
(aves class : the birds in hindi) एवीज वर्ग : पक्षी अथवा चिड़ियाँ
विशेष लक्षण : पक्षी वर्टिब्रेट जन्तुओं का एक सुपरिभाषित समूह बनाते है। वर्ग के रूप में वे वर्टिब्रेट जन्तुओं के किसी अन्य वर्ग की अपेक्षा अधिक समांगी समूह का निर्माण करते है। उनमे ऐसी अनेकों सुस्पष्ट लक्षण विद्यमान है जो किसी अन्य वर्ग की विशिष्टता नहीं दर्शाते है। पक्षियों के नैदानिक लक्षण निम्नलिखित प्रकार है –
1. परों से ढके , वायु श्वासी , समतापी , अंडज , द्विपादी , उडनशील कशेरुकी।
2. शरीर कमोबेश तर्कुरुपी , धारारेखित और 4 स्पष्ट प्रदेशों (सिर , ग्रीवा , धड और पुच्छ) में विभाजित होता है। जबड़ो की अस्थियाँ एक दंतविहीन चोंच अथवा चंचु में दीर्घित। ग्रीवा (neck) लम्बी तथा लचीली होती है। धड़ संहत अथवा ठोस होता है। पुच्छ छोटी , ठूंठदार एवं उड़ान के समय संतोलन (बैलेंसिंग) , परिचालन और उत्तोलन के काम आती है।
3. पाद 2 जोड़ी पायी जाती है। अग्रपाद उड़ने के लिए पंखो में रूपांतरित हो जाते है। पश्च अथवा टाँगे बड़ी और चलने , दौड़ने , खरोंचने , पर्चिंग , भोजन पकड़ने , तैरने , जल में चलने आदि के लिए विभिन्न प्रकार से अनुकूलित होती है। प्रत्येक पैर में सामान्यतया 4 नखरयुक्त पादान्गुलियाँ जिनमे प्रथम अथवा पादांगुष्ठ पीछे को दिष्ट होता है।
4. बहि:कंकाल अधिचर्मी और श्रृंगी होता है। इसके अंतर्गत आते है : (i) पर (feathers) जो गर्माहट के लिए एक कुचालक देह आवरण बनाते है। (ii) शल्क जो टांगो पर स्थित तथा सरीसृपों के समान होते है। (iii) पंजे पादान्गुलियो पर और (iv) आच्छद चोंच पर।
5. त्वचा शुष्क तथा अग्रन्थिल पायी जाती है। केवल पुच्छ के आधार पर एक पृष्ठ तैल अथवा प्रीन ग्रंथि पायी जाती है।
6. उड़ने के लिए अंस अथवा पेक्टोरल पेशियाँ सुविकसित होती है।
7. अंत:कंकाल पूर्णतया अस्थिभूत , हल्का लेकिन मजबूत तथा अधिप्रवर्ध रहित होता है। लम्बी अस्थियाँ वातिल अथवा खोखली एवं मज्जा रहित पायी जाती है। सामान्यतया अस्थियो का संलयन होता है।
8. करोटि चिकनी तथा एककंदी , अर्थात केवल एक ऑक्सीपीटल कोंडाइल सहित। कपाल बड़ा तथा गुम्बद समान। सीवनें अस्पष्ट।
9. निचला जबड़ा अथवा मैंडीबल 5 अथवा 6 अस्थियों द्वारा बना और क्वाड्रेट से संधि करता है।
10. कशेरुक दण्ड छोटा होता है। कशेरुकों के कशेरुकाय अथवा सेंट्रा विषमगर्ती अथवा काठी रुपी। ग्रीवा कशेरुक अनेक और लघु ग्रीवा पसलियों सहित। कुछ वक्षीय कशेरूक परस्पर संयुक्त। कुछ पश्च वक्षीय , लम्बर , सेक्रल और अग्र पुच्छीय कशेरुक संगलित होकर एक संयुक्त अस्थि , संत्रिक अथवा सिंसेक्रम बनाते है। पुच्छीय कशेरूक संख्या में कम , पाशर्वो से दबी हुई और अंत की 3 अथवा 4 संयुक्त होकर एक हल के फाल समान अस्थि पुच्छ फाल अथवा पाइगोस्टाइल बनाती है।
11. उरोस्थि बड़ी , प्राय: विशाल उड्डयन पेशियों के संगलन हेतु एक उदग्र , मध्य अधर नौतल सहित।
12. पसलियाँ दो सिरों वाली , अर्थात द्विशिर्षी और पीछे की ओर मुड़े अंकुशी प्रवर्धो सहित।
13. दोनों क्लैवीकल्स तथा अकेली इंटरक्लैविकल संयुक्त होकर एक V रुपी फरक्युला अथवा विश्बोन बनाते है।
14. अंस मेखला अथवा पेक्टोरल गर्डिल मजबूत और दृढ़तापूर्वक संलग्न जिससे उड़ते समय पंखो के लिए एक आलम्ब अथवा फल्क्रम बनाता है।
