B-H curve in hindi B-H वक्र या शैथिल्य वक्र खिचिए और इसके आधार पर निम्न को समझाइये?
1.अवशेष चुम्बकत्व या धारणाशीलता
2. निग्राहिता
3. शैथिल्य
4. शैथिल्य हानि
Answer – जब किसी पदार्थ को चुम्बकीय तीव्रता (H) लगाकर चुम्बकीत करते है तो H का मान बढ़ाने पर B का मान भी बढता है और अन्त में सृतप्त अवस्था आ जाती है। जिसे o-a से प्रदर्शित किया गया है H का मान शून्य करने पर B का मान शून्य नहीं होता है इसे वक्र a1 से प्रदर्शित किया गया है। अब H का मान विपरित दिशा में बढ़ाने पर B का मान घटकर शून्य हो जाता है जिसे वक्र b , c से प्रदर्शित किया गया है। H का मान विपरित दिशा में ओर बढ़ने पर सतृप्त अवस्था आ जाती है। जिसे वक्र c , d से प्रदर्शित किया गया है। यही क्रम दोहराने पर वक्र d , f , a वक्र प्राप्त होगा अतः a , b , c , d , e , f , a वक्र को B-H या शैथिल्य वक्र कहते है।
डाईग्राम
1. अवशेष चुम्बकत्व या धारणशीलता: चुम्बकीय तीव्रता H का मान शून्य करने पर भी चुम्बकीय क्षेत्र B का मान शून्य नहीं होता है। पदार्थ में जो चुम्बकीय क्षेत्र शेष रह जाता है उसे अवशेष चुम्बकत्व या धारणशीलता कहते है।
2. निग्राहिता: अवशेष चुम्बत्व को नष्ट करने के लिए विपरित दिशा में जितना H लगाया जाता है उसे पदार्थ की निग्राहिता कहते है।
3. शैथिल्य: H का मान शून्य करने पर B का मान शून्य नहीं होता है यानि कि B, H के पीछे-2 रहता है इस गुण को शैथिल्य कहते है।
4. शैथिल्य हानि: पदार्थ को चुम्बकीत करने और विचुम्बकीत करने में ऊर्जा की हानि होती है। इसे शैथिल्य हानि कहते है। जिसका मान शैथिल्य वक्र के क्षेत्रफल के समानुपाती होते है।
QUESTION – B-H वक्र की सहायता से निम्न के लिए पदार्थों का चयन इस प्रकार करते है ?
(1) कठोर चुम्बकीय पदार्थ: ऐसे पदार्थ है जो अपना लोह चुम्बकीय गुण दीर्घकाल तक बनाये रखते है। इनकी निग्राहिता अधिक होती है जैसे – स्टील
(2) मृंदू चुम्बकीय पदार्थ: ऐसे पदार्थ है जो अपना लोह चुम्बकीय गुण दीर्ध समय तक बनाये नहीं रख सकते है और जिनकी निग्राहिता कम होती है इन्हें मृदु चु. पदार्थ कहते है। जैसे – नर्म लौहा
(3) स्थायी चुम्बक: ऐसे पदार्थ जिनको चुम्बकीत करने पर आसानी से चुम्बकीत नहीं हो यानि कि जिनकी निग्राहिता का मान अधिक हो जैसे – स्टील, ऐलनिकों मिश्र धातु, कोबाल्ट स्टील मिश धातु।
(4) अस्थायी चुम्बक: इसके लिए ऐसा पदार्थ का चयन करना चाहिए जिसकी निग्राहिता कम हो ताकि आसानी से विचुम्बकीत हो सके जैसे – नर्म लोहा
(6) ट्रासंफार्मर कोड: ट्रांसफार्मर कोड में प्रत्यावर्ती धारा बहने से कोड में चुम्बकन व विचुम्बकन की क्रिया होती है। जिससे शैथिल्य हानि होती है इस हानि को कम करने के लिए ऐसा पदार्थ लेना चाहिए जिसके शैथिल्य वक्र का क्षेत्रफल न्यूनतम हो अतः नर्म लोहा उपयुक्त पदार्थ है।