स्टारफिश या तारा मछली क्या है जानकारी , वर्ग , वैज्ञानिक नाम , संघ , जाति ,वंश Starfish in hindi
जाने स्टारफिश या तारा मछली क्या है जानकारी , वर्ग , वैज्ञानिक नाम , संघ , जाति ,वंश Starfish in hindi ?
ऐस्टेरिआस या स्टारफिश या तारा मछली (Asterias or Starfish)|
संघ एकाइनोडर्मटा (Echinodermata, Gr. ecrunos = hedgehog + derma = skin) क जन्त विशिष्ट प्रकार के हैं क्योंकि यह द्विपार्श्वसममिति नहीं वरन् अरीय सममिति प्रदर्शित करते है परन्त इन्हें अन्य अरीय सममित जन्तुओं (रेडिएटा, जैसे नाइडेरिया) के साथ वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। यह अरीय सममिति इनमें द्वितीयक रूप से (secondarily) उत्पन्न हुई है। इनके लावा टिपार्श्वसममित होते हैं तथा इनमें स्पष्ट देहगुहा पाई जाती है (जबकि रेडिएट जन्तुओं में देहगुहा नहीं मिलती है)। इनमें अन्तः कंकाल भी पाया जाता है।
एकाइनोडर्म जन्तु समुद्री होते हैं तथा अधिकांश पैंदे में निवास करते हैं। इस संघ के सदस्य अरीय सममिति, विशेषतः पंच अरीय सममिति, प्रदर्शित करते हैं। इनके शरीर में कोई मस्तिष्क या सिर नहीं पाया जाता है। इनके संवेदी अंग भी साधारण या सरल प्रकार के होते हैं। एकाइनोडर्म जन्तओं में नालों (canals) का एक विशिष्ट तन्त्र पाया जाता है जिसे जल संवहनी तंत्र (water vascular system) कहते हैं।
इनमें कैल्सीभूत अन्तः कंकाल पाया जाता है जो पट्टिकाओं (plates or ossicles) का बना होता है। यह शरीर पर अनेक स्थलों पर कांटों की तरह उभरी हो सकती है जिसके कारण जन्तु की सतह कांटेदार प्रतीत होती है। पतली त्वचा समस्त कंकाल को आवरित करती है। इन जन्तुओं में साधारणतया परिसंचरण या हीमल (haemal) तन्त्र अल्पविकसित होता है। रक्त में कोई श्वसन वर्णक नहीं पाया जाता है। इस संघ में कोई विकसित उत्सर्जन तन्त्र भी नहीं पाया जाता है।
इस अध्याय में हम इस संघ के एक वंश ऐस्टेरिआस का सामान्य अध्ययन करेंगे ।
वर्गीकरण (Classification)
संघ : एकाइनोडर्मेटा (Phylum : Echinodermata)
त्रिस्तरीय (triploblastic), आन्त्रगुहिक, ड्यूटरोस्टोम जन्तु जो द्वितीयक रूप से अरीय (पंच अरीय) सममिति प्रदर्शित करते हैं। शरीर पांच हिस्सों का बना होता है तथा शरीर में सुस्पष्ट सिर व मस्तिष्क (brain) का अभाव होता है।
वर्ग : एस्टेरॉइडिया (Class : Asteroidea)
शरीर तारे के समान होता है। भुजाओं की संख्या 5 या 5 के गुणकों में होती है।
गण : फॉर्सिपुलेटा (Order : Forcipulata)
इस गण के सदस्यों में वन्तपद या पेडिसिलेरिआ (pedicellaria) एक छोटे वृन्त (stalk) व तीन अस्थिकाओं (ossicles) के बने होते हैं।
वंश : एस्टेरिआस (Genus : Asterias)
स्वभाव एवं वासस्थान (Habit and habitat)
एस्टेरॉइडिया वर्ग के लगभग 20 कुलों के सदस्य तारा- मीन, तारा मछली या स्टार फिश (Star-fish) के सामान्य नाम से जाने जाते हैं – क्योंकि इनकी आकृति तारे समान होती है परन्तु यह मीन नहीं है अत: इन्हें कुछ लेखक सी – स्टार ( Sea-star) कहना अधिक उपयुक्त मानते हैं। यह जन्तु समुद्र के किनारे की रेत या चट्टानों तथा समुद्र में ज्वार चिन्हों (tide marks) तक पाए जाते हैं। यदि आप कभी समुद्र तट पर जाए तो समुद्र की लहरों के साथ किनारों तक आई छोटी तारा-मछलियों को देख पाएँगें जो शीघ्र ही गीली रेतीली मिट्टी में धंस जाती है।
बाह्य संरचना या आकारिकी (External Structures)
ऐस्टेरिआस तारे की आकृति का जीव है अर्थात् इसमें पांच भुजा रूपी हिस्से पाए जाते हैं। इस तरह यह पंचअरीय सममिति ( pentaradial symmetry) प्रदर्शित करता है। इसका आकार 10 से 20 cm हो सकता है। यह अधर पृष्ठ पर कुछ चपटा होता है। इस कारण इस जन्तु में दो तल या सतहें विभेदित की जा सकती हैं। एक तल जो गमन के समय धरातल (substratum) की ओर रहता है। अधर तल या मुखीय तल ( ventral or oral surface) कहलाता है। दूसरा तल पृष्ठ तल या अपमुखीय तल (dorsal or aboral surface) कहलाता है। पांच भुजाओं के बीच का क्षेत्र केन्द्रीय बिम्ब (central disc) कहलाता है। इससे निकलने वाली भुजाओं में पुनरुद्भवन को अद्भुत क्षमता पाई जाती है।
- पृष्ठ तल या अपमुखीय तल की संरचना : ऐस्टेरिआस का अपमुखीय तल बीच से कुछ भार लिए या उत्तल (convex) होता है। इसे हम सुविधा की दृष्टि से केन्द्रीय बिम्ब व पांच भुजाओं का बना मान सकते हैं। केन्द्रीय बिम्ब में दो पास-पास की भुजाओं को मिलाने वाली काल्पनिक खाओं के बीच एक स्पष्ट गोल संरचना पाई जाती है जिसे प्ररन्ध्रक या मेड्रीपोरइट (madreporite) कहते हैं। यह दो भुजाएँ द्विभुजिका (bivium) कहलाती है। प्ररन्ध्रक एक छन्ने (sieve) के समान होता है इसकी संरचना का वर्णन इसी अध्याय में आगे किया गया है। पृष्ठ सतह पर ही बिम्ब के केन्द्र से कुछ हट कर गुदा (anus) भी पाया जाता है। यह आन्त्र का निकास छिद्र है।
उपरोक्त संरचनाओं के अतिरिक्त पृष्ठ सतह पर निम्न तीन प्रकार की अनेक संरचनाएँ पाई जाती
- वृन्तपद या पेडिसिलेरिया (Pedicillaria) : ये संरचनाएँ ऐस्टेरिआस में वृन्तयुक्त (सवृन्त stalked) होती हैं। अन्य वंशों में ये वृन्तविहीन (sessile) भी हो सकती है। ये चिमटी समान रचनाएँ होती हैं। इनमें निचला भाग वृन्त (stalk) व ऊपरी भाग ब्लेड या वाल्व (blade or valve) कहलाता है। वृन्तपाद में वृन्त के ऊपर जुड़े दो केल्केरािई ब्लेड या वाल्व पाये जाते हैं जो तीसरी केल्केरियाई आधार पट्टिका के साथ जुड़े रहते हैं। इस प्रकार के वृन्त पाद लघु चिमटी रूप (forcipulate) कहलाते हैं। दोनों वाल्व के आमने-सामने वाले सिरे दांतेदार होते हैं। दोनों वाल्व एक जोड़ी अपवर्तनी (abductor) तथा दो जोड़ी अभिवर्तनी पेशियों द्वारा क्रमशः खुलते व बन्द होते हैं। ऐस्टीरियास में वृन्त पाद दो प्रकार के हो सकते हैं। सीधी प्रकार (straight type) तथा क्रॉसित प्रकार (crossed type) । सीधी प्रकार के वृन्त पाद में दोनों वाल्व सीधे होते हैं व परस्पर सम्पूर्ण लम्बाई में मिलते हैं। क्रासित प्रकार के वृन्त पादों में दोनों वाल्व एक कैंची की भुजाओं की तरह क्रासित होते हैं। यह वृन्तपद शरीर के ऊपर पड़ने वाले मलबे को हटाने में सहायता करते हैं ताकि त्वचा पर पाए जाने वाले श्वसनांग दब न जाए।
- चर्मीय क्लोम या पेपुला (Dermal branchia or papula) : एस्टेरिआस में अनेक चर्मीय क्लोम (dermal branchiae or papulae) भी पृष्ठ सतह पर वितरित पाई जाती है। यह देह भित्ति की सरल, खोखली, पारदर्शी व संकुचनशील बहि:वृद्धियाँ होती है। इनकी भीतरी व बाहरी दोनों सतहों पर पक्ष्माभी उपकला पाई जाती है। ये देहगुहा से व्युत्पन्न है तथा इनकी गुहा सीलोम के साथ सतत होती है। ऐस्टेरिआस में श्वसन इन पेपुली की सतह से जल तथा सीलोमिक द्रव्य के बीच विसरण विधि द्वारा होता है। पेपुली की बाहरी सतह पर उपस्थित सीलिया जल को निरन्तर हटाते रहते है अतः पेपुली की तरफ निरन्तर जल धारा उत्पन्न हो जाती है जो जल को नवीनीकृत करती रहती है। जली में घुली हुई ऑक्सीजन विसरण विधि द्वारा सीलोमिक द्रव्य में विसरित हो जाती है। पेपुली के भीतरी सतह के सीलिया सीलोमिक द्रव को हटाते रहते हैं। यह द्रव ऑक्सीजन का शरीर के अन्य भागों में वितरण करता है तथा Co2 को एकत्र कर श्वसन सतह पर लाता है, जहाँ से यह पुन: जल में विसरित कर दी जाती है। इस तरह इन पेपुली द्वारा निरन्तर श्वसन क्रिया होती रहती है।
3.शूक (Spines or tubercle): समस्त पृष्ठ सतह पर अनेक कुन्द, गतिविहीन कैल्केरियाई कों की पंक्तियाँ पाई जाती है। यह अन्तः कंकाल (endoskeleton) का भाग है। शूक एक्टोडर्म नहीं वरन मीजोडर्म से विकसित होते हैं। इनके ऊपर त्वचा का आवरण पाया जाता है।
- मुखीय तल (Oral surface) : अपमुखीय तल से विपरीत भाग, जो धरातल की ओर रखता है. मुखीय तल कहलाता है। इसमें केन्द्रीय बिम्ब के केन्द्र में मुख या अरमुख (mouth or Sotinostome) पाया जाता है। मुख एक पंचकोणीय रन्ध्र होता है जिस पर परिमुख झिल्ली (Poral membrane) पाई जाती है तथा इसके किनारों पर मखीय शक (oral spine or mouth papillae) पाए जाते हैं।
प्रत्येक भुजा के किनारे के मध्य से गुजरती हुई एक खांच मुख तक जाती है जिसे वीथिखांच (ambulacral groove) कहते हैं। मुखीय तल पर पेडिसिलेरिया, वीथिशूल व नाल पाद पाए जाते हैं। वीथि खांच के दोनों ओर नाल पादों की दो पंक्तियाँ पाई जाती हैं। नाल पाद एकाइनोडर्मों की विशिष्टता है तथा यह जल संवहनी तन्त्र (water vascular system) का एक भाग हैं। यह गमन में सहायक होते हैं। इनका अध्यन हम इसी अध्याय में आगे करेंगे। प्रत्येक खांच के दोनों ओर वीथि शूक पाए जाते हैं जो चलायमान होते हैं तथा आपस में मिल कर वीथि खांच को ढक सकते हैं।
प्रत्येक भुजा के अन्तस्थ छोर पर एक खोखला उभार पाया जाता है जिसे अन्तस्थ स्पर्शक (terminal tentacle) कहते हैं। यह स्पर्श व सूंघने के कार्य करता है इसके आधार पर प्रकाश संवेदी दृक बिन्दु (eye spots) पाए जाते हैं।
देह भित्ति (Body wall) : ऐस्टेरिआस की देह भित्ति चार स्तरों की बनी होती है।
- उपचर्म (epidermis), (ii) चर्म (dermis), (iii) पेशीय स्तर (muscle layer), (iv) पेरिटोनियम (peritonium)।
उपचर्म (Epidermis) : ऐस्टेरिआस का सम्पूर्ण शरीर उपचर्म (epidermis) द्वारा ढका के है। केवल शूलों पर उपचर्म नहीं पायी जाती है क्योंकि ये अत्यन्त नुकीले होते हैं इसलिए र फट जाती है। ऐस्टेरिआस की उपचर्म में तीन प्रकार की कोशिकायें पायी जाती हैं (i) पक्ष्माभी से उपकला कोशिकायें (cilliated coumner eithelial cells), (ii) ग्रंथिल कोशिकायें (gland cellel (iii) तंत्रिका संवेदी कोशिकायें (nerve or sensory cells)|
उपचर्म में पक्ष्माभी स्तम्भी उपकला कोशिकाओं की संख्या सबसे अधिक होती है व ला सम्पूर्ण उपचर्म इन्हीं कोशिकाओं की बनी होती है। उपचर्म में ग्रंथिल व तंत्रिका संवेदी कोशिका की संख्या अपेक्षाकृत कम होती है व पक्ष्माभी स्तम्भी कोशिकाओं के मध्य छितरायी हुई पायी जाती हैं। ग्रंथिल कोशिकायें शरीर की बाहरी सतह पर एक सुरक्षात्मक श्लेष्म आवरण का स्रावण करती है। तंत्रिका संवेदी कोशिकायें तर्क रूपी होती है तथा उपचर्म के नीचे उपस्थित तत्रिका जाल (nerve plexus) से जुड़ी रहती है। देह भित्ति बाहर की ओर एक पतली द्विस्तरीय क्यूटिकल द्वारा ढकी रहती है जिसका स्त्रावण उपचर्म करती है।
- ii) चर्म (Dermis) : उपचर्म के नीचे एक आधारी झिल्ली (basement membrane) पायर्या जाती है तथा इसके नीचे या चर्म या डर्मिस (dermis) पायी जाती है। चर्म मुख्य रूप से मोटे तन्तुमय संयोजी ऊतक की बनी होती है। चर्म के बाहरी भाग में इसी के द्वारा स्त्रावित कैल्केरियाई प्लेटें या अस्थिकाएँ (ossicles) पायी जाती है जो ऐस्टेरिआस का अन्त:कंकाल बनाती है। चर्म के भीतरी भाग में अनेक परिहीमल या चर्मीय अवकाश पाये जाते हैं।
- पेशीय स्तर (Muscle layer) : पेशीय स्तर अनैच्छिक या चिकनी पेशी तन्तुओं का बना होता है। इसमें बाह्य वृत्ताकार (circular) तथा भीतरी अनुदैर्घ्य (longitudinal) पेशियों के दो स्तर पाये जाते हैं। अनुदैर्घ्य पेशी स्तर अपेक्षाकृत अधिक मोटा होता है। यह मुखतल की अपेक्षा अपमुखतल अधिक विकसित होता है। पेशियाँ भुजाओं को मोड़ने, वीथि खांचों को खोखले व बन्द करने का कार्य करती है।
(iv) पेरिटोनियम (Peritoneum) : यह देह भित्ति का सबसे आन्तरिक स्तर होता है तथा अलोम या देहगुहा का अस्तर बनाती है। यह स्तर पक्ष्माभी घनाकार उपकला कोशिकाओं का बना
होता है।
अन्तः कंकाल (Endoskeleton) : ऐस्टेरिआस का अन्त:कंकाल मीजोडर्म से व्युत्पन्न, चर्म जागा सावित अनेक केल्केरियाई अस्थिकाओं (ossicles) का बना होता है। अस्थिकाएँ विविध प्रकार की होती है किन्तु शूलों, शलाखाओं, शंकुओं या प्लेटों की निश्चित आकतियाँ होती हैं। अस्थिकाएँ परस्पर जड़कर एक सतत अन्त:कंकाल नहीं बनाती है अपितु बीच-बीच में संयोजी ऊत्तक व पेशियों द्वारा परस्पर जुड़ी रहती है। इस प्रकार की व्यवस्था से शरीर कठोर होता है व गति सुगम हो जाती है। अपमखीतल पर अस्थिकाओं की व्यवस्था अनियमित होती है परन्तु मख तल की ओर अस्थिकाएँ नियमित रूप से व्यवस्थित रहती है। मुख के चारों ओर पाँच मुख अस्थिकाएँ (oral ossicles) पायी जाती है। प्रत्येक वीथि खांच के ऊपर वीथि अस्थिकाओं की दो पंक्तियां पायी जाती है। इन दोनों पंक्तियों में अस्थिकाएँ उल्टे ‘V’ (A) की भांति व्यवस्थित रहती है। ‘V’ का शीर्ष एक स्पष्ट वीथि कटक का निर्माण करता है। प्रत्येक वीथि के अन्दर व बाहर के किनारे पर एक खाँच या अर्द्धरन्ध्र होता है जिसके फलस्वरूप वीथि अस्थिकाओं की प्रत्येक पंक्ति पर वीथि रन्ध्रों (anbulacral pores) की दोहरी पंक्ति बन जाती है। प्रत्येक वीथि रन्ध्र में से एक नाल पाद बाहर निकला रहता है। वीथि अस्थिकाओं की प्रत्येक पंक्ति के बाहर की ओर अभिवीथि अस्थिकाओं (adambularal ossicles) की पंक्ति के बाहर की ओर अधि व अधो सीमान्त अस्थिकाओं (supra and inframarginal ossicles) की एक-एक पंक्ति पायी जाती है।
देह गुहा (Coelom) : ऐस्टेरिआस में देहगुहा वास्तविक (true coelom) तथा विस्तृत होती है। देहगुहा का एक बड़ा भाग केन्द्रीय बिम्ब व भुजाओं के परिआन्तरांग गुहा (perivisceral coelom) के रूप में देह भित्ति व आन्तरांगों के मध्य सतत रूप में फैला रहता है। पक्ष्माभित घनाकार कोशिकाओं की बनी गुहीय उपकला देह भित्ति व आन्तरांगों को आस्तरित करती है। परिआन्तरांग गुहा के अतिरिक्त कुछ अन्य सीमित गहीय अवकाश या प्रकोष्ठ जैसे जल संवहनी तंत्र, अक्षीय कोटर, परिरूधिर नालें, एवं कोटर, जननिक कोटर आदि भी पाये जाते हैं।
देह गुहा में एक रंगहीन गुहीय तरल (coelomic fluid) भरा रहता है जिसका स्रावण देहगुहा की उपकला करती है। गुहीय तरल का रासायनिक संगठन समुद्री जल की तरह होता है परन्तु अपेक्षाकत कम क्षारीय होता है। इस गुहीय तरल में भक्षाणु अमीबाभ कोशिकाएँ पायी जाती है जिन्हें अमीबोसाइट्स (amoebocytes) या प्रगुहाणु (coclomocytes) कहते हैं। इन कोशिकाओं की उत्पत्ति प्रगुहीय उपकला कोशिकाओं के मुकुलन से होती है।
ऐस्टेरिआस में वास्तविक परिसंचरण तंत्र अनुपस्थित होने के कारण प्रगुहीय तरल ही रक्त के समान पूरे शरीर में परिसंचरित होता है। इस तरल के संचरण का कार्य प्रगुहीय उपकला के पक्ष्माभ करते हैं जो निरन्तर गति करते हुए प्रगुहीय तरल को संचरित करते रहते हैं। प्रगुहीय तरल विभिन्न पदार्थों जैसे भोजन तत्वों, ऑक्सीजन, कार्बनडाइ ऑक्साइड, नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थों का परिवहन करता है। कुछ प्रगुहाणुओं में श्वसन वर्णक भी पाया जाता है। भक्षीय प्रगुहाणु उत्सर्जी एवं बाहरी पदार्थों का भक्षण कर चर्मीय क्लोमों द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।
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