15. श्रोणि मेखला अथवा पेल्विक गर्डिल बड़ा , मजबूत तथा सम्पूर्ण लम्बाई में सिनसेक्रम के साथ संयुक्त। प्युबिक तथा इस्किएटिक संधान नहीं बनते। श्रोणी उलूखल अथवा एसीटैबुलम छिद्रित होता है।
16. समीपस्थ कार्पल्स स्वतंत्र होती है। दूरस्थ कार्पल्स और 3 मेटाकार्पल्स संयुक्त होकर एक संयुक्त अस्थि , कार्पोमेटाकार्पस बनाती है।
17. समीपस्थ टार्सल्स तथा टिबिआ संयुक्त होकर टिबियोटार्सस बनाती है। दूरस्थ टार्सल्स II , III और IV मेटाटार्सल्स के साथ संयुक्त होकर टार्सोमेटाटार्सस बनाती है। I मेटाटार्सल स्वतंत्र रहती है। फिबुला अपूर्ण और टिबिया से सम्बद्ध नहीं होती है।
18. गुल्फ संधि इंटरटार्सल होती है।
19. तीव्रतापूर्वक खाद्य ग्रहण तथा संग्रह के लिए इसोफेगस फैलकर सामान्यतया एक अन्नपुट अथवा क्रॉप बनाता है। आमाशय एक ग्रंथिल प्रोवेंट्रिक्युलस और एक पेशीय गिजर्ड में बंटा होता है। क्षुद्रांत्र तथा रेक्टम का संगम एक जोड़ा मलाशय अंधनालों द्वारा परिलक्षित होता है।
20. ह्रदय पूर्णतया 4 कक्षीय होता है। शिराकोटर और धमनीकाण्ड नहीं होते। केवल दाहिना धमनी अथवा दैहिक चाप वयस्क में पाया जाता है। वृक्कीय निवाहिका तंत्र अवशेषी होता है। लाल रुधिराणु अंडाकार , द्विउत्तल तथा केन्द्रकयुक्त होते है।
21. पक्षी गर्म रुधिर वाले सर्वप्रथम वर्टिब्रेट्स है। समतापी होते है अर्थात दैहिक तापक्रम नियंत्रित होता है।
22. श्वसन सघन , स्पंजी और अप्रसार्य फेफड़ो द्वारा जो पतली भित्तियुक्त वायुकोशों से जुड़े होते है।
23. ट्रेकिअल रिंग्स अस्थिभूत होती है। लैरिंग्स में स्वर रज्जु नहीं होते। एक ध्वनि उत्पादक ध्वनि बॉक्स अथवा सिरिंक्स ट्रेकिआ तथा ब्रोंकाई के संगम पर अथवा उसके निकट होता है।
24. वृक्क पश्चवृक्कीय तथा त्रिपालिक होते है। यूरेटर्स अवस्कर में खुलते है। मूत्राशय नहीं होता। यूरीकाल्म उत्सर्गी अर्थात उत्सर्गी पदार्थ यूरेट्स होते है जो विष्ठा के साथ विसर्जित होते है।
25. मस्तिष्क बड़ा लेकिन सपाट होता है। सेरिब्रम , सेरिबेलम और दृष्टि पालियाँ सुविकसित होती है। कपाल तंत्रिकाएं 12 जोड़ी होती है।
26. घ्राण अंग अल्प विकसित मध्यकर्ण में केवल एक अस्थिका। नेत्र बड़े तथा निमेषक पटल , स्किलरोटिक प्लेट्स और एक संवहनी पेक्टेन सहित।
27. लिंग पृथक और लैंगिक द्विरूपता प्राय: सुस्पष्ट। नर में एक जोड़ा उदर स्थित वृषण और एक जोड़ी शुक्र वाहिकाएँ होती है। रेटाइट्स , बत्तख और हँसो आदि को छोड़कर मैथुनांग नहीं होता। मादा में केवल एकमात्र सक्रीय बायाँ अंडाशय तथा एक बायीं अंडवाहिनी होती है।
28. निषेचन आंतरिक और अनुरंजन तथा मैथुन के बाद। मादा अण्डज। अंडे बड़े , अधिक पीतकयुक्त और एक कड़े कैल्सियसी कवच सहित।
29. अंडे बाह्य ऊष्मायन द्वारा परिवर्धित। विदलन , बिम्बाभ और अंशभंजी। परिवर्धन प्रत्यक्ष। भ्रूण कलाएं अर्थात एम्नियन , कोरिअन , एलेंटोइस और योक सैक उपस्थित।
30. नव अण्डजोत्पन्न शिशु पूर्ण विकसित अथवा कालपूर्व परिवर्धित या अपरिपक्व अथवा सहायापेक्षी।
31. पैतृक रक्षण सुविकसित पाया जाता है।
एवीज अथवा पक्षीवर्ग का वर्गीकरण (classification of aves)
