हड़प्पा सभ्यता इतिहास क्या है ? हड़प्पा स्थल कौन-कौन से हैं की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें
हड़प्पा स्थल कौन-कौन से हैं की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें हड़प्पा सभ्यता इतिहास क्या है ?
प्रश्न: हड़प्पा काल से लेकर मौर्य काल तक वास्तुकला पर एक लेख लिखिए।
उत्तर: भारतीय वास्तुकला के प्राचीनतम नमूने हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, रोपड़, कालीबंगा, लोथल और रंगपुर में पाए गए हैं जो कि सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत आते हैं। लगभग 5000 वर्ष पहले, ईसा पूर्व तीसरी सहस्राब्दी में यह स्थान गहन निर्माण कार्य का केंद्र थे। नगर योजना उत्कृष्ट थी। जली हुई ईटों का निर्माण कार्य में अत्यधिक प्रयोग होता था. सडकें चैडी और एक दूसरे के समकोण पर होती थीं, शहर, में पानी की निकासी के लिए नालियों को अत्यंत कुशलता और दूरदर्शिता के साथ बनाया गया था, टोडेदार मेहराब और स्नानघरों के निर्माण में समझ और कारीगरी झलकती थी। लेकिन इन लोगों द्वारा बनाई गई इमारतों के अवशेषों से इनके वास्तुकौशल और रुचि की पूर्ण रूप से जानकारी नहीं मिलती है। लेकिन एक चीज स्पष्ट है, विद्यमान इमारतों से सुरुचिपूर्ण पक्षों की जानकारी नहीं मिलती है और वास्तुकला में एकरसता और समानता दिखती है जिसका कारण इमारतों की खंडित और विध्व्स्तन स्थिति है। ईसा पूर्व तीसरी सहस्राब्दी में स्थापित शहर जिनमें अद्भुत नागरिक कर्तृतव्य-भावना थी और जो पहले दर्जे की पकी ईंट के ढांचे के थे। भारतीय कला के इतिहास के आगामी हजार वर्षों की वास्तुकला, हड़प्पा सभ्यता के पतन और भारतीय इतिहास के ऐतिहासिक काल के आरंभ, मुख्यतः मगध में मौर्य-शासनकाल के बीच कोई संबंध नहीं है। लगभग 1000 वर्ष का यह काल अत्यंत बुद्धिजीवी और समाज-वैज्ञानिक गतिविधियों से भरा था। इस दौरान किसी भी कलात्मक गतिविधि से विहीन रहना असंभव था। लेकिन इस काल में शिल्पकला और वास्तु कला में मिट्टी, कच्ची ईंट, बांस, इमारती लकड़ी, पत्तों. घास-फूस और छप्पर जैसी जैविक और नाशवान वस्तुओं का प्रयोग होता था जो कि समय की मार नहीं झेल सकीं।
प्राचीनतम काल के दो महत्वपूर्ण अवशेष हैं बिहार में राजगृह शहर की किलाबंदी और शिशुपालगढ़, संभवतः भुवनेश्वर के निकट प्राचीन कलिंगनगर, की किलाबंद राजधानी, राजगृह की किलाबंद दीवार कच्चे तरीके से बनाई गई है जिसमें एक के ऊपर एक अनगढ़ पत्थर रखे गए हैं। यह ईसा पूर्व 6-5 शताब्दी की है लेकिन शिशुपालगढ़ में ईसा पूर्व 2-1 शताब्दी में संगतराशों ने बड़े-बड़े पत्थरों से किला का प्रवेश द्वार बनाया जिसे कब्जों पर हिलने वाले दरवाजों की सहायता से बंद किया जा सकता था।
तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि अशोक के काल में संगतराशी और पत्थर पर नक्काशी फारस की देन थे। पर्सीपोलिस की भांति संगतराशी के मिलते-जुलते नमूनों के हमारे पास अनेक उदाहरण हैं लेकिन फिर भी लकड़ी ही मुख्य सामग्री थी और अशोक के समय के वास्तु अवशेषों में लकड़ी को छोड़कर पत्थर की ओर धीरे-धीरे परिवर्तन स्पष्ट है। पाटलिपुत्र में एक विशाल इमारती लकड़ी की दीवार के अवशेष मिले हैं जिसने किसी समय पर राजधानी को घेर रखा था। इस तथ्य का मेगास्थनिस ने स्पष्ट उल्लेख करते हुए कहा है कि उसके समय में भारत में सब कुछ इमारती लकड़ी से निर्मित था।
