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ऊर्जा संसाधन किसे कहते है ? (energy resources in hindi) , ऊर्जा संसाधन का महत्व प्रकार , वर्गीकरण

(energy resources in hindi) , ऊर्जा संसाधन किसे कहते है ? ऊर्जा संसाधन का महत्व प्रकार

ऊर्जा संसाधन (energy resources) : जीवन के संचार के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसी कारण से ऊर्जा को जीवन संचार कहा जाता है। ऊर्जा प्राप्ति के अनेक स्रोत है। जैसे कोयला , पेट्रोलियम , सूर्य ऊर्जा , आण्विक ऊर्जा और प्राकृतिक गैसें इनमें प्रमुख है। इन स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा को घरेलु उपयोग , उद्योगों और कृषि क्षेत्रों में लाया जाता है।

सम्पूर्ण विश्व में लगभग 45% ऊर्जा कोयले से , 40% पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैसों से एवं लगभग 15% जल विद्युत , ताप विद्युत और आण्विक शक्ति के रूप में प्राप्त होती है।

वर्तमान में भारत की लगभग 40% ऊर्जा की आवश्यकता जलाये जाने वाली लकड़ी , कृषि अपशिष्टों , पशु शक्ति द्वारा पूरी की जाती है। बाकी की 60% ऊर्जा की आवश्यकता औद्योगिक ऊर्जा होती है जिसमे से लगभग 30% बिजली से पूरी होती है। बिजली के रूप में ऊर्जा का उत्पादन तापीय ऊर्जा और आण्विक ऊर्जा के रूप में होता है।

तेजी से बढती हुई जनसंख्या की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अधिकाधिक मात्रा में सिंचाई के उपकरण और उर्वरकों को विकसित करने के लिए , शहरीकरण में वृद्धि और कच्ची सामग्री में कमी को देखते हुए ऊर्जा के संरक्षण की आवश्यकता प्रतीत होती है।

प्राथमिक तौर पर कोई भी ऊर्जा स्रोत पुनर्विकास योग्य या अपुनर्विकास योग्य हो सकता है। पुनर्विकास योग्य ऊर्जा स्रोतों से सौर ऊर्जा ,हवा , तापीय , जल ऊर्जा को शामिल किया गया है जबकि अपुनर्विकास योग्य संसाधनों में कोयला , तेल , गैस और आण्विक ऊर्जा संसाधन आते है। संसाधन के पुनः विकास योग्य संसाधनों का अधिकतम उपयोग और अपुनर्विकास योग्य संसाधनों का संरक्षण करने और मितव्ययिता से उपयोग करने पर जोर दिया जा रहा है। ऐसी उपायों की खोज की जा रही है जिससे गैसोलीन में 20% तक एथेनोल मिलाकर उसकी खपत में कमी लाई जा सके। ऊर्जा की खेती द्वारा भी ऊर्जा प्राप्त की जा सकने की कोशिशे की जा रही है। खेतों , मेड़ो और अन्य भूमि पर तेजी से बढ़ने वाले पेड़ों को लगाकर ऊर्जा के संकट को कम करने का प्रयत्न किया जा रहा है। सौर ऊर्जा का उपयोग अधिक से अधिक किया जाने लगा है।

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण – कुछ धारणाएँ

संरक्षण की सामान्य और सर्वोच्चतम परिभाषा है कि – “प्राकृतिक सम्पदाओं का विवेकपूर्ण उपयोग” |
मूल अथवा सामान्य सिद्धान्त :-
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के बारे में हमारे वर्तमान ज्ञान और पर्यावरण के सामान्य नियमों के साथ गहन सम्बन्ध है –
1. सभी जीव एक संकरी पट्टिका जिसे जैव मण्डल (प्रकाश को छोड़कर) कहा जाता है , में रहते है जो कि समुद्र की अधिकतम गहराई 37 हजार फीट से लेकर करीब 5 मील ऊँची पर्वत शृंखलाओं तक फैला हुआ है।
2. पारिस्थितिकी तंत्र के सभी सदस्य एक दुसरे से इस तरह जुड़े हुए है कि पृथ्वी को एक पारिस्थितिकी तंत्र माना जा सकता है जिससे सभी जीव एक दुसरे से विशाल भोजन जाल से जुड़े हुए है। जातियाँ अर्थात स्पीशीज , पदार्थ और ऊर्जा का इस तंत्र में लगातार बहाव होता रहता है। तन्त्र के किसी एक दिशा में डाला गया प्रभाव , अन्य तंत्रों को किसी न किसी रूप में प्रभावित करता है।
3. समय के साथ साथ प्राकृतिक तंत्र बदलता रहता है , यह परिवर्तन एक सामान्य प्रक्रिया है।
(i) समुदाय पारितंत्र स्तर में समय के साथ परिवर्तन अनुक्रमण कहलाता है।
(ii) मानव द्वारा संपन्न क्रिया तंत्र में परिवर्तन की दर को प्रभावित करती है , यह प्रभाव लाभदायक या हानिकारक हो सकता है।
4. प्राकृतिक तंत्र कई वर्षो में हुए उद्विकास का परिणाम है :
(i) वातावरण के अनुसार स्पीशीज अनुकूल होते है। ये अनुकूल आवश्यकता और सहनशीलता के अनुसार होते है।
(ii) कुछ स्पीशीज की सीमाएँ इतनी कम होती है कि वह एक विशेष वातावरण में ही रह सकती है।
(iii) प्राकृतिक तंत्रों का विकास गतिक संतुलन को बनाये रखने के फलस्वरूप होता है। इस संतुलन को समष्टि में सामान्यतया वातावरण की वहन क्षमता से काफी कम बताया जाता है।
5. जैसा कि चार्ल्स एल्टोन ने कहा है कि प्राकृतिक तंत्र अधिक विविधता की तरफ अग्रसर होते है जिससे उनमें स्थिरता उत्पन्न होती है।
(i) सरलीकरण या विविधता में कमी अस्थिरता उत्पन्न करती है।
(ii) प्रदूषित तंत्र बहुत अधिक सरलीकृत हो जाता है , अत: अत्यधिक अस्थिर होता है।
6. नष्ट करने का निर्णय करने के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र की वर्तमान पीढ़ी को ही नहीं अपितु आने वाली भावी पीढ़ी को भी ध्यान में रखना चाहिए।
7. यदि प्राकृतिक तंत्र अनुकूलित होने में किसी प्रकार का दबाव महसूस करने लगता है तो कुछ सम्बन्ध जो कि एक बार नष्ट हो जाते है , उहे पुनः स्थापित करना संभव नहीं होगा।