किसी अन्य वर्टिब्रेट जन्तु समूह की अपेक्षा पक्षी कम विविधता प्रकट करते है। उनकी संरचना में पाई जाने वाली यह अनूठी एकरूपता उन पर उड़ान सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के कारण होती है। अपनी अत्यंत समरूपता के कारण पक्षी अपने वर्गीकरण के लिए कोई ऐसे सुविधाजनक बाह्य लक्षण प्रदान करने में असमर्थ है जैसे स्तनियों के दंत। अत: संरचनात्मक अंतर जो गणों , कुलों , वंशों और जातियों के भेद दिखलाते है , बहुत नगण्य होते है।
अब तक जीवित पक्षियों की लगभग 9000 जातियाँ ज्ञात है। वर्गिकीविज्ञो के अनुसार 25 से 30 पक्षी गणों को मान्यता प्राप्त है। वैटमोर वैज्ञानिक के अनुसार गणों की संख्या 34 है। इनमे 27 गण जीवित पक्षियों के और 7 गण विलुप्त पक्षियों के है जिनमे से 2 गण हाल ही में ही विलुप्त हुए है। प्रत्येक गण का यथेष्ठ वर्णन करना इस आर्टिकल की आवश्यकता नहीं है। अत: हम केवल आर्थिक महत्व के कुछ पक्षी समुदायों को ही सूचीबद्ध करेंगे। गणों के नामों का अंत “फार्मीज” शब्द द्वारा किया जाता है जिसका अभिप्राय “रूप” अथवा आकार से है।
वर्ग एवीज को पहले दो उपवर्गों में बांटा जाता है : आर्किओर्निथीज अथवा प्राचीन पक्षी और निओर्निथीज अथवा आधुनिक पक्षी।
उपवर्ग I. आर्किओर्निथीज
(subclass I. Archaeornithies) : (archios = ancient प्राचीन + ornithos = bird पक्षी)
1. विलुप्त , आद्य , मध्यजीवी महाकल्प के लगभग 15.5 करोड़ वर्ष पूर्व के जुरैसिक पक्षी , जिनमे सरीसृपों के अनेक लक्षण विद्यमान।
2. पंख आद्य , जिनमें उड़ने की क्षमता कम।
3. पुच्छ लम्बी , शुंडाकार , छिपकली समान और पुच्छ पिच्छो की दो पाशर्व पंक्तियों सहित।
4. प्रत्येक हाथ में 3 स्वतंत्र और नखरयुक्त हस्तांगुलियाँ।
5. करोटि के दोनों जबड़ों में गर्तों में धँसे दांत गर्तदन्ती और समदंती होते है।
6. कशेरुकाएं उभयगर्ती।
7. पुच्छ में 18-20 मुक्त पुच्छीय कशेरुकायें बिना पुच्छ फाल अथवा पाइगोस्टाइल के।
8. उरोस्थि बिना नौतल के।
9. अग्रपाद में कार्पल तथा मेटाकार्पल अस्थियाँ स्वतंत्र।
10. वक्षीय पसलियाँ कृश , बिना अंकुशी प्रवर्धो के।
11. उदरीय पसलियाँ उपस्थित होती है।
12. अनुमस्तिष्क छोटा पाया जाता है।
इस उपवर्ग में मात्र एक गण है।
गण – आर्किओप्टेरीजीफार्मीज :
(order – archaeopterygiformes)
उदाहरण : आर्किओप्टेरिक्स लिथोग्रैफिका , बैवेरिया (जर्मनी) के जुरैसिक काल से प्राप्त .इसका एक प्रतिदर्श ब्रिटिश म्यूजियम लन्दन में और दूसरा बर्लिन म्यूजियम बर्लिन में रखा हुआ है।
उपवर्ग II. निओर्निथीज :
(subclass II .Neornithes) : (neos = modern आधुनिक + ornithos = bird पक्षी)
1. आधुनिक और विलुप्त पश्च जुरैसिक पक्षी।
2. कुछ अपवादों को छोड़कर , सभी में पंख भलीभांति विकसित तथा उड़ान के लिए अनुकूल।
3. पुच्छ छोटी तथा हासित और पुच्छ पिच्छ पंखाकार रूप से व्यवस्थित।
4. पंख 3 आंशिक रूप से संयुक्त और नखर विहीन हस्तांगुलियों सहित निर्मित।
5. दांत अनुपस्थित सिवाय कुछ जीवाश्म पक्षियों को छोड़कर।
6. जीवित पक्षियों में कशेरुकाएं विषमगर्ती होती है।
7. कुछ पुच्छीय कशेरुकाएं स्वतंत्र। शेष संयुक्त होकर पुच्छफाल अथवा पाइगोस्टाइल बनाती है।
8. उरोस्थि सामान्यतया एक नौतल सहित।
9. दूरस्थ कार्पल्स मेटाकार्पल्स के साथ संयुक्त होकर कारपोमेटाकार्पल्स बनाती है।
10. वक्षीय पसलियाँ सामान्यतया अंकुशी प्रवर्धो सहित।
11. उदरीय पसलियाँ अनुपस्थित।