लेकिन इसमें एक महत्त्वपूर्ण अपवाद है भारत की शैलोत्कीर्ण वास्तुकला। हम यहां पर गुफा वास्तुकला का अध्ययन केवलमात्र इस कारण से शामिल कर रहे हैं क्योंकि प्रारंभिक गुफा मंदिर और मठ किसी भी स्थान को सुंदरता और उपयोगिता के साथ सुनियोजित करने के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
प्रारंभिक गुफा वास्तुकला का एक विशिष्ट उदाहरण है बिहार की बाराबार पहाडियों में लोमस ऋषि गुफा – जिसका सर्वाधिक बार काल निर्धारण भी किया गया है। एक शिलालेख से पता चलता है कि अशोक के काल में इसे आजीक संप्रदाय के लिए बनाया गया था। यह गुफा 55′ 22′ 7 20′ की एक चट्टान से तराश कर बनाई गई थी। इसका प्रवेश एक झोंपड़ी के प्रवेश के समान है जिसमें छत के किनारे मुड़ी हुई इमारती लकड़ी के बने हुए हैं जो कि आड़ी कड़ी पर टिके हुए हैं और जिसके सिरे बाहर की ओर निकले हैं। पत्थर पर नक्काशी कर बनाई गई हाथियों की चित्रवल्लरी लकड़ी पर तराशी गई इसी प्रकार की चित्रवल्लरी के समान है। इसके अलावा बांस से बनाई गई एक छोटी सी लकड़ी पर किए गए जालीदार काम की अनुकृति पत्थर पर बनाई गई है। इमारती लकड़ी पर बने हुए. प्रारंभिक आकारों को पत्थर पर उकेरने की दिशा में हुए विकास का यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह काल है ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी।
प्रश्न: सिंधु घाटी सभ्यता के मूर्ति शिल्प पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर: अत्यंत प्राचीनकाल से भारत में पत्थर पर नक्काशी की जा रही थी। सन् 1924 में सिंधु नदी पर मुहनजोदड़ो और पंजाब में हडप्पा के खंडहरों में किए गए. उत्खनन में एक अत्यंत विकसित शहरी सभ्यता के अवशेष मिले जिसे सिंधु घाटी या हड़प्पा सभ्यता का नाम दिया गया। यह सभ्यता लगभग 2500 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व के बची फली-फूली। इन प्राचीन शहरों का योजनाबद्ध अभिन्यास, चैड़ी सड़कें, ईंट से बने खुले घर और भूमिगत जल निकास प्रणाली बहुत कुछ हमसे मिलती-जुलती है। लोग मातृ देवी या उर्वरता की देवी को पूजते थे। इन शहरों और मेसोपोटामिया के बीच व्यापारिक और राजनीतिक संबंधों की जानकारी हमें यहां मिली मुहरों, मिलते-जुलते सुन्दर मृतभांडों से मिलती है। मनुष्य ने गढ़ने की कला की शुरूआत मिट्टी से की। सिंधु घाटी सभ्यता के इन स्थानों से हमें विशाल संख्या में पक्की मिट्टा की मूर्तियां मिली हैं।
प्रस्तर प्रतिमाओं में हड़प्पा से मिला गोलाकार पॉलिशदार लाल चुना-पत्थर से बना पुरूष धड़ अपनी स्वाभाविक भागमा और परिष्कृत बनावट की दृष्टि से विलक्षण है जो इसके शारीरिक सौंदर्य को उभारता है। इस सुंदर प्रतिमा को देखकर हमारे मन में बरबस यह विचार आता है कि कैसे उस प्राचीन युग में मूर्तिकार ने इतनी सुंदर प्रतिमा बनाई होगी जबात यही काम यूनान में बहत बाद में 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में किया गया। इस प्रतिमा के सिर और बाहों को अलग स गई गया और इन्हें धड़ में किए गए छेदों में डाला गया।
