समन्वय संख्या क्या है , को उदाहरण देकर समझाइए , समन्वय मण्डल, समन्वय पोलीहेड्रॉन किसे कहते है
जाने समन्वय संख्या क्या है , को उदाहरण देकर समझाइए , समन्वय मण्डल, समन्वय पोलीहेड्रॉन किसे कहते है ?
उपसहसंयोजन यौगिक (Coordination Compounds
परिचय (Introduction)
कुछ यौगिक आपस में संयुक्त होकर योगात्मक यौगिक बनाते हैं। इन यौगिकों के निर्माण लिए क्रियाकारी अणुओं के मध्य नये बंधों का बनना आवश्यक है। क्योंकि एक स्थायी अणु में परमाणुओं की संयोजकताएँ तृप्त होती हैं, यह उत्सुकता सहज ही उत्पन्न होती है कि अणु आप में संयुक्त होने के लिए अपनी संयोजी क्षमता का विस्तार किस प्रकार करते हैं। उदाहरण के लिए NH3 एक स्थाई अणु है जिसमें N परमाणु अपनी तीनों संयोजकताओं का उपयोग कर तीन परमाणुओं के साथ बंध बनाता है। इसी प्रकार Co3+ आयन तीन CI- आयनों के साथ स्थायी CocI3 बनाता है। तथापि, CoCl3 तथा NH3 आपस में संयुक्त होकर CoCl3.6NH3 यौगिक का निर्म करते हैं। इसी प्रकार दो लवण आपस में मिलकर एक नये योगात्मक पदार्थ का निर्माण करते है इन योगात्मक यौगिकों को निम्न दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।
(i) द्विक लवण (Double Salt) : इस श्रेणी के योगात्मक यौगिक केवल ठोस अवस्थ में स्थायी होते हैं तथा जल में विलेय होने पर अपने अवयवी आयनों में विभाजित हो जाये हैं। अर्थात्, इन यौगिकों के विलयन में वे सभी आयन पाये जाते हैं जो क्रियाकारी दोनों लवणों में होते हैं। इस प्रकार द्विक लवण क्रियाकारी लवणों के मिश्रण की भांति आचरण करते हैं। यहाँ कारण है कि इन योगात्मक यौगिकों को द्विक लवण नाम दिया गया है। उदाहरण के लिए KO तथा MgCl2 के द्विक लवण KCI.MgCI2.6H2O (कार्नेलाइट) के विलयन में K, Mg 2+ तथ CI- आयन ही पाये जाते हैं। इसी प्रकार K2SO4 तथा Al2 (SO 4 ) 3 के द्विक लवण फिटक (polassium alum) K2SO4 Al2(SO4)3 24H2O में K, Al + तथा SO 2- आयन उपस्थिा होते हैं-
KCI + MgCl2 + 6H2O- → KMgCl3.6H20 → K+ + Mg2+ + 3Cl + 6H2O
K2SO4 + Al2(SO4)3 + 24H2O → 2KAI (SO4)2 12H2O → 2K+ + 2A13+ + 4SO2 +24H20
(ii) उपसहसंयोजन यौगिक (Coordination compounds) : इन यौगिकों को आरम्भ में संकुल यौगिक (complex compounds) नाम दिया गया था। ये यौगिक अभिकर्मकों के मिश्रण मात्र न होकर उनकी अभिक्रिया से निर्मित नये पदार्थ होते हैं तथा विलयनों में भी सामान्यत अपना अस्तित्व बनाये रखते हैं। उदाहरण के लिए, KCN के विलयन में K” तथा CN- आपक एवं Fe(CN)2 विलयन में Fe2+ तथा CN- आयन पाये जाते हैं। लेकिन KCN तथा Fe (CN)2 विलयनों की अभिक्रिया के फलस्वरूप Fe2+ तथा CN – आयन संयुक्त होकर [ Fe(CN)4-आयन निर्माण करते हैं जो अत्यधिक स्थायी है। [ Fe (CN) 6] 4- उपसहसंयोजक आयन बन जाने के कारण अभिक्रिया मिश्रण में मुख्यत: [ Fe (CN6) ] 4- आयन होते हैं, जबकि मुक्त Fe2+ तथा CN- आयन बहुत कम मात्रा में पाये जाते हैं।
4KCN + Fe(CN)2 → 4KCN.Fe(CN)2 →4K+ + [Fe(CN)6]4
इसी प्रकार CoCl3 के जलीय विलयन में अमोनिया डालने पर योगात्मक यौगिक CoCl3.6NH3 प्राप्त होता है जिसमें मुख्यत: [Co(NH3)6]3+ आयन पाया जाता है। यह आयन Co3+ आयन तथा NH3 की अभिक्रिया से बनता है जिसके फलस्वरूप विलयन में Co3+ आयन की मात्रा कम हो जाती है। अभिक्रिया को निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-
CoCl3 + 6NH3 →CoCl3.6NH3 → [Co(NH3)6]3+ + 3Cl
द्विक लवण तथा संकुल यौगिक में अन्तर :-
(i) द्विक लवण में धातु, आयनों तथा ऋणायनों के मध्य आयनिक बंध होता है जबकि संकुल यौगिकों में धातु आयन तथा ऋणायनों (लिगण्ड) के मध्य उपसहसंयोजक बंध होता है। (ii) द्विक लवणों में मूल अभिकर्मकों के धनायन तथा ऋणायन अपनी पहचान बनाये रखते हैं जबकि संकुल यौगिकों में मूल अभिकर्मकों के धनायन एवं ऋणायनों के संयोग नये संकुल आयन बन जाते हैं। उदाहरण के लिए KCI तथा MgCl2 से बने द्विक लवण KMgCl3 में K`,Mg2+, तथा CI-का स्वतंत्र अस्तित्व होता है परन्तु KCN तथा Fe(CN) की क्रिया से बने संकुल K4 [Fe(CN)6] में CN – तथा Fe2+ आयनों से निर्मित नया [ Fe (CN6) ] 4 आयन K + आयनों के साथ पाया जाता है
(iii) द्विक लवणों में एक से अधिक प्रकार के धनायन व ऋणायन होते हैं। इनमें कोई भी आयन कोष्ठक में नही लिखा जाता है। संकुल यौगिकों में एक धातु आयन अपनी पहचान खोकर नया संकुल आयन बनाता है जो कोष्ठक में लिखा जाता है ।
संयोजकता के सामान्य नियमों द्वारा संकुल यौगिकों में बंधन समझाने के सभी प्रयास असफल रहे जबकि, दूसरी ओर, सामान्य लवणों व लगभग सभी कार्बनिक यौगिकों में बंधन को उस समय प्रचलित संयोजकता के नियमों द्वारा आसानी से समझाया जा सकता था। बंधन में जटिलता के कारण इन योगात्मक यौगिकों को जटिल या संकुल (complex) यौगिक कहां जाने लगा। लेकिन उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में वर्नर ने इन संकुलों के गुणों का गहन अध्ययन कर संयोजकता की एक नई धारणा प्रस्तुत की जिसकी सहायता से इन यौगिकों के गुणों की सफलतापूर्वक व्याख्या की जा सकी। वर्नर ने बताया कि संकुलों में धातु परमाणु केन्द्र पर स्थित होते हैं जिसके चारों ओर ऋणायन व उदासीन अणु एक अन्य संयोजकता, जिसे द्वितीयक संयोजकता (secondry valency) कहा गया, द्वारा बंधित होते हैं। सिजविक द्वारा एक इलेक्ट्रॉन युग्म से उपसहसंयोजकता आबंध (coordinate bond) के निर्माण की कार्यविधि प्रस्तुत किये जाने के पश्चात् यह सुझाव दिया गया कि संकुलों में केन्द्रिय धातु से ऋणायन व उदासीन अणु उपसहसंयोजकता आबंध द्वारा बंधित होते हैं। चूंकि इन यौगिकों में बंधन अब जटिल नहीं रह गया है, अतः अब इन्हें उपसहसंयोजन यौगिक कहा जाता है।
पद तथा परिभाषा (Terms and Definition)
- संकुल यौगिक (Complex compound):- यह पद आरम्भ में उपसहसंयोजन प्रजातियों के लिए काम में लिया जाता था। अब इन यौगिकों को उपसहसंयोजन यौगिक कहते हैं।
- उपसहसंयोजन प्रजाति (Coordination species) :- उपसहसंयोजन यौगिकों में यद्यपि उपसहसंयोजकता आबन्ध पाये जाते हैं, तथापि सभी उपसहसंयोजकता आबन्ध युक्त यौगिक आवश्यक रूप से उपसहसंयोजन यौगिकों को श्रेणी में नहीं आते हैं। यह पद उस विशेष वर्ग के यौगिकों के लिए आरक्षित रखा गया है जिन्हें आरम्भ में संकुल कहा गया था। अन्य यौगिकों से भिन्नता प्रदर्शित करने के लिए इन्हें कई प्रकार से परिभाषित किया गया है, तथापि कोई पूर्णतः उपयुक्त परिभाषा