12. अनुमस्तिष्क बड़ा।
उपवर्ग निओर्निथीज को 4 महागणों अथवा अधोगणों में विभक्त करते है –
1. ओडोन्टोग्नैथी
2. पैलियोग्नैथी
3. इम्पैनीज
4. नियोग्नैथी
अधिगण 1. ओडोन्टोग्नैथी (superorder 1. odontognathae) :
(odonots = teeth दांत)
- विलुप्त , ऊपरी कृटेशस कल्प के पक्षी।
- जबड़ो में दांत जो मछलियाँ पकड़ने में उपयोगी होते है।
- मस्तिष्क पक्षियों के जैसा था।
गण 1. हेस्पेरॉर्निथीफोर्मिज :
- बड़े , न उड़ने वाले , समुद्री पक्षी।
- तेज , नुकीले पाशर्वदंती दांत , जो गर्तो के बजाय खाँचो में लगे होते है।
- कशेरुकायें उभयगर्ती होती है।
- अंस मेखला हासित।
- उरोस्थि नैतल रहित।
उदाहरण : हैस्पेरोर्निस , बैपटोर्निस , एनैलीओर्निस।
गण 2. इक्थिओर्निथीफोर्मिज :
(order 2. ichthyornithiformes)
- टर्न जैसी , उड़ने वाली , समुद्री चिड़ियाँ।
- क्या दांत होते थे , निश्चित नहीं है।
- ग्रीवा कशेरुकायें उभयगर्ति।
- अंस मेखला भलीभांति विकसित होती है।
- उरोस्थि सुविकसित नौतल सहित पायी जाती है।
उदाहरण : इक्थीओर्निस , एपाटोर्निस।
अधिगण 2. पोलियोग्नैथी अथवा रेटीटी (superorder 2. palaeognathae or ratitae) :
(palaios = old प्राचीन + gnathos = jaw जबड़ा , ratis = raft चाटी अथवा तरापा)
- आधुनिक , वृहदाकार , उड़ानरहित , धावक , दंतविहीन पक्षी , आद्य पैलेट सहित।
- पंख अवशेषी अथवा आद्यांगी। पर बगैर अंतर्गर्थन रचनातन्त्र के।
- पुच्छ पिच्छ अनुपस्थित अथवा अनियमित रूप से व्यवस्थित।
- पिच्छ क्षेत्र अनियमित।
- टिनेमस तथा कीवी को छोड़कर तेल ग्रंथि अनुपस्थित।
- करोटि एमुहन्वी अथवा आद्यह्न्वी। अर्थात वोमर अस्थि बड़ी , चौड़ी तथा दोनों पैलेटाइन्स के मध्य अंतरास्थित।
- करोटि की सीवनें लम्बे समय तक स्पष्ट रहती है।
- क्वाड्रेट अस्थि खोपड़ी से एकल शीर्ष द्वारा संघित होती है।
- स्टर्नम का नौतल अवशेषी , अनुपस्थित अथवा चपटा , चाटी समान।
- पसलियों के अंकुशी प्रवर्ध अवशेषी अथवा अनुपस्थित।
- पुच्छीय कशेरुक पृथक। पुच्छफाल छोटा अथवा अनुपस्थित।
- अंस मेखला की स्कैपुला तथा कोराकोइड अस्थियाँ अपेक्षाकृत छोटी तथा समकोण से अधिक कोण पर परस्पर जुडी।
- क्लैविकल्स छोटी अथवा अनुपस्थित होती है .
- रिआ तथा एमू के अलावा सभी में इलियम और इस्कियम पीछे की तरफ संयुक्त नहीं होती है।
- पेक्टोरल पेशियाँ छोटी अथवा अल्प विकसित होती है।
- शब्दिनी अथवा सिरिंक्स अनुपस्थित होती है।
- नर में एक बड़ा तथा उत्थानक्षम शिश्न और मादा में एक भग-शिश्न पाया जाता है।
- नीड़शावक कालपूर्व अथवा अकालपक्व।
- वितरण सिमित होता है।
उड़ानहीन पक्षी अथवा रैटाइट्स भारतवर्ष में नहीं पाए जाते है। इन्हें निम्नलिखित 7 गणों में रखा जाता है –
गण 1. स्टूथिओनीफोर्मिज (order 1. struthioniformes)
(struthio = ostrich शुतुरमुर्ग + form रूप)
- टाँगे मजबूत पायी जाती है। प्रत्येक पैर में कुंठ नाखूनों सहित दो पादांगुष्ठ (तीसरा एवं चौथा)
- जघनास्थियाँ एक अधर संधान बनाती है।
उदाहरण : अफ्रीका तथा पश्चिमी एशिया (अरब) के वास्तविक शुतुरमुर्ग। केवल एक स्पीशीज स्ट्रुथियो कैमिलस। सर्वाधिक विशाल जीवित पक्षी।
गण 2. राइफोर्मिज (order 2. Rheiformes) :
(Rhea = mother of Zeus ज्यूस की माता)
- भारी टाँगे , प्रत्येक में 3 नखरयुक्त पादांगुष्ठ पाए जाते है।
- इस्किया एक अधर संधान बनाती है।
उदाहरण : दक्षिण अमेरिका में दो जातियां। अमरीकी अथवा कॉमन शुतुरमुर्ग रीआ अमेरिकाना , डार्विन्स रीआ टेरोनिमिया पेनेटा।
गण 3. कैसूअरीफोर्मिज (order 3. Casuariformes) :
(Casuarius = कैसोवरी के वंश का नाम)
- भारी टाँगे , प्रत्येक में 3 नखरयुक्त पादांगुष्ठ। अग्रभुजाएं अत्यंत अपहासित।
- बाल सदृश पर , लम्बे अनुपिच्छों सहित।
उदाहरण : ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूगिनी के कैसुएरिअस कैसुएरिअस तथा न्यूजीलैंड के एमू अथवा ड्रोमेइस नोवीहोलेंडी।
गण 4. एप्टेरीजीफोर्मिज (order 4. Apterygiformes) :
(a = no रहित + pteryx = wing पंख)
- पंख अवशेषी होते है।
- पर साधारण , बाल अथवा शूकयुक्त लम्बी चोंच होती है।
- सिर पर स्थित नासारन्ध्रयुक्त लम्बी चोंच।
उदाहरण : न्यूजीलैंड के कीवी , एप्टेरिक्स।
गण 5. डाइनॉर्निथीफोर्मिज (order 5. Dinornithiformes) :
- लगभग 700 वर्ष पूर्व विलुप्त हो चुके दानव पक्षी।
- पंख लगभग समाप्त , चोंच छोटी तथा 4 पादांगुष्ठ वाली स्थूल टाँगे।
उदाहरण : न्यूजीलैंड के विलुप्त मोआज , डाइनोर्निस मैक्सिमस।
गण 6. इपीऑर्निथीफोर्मिज (order 6. Aepyornithiformes) :
- हाल में लेकिन मोआज के अपेक्षाकृत बाद में उन्मुलित पक्षी।
- पंख छोटे लेकिन टाँगे शक्तिशाली तथा 4 पादांगुष्ठ सहित।
उदाहरण : अफ्रीका तथा मैडागास्कर की दानव हाथी चिड़ियाँ। इपीओर्निस टाइटन , म्यूलीओर्निस आदि।
गण 7. टिनैमीफोर्मिज (order 7. Tinamifomes) :
- छोटे , स्थलीय पक्षी .उड़ानहीन नहीं है परन्तु अनिवार्य रूप से कुशल धावक अथवा धावी।
उदाहरण : टिनैमाउस। टिनैमस , यूड्रोमिआ , क्रिप्टयूरेलस।
अधिगण 3. इम्पैनीज (superorder 3. Impennes) : इनके परों का अंत:कंकाल सामान्य पक्षियों से भिन्न प्रकार का होता है।
गण स्फेनिसीफोर्मिज (order sphenisciformes)
(spheniscus = wedge फन्नी + form रूप)
- आधुनिक , जलीय और उड़ानरहित।
- पंख चप्पू अथवा मीनपक्षों जैसे पैर पादजालयुक्त होते है।
उदाहरण : दक्षिणी गोलार्ध के पेंग्विन। एम्परर पेंग्विन अथवा एप्टेनोडाइटीज फोस्र्टेरी किंग पोंग्विन अथवा ए. पैटागोनिका , एडिली पेंग्विन अथवा पाइगोसेलिस एडिली , जैकैस अथवा ब्लैक फुटड पेंग्विन अथवा स्फेनिसकस डिमर्सस।
अधिगण 4. नियोग्नैथी अथवा कैरिनेटी (superorder 4. Neognathae or carinatae) :
(neos = new आधुनिक + gnathos = jaw जबड़ा , carina = a keel नौतल)
- सर्वाधिक आधुनिक , प्राय: छोटे आकार वाले , उड़ने वाले पक्षी , जिनका पैलेट अपेक्षाकृत कम सरीसृपों जैसा।
- पंख भलीभांति विकसित। पर अन्तर्ग्रथन रचनातंत्र सहित।
- पुच्छ पिच्छ उपस्थित और नियमित रूप से व्यवस्थित।
- पिच्छ क्षेत्र नियमित।
- तेल ग्रंथि उपस्थित लेकिन बस्टर्ड , कबूतर , फाख्ता तथा तोते आदि पक्षियों में कम विकसित अथवा अनुपस्थित होते है।
- करोटि नवह्न्वी अथवा नियोग्नैथस अर्थात वोमर अस्थि छोटी होती है जिससे दोनों पैलेटाइन्स बीच में मिल जाती है।
- करोटि की सीवनें शीघ्र समाप्त हो जाती है।
- क्वाड्रेट अस्थि द्विशिर्षी होती है।
- उरोस्थि का नौतल भलीभांति विकसित होता है।
- पसलियों में अंकुशी प्रवर्ध पाए जाते है।
- पुच्छफाल पाया जाता है।
- अंस मेखला की स्कैपुला तथा कोराकोइड। अस्थियाँ समकोण अथवा न्यूनकोण पर मिलती है।
- क्लैविकल्स भलीभांति विकसित होती है।
- श्रोणी मेखला की इलियम और इस्कियम अस्थियाँ पीछे की तरफ संयुक्त होती है।
- पेक्टोरल पेशियाँ बड़ी अथवा सुविकसित होती है।
- सिरिंक्स होता है।
- नर में मैथुनांग नही होता है।
- नीड़शावक सहायापेक्षी अथवा नीडाश्रयी।
- वितरण विश्वव्यापी होता है।
- अधिगण नियोग्नैथी में अनेक गण होते है। अध्ययन की दृष्टि से इन्हें निम्नलिखित प्रकार कम से कम 6 समांगी पर्यावरणी समूहों में रखा जा सकता है।
समूह A. वृक्षवासी पक्षी (Group A. Arboreal birds)
इस ग्रुप में झाड़ियों तथा वृक्षों में अथवा उनके समीप अपना अधिकांश समय व्यतीत करने वाले पक्षियों का बाहुल्य रखा जा सकता है।
गण 1. पैसेरी फोर्मिज (order 1. passeriformes) :
(passer = sparrow गौरेया + form आकार)
यह पक्षियों का सर्वाधिक विशाल गण है जिसमें आधी से भी अधिक ज्ञात जातियां सम्मिलित है। पैर पक्षी सादन के लिए और चोंच काटने के अनुकूल होती है। 3 पादजाल रहित समान पादांगुष्ठ आगे और एक सुविकसित और अप्रत्यावर्ती पादांगुष्ठी पीछे।
उदाहरण : सामान्य घरेलू गौरैया पेसर डोमेस्टिकस , सामान्य घरेलू कौआ कार्वस स्प्लेन्डेंस , भारतीय जंगली कौआ कॉ. मैक्रोरिंकोस , सामान्य रेवेन अथवा काला कौआ को. कोरैक्स , पहाड़ी मैना ग्रैकुला रिलीलिओसा , सामान्य मैना अथवा एक्रिडोथियर्स ट्रिस्टिस , गंगा अथवा बैंक मैना ऐ. जिनजिनिऐनस , भारतीय रॉबिन अथवा सैक्सिकलॉईडिस फ्यूलिकेटा , काला अंगारक अथवा भुजंगा डाइक्रुरस मैक्रोसर्कस , सुनहरी पीलक अथवा ऑरिओलस ऑरीओलस दरजिन फुदकी अथवा ओर्थोटोमस सूटोरिअस , जुलाहा अथवा बया प्लोसियस फिलिपाइनस , चित्तीदार मक्षिग्राही अथवा मसिकैपा , शामा अथवा कोप्साइकस मैलाबारीकस , मुनिया अथवा लोन्कुरा , बुलबुले मालपेस्टीस तथा पिक्नोनोटस , मुटरी अथवा मैग्पाइ पाइका क्रॉसबिल अथवा लोक्सिया , तिलियर अथवा स्टारलिंग स्टर्न्स , भरतपक्षी अथवा स्काई – लार्क ऐलॉडा।
गण 2. पिसिफॉर्मीज (order 2. piciformes)
(picus = woodpecker कठफोड़वा)
वृक्षवासी , सामान्यतया एकल पक्षी। चोंच बड़ी और छेनी समान होता है। पैर युग्मान्गुलीय अर्थात जाइगोडैक्टिलस और 4 थी।
पादांगुलि स्थायी रूप से पीछे की तरफ मुड़ी हुई।
उदाहरण : पीत वक्ष चितकबरा कठफोड़वा अथवा डेन्ड्रोकोपस महराटेंसिस , स्वर्णिम पृष्ठ कठफोड़वा अथवा डाइनोपियम बेंगालेंस , टूकन अथवा रैम्फेस्टोस , मधुसूचक अथवा इंडिकेटर।
गण 3. कोलम्बीफॉर्मीज (order 3. columbiformes) :
(columba = dove फाख्ता + form आकार)
सघन परदार पक्षी। छोटी कृश चोंच। नासारन्ध्र मांसल सिअर द्वारा ढके। टाँगे तथा पाद छोटे होते है।
उदाहरण : नील पर्वत , कबूतर कोलम्बा लिविया , हरित कपोत क्रोकोपस , नील किरीटी कपोत गौरा क्रिस्टेटा , निकोबार कबूतर कैलोइनास निकोबारिका , विलुप्त यात्रा कपोत एक्टोपिस्टीस माइग्रेटोरियस , वलय कुर्म पंडुक , स्ट्रेप्टोपेलिया राइजोरिया , धब्बेदार फाख्ता स्ट्रे. चाइनेनसिस , तथा विलुप्त डोडो अथवा रैफस और सोलिटेयर पेजोफेप्स।
गण 4. सिटैसीफॉर्मीज (order 4. psittaciformes) :
(psittacus = parrot तोता + form = रूप)
विषुवतरेखीय वनों के निवासी , लम्बी आयु प्राप्त , उष्णकटिबंधी पक्षी। पिच्छती सामान्यतया चटकीली रंगीन होती है। सिर बड़ा , गर्दन छोटी और चोंच स्थूल , दृढ और वक्रित पायी जाती है। पाद जाइगोडैक्टिलस जिसमे 2 पादांगुष्ठ आगे और 2 पीछे की तरफ और चौथा पादांगुष्ठ प्रत्यावर्ती होती है।
उदाहरण : बड़ा भारतीय सुग्गा अथवा हीरामन तोता सिटेकुला यूपैट्रिया , हरा तोता सिटैकुला क्रैमेरी , बजरिगर अथवा मेलोसिटैकस , मैकाआ अथवा आरा , आमेजन तोता आमेजोनिया काकातुआ , छोटा सुग्गा अथवा ऐगापोर्निस।
समूह B. स्थलीय पक्षी (group B. Terrestrial birds)
ये पक्षी उड़ने के पूर्णतया योग्य होते है लेकिन अपना अधिकतर समय भूमि पर चलने अथवा दौड़ने में व्यतीत करते है।
गण 5. कुकुलिफॉर्मीज (order 5. cuculiformes) :
(cuculus = cuckoo कुक्कू + form रूप)
पैर जाइगोडैक्टिलस अर्थात IV पादांगुष्ठ स्थायी रूप से पीछे की तरफ मुड़ा रहता है .ऊपरी चोंच स्थूल एवं अंकुशी नहीं होती।
उदाहरण : सामान्य कुक्कू , कुकुलस कैनोरस , कोयल अथवा यूडाइनेमिस स्कोलोपेसियस , महोख अथवा क्रो फेजेंट सेंट्रोपस साइनेन्सिस।
गण 6. गैलीफॉर्मीज (order 6. galliformes) :
(gallus = a cock मुर्गी + form आकार)
धरती वासी , आखेट पक्षी , जो अपनी स्वादिष्टता के लिए उल्लेखनीय है। पंख छोटे तथा गोलाकार। उड़ान छोटी पर शक्तिशाली। पैर स्थूल और खुरचने वाले छोटे शक्तिशाली पंजो सहित होते है। चोंच छोटी , दृढ तथा आहार घासभोजी।
उदाहरण : लाल अथवा भारतीय वन कुक्कुट गैलस , मयूर अथवा पैवो क्रिस्टेटस , बटेर अथवा कोटरनिक्स कोटरनिक्स , भूरा तीतर अथवा फ्रैंकोलाइनस पांडिसेरिएनस शैल तितर अथवा चकोर या एलेक्टोरिस ग्रेका , फेजेंट्स अथवा फेजिएनस।
समूह C. तैरने तथा डुबकी लगाने वाले पक्षी (group C. swimming and diving birds) :
ये पक्षी अपने समय का अधिकांश जल में अथवा उसके समीप व्यतीत करते है , जहाँ से वे अपना भोजन प्राप्त करते है।
गण 7. एन्सेरिफॉर्मीज (order 7. Anseriformes) :
(anser = goose हंस + form आकार )
जलीय पक्षी जिनकी टाँगे छोटी , पैर पादजाल युक्त और गर्दन लम्बी होती है। उरोस्थि पर छोटा नौतल। चोंच चौड़ी तथा चपटी। तेल ग्रंथि भली भांति विकसित।
उदाहरण : जंगली बतख अथवा मैलर्ड जैसे ऐनास तथा प्लैटिरिंकोस , सामान्य हँसक अथवा टिल जैसे नेटिओन क्रेका , शलाका शीर्ष कलहंस अथवा एंसर इंडिका , राजहंस अथवा सिग्नस , कारंड अथवा मैगैंसर या मर्गस।
गण 8. कोरैसिफॉर्मीज (order 8. coraciiformes) :
(korax = crow कौआ अथवा raven डोम)
सार्वभौम मांसभक्षी पक्षी। चोंच दृढ और पैनी होती है। युक्तांगुली अथवा सिनडेक्टाइल। अर्थात आगे के 2 अथवा 3 पादांगुष्ठ आधार के निकट आंशिक रूप से संयुक्त।
उदाहरण : श्वेत वक्ष किलकिला अथवा किंग फिशर हैल्सिऑन स्मिरनेन्सिस , कोरयाला अथवा चितकबरा किलकिला सेरिल रुडिस , बड़ा धनेश अथवा हॉर्नबिल डाइकोसेरोस अथवा ब्यूसेरोस बाइकोर्निस , ग्रे हॉर्नबिल टोकस बाइरोस्ट्रिस , हुदहुद अथवा हूपऊ उपुपा इपोप्स।
गण 9. गैवीफॉर्मीज (order 9. Gaviiformes) :
(gavia = sea mew सामुद्रिक म्याऊ + form आकार या रूप)
कुशल उड़ाका .देह गोता लगाने के लिए धारारेखित। टाँगे बहुत पीछे जुडी होती है। पैर पादजालयुक्त। दुम छोटी पायी जाती है। चोंच तीखी नोकदार।
उदाहरण : विशाल समुद्री आर्कटिक पक्षी , गोताखोर अथवा मुगार्बी। केवल 5 जातियां। सामान्य लून गैविया इमर।
गण 10. पोडीसिपेडिफॉर्मीज अथवा कोलिम्बीफॉर्मीज (order 10. podicipediformes or calymbiformes) :
(kolymbos = diving birds गोताखोर पक्षी)
कमजोर उड़ाका। टाँगे देह से बहुत पीछे लगी होती है। पादांगुष्ठ कठोर श्रृंगी पल्लो सहित पालियुक्त। गर्दन पतली और लम्बी होती है। चोंच नोकदार।
उदाहरण : छोटी समुद्री पनडुब्बी अथवा ग्रीब नामक पक्षी जो अपने स्वभाव के कारण गोताखोर भी कहलाते है। बड़ी किरीटी ग्रीब पोडीसेप्स क्रिस्टेटस , इअर्ड ग्रीब कोलिम्बस।
गण 11. प्रोसेलैरीफॉर्मीज (order 11. procellariformes) :
(procella = a tempest झंझावात + form आकार )
नालाकार नासारन्ध्र , लम्बे संकरे पंख और पादजालयुक्त पैर वाले समुद्री पक्षी। चौथा पादांगुष्ठ अवशेषी। उत्तेजित होने पर तेल का वमन करते है।
उदाहरण : एल्बेट्रोस अथवा डाइयोमेडिया , समुद्री काक अथवा पेटरल प्रोसेलैरिया , शिअरवाटर्स।
गण 12. पेलीकैनीफॉर्मीज (order 12. pelecaniformes) :
(pelicanus = pelican पेलीकन + form आकार)
पूर्णजालांगुलिक तैराक पक्षी। सभी पादांगुष्ठ पादजाल के अन्दर। केवल पेलिकंस में चोंच के निचे लटकता हुआ एक बड़ा गलकोश।
उदाहरण : हवासील अथवा पेलिकंस पेलिकेनस , छोटी पनकौआ अथवा जलकाग फैलैक्रोकोरैक्स नाइगर , भारतीय डार्टर अथवा एन्हीगा मेलैगोगेस्टर।
समूह D. तटवासी तथा जलग पक्षी (Group D. shore birds and wading birds)
ये जलीय पक्षी बहुत कम जल में तैरते अथवा डुबकी लगाते है।
गण 13. कैरेड्रीफॉर्मीज (order 13. Charadriiformes) :
(charadrius = टिटिहरी अथवा प्लोवर्स का वंश + form आकार)
इस गण में जल में बार बार जाने वाले विविध प्रकार के पक्षी सम्मिलित है। लम्बी जलग टाँगे , पादजालयुक्त पादांगुष्ठ , पंकान्विक्षी चोंचे और पिच्छ आवृत , तेल ग्रंथि इनकी विशेषताएं है।
उदाहरण : लाल गलचर्म टिटहरी अथवा लोबिवैनेलस इंडिकस , फेजेंट पुच्छ जलमोर अथवा हाइड्रोफैजीएनस चिरुगस , जलरंग अथवा ट्रिंगा ग्लैरिओला , चाहा अथवा कैपेला , घोमरा अथवा गंगाचिली लेरस , कलर्यु अथवा न्यूमेनियस।
गण 14. साइकोनीफॉर्मीज (order 14. ciconiiformes) :
(ciconia = a strok बलाक + form आकार)
लम्बी टांगो वाले दलदली और जलग पक्षी। गर्दन सर्प जैसी लम्बी। चोंच जलीय , शिकार को भेदने के लिए भाले अथवा चिमटी समान। 4 लम्बे फैले हुए पादांगुष्ठ , सामान्यतया बिना पादजाल के तथा जल में पैठने के लिए अनुकूल।
उदाहरण : पशुबगुला बुबुल्कस आइबिस , भूरा बक अथवा बगुला ओर्डिया सिनेरिआ , बड़ा नील वक ओर्डिया हेरोडिआस , नैश अथवा रात्री बक अथवा निक्टिकोरेक्स , चमस चंचु अथवा प्लैटेलिया ल्यूकोरोडिया , स्टोर्क साइकोनिया , हंसावर अथवा फोनिकोप्टेरस।
गण 15. ग्रुइफॉर्मीज अथवा रैलीफॉर्मीज (order 15. Gruiformes or Ralliformes) :
(grus = crane सारस + rallus = जलकुक्कुटी का वंश )
सारस समान , लम्बी गरदन , लम्बी टाँगे और अंशत: पादजालयुक्त पादांगुष्ठ वाले जलग पक्षी।
उदाहरण : सत्तराम अथवा कुलंग एन्टीगोन एंटीजोन , हुकना अथवा सारंग कोरिओटिस नाइग्रीसैप्स , टिकरी अथवा कारण्डव फ्युलिका ऐट्रा , जलकुक्कुटी।
समूह E. शिकारी पक्षी (group E. Birds of prey)
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