इस शहरी संस्कति से एक अन्य विलक्षण उदाहरण है मुहनजोदड़ो में मिला कुलीन पुरूष या महायाजक का धड़ चित्र कि तिपतिया नमने का शॉल बुन रहा है। इसमें तथा सुमेर में डर और सुसा से मिले एक मिलती-जुलती प्रतिमा में गहरा समानताएं हैं।
हडप्पा से प्राप्त इसी काल के एक पुरूष नर्तक की प्रतिमा अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दर्शाती है कि लगभग 50ः वर्ष पूर्व संगीत और नृत्य का जीवन में प्रमुख स्थान था। यह प्रतिमा 5000 वर्ष पूर्व मूर्तिकार की दक्षता भी दर्शाती ह कि नृत्य भंगिमाओं की सुंदर लय को कमर से ऊपर शरीर को मनोहारी रूप से घुमाकर मूर्ति गढ़ता था। दुर्भाग्यवश मू खंडित अवस्था में है लेकिन फिर भी इसकी ओजस्विता और लालित्य इसके महान कौशल को दर्शाता है।
मुहनजोदड़ो से प्राप्त इसी काल की काँसे से बनी नत्य करती लडकी की प्रतिमा संभवतः हड़प्पा काल के धातु के कायो के महानतम अवशेषों में से एक है। इस विश्व प्रसिद्ध प्रतिमा में एक नर्तकी को नृत्यक के बाद मानो खड़े होकर आराम करते दर्शाया गया है। इस नर्तकी का दाहिना हाथ उसके कल्हें पर है जबकि बायाँ हाथ लटकते हुए दर्शाया गया है। इसके बाएं हाथ में संभवतः हढी या हाथी दांत से बनी अनेक चूड़ियां हैं जिनमें से कुछ इसके दाहिने हाथ में भी हैं। यह लघु प्रतिमा उस काल के धातु शिल्पियों की एक उत्कृष्ट कलाकृति है। इन शिल्पियों को सीर पेरदयू या तरल धातु प्रक्रिया द्वारा काँसे को ढालना आता था।
मातृ देवी की बृहदाकार प्रतिमा का प्रतिनिधित्व करती मण्मर्ति की यह प्रतिमा महनजोदडो में मिली है और सबसे बेहतरीन रूप से संरक्षित प्रतिमाओं में से एक है। देवी के केशविन्यास के दोनों ओर संलग्न चैड़े पल्लोंम के अभिप्राय को ठीक से समझना कठिन है। देवी की पूजा उर्वरता और समृद्धि प्रदान करने के लिए की जाती थी। पारंपरिक रूप से भारत के 80 प्रतिशत से अधिक निवासी खेतिहर हैं जो स्वाभाविक रूप से उर्वरता और समद्धि प्रदान करने वाले देवी-देवताओं को पूजत है। मूर्ति की चपटी नाक और शरीर पर रखा गया अलंकरण जो कि मर्ति से चिपका प्रतीत होता है तथा कला में आम लोक प्रभाव अत्यंत रोचक हैं। उद् घोषणा मुहनजोदड़ो का शिल्पकार अपनी कला में दक्ष होने के कारण मूर्ति को वास्तविक और शैलीगत, दोनों तरह से बना सकता था।
मृण्मूर्ति से बनी वृषभ की प्रतिमा शिल्पकार द्वारा पशु की शरीर-रचना के विशिष्ट अध्ययन की भावपूर्ण उद् घोषणा करता एक सशक्त निरूपण है। वृषभ की इस प्रतिमा में उसका सिर दाहिनी ओर मुड़ा हुआ है और उसकी गर्दन के इर्द-गिर्द एक रस्सी है।
स्वाभाविक रूप से अपने कूल्हों पर बैठा फल कुतरता हुआ गिलहरियों का जोड़ा दिलचस्प है।
मुहनजोदड़ो से इसी काल, यानी 2500 ईसा पूर्व, का पशु आकार का एक खिलौना मिला है जिसका सिर हिलता है। उत्खनन के दौरान मिली वस्तुओं में यह सबसे दिलचस्प है जो कि यह दिखाता है कि बच्चों का मन ऐसे खिलौनों से कैसे बहलाया जाता था जिनका सिर धागे की मदद से हिलता था।
उत्खनन में विशाल संख्या में मुहरें मिली हैं। सेलखड़ी, मृण्मूर्ति और काँसे की बनी ये मुहरें विभिन्न आकार और आकृतियों की हैं। आमतौर पर ये आयताकार, कुछ गोलाकार और कुछ बेलनाकार हैं। सभी मुहरों पर मानव या पशु आकृति बनी है और साथ ही चित्रलिपि में ऊपर की ओर एक अभिलेख है जिसका अभी तक अर्थ नहीं निकाला जा सका है।