नहीं दी जा सकी है। विशुद्ध एवं अनुप्रयुक्त रसायन अन्तर्राष्ट्रीय संघ (International Union of pure and Applied Chemistry, IUPAC) द्वारा प्रस्तावित परिभाषा के अनुसार एक उपसहसंयोजन प्रजाति वह अणु या आयन है जिसमें एक धातु परमाणु या आयन से अन्य आयन (A) या अणु (B) सीधे ही संलग्न होते हैं। उदाहरणार्थ, MA3B3 एक उपसहसंयोजन अणु है, क्योंकि इसमें तीनों A आयन तथा तीनों B अणु केन्द्रीय आयन M3+ से सीधे ही संलग्न हैं। इसी प्रकार [MA2 B4 ]तथा [MA4B2 ] उपसहसंयोजन आयन हैं। केन्द्रीय धातु M इलेक्ट्रॉन युग्म ग्राही (acceptor) का कार्य करता है तथा इससे सीधे ही संलग्न परमाणु (A या B) के पास इलेक्ट्रॉनों का कम दान (donate) करके उपसहसंयोजकता आबंध का निर्माण करते हैं। इन इलेक्ट्रॉन दाता आयन तथा कम एक एकल युग्म अवश्य होता है जिसे ये M को अणुओं को लिगण्ड कहते हैं। इस आधार पर दी गई परिभाषा के अनुसार एक उपसहसंयोजन पदार्थ स्वतंत्र अस्तित्व रख सकने वाले धातु आयन तथा लिगण्डों के मध्य इलेक्ट्रॉन युग्मों के सहभाजन से बना वह पदार्थ है जिसमें धातु आयन ग्राही का तथा लिगण्ड इलेक्ट्रॉन दाता का काम करते हैं। उदाहरणार्थ, CoCl3 तथा NH3 से निर्मित [Co(NH3) 4 Cl2]CI एक उपसहसंयोजन अणु है, क्योंकि यह स्वतंत्र अस्तित्व वाले अवयवों (CoCl, तथा NH3) से निर्मित है तथा इसमें CI तथा NH3 इलेक्ट्रॉन दाता का तथा Co3 इलेक्ट्रॉन ग्राही का कार्य करते हैं। उपसहसंयोजन यौगिकों का निर्माण एक उत्क्रमणीय (reversible) अभिक्रिया होती है-
CoCI3 + 4NH3 ====→ [Co(NH3)4CH]CI
उपसहसंयोजन आयन पर आवेश धातु तथा लिगण्डों के आवेशों का बीजीय योग होता है। [Co(NH3)4Cl2]
आयन में केन्द्रीय धातु आयन कोबाल्ट पर आवेश = + 3
चार NH, समूहों के कारण आवेश = 4 x 0 = 0
दो क्लोराइड आयनों के कारण आवेश = 2 x – 1 = – 2
उपर्युक्त उपसहसंयोजन आयन पर आवेश = +3 + 0 – 2 = + 1
- एकनाभिक (Mononuclear) उपसहसंयोजन यौगिक : यह पद उन उपसहसंयोजन यौगिकों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिनमें केवल एक केन्द्रीय धातु परमाणु उपस्थित हो ।
- बहुनाभिक (Polynuclear) उपसहसंयोजन यौगिक:- इन यौगिकों में एक से अधिक केन्द्रीय परमाणु होते हैं। दो केन्द्रीय परमाणु वाले यौगिकों के लिए द्विनाभिक, तीन केन्द्रीय परमाणु युक्त यौगिकों के लिए त्रिनाभिक इत्यादि पद काम में लिए जाते हैं।
- समन्वय संख्या (Coordination number) : किसी उपसहसंयोजन प्रजाति में केन्द्रीय परमाणु से सीधे ही बन्धित परमाणुओं की संख्या धातु की समन्वय संख्या कहलाती है। वैसे तो 2 से 12 समन्वय संख्या के उपसहसंयोजन यौगिक ज्ञात हैं, लेकिन 4 व 6 सर्वाधिक सामान्य समन्वय संख्याएँ हैं । कुछ सामान्य धातु आयन व उनकी समन्वय संख्याएँ सारणी – 3.1 में दी गई हैं।
- लिगण्ड (Ligand) : केन्द्रीय परमाणु से बन्धित परमाणु, अणु या आयनों को लिगण्ड कहते हैं। ये अधिकांशतः ऋणायन या ऐसे उदासीन अणु होते हैं जिनमें कम से कम एक परमाणु पर एक इलेक्ट्रॉन युग्म पाया जाता है। क्योंकि लिगण्ड दाता का तथा धातु ग्राही का कार्य करता है, इनके मध्य पाये जाने वाले बंध को एक तीर द्वारा प्रदर्शित किया जाता है जो लिगण्ड (L) से धातु (M) की ओर इलेक्ट्रॉन युग्म के विचलन (LM) की दिशा बतलाता है। लेकिन सामान्यतः इस प्रकार के आबन्ध को सहसंयोजक आबंध की भांति एक लाइन (-) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है क्योंकि एक उपसहसंयोजन आबन्ध एक विशेष प्रकार से बना सहसंयोजक आबन्ध है। जिसके बनने के बाद उसका एक सामान्य सहसंयोजक बन्ध से अन्तर नहीं बतलाया जा सकता । तथापि कुछ अवस्थाओं में जब कोई कीलेटी लिगण्ड एक उपसहसंयोजकता आबन्ध के अतिरिक्त एवं सहसंयोजक आबन्ध भी बनाता है तो इन आबन्धों के मध्य अंतर स्पष्ट करने के लिए उपसहसंयोजकता आबंध को तीर द्वारा तथा सामान्य सहसंयोजक आबन्ध को एक लाइन द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। कुछ सामान्य लिगण्ड सारणी-3.2 में दिये गये हैं।
लिगण्डों में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन तथा सल्फर अधिक सामान्य दाता परमाणु हैं जबकि आर्सेनिक फॉस्फोरस इत्यादि अपेक्षाकृत कम सामान्य हैं। धातु से आबन्ध बनाने के लिए लिगण्ड अपने जितन परमाणुओं का उपयोग करता है उस आधार पर इन्हें निम्न प्रकार विभाजित किया जा सकता है –
(a) एकदन्तुक लिगण्ड (Monodentate ligand) – जिस लिगण्ड में एक ही दाता परमाणु हो अर्थात केवल एक ही परमाणु को धातु के साथ उपसहसंयोजकता आबन्ध बनाने में प्रयोग में लेता है तो उस लिगण्ड को एकदन्तुक कहा जाता है।
कुछ लिगण्डों के लिए प्रयुक्त संकेत- एथिलीनडाइऐमीन के लिए en, पिरिडीन के लिए py, a, a’ डाइपिरिडिल के लिए bipy, ग्लाइसीन के लिए gly, ऐसीटिलऐसीटोन के लिए acac तथा डाइमेथिलग्लाईऑक्साइम के लिए DMG या dmg
(b) बहुदन्तुक लिगण्ड (Poly or multidentate ligand)- ये लिगण्ड केन्द्रीय परमाणु से दो या अधिक परमाणुओं द्वारा बंधित होते हैं। एक लिगण्ड में यदि ऐसे दो दाता परमाणु हैं। तो वह द्विदन्तुक, तीन दाता परमाणु होने पर त्रिदन्तुक, चार के लिए चतुर्दन्तुक इत्यादि कहलाता है। लिगण्ड में दाता परताणुओं की संख्या उसकी दन्तुकता या बहुकता (denticity or multiplicity) कहलाती है। बहुदन्तुक लिगण्डों को कीलेटी (chelating ) लिगण्ड तथा वह उपसहसंयोजन प्रजाति जिसमें कम से कम एक कीलेटी लिगण्ड उपस्थित हो, कीलेट (chelate) कहलाते हैं। एक कीलेट लिगण्ड के दाता परमाणुओं तथा केन्द्रीय परमाणु द्वारा निर्मित वलय कीलेट वलय (chelate ring) कहलाती है।
(c) उभयदन्तुक या दोहरेदन्तुक (Amblidentate) लिगण्ड-ये वे एकदन्तुक लिगण्ड है जो परमाणुओं के माध्यम से केन्द्रीय परमाणु से बंधित हो सकते हैं। उदाहरणार्थ, CNS-व NCS- उभयदन्तुक लिगण्ड हैं, क्योंकि ये क्रमश: S तथा N के माध्यम से धातु के साथ आबंध बना सकते हैं।
- समन्वय मण्डल या उपसहसंयोजन क्षेत्र (Coordination sphere)– केन्द्रीय धातु परमाणु तथा उससे सलंग्न लिगण्ड समन्वय मण्डल या आन्तरिक क्षेत्र (inner sphere) का निर्माण करते हैं। इसे बड़े कोष्ठक में रखा जाता है। बड़े कोष्ठक के बाहर का भाग बाह्य क्षेत्र (outer sphere) बनाता है। उदाहरण के लिए, [Co(NH3)4Cl2 ]CI में [Co (NH3) 4 Cl2] समन्वय मण्डल या आन्तरिक क्षेत्र तथा ऋणायन CI-बाह्य क्षेत्र हैं।
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