इस मुहर में आसीन मुद्रा में एक योगी को दर्शाया गया है जो संभवतः शिव पशुपति हैं। इस योगी के इर्द-गिर्द चार पशु-गैंडा, भैंसा, एक हाथी और बाघ है। सिंहासन के नीचे दो मृग दर्शाए गए हैं। पशुपति का अर्थ है पशुओं का स्वामी। यह मुहर संभवतः हड़प्पा काल के धर्म पर प्रकाश डाल सकती है। अधिकांश मुहरों के पीछे एक दस्तात है जिससे होकर एक छेद जाता है। माना जाता है कि विभिन्न शिल्पीसंध या दुकानदार तथा व्यापारी मुद्रांकित करने के लिए इनका प्रयोग करते थे। प्रयोग न होने पर इन्हें गले या बांह पर ताबीज जैसे पहना जा सकता था।
पशुओं के चित्रण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है अत्यंत बलशाली और शक्तिशाली ककुद् वाला एक वृषभ। इतने प्राचीन काल की यह एक अत्यंत कलात्मक उपलब्धि है। वृषभ के शरीर के मांसल हिस्सेको अत्यंत वास्तविक तरीके से दर्शाया गया है। अनेक लघ महरों पर बारीक कारीगरी और कलात्मकता देखने को मिलती है जो कि मूर्तिकारों के कलात्मक कौशल का अदभत उदाहरण है। कला के ये बेहतरीन नमूने अचानक ही नहीं बने होंगे और स्पष्ट तौर पर एक लंबी परंपरा की ओर संकेत करते हैं।
हडप्पा और महनजोदडो अब पश्चिम पाकिस्तान में हैं। इस संस्कृति के लगभग सौ स्थल भारत में मिले हैं जिनमें से अब तक कुछ में उत्खनन किया जा चुका है जिससे यह पता चलता है कि सिंधु घाटी संस्कृति विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी।
सिंधु घाटी सभ्यता का अंत लगभग 1500 ईसा पूर्व में हुआ। इसका कारण संभवतः भारत पर आर्यन आक्रमण रहा होगा। ताम्र संचय संस्कृति और मृत्तिकाशिल्प के कुछ पुरावशेषों के अलावा आगामी 1000 वर्षों में प्रतिमा विधायक कला के कोई भी अवशेष नहीं मिले हैं। इसका कारण संभवतः लकड़ी जैसी नष्ट होने वाली सामग्री हो सकती है जिसका प्रयोग ऐसी कलात्मक आकतियां बनाने के लिए होता था जो समय की मार नहीं झेल सकती थीं। समतल सतह पर नक्काशी जैसा कि भरहत और सांची में देखने को मिलता है, लकड़ी या हाथी दांत पर की गई नक्काशी की याद दिलाता है। लेकिन 1000 वर्षों का यह मध्यस्थ काल महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दौरान भारत के मूल निवासी, द्रविणों द्वारा प्रजननशक्ति की पूजा और आर्यों के अनुष्ठान और धार्मिक तत्वों के बीच संश्लेषण हुआ। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में प्राचीनतम धर्मग्रंथों. वेदों तथा महाकाव्यों में निहित भारतीय जीवन और चिंतन पद्धति का विकास हुआ। इसी शताब्दी में आर्य देवताओं का उनसे भी प्राचीन बौद्ध व उसके समसामयिक जैन धर्म में विलय होकर भारत में आविर्भाव हुआ। इन धर्मों में आपस में अनेक समानताएं थीं और ये हिंदू दर्शन में साधु मार्ग को प्रतिनिधित्व करते हैं। गौतम बुद्ध और महावीर की सीखों का आम लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा। इन तीन धर्मों की अवधारणा के बाद में मूर्तिकला में अभिव्यक्त किया गया।
ये मूर्तियां मूलतः मंदिरों अथवा धार्मिक इमारतों का हिस्सा थीं।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics